दिल्ली में एफडीआई पर रोक- आम आदमी के हित में बड़ा फैसला

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-प्रमोद भार्गव-  fdi

दिल्ली के मुख्यमंत्री और आम आदमी पार्टी के नेता अरविंद केजरीवाल की निर्णय क्षमता को दाद देनी होगी कि वह आम लोगों के हित में ऐतिहासिक फैसले लेने में कोई कोताही नहीं बरत रहे हैं। सस्ती बिजली और मुफ्त पानी के बाद आप ने खुदरा व्यापार में प्रत्यक्ष विदेशी पूंजी निवेश पर रोक लगाकर केंद्र की मनमोहन सिंह सरकार को करारा झटका दिया है। यह झटका दिल्ली की पूर्व मुख्यमंत्री शीला दीक्षित को भी है, उन्होंने दिल्ली में एफडीआई के भण्डार खोलने की इजाजत दी थी। इसी फैसले को केजरीवाल सरकार ने पलटा है। केजरीवाल ने ‘डिपार्टमेंट ऑफ इंडस्टियल पॉलिसी एण्ड प्रमोशन‘ को भी इस मकसद पूर्ति के लिए पत्र लिख दिया है। गौरतलब है कि आप अपने घोषणा पत्र में रिटेल में एफडीआई का विरोध कर चुका है। इस नीति सम्मत फैसले से दिल्ली अब एफडीआई रोकने वाला पहला राज्य बन गया है। हालांकि पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने एफडीआई का विरोध करते हुए ही संप्रग-2 से समर्थन वापस लिया था।
पारंपरिक खुदरा व्यापार क्षेत्र में रोजगार से सबसे अधिक 440 लाख लोग जुड़े हैं और करीब 25 करोड़ लोगों की आजीविका इसी व्यापार से चलती है। बिना किसी सरकारी संरक्षण के खुदरा कारोबार करीब 2,43,000 करोड़ का है। इस हकीकत से रु-ब-रु केंद्र सरकार भी है, इसीलिए उसने दस लाख से ज्यादा की आबादी वाले शहरों में ही विदेशी कंपनियों को अपने भण्डार खोलने की इजाजत दी थी। इन शहरों में दिल्ली भी शामिल था। जिन देशों में खुदरा से जुड़ी बड़ी कंपनियां वाल्मार्ट, टेस्को, केयरफोर, मेटो गईं हैं, वहां इन्होंने स्थानीय खुदरा व्यापार को अजगर की तरह निगल लिया है। इसीलिए इनका डर बरकरार है। भारत में खुदरा व्यापार में 61 फीसदी भागीदारी ऐसे खाद्य उत्पादों की है, जिसे अकुशल और अशिक्षित लोग परिवार की परंपरा से अपनाते हैं। इन खाद्य उत्पादों में अनाज, दाल, फल, सब्जी, दूध, चाय, कॉफी, मसाले, मछली, मुर्गा और बकरी पालन जैसे पुश्तैनी धंधे शामिल हैं। नार्बाड के सर्वे के अनुसार, यह कारोबार 11000 अरब रुपये का है, जिस पर असंगठित क्षेत्र के कारोबारियों का एकाधिकार है। इसी सरल खुदरा कारोबार में विदेशी कंपनियों ने सेंध लगाकर परंपरागत कारोबारियों को बेरोजगार कर देने की आशंकाओं के चलते आतंकित किया हुआ है, क्योंकि उनके पास रोजगार के कोई विकल्प नहीं हैं। जाहिर है खुदरा का यह विदेशी नमूना मॉडल उपभोग को तो बढ़ावा देगा ही जो परिवार इससे आजीविका चला रहे थे, उनकी अचल संपत्ति भी छीन लेगा और उनकी संचित राशि खर्च कराकर उन्हें कर्ज में डूबो देगा। अभी तक हमारे यहां आधुनिक खेती-किसानी का दंश किसान भोग रहे थे, अब खुदरा में एफडीआई के बाद इस दंश को व्यापारी भी भोगने को अभिशापित हो गए हैं। फिलहाल दिल्ली को इस अभिशाप से मुक्ति मिल गई है।
एफडीआई के तारतम्य में यह भ्रम फैलाया गया है कि इससे रोजगार के एक करोड नए़ अवसर पैदा होंगे। 40 लाख नौकरियां अकेली वाल्मार्ट देगी। वाल्मार्ट की एक दुकान में औसत 214 कर्मचारी होते हैं। यदि वाल्मार्ट जैसा कि दावा कर रहा है कि वह 40 लाख लोगों को रोजगार देगा तो उसे भारत में 86 हजार बड़े खुदरा सामान के भण्डार खोलने होंगे? जबकि खुदरा की जो वाल्मार्ट, केअरफोर, मेटो और टेस्को जेसी बड़ी कंपनियां हैं, उन सबके मिलाकर दुनिया में 34,180 भण्डार ही हैं। ऐसे में वाल्मार्ट का नौकरी देने का दावा निवेश के लिए वातावरण बनाने के नजरिये से एक छलावा भर है। इस परिप्रेक्ष्य में उस नकारात्मक स्थिति को भी सामने लाने की जरुरत है, जो बड़ी मात्रा में रोजगार छीनेगी। एक सर्वे के अनुसार जिस क्षेत्र में कंपनियां दुकानें खोलेंगी, वहां एक नौकरी देने के बदले में असंगठित क्षेत्र के 17 लोगों का रोजगार नेस्तनाबूद भी करेंगी। तय है, ये मायावी कंपनियां घरेलू खुदरा व्यापार को ही नहीं निगलेंगी, तमाम जिंदगियां भी लील जाएंगी। यह स्थिति बिल्ली के पिंजरे में चूहा छोड़ देने जैसी है।
अभी भी देश में 9 राज्य और ऐसे है,जो एफडीआई के पक्ष में खड़े हैं। देश के 28 राज्यों में से आंध्र प्रदेश, असम, हरियाणा, जम्मू-कश्मीर, महाराष्ट्र, राजस्थान, उत्तराखंड, मणिपुर और पंजाब ऐसे राज्य है जिन्होंने खुदरा व्यापार में एफडीआई को मंजूर किया है। केंद शासित प्रदेश दमन-द्वीव और दादर नागर हवेली ने भी इसे लागू करने पर सहमति जताई है। सहमति के वक्त राजस्थान में कांग्रेस नेतृत्व वाली अशोक गहलोत सरकार थी। इसलिए केंद्र की कांग्रेस नेतृत्व वाली संप्रग सरकार के पक्ष में खड़ा होना राजस्थान की तात्कालीन सरकार की मजबूरी थी। अब विधानसभा चुनाव के बाद राजस्थान में भाजपा की सरकार बन गई है और वंसुधरा राजे सिंधिया मुख्यमंत्री है। श्रीमति सिंधिया एफडीआई के सिलसिले में क्या फैसला लेती है, यह तो भविष्य की बात है, लेकिन अब तक भाजपा शासित किसी भी राज्य ने एफडीआई को मंजूर नहीं किया है। कांग्रेस नेतृत्व वाला केरल राज्य भी एफडीआई के विरोध में है। माणिपुर,दमन द्वीव और दादर नागर हवेली ऐसे राज्य है, जहां दस लाख से ज्यादा आबादी का कोई शहर नहीं है। साफ है कि इन राज्यों ने सहमति कांग्रेस की केंद्र सरकार की हां में हां मिलाने के उद्देश्य से दी थी।
देश में इस समय राजनैतिक दल और राजनेता आम आदमी पार्टी से कदमताल मिलाने की होड़ में लगे है। जाहिर है यदि लोकसभा चुनाव के बाद कांग्रेस पराजित होती है तो कई कांग्रेस शासित राज्य भी एफडीआई के विरोध में आ जाएंगे, क्योंकि एफडीआई का विरोध जताकर अरविंद केजरीवाल ने साफ कर दिया है कि एफडीआई आम आदमी के मुंह से निवाला छीनने का काम करने वाला फैसला है। इस लिहाज से आम आदमी के कल्याण का हित साधने वाली सरकारों को जरूरी हो जाता है कि वह एफडीआई के विरोध में खड़ी दिखाई दे।

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