खोए हुए थे इस कद्र चुनावी ख्याल में
पता चला ही नहीं क्या कह गये उबाल में
क्या मालूम न था अंजाम बहकने का इस तरह
फंस गये हैं सैय्याद अबके अपने ही जाल में
किस हद तक और जायेंगे अभी कुछ पता नहीं
अभी तो पूरब से निकले सूरज को डुबोते हैं शुमाल में
ऐसे वैसे जैसे भी आज हो जाये उनकी जीत
फिर तो सारे ‘कल ‘ कट ही जाना हैं जवाब सवाल में
कौन कहता है हम सोये थे खामख्यालों में
हमें सब पता है हम कहाँ हैं क्या कह रहे हैं
हमें मिले थे एक दिन रहमत और क़ायदे आज़म
दिया था अपने दस्ते पाक से पीने को जमाज़म
कहने लगे वो तो बने थे आज़म एक जद्दोजहद के बाद
तुम हो निखालिस अनपोलुटेड असली आज़म।