रेप की बढती घटनाएँ और नैतिक पुनर्जागरण

0
143

अनिल गुप्ता 

१६ दिसंबर को दिल्ली में हुए जघन्य गेंग रेप कांड के बाद उमड़े जनाक्रोश से ये आशा बंधी थी की शायद लोगों की कुत्सित भावनाओं पर कुछ अंकुश लगेगा.लेकिन ये आशा व्यर्थ ही साबित हुई.शायद ही कोई दिन ऐसा जाता होगा जिस दिन समाचार पत्रों में विभिन्न स्थानों पर बलात्कार की घटनाओं के समाचार प्रकाशित न होते हों.वैसे तो ये घटनाएँ देश के सभी राज्यों से प्रकाशित होती हैं लेकिन फिर भी देश की राजधानी को रेप की राजधानी की संज्ञा मिल चुकी है.हाल की घटना जिसने सब को झकझोर दिया है एक पांच साल की अबोध बच्ची से दो लोगों द्वारा बलत्कार की है.उन नर पिशाचों ने उस मासूम बच्ची से ये कृत्य करते समय अपने छोटे बच्चों बहनों का भी स्मरण नहीं किया.
आखिर इन सब घटनाओं को रोकने का क्या समाधान हो सकता है? वास्तव में ये घटनाएँ देश में नैतिकता के तेज़ी से हो रहे पतन और पश्चिमी देशों की अपसंस्कृति के बढ़ने को दर्शाता है.पश्चिमी देशों में बलात्कार हमारे देश से भी कहीं ज्यादा है.लेकिन इस बारे में केवल आंकड़ों को ही मापदंड नहीं बनाया जा सकता है. पश्चिम के मूल्य पूरब के मूल्यों से भिन्न हैं.वहां किसी को भी ”हाय सेक्सी” कहने में कोई बुराई नहीं समझी जाती है. जबकि हमारे यहाँ अंग्रेजीदां बौधिक विलासियों को इसमें कोई बुराई दिखाई न पड़ने के बावजूद आम जन आज भी किसी को ’सेक्सी’ कहकर संबोधित किये जाने को आपत्तिजनक मानता है.
देश में कानून का डर समाप्त हो चूका है.अपराधी अब विधायक और सांसद बनकर माननीय बन चुके हैं.कुछ स्वयं को सेकुलर मानने वाले दलों द्वारा अपराधियों को संरक्षण में कोई बुराई नहीं दिखाई देती है. ऐसा करके वास्तव में समाज के अपराधीकरण को ही बढ़ावा दिया जा रहा है.अपराध के विरुद्ध जीरो टोलरेंस की भावना जब तक नहीं आएगी स्थिति में सुधार नहीं होने वाला है.लेकिन इस के साथ-२ देश में नैतिक पुनर्जागरण के कार्य को भी तेजी से बढाया जाने की आवश्यकता है. राजीव गाँधी सरकार ने देश की शिक्षा में सुधार और नैतिक शिक्षा के विषय में डॉ. करण सिंह की अध्यक्षता में समिति बनायीं थी जिसने ये कहा था की शिक्षा में सुधार नैतिक शिक्षा को शामिल किये बिना नहीं हो सकता है. लेकिन ”देश में धर्मनिरपेक्षता पर अधिक जोर देने के कारण हमने सब प्रकार की नैतिक शिक्षा को भी तिलांजलि दे दी है”.अतः ये स्पष्ट है की देश में नैतिक मूल्यों के पुनर्जागरण के लिए नैतिक शिक्षा को स्कूल स्तर से ही पाठ्य क्रम में शामिल करना होगा. और इसके लिए देश के शाश्वत मूल्यों को दोहराना होगा. भले ही इससे छद्म सेकुलरवादियों को पीछे हटाना पड़े.नैतिक मूल्य किसी मजहब से नहीं जुड़े होते बल्कि वो शाश्वत हैं और सभी मजहब उसका समर्थन करते हैं. ये बात अलग है की भारत में जब नैतिक मूल्यों को संस्कारित करने के लिए कार्यक्रम चलाया जायेगा तो इस देश की प्रकृति के अनुरूप ही चलना होगा. यहाँ यदि किसी कार्यक्रम में नारियल फोड़ कर शुभारम्भ करना है तो ये काम शेम्पेन की बोतल खोलकर नहीं किया जा सकता क्योंकि देश की संस्कृति इस की इजाजत नहीं देती.
देश की सामूहिक चेतना और नैतिक शक्ति को किस प्रकार जगाया जा सकता है इसका एक उदहारण स्व. लाल बहदुर शास्त्रीजी ने दिया था. जब १९६५ में देश में अन्न की कमी हुई और देश पाकिस्तान के साथ युद्ध में व्यस्त था तो उस समय शास्त्रीजी ने देश का आह्वान किया की अन्न की कमी के कारण देशवासी सप्ताह में एक दिन केवल एक समय भोजन करें और दुसरे समय अन्न का सेवन न करें. करोड़ों लोगों ने प्रति सोमवार सांयकाल अन्न का सेवन बंद कर दिया. और लाखों लोगों ने इस व्रत को आजीवन निभाया.
इसी प्रकार देश में बलात्कार की बढती घटनाओं के विरोध में क्या किसी बड़ी सार्वजनिक हस्ती के मन में ये विचार आया की इस बारे में देश की चित्त अर्थात आत्मा को झकझोरने के लिए कम से कम एक दिन का सामूहिक उपवास आत्मशुद्धि के लिए रखा जाये? क्या श्री नरेन्द्र मोदीजी अथवा कोई अन्य बड़ा सर्वमान्य व्यक्ति ऐसा कोई आह्वान देश से करेंगे? देश के सभी धर्माचार्य भी सामूहिक रूप से ऐसा कर सकते हैं.इससे समस्या एक दम से समाप्त तो नहीं होगी लेकिन लोगोंकी सामूहिक चेतना को जगाने के लिए ये एक छोटा सा कदम हो सकता है और इसे साप्ताहिक नहीं तो मासिक रूप से भी तब तक दोहराया जा सकता है जब तक लोगों में परिवर्तन दिखाई न पड़े.

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here