भारत-भू पर हुए अवतरित, एक महा अवतार थे ।
थी विशेष प्रतिभा उनमें, वे ज्ञानरूप साकार थे ।।
तेजस्वी थे, वर्चस्वी थे , महापुरुष थे परम मनस्वी ।
था व्यक्तित्व अलौकिक उनका, कर्मयोग से हुए यशस्वी ।।
भारत के प्रतिनिधि बनकर वे, अमेरिका में आए थे ।
जगा गए वे जन जन को , युग-धर्म बताने आए थे ।।
सुनकर उनकी अमृतवाणी , सभी विदेशी चकित हुए ।
सभी प्रभावित हुए ज्ञान से , अनगिन उनके शिष्य हुए ।।
भारत की संस्कृति का झंडा, तब जग में लहराया था ।
अपने गौरव, स्वाभिमान का , हमको पाठ पढ़ाया था ।।
आस्था, निष्ठा, आत्मज्ञान और ब्रह्मज्ञान को कर उद्घाटित ।
सब में वही आत्मा है , मानव-सेवा को किया प्रचारित ।।
आए थे ‘नरेन्द्र’ बन कर जो , वही महा-ऋषि सिद्ध हुए ।
दे ‘विवेक’ ‘आनन्द’ जगत को ,”विवेकानन्द” प्रसिद्ध हुए ।।
शकुन्तला बहादुर
प्रास भी साधा गया। और अर्थ भी सधा है। काव्य भी अर्थपूर्ण हो गया है। प्रेरणादायी कविता।
मुझे लगता है; कि यदि विवेकानन्द न हुए होते तो आज भारत की अस्मिता का उत्थान शायद (?) ही होता। विवेकानन्द जिस कालावधि में जन्मे, और कार्यरत हुए, पारतन्त्र्य का काल था। भारत का स्वयं पर विश्वास डगमगा रहा था। ऐसे समय में एक संजीवनी औषधि पिलाकर विवेकानन्द जी ने, भारत के आत्म विश्वास का दीप ज्वलंत रखा।
आज का नरेन्द्र भी इसी नरेन्द्र से प्रेरित है। नरेन्द्र ना होता, तो? शायद आज का नरेन्द्र भी ना होता।
मानता हूँ; कुछ भाव में, बह गया। पर अब शब्दों को वैसे ही अपरिवर्तित रखता हूँ।
उनकी Thoughts of Power नें मुझे दारूण निराशा में भी उत्साह से भरकर कर्मप्रवृत्त किया है।
कवयित्री को धन्यवाद।
बहुत खूब – सुन्दर भावांजलि