​बेव मीडिया की बढ़ती स्वीकार्यता

असीम है वेब मीडिया का दायरा…!!
पश्चिम बंगाल के हजारों करोड़ के बहुचर्चित सारधा घोटाले के मुख्य आरोपी सुदीप्त सेन को एक मामले में पेशी के लिए मेरे जिले के ग्रामीण क्षेत्र में लाया गया था। यह सुदीप्त सेन कई कंपनियों का सीईओ होने के साथ ही एक नहीं दो नहीं बल्कि 13 मीडिया संस्थानों का मालिक भी था। रात हो जाने पर प्रशासन ने उसे मेरे शहर के थाने में रखने का फैसला किया। अदालत  से करीब दो घंटे के सफर के बाद गाड़ी से उतरते ही सुदीप्त सेन ने साथ चल रहे पुलिस जवानों से सिगरेट पीने की इच्छा जताई। काफी अनुनय – विनय के बाद एक जवान ने कहीं से लाकर दो बीड़ी उसकी हथेली पर रख दिए। देखते ही देखते सेन वह दोनों बीड़ी पी गया, और हवालात के भीतर फटे चादर पर जाकर सो गया। यह घटना  मेरे दिल को गहरे तक छू गई। क्योंकि इतनी बड़ी कंपनी के मालिक के सामने आज एेसी स्थिति की एक बीड़ी के लिए उसे दूसरों के सामने गिड़गिड़ाना पड़ रहा है। दूसरे ही दिन मैने यह आंखों – देखी कुछ बेव मीडिया को पोस्ट कर दिया। संयोग से तब मेरी इसके बारे में जानकारी बहुत ही सीमित थी। कुछ घंटे बाद मैने अपना स्टेटस अपडेट किया, तो यह देख कर हैरान रह गया कि मेरी पोस्ट कई बड़े पोर्टलों पर प्रमुखता से चल रही है। जिस पर कई कमेंट भी पड़े हैं। यही नहीं बल्कि कई पोर्टलों ने स्वयं ही मुझसे संपर्क कर वह स्टोरी उनके साथ शेयर करने का अनुरोध किया था। देखते ही देखते राष्ट्रीय स्तर पर एक संवेदनशील मुद्दे पर नागरिक समाज में बहस शुरू हो गई थी। यह वेब मीडिया की बढ़ती स्वीकार्यता का सबसे बड़ा सबूत था। क्योंकि  जिस सारधा घोटाले को लेकर मेरे गृह प्रदेश पश्चिम बंगाल में कोहराम मचा था। क्षेत्रीय मीडिया में इसकी जोरदार चर्चा थी। लेकिन राष्ट्रीय तो दूर पड़ोसी राज्यों के लोग भी इससे जुड़ी सूचनाओं से अंजान थे। क्योंकि उनके लिए इस घोटाले का कोई विशेष महत्व नहीं था। लेकिन वेब मीडिया में एक सामान्य लेख से यह मसला चंद मिनटों में ही राष्ट्रीय बहस का विषय बन गया। वेब मीडिया की बढ़ती स्वीकार्यता के लिए एक ओर घटना का  जिक्र करना चाहूंगा। कुछ महीने पहले मेरे प्रदेश पश्चिम बंगाल की राजधानी कोलकाता के नजदीक असामाजिक तत्वों का विरोध करने के चलते बदमाशों ने सौरभ बसु नामक एक  प्रतिवादी नौजवान को उसके घर से उठा लिया। कुछ देर बाद  टुकड़ों में बंटी उसकी क्षत – विक्षत लाश रेलवे पटरी पर मिली। इस घटना ने भी सूबे की राजनीति में हड़कंप मचा दिया। लेकिन राष्ट्रीय मीडिया में इस मुद्दे पर एक लाइन की खबर भी नहीं चली। लगातार कई दिनों की प्रतीक्षा के बाद भी जब तथाकथित राष्ट्रीय चैनलों पर सौरभ की शहादत पर  एक लाइन की खबर भी कहीं नजर नहीं आई तो मुझे बड़ा बुरा लगा। मुझे समझ में नहीं आया कि किसी फिल्म के सौ करोड़ क्लब में शामिल होने पर लगातार कई घंटों का महाकवरेज देने या फिर किसी क्रिकेट खिलाड़ी अथवा बालीवुड स्टार  की कमाई व उनके आलाशीन बंगले पर देर तक स्टोरी चलाने वाले चैनलों को आज के दौर के एक नौजवान की शहादत खबर लायक ही नहीं लगी तो यह किसी विडंबना से कम नहीं। इस मामले में भी मैने कुछ शब्दों में अपने विचार लिख कर कुछ वेव पोर्टलों को पोस्ट कर दिया, और क्या आश्चर्य कि कुछ देर बाद ही देश के कोने – कोने के लोग उस नौजवान की शहादत से वाकिफ हो सके। क्योंकि दूसरे राज्यों की मीडिया में इसकी कोई चर्चा ही नहीं हो पाई थी। ये दो घटनाएं समाज में वेब मीडिया की बढ़ती स्वीकार्यता की जीवंत मिसाल है। क्योंकि वेब मीडिया  प्रिंट की कुछ तय विडंबनाओं से मुक्त है। वेब मीडिया  का दायरा अत्यंत व्यापक है। आज के जमाने में यह बिल्कुल 70-80 के दशक की पत्रिकाओं जैसे धर्मयुग, साप्ताहिक हिंदुस्तान या रविवार की तरह है जिसमें सब कुछ अपने भीतर समेटने की ताकत है। वर्तमान समय के समाचार पत्र यह नहीं कर पा रहे हैं। भले ही वे राष्ट्रीय कहलाते हों। लेकिन संस्करणों की सीमा के चलते उनका दायरा भी सीमित होता जा रहा है। लेकिन वेब मीडिया इससे मुक्त है। कुछ महीने पहले एक बांग्ला अखबार में  खबर पढ़ी कि बांग्लादेश के स्वतंत्रता संग्राम के दौरान  पाकिस्तानी सेना ने लगभग एक करोड़ लोगों का कत्लेआम किया था। इस बात का उल्लेख किसी अंग्रेज लेखक  ने हालिया रिलीज अपनी पुस्तक में किया था। इस पर भी मैने एक छोटा सा लेख कुछ पोर्टलों पर पोस्ट किया था, जिस पर नागरिक समाज में व्यापक बहस हुई । बड़ी संख्या में लोगों ने माना कि यदि पोर्टल पर वे पोस्ट नहीं पढ़ते तो एक बड़ी सच्चाई से अवगत होने से वंचित रह जाते। कई ने गूगल में सर्च कर उस पुस्तक के बारे में सूचनाएं इकट्ठी की और विषय को जानने – समझने का प्रयास किया।बेशक मुख्यधारा की मीडिया यह काम नहीं कर सकती थी। इसलिए वेब मीडिया की बढ़ती स्वीकार्यता इसके प्रभाव व भविष्य पर किसी प्रकार की शंका की कोई गुंजाइश नहीं है। मेरा  मानना है कि अगले कुछ सालों में ही वेब मीडिया को जानने – समझने वालों की तादाद में लगभग दोगुनी वृद्धि हो जाएगी। जिसका व्यापक व गहरा प्रभाव समाज पर पड़ेगा। वेब मीडिया की बढ़ती स्वीकार्यता की चर्चा करते हुए मैं करीब चार पहले अपने साथ घटित एक घटना का जिक्र करना जरूरी समझता हू्ं। एक जरूरी बैठक में वरीय अधिकारी मीटिंग में शामिल सदस्यों का ज्ञान परख रहे थे। उन्होंने दूसरों से कई तरह के सवाल किए। जिसका संबद्ध लोगों ने सही – गलत जवाब देते हुए किसी तरह अपना बचाव किया। इस बीच मुझसे उन्होंने पूछा कि क्या आपने कभी ईपेपर देखा है। मैं इससे अंजान था। इसलिए सच बता दिया। मेरी साफगोई से सवाल पूछने वाले हैरान तो हुए ही, साथी भी नाक – भौं सिकोड़ने लगे। बैठक के बाद उन्होंने मुझसे कहा कि नहीं जानते तो भी आपको एेसा नहीं कहना चाहिए था। बहरहाल इस स्थिति से विचलित होकर मैने इंटरनेट को जानने – समझने का प्रयास किया, और इसी प्रक्रिया में वेब मीडिया के भी संपर्क में आया। यह इसकी रोचकता व प्रासंगिकता ही है कि आज मैं समय मिलते ही इसकी दुनिया में विचरण के मौके तलाशने लगता हूं।क्योंकि यह आज की जरूरत है। यह लिखने – सीखने की पूरी आजादी देता है। मुद्रण क्षेत्र की वर्जनाएं इसमें नहीं है।
सबसे बड़ी बात यह कि इसमें अभिव्यक्ति को बगैर किसी पक्षपात व प्रतीक्षा के चंद मिनटों में ही उचित सम्मान दिया जाता है। कुछ भेज कर महीनों का इंतजार नहीं करना पड़ता। कुछ महत्वपूर्ण मुद्दों के मामले में तो एेसा हुआ कि मैटर पोस्ट करने के कुछ मिनट बाद ही उसकी स्वीकृति का जवाबी मेल मुझे  प्रात् हो गया। जबकि  प्रिंट के क्षेत्र में इसकी कल्पना भी नहीं की जा सकती। आज के दौर में किसी वरदान से कम नहीं है वेब मीडिया। जबकि कुछ साल पहले तक मैं इस दुनिया से पूरी तरह से अंजान था। इसलिए बेस्ट आफ लक वेब मीडिया… भविष्य तुम्हारा है…। 
 

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