2017 के चुनावों में सबसे बड़ा संकट कांग्रेस के पास

chintan shivir of congress
मृत्युंजय दीक्षित
लोकतांत्रिक व्यवस्था मे सभी राजनैतिक दल अपनी विचारधाराओं के अनुरूप चुनावों की तैयारी हर मौसम व बुरी से बुरी परिस्थितियो में भी करते रहते हैं। वर्तमान समय में 65वर्षो से सत्ता में रही कांग्रेस पार्टी इस समय सत्ता से बाहर है और लगातार एक के बाद एक बड़ी पराजय झेलती जा रही है। वहीं दूसरी ओर अगले साल 2017 कम से कम छह विधानसभा राज्यों में चुनाव होने जा रहे है।इन प्रांतों में कांग्रेस मुख्य लड़ाई में आने के लिए कमर कस रही है। सबसे महत्वपूर्ण राज्य उप्र हैं जहां फिलहाल सपा व बसपा के आगे कांग्रेस का दम निकल रहा है। उत्तराखड में कांग्रेस सरकार पर संकट कायम है। पंजाब में आम आदमी पार्टी की मौजूदगी से वहां पर भी उसकी दावेदारी उतनी मजबूत नहीं दिखलायी पड़ रही है। यह बात अलग है कि भारी संख्या में वहां मौजूद दलित वोटबैंक किस ओर जाता है। पंजाब में सिख समुदाय कांग्रेस के साथ नहीं जा सकता वह विभाजित है। क्रिकेट की भाषा में केवल गुजरात और गोवा कांग्रेस के लिए छुपे रूस्तम साबित हो सकते है। लेकिन अभी काफी समय है। कांग्रेस पार्टी ने अभी पंजाब में कमलनाथ को प्रभारी बनाकर भेजा है लेकिन 84 के सिख दंगों का भूत एकबार फिर जाग उठा। आम आदमी पार्टी व शिरोमणि अकाली दल का तीखा हमला वो झेल नहीं सके और बैरंग पंजाब से वापस लौटना पड़ा।
2017 में कांग्रेस की असली परीक्षा उत्तर प्रदेश में होने जा रही है। कांगे्रस ने यहां की कमान प्रशांत किशोर को दे दी है। आजकल यही पीके कांग्रेस पार्टी के लिए चुनावी रणनीति तैयार करने में जुटे है। लेकिन उनके माथे पर बल आ गये हैं। पीके जिस प्रकार से कांग्रेस संगठन के साथ बैठकंे कर रहे हैं उसके कारण कांग्रेसी कार्यकर्ताओं व नेताओं का मनोबल काफी तेजी से धराशायी हो रहा है। आज उप्र में कांग्रेस के सामने सबसे बड़ा संकट उसका परम्परागत वोटबैंक का उससे पूरी तरह से छिटक जाना रहा है। आज कांग्रेस के साथ तो ब्राहमण मतदाता रह गया है और न ही शेष सवर्ण मतदाता। दलित ,पिछड़ा तथा अतिपिछडा वर्ग तो कांग्रेस पार्टी से दूर है ही वहीं धर्मनिरपेक्ष दलों के लिए मजबूत आधार देने वाले मुस्लिम मतदाता तो कांग्रेस से बहुत अधिक खफा हैं। सबसे बड़ी ंिचता का विषय कांग्रेस के लिए यह है कि उसके पास प्रदेश में स्थानीय स्तर का पूरे प्रदेशभर मेंलोकप्रिय नेता नहीं रहा। जब से पूर्व मुख्यमंत्री नारायण दत्त तिवारी कांग्रेस से लगभग जुदा से हो गये तब से कांग्रेस पार्टी के हालात बुरे होते जा रहे हैे।
दूसरी ओर पीके की कार्यप्रणाली से नाराज होकर पूर्व कांग्रेसी नेता बेनी प्रसाद वर्मा पहले ही सपा के साथ चले गये हैं।बाराबंकी क्षेत्र के कई कांग्रेसी भी पार्टी को अलविदा कह चुके हैं। कांग्रेस पार्टी के साथ आज नयी सोच नहीं, विचारधारा नहीं है। कांग्रेस पार्टी के पास युवाओं को आकर्षित करने वाला कोई्र दमदार चेहरा नहीं बचा है जो हैं भी वे सब के सब वंशवाद और उसकी चरणवंदना करने वाले है। कांग्रेस पार्टी में आज की तारीख में नयी ऊर्जावान विचारों का घोर अभाव हो गया है। उप्र में कांग्रेस के समक्ष कई चुनातियां हैं। कांग्रेस अभी यह नहीं तय कर पा रही है कि वह किस प्रकार का जातीय समीकरण बनाये। अभी फिलहाल जो खबरें आ रही हैं। उससे पता चलता है कि कांग्रेस दलित ,ब्राहमण और मुस्लिम गठजोड़ के बहाने ही अपनी प्रादेशिक सियासत को चमकाना चाहेगी। मुस्लिम मतदाता को संकेत देते हुए कांग्रेस ने वरिष्ठ नेता गुलाम नवी आजाद को अपना प्रभार नियुक्त किया है। लेकिन आजाद के ही पार्टी में नेताओं के बीच बढ़ रही दुूरियां सामने आ गयीं प्रदेश अध्यक्ष निर्मल खत्री आजाद के स्वागत समारोह और बैठक में नहीं शामिल हुये। यहां तक कि जों होंर्डिग्स पार्टी कार्यकर्ताओं की ओर से लगाये गये थे उसमें उनका चित्र भी नहीं लगाया गया था।
खबरें तो यह भी हैं कि पीके के प्रयोगों के चलते कांग्रेस लगातार बिखर रही है। पीके जहां -जहां बैठकें आदि कर रहे हैं वहां -वहां पर दिग्गज कांग्रेसी नेता किनारा कर रहे हैं। पूर्वाचंल की बैठकों में तो पीके के सामने ही कार्यकर्ताओं व नेताओं के बीच मारीपट की भी नौबत आ चुकी है। कई जिलों में तो पीके की बैठकों में नोइंट्री का बोर्ड लग गया । वैसे पीके की योजना काफी बड़ी दिख रही है वह अब उसमे कितने सफल होते हैं यह तो समय ही बता पायेगा। पीके दसूरे दलों के बड़े दलित नेताओं से भी बात कर रहे हैं। उनकी इच्छा है कि कांग्रेस का कार्यालय हर ब्लाॅक व वार्ड में खोल दिया जाये। बीच में यह भी खबरें आयी कि उनकी मधसूदन मिसत्री से भी नहीं पटरी खा रही है। यदि उन्हें लगेगा कि उनकी पार्टी में तौहीन हो रही है तो वे पीके भी कांग्रेस को अलविदा कह सकते है। एक प्रकार से कांग्रेस के अंदर कुछ भी ठीक नहीं चल रहा है। वहीं दूसरी ओर अब कांग्रेस का एकमात्र सहारा मुस्लिम वोट बैंक ही बचा है यही कारण है कि मुसिलमों को कांग्रेस के मंच पर लाने के लिए ही गुलाम नवी आजाद को प्रभारी बनाकर भेजा गया है। लखनऊ आते ही उन्होनें अपने बयानों के आधार पर भविष्य की रूपरेखा बतानी प्रारम्भ कर दी है।
गुलाम नबी आजाद ने कहाकि प्रदेश का अगला चुनाव साम्प्रदायिकता बनाम गैर साम्प्रदायिकता के मुदे पर लड़ा जायेगा। एक प्रकार से उन्हांेने अपनी असली मंशा जता दी है कि वे भी जमकर मुस्लिम तुष्टीकरण की राजनीति ही करने आये है। कैराना आदि अन्य स्थानों पर पलायन की घटनाओं पर जिस प्रकार का बयान आजाद ने दिया है उससे पता चल रहा है कि आजाद मुस्लिम वोट बैंक के लिए कितना छटपटा रहे है।
ज्ञातव्य है कि विगत 27 वर्षों से कांग्रेस सत्ता से बाहरहै। कांग्रेस का मानना है कि मंदिर आंदोलन के बाद कांग्रेस से दूर हुए मुस्लिम मतदाता को पुन: वापस लाने का यह अच्छा समय है। देवबंद उपचुनाव में कांग्रेस के मुस्लिम उम्मीदवार को मिली जीत से भी कांग्रेस का मनोबल बढ़ा है। वर्तमान विधानसभा में कांग्रेस के मुस्लिम विधायकांे की संख्या पांच हो गयी है। प्रदेश उपाध्यक्ष डा. यूसूफ कुरैशी का मानना है कि विगत लोकसभा चुनावों में भाजपा के मिली अप्रत्याशित जीत के बाद से मुस्लिमों का बसपा और सपा जैसे क्षेत्रीय दलों से मोहभंग हुआ है।इन दोनों दलों के कारण मुसलमान वोटबैंक बनकर रह गया। जबकि वास्तविकता यह है कि जबकि वोटबैंक के नजरिये मुसलमानो का सबसे बड़ा दोहन कांग्रेस ने ही किया है। आज देश के मुसलमानों के जो दयनीय हालात बन गये हैं उसके पीछे कांग्रेसी विचारधारा ही है। कांग्रेस कभी नहीं चाहती थी कि मुस्लिम समाज का नये विचारों के साथ उत्थान हो तथा वह फतवे की राजनीति से आगे सोचे। यही कारण हैकि 1991 से लेकर अब तक कांग्रेस का मुस्लिम वोटप्रतिशत लगतार नीचे गिरताचला गया है।
कांग्रेस के सामने सबसे बड़ी और गंभीर समस्या यह है कि उसके पास गांधी परिवार के आगे कोई ऐसा बड़ा नेता नही रह गया है जो अपने ओजस्वी भाषण व कार्यक्रमो के बल पर जनता व युवा मतदाता को आकर्षित कर सके। ले देकर कांग्रेसी कार्यकर्ता केवल और केवल प्रियंका लाओ कांग्रेस बचाओ का ही नारा लगा रहे हैं। आज की तारीख में कांग्रेस की हालत इतनी बुरी हो चुकी है कि प्रियंका भी उसके लिए जादू की छड़ी फिलहाल साबित नहीं हो सकती। यह इस बात का सबूत है कि कांग्रेसी अब पूरी तरह से एक परिवार के गुलाम हो चुके हैं। कांग्रेसियों को चरणवंदना के आगे कुछ सूझ नहीं रहा हैं। कांग्रेस पार्टी ने अपने एक चरणवंदक को ही उत्तरप्रदे शका प्रभारी बनाकर भेज दिया हे। आते ही उन्होनें भी केवल चरणवंदना की है। कोई नयी बात या फिर विचार लेकर कार्यकर्ता और जनता के बीच लेकर नहीं आये। आजाद ने भी प्रियंका का पूरे प्रदेश में प्रचार करवाने की बात तो कही है लेकिन कांग्रेस में जिस प्रकार से अध्यक्ष व मुख्यमंत्री पद के दावेदारों को लेकर अभी से ही रस्साकशी चल रही है उससे कांग्रेस का भविष्य फिलहाल अभी कुछ समय और सत्ताविहीन रहने का है। कांग्रेस को चरणवंदना से आगे बढ़कर सोचना ही होगा नही तो अब गांधी परिवार के साथ ही कांग्रेस का भी पूरी तरह से अंत हो जायेगा। वर्तमान समय विकासवाद का हैं । केवल विकास की राजनीति का ही परचम पूरे देश में फहरोयगा।
मृत्युंजय दीक्षित

1 COMMENT

  1. पी के के लिए यू पी वाटर लू सिद्ध होने वाला है , जिस तरह से चुनाव से पहले उठा पठक होनी शुरू हुई है उसमें भी कांग्रेस को कुछ ज्यादा (ज्यादा भी क्या कुछ भी )हाथ लगने वाला नहीं है ,ऐसे में यदि शीला दीक्षित को भी लाया गया तो वह भी परास्त ही होंगी क्योंकि न तो ब्राह्मण वोट मिलेंगे और न ही “बहूजी” का कोई लाभ , यदि कुछ लाभ मिलेगा तो प्रियंका या राहुल को भावी सी एम घोषित कर के मिल सकता है , और वह न कॉंग्रेस चाहेगी और न सोनिया , राहुल प्रियंका भी ऐसा करना पसंद करेंगे , ऐसी अवस्था में आज के समीकरण से तो फिर कांग्रेस चौथे नंबर के लिए ही फिट बैठती है

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