पालिका उपाध्यक्ष चुनाव के परिणाम से भौंचक हैं इंका और भाजपा

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शिवनी, म.प्र. पालिका उपाध्यक्ष चुनाव के परिणाम से भौंचक हैं इंका और भाजपा नपा उपाध्यक्ष के चुनाव में इस बार फिर अप्रत्याशित रूप से कांग्रेस के राजिक अकील ने भाजपा की संध्या मनु सोनी को हरा कर इतिहास दोहरा दिया हैं। पिछले चुनाव में भी भाजपा के सुजीत जैन को कांग्रेस के संतोष नान्हू पंजवानी ने हराया था। इस बार के चुनाव में इंका और भाजपा में मची गुटबाजी के घमासान के चलते दोनों ही पार्टियों के रणनीतिकार एक दूसरे के दलों के असंतोष एवं किसके प्रत्याशी बनने पर कौन फूट सकता हैं इस पर नजरें गराये हुये थे। वैसे तो भाजपा के पास 13 एवं इंका के पास राकपा सहित 12 वोट थे। लेकिन चुनाव में इंका को 13 और भाजपा को 12 वोट मिले हैं। कहने को तो भाजपा में एक ही वोट की हेर फेर हुयी हैं लेकिन भाजपा के रणनीतिकार यह मानने को तैयार नहीं हैं कि सेंधमारी में सेट किये इंका के चार वोट उसे नहीं मिले हैं। यदि भाजपा के रणनीतिकारों का यह मानना सही हैं तो फिर इंका और भाजपा दोनों के लिये यह एक गंभीर चिंतन का विषय हैं कि इंका के किन चार पार्षदों ने भाजपा को और भाजपा के किन पांच पार्षदों ने कांग्रेस को वोट दिये हैं। भाजपायी खेमे का दावा हैं कि इंका के असंतुष्ट खेमें के एक जवाबदार नेता के साथ जिला इंका के एक पदाधिकारी ने स्वयं संगठन मंत्री से भेंट कर चार पार्षदों का समर्थन दिलाने का विश्वास दिलाया था। दूसरी ओर भाजपा में इस बात को लेकर गहन चिंतन हो रहा हैं 17 वोट बटोरने की रणनीति पर चल रही भाजपा को 12 वोट मिलकर ही कैसे रह गये। भाजपा के एक वर्ग का मानना हैं कि पालिका के पिछले कार्यकाल में हुये भ्रुनवजयटाचार की हर फाइल का पहला पन्ना लोक कर्म समिति के अध्यक्ष मनु सोनी का ही रहता था। जिसका खामियाजा भाजपा के कई पार्षदों आज भी कलेक्टर के यहां से मिले नोटिस के रूप में भुगत रहें हैं। इसलिये उनकी पत्नी को पूर्व विधायक नरेस दिवाकर की पहल पर उम्मीदवार बनाने से भाजपा में यह विस्फोट हुआ और भाजपा के पांच पार्षदों ने बगावत कर इंका को वोट कर डाले। इंका की इस जीत ने एक इंकाई खेमें को भी निराश कर दिया हैं जो कि यह चाहता था कि उपाध्यक्ष पद में कांग्रेस यदि हार जाती हैं तो कुछ लोगों के सिर पर ठीकरा फोड़नें में आसानी होगी। लेकिन जीत जाने पर ऐसे इंका नेताओं ने जीत के जुलूस में शामिल होने से भी कोई परहेज नहीं किया। साथ ही एक बात और रही कि भीतरघात के चलते जिन नेताओं के खिलाफ अनुशासनात्मक कार्यवाही की गयी थी उन्होंने खुद ही जुलूस में शामिल हाने से परहेज कर लिया था।

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