भारत में स्थित “देवबंद” से मिलता है तालिबान को मानसिक खुराक

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talibanइस्लाम के नाम पर अस्तित्व में आए ‘पाकिस्तान’ के हालत को देख कर भष्मासुर की कहानी याद आती है । वो कहानी आप सबने सुनी होगी । ‘एक बार भगवान शंकर ने भष्मासुर को वरदान दे डाला कि जिसके सर पर हाथ रखेगा वह भष्म हो जाएगा । बस फ़िर क्या था , भष्मासुर ने वरदान का सबसे पहला प्रयोग शिवजी के ऊपर ही कर डाला । वो तो भला हो विष्णु जी का जिन्होंने मोहिनी रूप के पाश में फांस कर भष्मासुर को उसी वरदान के माध्यम से जला डाला । ‘ चिंता मत कीजिये ! अति संछिप्त रूप से इस कथा को बताने का उद्देश्य पाक में वर्तमान स्थिति को समझाना था । कहते हैं इतिहास ख़ुद को दुहराता है । सदियों पुरानी ये कहानी पहले भी अमेरिका में अलकायदा द्वारा दुहराई जा चुकी है, हालाँकि तब अमेरिका जल्द ही संभल गया था । लेकिन पाकिस्तान के संभलने की कोई उम्मीद नही दिखती ।

पाकिस्तान के निर्माताओं ने तो इसकी नीव ही लाखों लोगों के लाश पर रखी थी । अपने जन्म से लेकर अब तक पकिस्तान ने कभी ख़ुद के विकास के बारे में शायद ही सोचा हो ! अरे ,सोचेंगे भी तो कैसे भारत का विनाश और दुनिया पर इस्लाम के एक छात्र राज कायम करने के अलावा इन्होने कुछ सोचा ही नहीं ! प्रकृति ने जब सब को एक नहीं बनाया फ़िर संसार में एकरूपता कैसे लायी जा सकती है ?विविधता ही तो संसार का नियम है पर ये बातें इनके पल्ले नही पड़ती । वैसे तालिबान के इतिहास को खंगाले तो इनका दोगलापन साफ़ दिखता है । तालिबान की यह विचारधारा, ७३ भागों(फिरकों) में बँट चुके इस्लाम की एक शाखा ‘वहाब’ से पैदा हुआ है । इतिहास में थोडी बहुत रूचि रखने वाले लोगों को वहाबी आन्दोलन के बारे में पता होगा । तालिबानी विचारधारा के केन्द्र में यही वहाबियों की सोच है जिसका वर्तमान में एक ही केन्द्र समस्त संसार में बचा है और वो है उत्तर प्रदेश का “देवबंद “। अब तालिबान के बारे में और विस्तार से समझने के लिए हमें वहाबियों के बारे में जान लेना चाहिए । वहाबी के अनुसार इस्लाम की अन्य धारा को मानने वाले भी काफिर हैं ।वो जो कहते हैं वही धर्म है ,वही शरियत है । अफ़गानिस्तान का तालिबान हो या पाकिस्तान का इनका कानून ‘शरियत’ कहीं से भी इस्लाम के अनुरूप नही है ।पकिस्तान में तालिबान का अस्तित्व में आना २००४ में संभव हुआ । अनेक राजनीतिकद्रष्टाओं का ऐसा मानना है कि इसकी गुन्जाईस शुरू से थी , वस्तुतः पकिस्तान में तालिबान का उदय और इतनी तेजी से फैलना कोई अनापेक्षित घटना नहीं कही जा सकती । अनेक बार यह सवाल आता है कि ऐसे में भारत की भूमिका क्या होनी चाहिए ? भारत को खुश होने की जरुरत है या दुखी होने की ? जवाब भी वही है , हमें निश्चित तौर पर चिंतित होना चाहिए । बात पाक में तालिबान की उपस्थिति की नहीं है बल्कि हमारी चिंता का विषय पाक का परमाणु संपन्न राष्ट्र होना है । इस्लामाबाद से महज ६०-७० मील की दूरी पर तालिबान का शासन होना इस बात का सबूत है कि पाक-परमाणु हथियारों पर कभी भी कब्जा हो सकता है ।

भारत और अमेरिका समेत सम्पूर्ण विश्व की चिंता का विषय यही है । इसके अतिरिक्त एक और खतरा जो साफ़ दिख रहा है भविष्य में भारतीय तालिबान के उदय का , परन्तु हम उससे मुंह फिराकर बैठे हैं । तालिबान को जन्म देने वाली संस्था “देवबंद “ का भारत में होना क्या इस संभावना को जन्म नहीं देती ? दरअसल कहीं भी ऐसी संभावनाएं तब तक रहेगी जब तक साधारण मुसलमान अपने दैनिक व्यवहार में हर समय कुरान , शरियत या मुल्लाओं की तस्दीक़ को न छोड़ दे । और ऐसा मैं नहीं कह रहा बल्कि वर्षों तक संघ को पानी पी-पी कर कोसने वाले , हिन्दू धर्म को गलियां उगलने वाले , सदैव सेक्युलर होने का दावा करने वाले , जामिया और अलीगढ मुस्लिम यूनिवर्सिटी में सम्माननीय श्रीमान राजेंद्र यादव जी कह रहे हैं । अब तो बात माननी पड़ेगी ! क्यों नहीं मानेंगे , कल तक तो इनकी हर एक बात ब्रह्म वाक्य थी अब क्या हुआ ?राजेंद्र यादव मई २००९ के हंस के सम्पादकीय में लिखते हैं कि ‘ मैंने २४ वर्ष हंस में जिस तरह हिन्दू धर्म कि बखिया उधेरी है ,क्या मुसलमान रहते हुए वह संभव था ? नहीं ,मेरा कलम किया हुआ सर कहीं ऊँचे बांस पर लटका ‘काफिरों’ में अंजाम का खौफ पैदा कर रहा होता ! ‘

‘राजेंद्र यादव’ उसी सम्पादकीय में कहते हैं , क्या कुरान और शरियत के यही व्याख्याएं हैं जो तालिबानों के दिशा -निर्देश बनते हैं ? क्या शरियत आज की समस्याओं को हल करने के बजाय हमें १४०० साल पीछे के बर्बर कबीलाई समाज में लौटने की मानसिकता नहीं है ? आगे इसी बात को बढाते हुए , कुरान पर सवाल खड़े करते हैं और कहते हैं कि यह कौन सा नियम है जो हम कुरान को लेकर सवाल नहीं उठा सकते , मुहम्मद साहब को लेकर प्रश्न नहीं पूछ सकते ……………. क्यूँ वो सवालों कि परिधि से बाहर हैं ? क्या १४०० वर्ष पूर्व दिए गए आदेश अपरिवर्तनीय और अटल सत्य है जो इस वैज्ञानिक युग में सवालो से परे हैं?

फिलवक्त , पाकिस्तानी तालिबान के बढ़ते प्रभाव और भारत में उदय की आशंकाओं के बीच इस्लाम व शरियत में परिवर्तन को लेकर आवाज बुलंद होनी शुरू हो गयी है । आगे इसका क्या हश्र होगा , क्या हमारे यहाँ के धर्मान्ध मुल्लाओं और वोट बैंक के पुजारिओं के पल्ले इस परिवर्तन की जरुरत समझ आएगी या नहीं ? यह तो भविष्य के गर्त में हैं । हम तो अच्छे की उम्मीद ही कर सकते है और नेताओं को सलाह दे सकते हैं कि कृपा कर इस मुद्दे पर ओबामा की ओर न देखें तथा कुछ कड़े कदम उठायें ! ध्यान रहे राजीव गाँधी की तरह मुस्लिम समाज के वोट का भय न सताए वरना जल्द ही निकट भविष्य में भारतीय तालिबान का अस्तित्व में आना तय है ।

8 COMMENTS

  1. आलेख मे कई सवाल खडे किये गये है ? जिसमे सबसे गम्भीर सवाल यह है कि -देवबन्द का चिन्तन तालिबान की जनक है . इसका अर्थ यह है कि भारत मे ऐसे केन्द्र है जो तालिबान जैसे कट्टृरपन्थी और उग्रवादी सगटन की रचना मे अहम भूमिका निभाते है , अगर ऐसा है तो यह एक खतरनाक बात है देश की जॉच एजेन्सियो को इस ओर ध्यान देना चाहिए ताकि समय रहते जनता के सामने सच आ सके और ऐसा है तो देश उससे बच सके . आलेख मे अन्य बाते भी माने रखती है मसलन श्री राजेन्द्र यादव के माध्यम से धर्म पर चर्चा ,धर्म भी एक विचार है जिसके अनूकुल जो लगा उसने समय के साथ उसे पूरी श्रद्दा के साथ स्वीकार्य कर लिया ,वैसे यथार्थवादी नजरिये से देखा जाये तो यह कहा जा सकता है मानव वही करता है जो उसके निजि हितो के अनूकुल होता है इसके सिवाए मानव कही भी किसी से भी समझौता नही करता है चाहे उसके कर्म धर्म सम्मत हो या नही इससे उसे कोई खास मतलब नही होता है . शरियते भी एक ऐसी चीज है जिसकी व्याख्या लोग अपने -अपने अनुसार करते रहते है . अगर धर्म की बात लोग मानते तो आतक ,हिन्सा , अपराध जैसे अधर्म क्योकर होते ? फिर कौन सा धर्म सर्वोत्तम है कि बहस क्योकर चलती रहती, श्री राजेन्द्र यादव जी का चिन्तन तथ्यपरक है निश्चित रुप से इस्लाम के अनुयायी अपने धर्म ग्रन्थ को अन्तिम सत्य के रुप मे मानते है और खुद किसी भी राह के रही हो पर धर्म की चर्चा पर ऐसा बातो बातो मे ऐसा दिखावा जरुर करने कि आदत का शिकार है कि वह धार्मिक है . और ऐसा अन्य लोग भी करते है .सच तो यह है आप जैसा दुनिया को देखेगे वैसी ही दुनिया नजर आयेगी अगर इस्लाम के मानने वालो मे से केवल सजायफ्ताओ की सूची पर नजर डाली जाये तो कम से कम तह सच तो सामने आ ही जाता है आदमी ढ़ोग चाहे कितना भी कर ले हर आदमी धर्म का आचरण नही करता है और जब कोई अनुयायी धर्म को ही नही मानता है तो उसकी बातो को धर्म से जोड़ कर देखना भी न्यायोचित नही होगा . मेरे विचार से सत्य को सहस के साथ कहने पर खतरा उतना नही होता है जैसा राजेन्द्र जी ने महसूस किया है ,महात्मा गाधी जी ने सत्य के साथ अनेक प्रयोग किये थे परिणाम सकारात्मक ही रहे थे .रही बात सियासत की तो उसका किसी अकेले का आकलन अन्तिम सत्य नही माना जा सकता है ? क्योकि कई राजनैतिक सत्य ऐसे भी है जिसे कभी जाना नही जा सकता है . उस पर बहस वैसे ही चलती रहेगी जैसे कथित धार्मिक सत्यो को लेकर चलती रहती है .और अक्सर ऐसी बहसे नीरस और बेनतीजा ही रहती है .

  2. हम सनातानिओं (जिन्हें आम लोग हिन्दू बोलते हैं) को अपने अतीत के गौरव को जगाना होगा ………. राष्ट्रवाद को धर्म से पृथक नहीं मन जा सकता , और नहीं राजनीति को क्योंकि धर्म तो हमारे जीने की पद्धति है और राजनीति उसको व्यवस्थित करती है .

  3. article mein batein tark aur aitihasik tathyon ke adhar par kahi gayi hai , rajendra yadav jaise vampathi lekhako ko quote kiya gaya hai . comments bhi tarko ke adhar pra aye to thik rahega , sangh ko gali dekar sach ko jhuth nahi banaya ja sakata. vaise bhi anargal pralap par to leftiston ne patent kara rakha hai

  4. I would like to add that now people know more but do less for anything which concerns them. Even Muslims who are intelligent they can atleast educate their brothern to come out of the shackles.

  5. देओबंद के दारुल उलूम को अन्दर से देखने के बाद, मुझे लगा कि इस संस्थान को मध्ययुगीन जीवन शैली और शिक्षा पद्यति से उबरने में अभी सदियाँ लगेंगी.

  6. क्या????????? संघियों ने राजेन्द्र यादव को पैसे खि्लाये हैं? वाह परवीन जी वाह…

  7. संघिओं ने कितने पैसे खिलाएं है विप्लव जी जो ऐसी अनर्गल बातें लिख रहे हैं

  8. इतना दुस्साहस ! घोर अनर्थ ! सेकुलरों के सैरगाह के बारे में ऐसी बातें और वो भी कांग्रेस के राज में , पकड़ लाओ इस मूढ़ बालक को और लगा दो रासुका ……………………….

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