ऊर्जा का महत्त्व, उपयोग एवं संरक्षण

energy conservation   मार्च २०११ में मैं दादा बना। पोते के आगमन पर खुशी तो हो रही थी लेकिन मन में तरह-तरह की शंकाएं भी घर कर रही थीं। कारण था – मेरा पोता निर्धारित समय से एक महीना पूर्व ही आ गया था। यह एक प्री मैच्योर्ड डिलीवरी का केस था। स्वाभाविक था – बच्चा बहुत कमजोर था और वज़न भी कम था। खुशियां तो आईं लेकिन आशंकाओं और दुश्चिन्ताओं की संभावनाओं के साथ। मैंने अपनी चिन्ता डाक्टर को बताई। वे हंसी और बोलीं – “आप नाहक परेशान हो रहे हैं। हम बेबी को १५ दिन तक इन्क्यूबेटर में रखेंगे, उसके बाद ही आपको सौंपेंगे। १५ दिनों में बेबी का फ़ुल ग्रोथ हो जायेगा। चिन्ता की कोई बात नहीं है।” इन्क्यूबेटर एक ऐसा साधन है जिसका तापक्रम मां के गर्भ के समान रखा जाता है। बच्चे को भोजन और केयर बिल्कुल मां के गर्भ की तरह मिलता है। एलेक्ट्रिकल इन्जीनियरिंग, मेकेनिकल इन्जीनियरिंग और मेडिकल साइन्स की उच्च श्रेणी की प्रतिभा के समन्वय का नाम है इन्क्यूबेटर। मेरा पोता १५ दिनों के बाद हास्पीटल से डिस्चार्ज हुआ। वह पूर्ण स्वस्थ था और वज़न भी बढ़ गया था। आजकल वह स्कूल जाता है। अपनी उम्र के लड़कों में वह सबसे ज्यादा सक्रिय है। मैं सोचता हूं कि आपरेशन थिएटर और इन्क्यूबेटर के लिए यदि हमने २४ घंटे की विद्युत आपूर्ति न दी होती, तो क्या हम अपने पोते को वर्तमान रूप में पा पाते?

कुछ वर्ष पहले जो कार्य असंभव दिखता था, आज हम बिजली के माध्यम से चुटकी बजाते कर लेते हैं। २०वीं सदी के आरंभ में हवा और पानी ही हमारे जीवित रहने के प्रमुख कारक थे लेकिन २१वीं सदी के आते-आते हवा और पानी के साथ बिजली का नाम भी जुड़ गया। बिजली हमारी जीवन रेखा बन गई। इस सदी के बच्चे का पहला पड़ाव होगा, बिजली से चलने वाला आपरेशन थिएटर और अन्तिम पड़ाव होगा विद्युत शवदाह गृह।

आज की तारीख में देश का ऐसा कोई भी व्यक्ति नहीं होगा जो बिजली का उपयोग नहीं करता। मोबाइल फ़ोन से लेकर टीवी, किचेन से लेकर बेडरूम, झोंपड़ी से लेकर गगनचुम्बी एपार्टमेन्ट – सबमें बिजली का उपयोग अनिवार्य आवश्यकता बन गई है। हम सभी बिजली का इस्तेमाल तो करते हैं लेकि कभी हमने सोचा है कि बिजली की खपत में बचत करके आने वाली पीढ़ियों और राष्ट्र के उपर हम सीधा अनुग्रह कर सकते हैं?

इस समय उपलब्ध बिजली का ६०% हम ताप विद्युत गृहों से प्राप्त करते हैं। ऐसी बिजली के उत्पादन के लिए कोयले की आवश्यकता होती है। कोयले का भंडार सीमित है। पूरे विश्व में अगर इसी तरह कोयले की खपत होती रही, तो आनेवाले ७५ वर्षों में कोयले का भंडार समाप्त हो जाएगा। फिर हम अगली पीढ़ी के लिए विरासत में क्या छोड़ जायेंगे? क्या हम पुनः लालटेन युग में लौट जायेंगे? समस्या भयावह है लेकिन समाधान असंभव नहीं। छोटा से बड़ा आदमी भी अगर बिजली का इस्तेमाल कंजूस के धन की तरह करे, तो हम अपनी खपत ३५% तक कम कर सकते हैं। इससे हमारा बिजली का बिल भी कम आयेगा और हमारे संसाधन भी लंबे समय तक संरक्षित रहेंगे। इसके लिए कोई कठिन श्रम करने की आवश्यकता नहीं है, बस निम्न सुझाओं को अपनाने की जरुरत है –

१. साधारण बल्ब या ट्यूब राड की जगह सीएफ़एल या एलईडी लैंप का उपयोग किया जाय।

२. एसी. फ़्रीज तथा अन्य विद्युत उपकरण आई.एस.आई. अथवा स्टार रेटिंग वाला ही खरीदा जाय।

३. पंखा/पंप/मोटर आदि की समय-समय पत ग्रिसिंग/सर्विसिंग कराई जाय।

४. काम समाप्त होने पर कंप्यूटर/टीवी/माइक्रोवेव/ओवन/पंखा/लाईट स्विच से बन्द किया जाय।

५. एसी में लगे एयर फ़िल्टर की प्रत्येक सप्ताह सफाई की जाय।

६. फ़्रीज को कम से कम खोला जाय और सप्ताह में कम से कम एक बार डिफ़्रास्ट किया जाय।

७. घर से निकलते समय अनावश्यक विद्युत उपकरण के मेन स्विच बन्द कर दिये जांय।

बिजली की बचत विद्युत उत्पादन करने के समतुल्य है।

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