इस्लाम के नाम पर यज़ीदियत फैलाती वहाबियत

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-तनवीर जाफ़री-
islam

कुरान शरीफ़ की शिक्षाओं से लेकर अपने आखिरी रसूल हज़रत मोहम्मद के निर्देशों की बदौलत इस्लाम धर्म एक शांति, प्रेम, सद्भाव तथा मानवता की रक्षा करने वाले धर्म के रूप में पूरे विश्व में अपनी पहचान बनाता रहा है। परंतु यह भी सच है कि अपने अस्तित्व में आने से लेकर अब तक यही इस्लाम धर्म बड़े पैमाने पर भीतरघात, बाहरी साजि़श, विवाद, मतभेद, आलोचना तथा मुस्लिम शासकों द्वारा अपने साम्राज्य के विस्तार हेतु इस्लाम को अपने ढंग से परिभाषित करने जैसी बड़ी साजि़शों का भी शिकार होता रहा है। और यही वजह है कि हज़रत मोहम्मद के जीवनकाल में जो इस्लाम केवल एक इस्लाम धर्म के रूप में जाना जाता था और जिस धर्म के अनुयायी केवल मुसलमान कहे जाते थे वही धर्म आज 73 अलग-अलग वर्गों व नामों में विभाजित हो चुका है। और इसके मुस्लिम अनुयायी मुसलमान होने के साथ-साथ अथवा मुसलमान होने के अतिरिक्त अन्य दूसरे नामों से भी अपने वर्ग या फिरके का परिचय कराने लगे हैं। और इससे भी दुर्भाग्यपूर्ण बात यह है कि इस्लाम धर्म से निकले या अलग हुए यही फिरके स्वयं को सच्चा व वास्तविक मुसलमान कहलाने के लिए सब कुछ कर गुज़रने को तैयार हैं। और इस समय पूरी दुनिया का ध्यान अपनी ओर आकर्षित करने वाले इन्हीं में से एक वर्ग का नाम है वहाबी वर्ग।

ऐतिहासिक रूप से इस फिरके यानी वहाबियत की स्थापना लगभग 260 वर्ष पूर्व सऊदी अरब के एक कट्टरपंथी अरब विद्वान मोहम्मद इबने अब्दुल वहाब नजदी द्वारा की गई थी। अब्दुल वहाब ने सबसे पहले पैगंबर हज़रत मोहम्मद के परिवार के सदस्यों तथा उनके सहयोगियों (सहाबियों) की कर्बों,मज़ारों, व दरगाहों को तथा उनसे संबंधित ऐतिहासिक स्थलों को ध्वस्त करने का फतवा दिया और इसके अनुयाइयों ने इसलाम की इन ऐतिहासिक धरोहरों को यह कहकर नष्ट करना शुरू कर दिया कि इन स्थलों पर जाना, इनके दर्शन करना तथा वहां सर झुकाना बुतपरस्ती व गुनाह है। सऊदी अरब में उस समय शाही गद्दी पर विराजमान सऊद परिवार की हुकूमत भी अब्दुल वहाब नजदी के इन $फतवों से प्रभावित हुई। और यह शाही परिवार भी वहाबियत के रंग में पूरी तरह रंग गया। उधर अंग्रेज़ों को इस्लाम धर्म में कट्टरपंथियों की बढ़ती शक्ति का अंदाज़ा उसी समय हो गया और उन्होंने गोया ‘सांप को दूध पिलाना शुरू कर दिया। यह सिलसिला आज तक जारी है। दुनिया जानती है कि सऊदी अरब का वहाबी विचारधारा रखने वाला शाही परिवार आज अमेरिका का सबसे घनिष्ठ मित्र परिवार है। और यही दुनिया यह भी जानती है कि विश्व शांति को भंग करने में तथा लाखों बेगुनाह इंसानों की हत्या करने में सबसे बड़ी भूमिका निभाने वाले ओसामा बिन लाडेन, मुल्ला मोहम्मद उमर, जि़या उल हक, अबु बकर बग़दादी तथा हाफिज़ सईद जैसे लोग इसी सऊदी परिवार व वहाबी विचारधारा की देन हैं। गोया आतंकवाद के सबसे बड़े पोषक व पैरोकारों ने इस्लाम के नाम पर वहाबियत का चोला पहन रखा है।

वहाबियत की शिक्षा कहीं से भी कुरान शरीफ की शिक्षाओं तथा हज़रत रसूल के निर्देशों यानी हदीस-ए-रसूल से दूर-दूर तक मेल नहीं खाती। मिसाल के तौर पर कुरान शरीफ में अथवा हज़रत रसूल के इस्लामी निदेर्शों में कहीं भी इस बात का जि़क्र नहीं है कि जो व्यक्ति इस्लाम को न स्वीकार करे या मुसलमान बनने से इंकार करे उससे ज़ोर-ज़बरदस्ती की जाए अथवा उसे मार डाला जाए। कुरान शरीफ में अल्लाह को रब्बिल मुसलमीन नहीं बल्कि रब्बिलआलमीन बताया गया है। यानी कि अल्लाह केवल मुसलमानों का नहीं बल्कि पूरे आलम अर्थात् पूरी सृष्टि का रब है। यहां तक कि पृथ्वी के सभी प्राणी, जीव-जंतु, पौधे सभी उसकी प्रिय रचनाएं हैं। फिर वह अल्लाह केवल मुसलमानों का अथवा केवल वहाबियों का कैसे हो सकता है? खुद हज़रत मोहम्मद साहब ने अपनी हदीस में फरमाया है कि दीन धर्म के मामले में कोई जब्र या ज़बरदस्ती नहीं है। जिस का दिल चाहे वह इस्लाम को माने और जो चाहे वह न माने। हर व्यक्ति अपने कर्मों का स्वयं जि़म्मेदार है। इस्लाम पूरे विश्व के सभी इंसानों को आपसी भाईचारे,प्रेम व सद्भाव के साथ रहने की सीख देता है। हज़रत मोहम्मद साहब ने मानवता का संदेश देते हुए अपने जीवन में बार-बार यह बात कही कि जो व्यक्ति इस्लाम स्वीकार नहीं भी करता उसके साथ इंसान होने के नाते हमें अच्छा सुलूक करना चाहिए। किसी पर ज़ुल्म व जब्र नहीं करना चाहिए। क्योंकि अल्लाह तआला धरती पर ज़ुल्म, आतंक तथा फ़साद को कतई पसंद नहीं करता। बल्कि अल्लाह ज़ालिमों पर लानत करता है। कुरान शरीफ में साफतौर पर अल्लाह का यह निर्देश अंकित है कि जिस शख़्स ने किसी एक भी बेगुनाह को कत्ल किया उसने पूरी इंसानियत को कत्ल किया। और जिसने किसी एक इंसान को बचाया उसने पूरी इंसानियत को बचा लिया। अल्लाह बेगुनाहों के क़त्ल पर नाराज़ व किसी की जान बचाने वाले पर खुश होता है।

अब ज़रा क़ुरानी शिक्षा तथा हदीस-ए-रसूल के संदर्भ में वर्तमान वहाबियत के विस्तार के प्रयासों पर भी नज़र डालिए। आज पूरी दुनिया में आतंकवाद का पर्याय समझे जाने वाले लगभग सभी संगठन यानी अलक़ायदा,अल शबाब, तालिबान,तहरीक-ए-तालिबान,जमात-उद-दावा,अल नुसरा,हिज़बुल मुजाहिदीन, लश्करे तैयबा तथा बोको हराम जैसे सभी आतंकी संगठन इसी वहाबी विचारधारा के अलमबरदार हैं। यहां तक कि सीरिया व इराक में इस खून की होली खेल रहा आईएसआईएस अथवा दाईश नाम का संगठन जोकि आक्रमणकारी मुस्लिम ज़ालिम शासकों की तर्ज़ पर कथित इस्लामी साम्राज्य स्थापित करने का सपना देख रहा है, वह भी इसी वहाबी विचारधारा का प्रतिनिधित्व करता है। जिस प्रकार 260 वर्ष पूर्व सऊदी अरब में वहाबी विचारधारा की हुकूमत ने इस्लाम से जुड़ी अनेक ऐतिहासिक धरोहरों को तहस-नहस करना शुरू कर दिया था, उसी राह पर चलते हुए आईएसआईएस के लड़ाके सीरिया व इराक में पीरों-फकीरों व हज़रत मोहम्मद के परिवार के सदस्यों तथा उनके सहयोगियों की मज़ारों को ध्वस्त कर रहे हैं। इस विचारधारा के मौलवी बड़ी बेशर्मी के साथ यह फतवा जारी कर रहे हैं कि इंसानियत का खून बहाने वाले इन शैतानी लड़ाकों के साथ इराक व सीरिया की महिलाएं स्वेच्छा से सेक्स करें तथा इन राक्षसों की शारीरिक भूख मिटाएं। यह कुरान शरीफ या हदीस-ए-रसूल की कौन सी शिक्षा है जो वहाबी मौलवियों द्वारा फतवे के रूप में प्रचारित की जा रही है?

जब सीरिया के एक उदारवादी मौलवी ने यह फतवा जारी किया कि हज़रत रसूल व उनके परिजनों व सहाबियों से जुड़ी दरगाहों,रोज़ों व धर्मस्थलों को बचाया जाए तो इन शैतानी लड़ाकों तथा यज़ीदियत के पैरोकारों ने उस मुफ्ती को उसके 47 सहयोगियों के साथ बम विस्फोट से उड़ा दिया। जब वहाबी विचारधारा के इन आतंकी गुंडों ने इस उदारवादी मौलवी की 47 अन्य मुसलमानों के साथ हत्या की उस समय सऊदी अरब में काबा शरीफ के प्रमुख इमाम ने जोकि अक्सर भारत भी आता रहता है दुनिया के मुसलमानों से यह अपील की कि वे उस सीरियाई मुफ्ती की मौत पर जश्र मनाएं। इस प्रकार की घटनाएं तथा वहाबी धर्मगुरुओं के ऐसे बयान अपने-आप में यह सोचने के लिए पर्याप्त हैं कि वहाबियत और यज़ीदियत में कोई अंतर नहीं है। इस्लामी धरोहरों को ध्वस्त किए जाने जैसा इस्लाम विरोधी कार्य जो आज आईएसआईएस द्वारा किया जा रहा है वह सऊदी सरकार अभी तक करती आ रही है। 1920 में इसी वहाबी सऊदी शासन ने मक्का मदीना में स्थित हज़रत मोहम्मद की कब्र के आसपास दफन किए गए उनके परिवार के सदस्यों व उनके सहयोगियों की कब्रें खोदी थीं। अभी कुछ समय पूर्व भी हज स्थल के चारों ओर मौजूद ऐसी ओर भी कई ऐतिहासिक धरोहरों को इसी वहाबी विचारधारा के लोगों द्वारा अरब के विकास के नाम पर तहस-नहस कर दिया गया। उनपर बुलडोज़र चलाकर वहां पांच सितारा होटलों का निर्माण कराया गया तथा हज पर्यटन के नाम पर अपने वहाबी एजेंडे को लागू किया गया।

आज पूरी दुनिया के तमाम देश खासतौर पर इराक,पाकिस्तान, अफ़ग़ानिस्तान, इंडोनेशिया, मलेशिया, सीरिया व कई अफ्रीकी देश इस्लाम के नाम पर ज़हर फैलाने वाली इस वहाबी विचारधारा से प्रभावित आतंकी संगठनों द्वारा फैलाए जा रहे आतंक की चपेट में हैं। कुल मिलाकर यह कहा जा सकता है कि इस समय पूरे विश्व में इस्लाम धर्म व मुसलमानाों की बदनामी का सबसे बड़ा कारण वह वहाबी विचारधारा है जिसका पालन-पोषण तथा आर्थिक संरक्षण सऊदी अरब के शाही परिवार द्वार किया जा रहा है। और बड़े आश्चर्य की बात है कि दुनिया में कट्टरपंथी आतंकवादी तथा यज़ीदियत की विचारधारा का प्रचार व प्रसार करने वाला यही शाही घराना अमेरिका का सबसे घनिष्ठ सहयोगी है। ऐसे में क्या सऊदी अरब अथवा अमेरिका यज़ीदियत के रूप में फैलती वहाबियत से स्वयं को बरी अथवा पाक-साफ कह सकता है?

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  1. लेखक तनवीर ज़ाफ़री जी का इस जानकारीपूर्ण लेख के लिए धन्यवाद।
    (१) सऊदी अरब के शाही घराने को, और उनके शासन को अमरिका तब तक सहयोग देगा, जब तक सऊदी अरब के पास मिट्टीका तेल है। अमरिका पूँजीवादी देश है। उसके सारे निर्णय अंततोगत्वा इसी पूँजीवाद से निर्धारित होते हैं।
    (२) अमरिका को, पाक साफ होने की चिन्ता भी नहीं (है) होगी; पर शब्दों की चालाकी कर “पाक साफ” प्रमाणित होने की कूटनीति अवश्य करती है।
    (३) इस छद्मवेषी हिंसा को सहने के सिवा, क्या किया जा सकता है?
    (४) जनता जो भोली होती है, प्रचार का शिकार हो जाती है। और पैसा भी है सऊदी शासकों के पास; जिसके बलपर सारे उचित-अनुचित काम चल रहे हैं।
    आपके विश्लेषण को नमन।

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