इतिहास लिखने की तैयारी में गुजरात

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votingमामला चाहे हिन्दुत्व का हो या शराबबंदी का, हर पहलू पर गौर फरमाने के बाद गुजरात के सूबेदार नरेंद्र मोदी ने अलग कदम ही उठाए हैं। जिसके कारण वे सदा ही चर्चाओं में रहे हैं। अब गुजरात में वोट डालना अनिवार्य करने की कवायद की जा रही है, विधानसभा में अगर विधेयक पारित हो गया तो देश के इतिहास में गुजरात देश का पहला राज्य होगा जहां मतदान न करने पर सजा का प्रावधान किया जा रहा हो।

वैसे दुनिया के अनेक देश एसे हैं जहां जनसेवक चुनने के लिए मतदाताओं को जनादेश देना अनिवार्य किया गया है। इसके लिए भले ही वह मतदान न करे पर मतदान केंद्र में अपनी उपस्थिति दर्ज कराना होता है। कुछ देशों में नकारात्मक मतदान की व्यवस्था भी है, जिसके मुताबिक मतदाता को किसी भी प्रत्याशी को वोट नहीं देने का विकल्प भी दिया जाता है। मतदान न करने या मतदान केंद्र में उपस्थित न होने के लिए मतदाता को पर्याप्त कारण देना होता है। अगर संतोषजनक कारण न प्रस्तुत किया जाए तो मतदाता को जुर्माना या कम्युनिटी सर्विस (सामुदायिक सेवा) करनी होती है। जुर्माना अथवा कम्युनिटी सर्विस न करने की दशा में मतदाता को सजा का प्रावधान भी है।

दक्षिण आफ्रीका, अर्जेंटीना, स्विटजरलेंड, इटली, यूनान, आस्ट्रिया, ब्राजील, कांगो, फिजी, मेक्सिको, बेल्जियम, तुर्की आदि देशों में मतदान को अनिवार्य किया गया है। मिस्त्र में मतदान अनिवार्य है, किन्तु यह अनिवार्यता केवल पुरूषों के लिए ही सीमित है। आस्ट्रिया में मतदान करें या न करें पर मतदान स्थल पर हाजिरी अनिवार्य है। यहां 20 से 50 डालर का जुर्माना देना पडता है अगर मतदाता मतदान केंद्र न पहुंचे तब।

यूनान में मतदान न करने पर चालक अनुज्ञा और पासपोर्ट नहीं बनाया जाता है। इतना ही नहीं बेल्जियम में चार चुनाव लगातार वोट न देने पर 10 साल के लिए मताधिकार से वंचित रहना पडता है। बोलविया में मतदान करने पर एक कार्ड प्रदान किया जाता है। चुनाव के तीन माह बीतने की अवधि तक अगर मतदाता उक्त कार्ड नहीं दिखाता है तो उसके बैंक से सारे ट्रजेक्शन्स रोक दिए जाते हैं।

गुजरात में नरेंद्र मोदी के नेतृत्व वाली भाजपा सरकार ने अगले साल होने वाले स्थानीय निकाय चुनावों में मतदान को अनिवार्य बनाने का अनुकरणीय फैसला किया है। इसके लिए आहूत विधानसभा सत्र में गुजरात सत्तामण्डल संशोधन विधेयक 2009 लाया जा रहा है। यदि विधेयक पारित हो गया तो सूबे के 3 करोड 64 लाख से अधिक मतदाताओं को स्थानीय निकाय चुनावों में अपने मताधिकार का प्रयोग करना ही होगा।

मोदी सरकार ने वोट न देने की स्थिति में मतदाता को डिफाल्टर घोषित कर दिया जाएगा, और इस तरह का मतदाता सरकारी जनकल्याणकारी योजनाओं के लाभ से वंचित रखा जाएगा। मतदान न करने वाले मतदाता से 30 दिनों के अंदर जवाब मांगा जाएगा। जवाब संतोषजनक न होने की स्थिति में मतदाता को डिफाल्टर घोषित कर दिया जाएगा। इस विधेयक में नेगेटिव वोटिंग अर्थात किसी भी प्रत्याशी को मत नहीं देने का विकल्प भी रख गया है।

गौरतलब होगा कि इसी साल अप्रेल में देश के सर्वोच्च न्यायलय ने महाराष्ट्र सूबे के अतुल सरोदे द्वारा मतदान अनिवार्य करने संबंधी याचिका को सिरे से खारिज कर दिया गया था। देश की सर्वोच्च अदालत ने कहा था कि कानून के सहारे मतदाता को मतदान केंद्र तक नहीं ले जाया जा सकता। मतदान मतदाता का स्वविवेक का अधिकार है। सरकार को चाहिए कि मतदान के प्रति जागरूकता पैदा करे। इसे कानून की बंदिश में नहीं बांधा जा सकता है।

वैसे देखा जाए तो देश में अमूमन पचास से साठ फीसदी लोग ही मतदान का प्रयोग करते हैं। आम तौर पर पढे लिखे शहरी मतदाताओं का मतदान के प्रति कम ही रूझान देखने को मिलता है। इसका कारण राजनैतिक तौर पर व्याप्त गंदगी ही है। आम शहरी मतदाता भ्रष्टाचार और नैतिक पतन के साथ मैदान में उतरने वाले प्रत्याशियों से आजिज आ चुका है। यही कारण है कि वह मतदान के प्रति अरूचि ही दर्शाता है।

वहीं दूसरी ओर शहरों के इर्द गिर्द बसे मजरे टोले और ग्रामीण अंचलों में म

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लिमटी खरे
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