पत्रकारों पर बढ़ते हमले

-अरविंद जयतिलक-
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पाकिस्तान के अग्रणी समाचार चैनल जियो टीवी के एंकर हामिद मीर पर जानलेवा हमले से न सिर्फ पाकिस्तान में लोकतंत्र का चौथा स्तंभ लहूलुहान हुआ है बल्कि वैश्विक स्तर पर पत्रकारों की सुरक्षा का सवाल भी उठ खड़ा हुआ है। हामिद मीर पाकिस्तान के उन चंद पत्रकारों में शुमार हैं, जिन्हें आतंकवाद और सुरक्षा मामले में विशेषज्ञता हासिल है और जोखिमपूर्ण पत्रकारिता के लिए भी जाने जाते हैं। अलकायदा के मुखिया रहे ओसामा बिन लादेन का इंटरव्यू कर चुके हामिद मीर आजकल जीयो टीवी पर चर्चित शो कैपिटल टॉक की मेजबानी से सुर्खियों में है। वे एक अरसे से तहरीक-ए-तालिबान पाकिस्तान जैसे अनगिनत आतंकी संगठनों के निषाने पर हैं और अनेकों बार धमकियां मिल चुकी है। नवंबर 2012 में उनके कार के नीच बम रखकर उड़ाने की कोशिश की गयी, लेकिन समय रहते बम बरामद कर लिया गया। यह बम पाकिस्तानी तालिबान ने रखवाया था। गौरतलब यह कि हामिद मीर पहले ही आईएसआई प्रमुख पर अपनी हत्या की साजिश का आरोप लगा चुके हैं और लिखित रुप में इसकी जानकारी सरकार को भी दी है। उन्होंने एक संदेश भी रिकॉर्ड कराया है, जिसमें उन्होंने आईएसआई प्रमुख जहीर समेत कुछ कर्नल रैंक के अधिकारियों के नाम लिए हैं। लेकिन आश्चर्य कि इन सबके बावजूद भी सरकार ने उनकी सुरक्षा का पुख्ता इंतजाम नहीं किया। शुक्र है कि आधा दर्जन गोली लगने के बाद भी वे सलामत हैं और उनका हौसला बुलंद हैं।

हामिद मीर के भाई की मानें तो इस हमले के पीछे आईएसआई का हाथ है। अब सच क्या है यह जांच के बाद ही पता चलेगा। नवाज शरीफ की सरकार ने हत्या की जांच के लिए तीन सदस्यीय न्यायिक आयोग का गठन कर दिया है। साथ ही हमलावरों से जुड़ी कोई भी सूचना देने वालों को एक करोड़ रुपए इनाम देने की भी घोषणा की है। लेकिन हमलावरों की पहचान हो सकेगी और उन्हें दण्डित किया जा सकेगा इसमें संदेह है। इसलिए कि पत्रकारों की हत्या के मामले में पाकिस्तान का रिकॉर्ड अच्छा नहीं है। अभी पिछले महीने ही वरिष्ठ पत्रकार व विश्लेषक रजा रुमी पर लाहौर में गोलियां बरसायी गयी। वे बच गए लेकिन उनके ड्राईवर की मौत हो गयी। गुनाहगार अभी भी पकड़ से बाहर हैं। तब प्रधानमंत्री नवाज शरीफ ने वादा किया था कि वे देश के पत्रकारों को सुरक्षा मुहैया कराएंगे। लेकिन हामिद मीर पर हमले नेे उनके दावे की पोल खोल दी है। सच तो यह है कि पाकिस्तान में पत्रकार सुरक्षित ही नहीं हैं। वे खौफ के साए में जी रहे हैं। उन्हें सच्ची पत्रकारिता से रोका जा रहा है। यह तथ्य है कि सुरक्षा के अभाव में खैबरपख्तुनवाह, बलूचिस्तान और कबायली इलाका पत्रकारों के लिए कत्लगाह बन गया है। हर वर्श आतंकी संगठन दर्जनों पत्रकारों को निशाना बनाते हैं और सरकार हाथ पर हाथ धरी बैठी रहती है। याद होगा मई 2012 में पाकिस्तान के वरिष्ठ पत्रकार सलीम शहजाद को राजधानी इस्लामाबाद में ही आतंकियों ने अगुवा कर मौत के घाट उतारा। हत्या के दो साल होने को हैं और जांच प्रक्रिया भी पूरी हो गयी है लेकिन अभी तक किसी गुनाहगार को न्याय के कठघरे में खड़ा नहीं किया जा सका है। यह दर्शाता है कि पाकिस्तान की सरकार पत्रकारों की सुरक्षा को लेकर संजीदा नहीं है।

दुर्भाग्यपूर्ण यह कि पत्रकारों की हत्या की खेल में पाकिस्तानी खुफिया एजेंसी आईएसआई भी शामिल है। पत्रकार सलीम शहजाद की हत्या का आरोप उसी पर है। सलीम षाहजाद के परिजनों का कहना है कि उन्होंने चरमपंथियों और सेना के बीच संबंधों का खुलासा किया था इससे वह नाराज होकर हत्या करायी। बवाल मचने पर पाकिस्तान सरकार ने न्यायिक आयोग का गठन किया और भरोसा दिया कि गुनाहगारों को उनके किए की सजा मिलेगी। लेकिन गुनाहगार पकड़ से बाहर हैं। ऐसे में अगर अराजकतत्वों का हौसला बुलंद होता है और पत्रकारों पर हमले बढ़ते हैं तो अस्वाभाविक नहीं है। एक वार्षिक रिपोर्ट्स में भी कहा जा चुका है कि पत्रकारों के लिए पाकिस्तान विश्व में सर्वाधिक खतरनाक देशों में से एक है। यहां सशस्त्र समूह, देश की खुफिया एजेंसियां, खासकर आईएसआई पत्रकारों के लिए खतरा पैदा करती है। रिपोर्ट में यह भी कहा गया है कि पुलिस और सुरक्षाबलों, आपराधिक समूहों, प्रदर्शनकारियों और राजनीतिक दलों के समर्थकों जैसे लोगों की धमकियों और शारीरिक हिंसा के शिकार होने वाले पत्रकारों को अक्सर न्याय-प्रणाली से न्याय नहीं मिल पाता है और वह खुद को सेंसर कर लेते हैं। लेकिन गौर करें तो पाकिस्तान ही नहीं, दुनिया के हर कोने में पत्रकार असुरक्षित हैं। लोकतंत्र का दम भरने वाले देषों में भी उन्हें निशाना बनाया जा रहा है। गत दिनों लंदन की इंटरनेशनल न्यूज सेफ्टी इंस्टीट्यूट (आईएनएसआई) की रिपोर्ट में कहा गया कि 2013 में रिपोर्टिंग के दौरान दुनियाभर में 134 पत्रकार और मीडिया को सहायता देने वाले कर्मी मारे गए। इनमें 65 पत्रकारों की मौत सशस्त्र संघर्ष की कवरेज के दौरान हुई, जिन्हें सोच विचारकर निषाना बनाया गया। आईएनएसआई की ‘किलिंग द मैसेंजर’ रिपोर्ट में इस बात का भी जिक्र है कि साल 2012 में 152 पत्रकार मारे गए। इराक, सोमालिया, फिलीपीन, श्रीलंका, सीरिया, अफगानिस्तान, मैक्सिको, कोलंबिया, पाकिस्तान और रुस जैसे देषों को पत्रकारों के लिए खतरनाक बताया गया है। रिपोर्ट के मुताबिक इराक पत्रकारों की हत्या के मामले में षीर्श पर है। 2008 में सर्वे की षुरुआत से ही वह पत्रकारों की हत्या के एक सैकड़ा मामलों में से एक में भी सजा न दिलाने के कारण सूची में षीर्श पर है। हाल ही में अमेरिकी वॉच डॉग संस्था ‘कमिटी टू प्रोटेक्ट जर्नलिस्ट्स (सीपीजे) की रिपोर्ट में कहा गया है कि सीरिया पत्रकारिता के लिए सबसे खतरनाक देश है। गौरतलब है कि यहां के हालात बिगड़े हुए हैं। राष्ट्रपति बशर-अल-असद और विद्रोहियों के बीच जंग छिड़ी हुई है। यहां पत्रकार न सिर्फ संघर्ष में कवरेज के दौरान अपनी जान गंवा रहे हैं, बल्कि उन्हें किडनैप कर मौत के घाट भी उतारा जा रहा है।

एक आंकड़े के मुताबिक अभी तक 60 से अधिक पत्रकारों की हत्या हो चुकी है। अभी पिछले दिनों ही सीरिया में दस माह से कैद फ्रांस के चार पत्रकारों को रिहा किया गया। इन पत्रकारों को पिछले जून में दो अलग-अलग घटनाओं में बंदी बनाया गया था। सच दुनिया के सामने न आए इसके लिए पत्रकारों को धमकाया भी जा रहा है। गत दिवस रूस में यूक्रेन पर प्रतिबंधों को लेकर सवाल पूछने पर एक प्रेग्नेंट रुसी महिला पत्रकार को वहां के संसद के डिप्टी स्पीकर ब्लादिमीर जिरोनस्की ने अपने समर्थकों को कहा कि वे रिपोर्टर का रेप कर दें। यह दर्शाता है कि लोकतांत्रिक देशों में पत्रकारों के साथ कैसा व्यवहार हो रहा है। अगर भारत की बात करें तो स्थिति बहुत संतोशजनक नहीं है। 2013 में 8 पत्रकारों की हत्या हुई। विश्व में प्रेस की आजादी के सूचकांक मामले में 140 वें स्थान पर है। पड़ोसी देश चीन और पाकिस्तान क्रमशः 175वें और 158वें स्थान पर हैं। उचित होगा कि दुनिया के सभी देश पत्रकारों की सुरक्षा सुनिश्चित करें अन्यथा फिर लोकतंत्र को बचाना मुश्किल हो जाएगा।

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