गहराता बेरोजगारी का संकट

प्रमोद भार्गव

केद्र में नरेंद्र मोदी सरकार को राज्य करते हुए 3 साल पूरे हो गए। इन तीन सालों में राजग सरकार ने आर्थिक कुप्रबंधन और भ्रष्टाचार पर मजबूती से शिकंजा कसने के सार्थक उपाय किए है। लेकिन मोदी सरकार ने लोकसभा चुनाव के दौरान हर साल दो करोड़ युवाओं को रोजगार देने का वादा किया था, लेकिन हकीकत यह है कि इन तीन सालों में बेरोजगारी का संकट उत्तरोत्तर गहराता गया है। इस कारण नरेंद्र मोदी ने जिस युवा पीढ़ी को ‘युवा भारत‘ कहकर महिमामंडित किया था, वह युवा पीढ़ी आज कुंठित होकर अवसाद के दौर से गुजर रही है। देश के जनसंख्यात्मक घनत्व में जिस तरह से गिरावट दर्ज की जा रही है, उसके चलते सर्वेक्षणों से ये संकेत भी मिल रहे है कि 2021 में होने वाली जनगण्ना में युवा भारत का यह तमगा भी छिन जाएगा।

2014 में जब मोदी सरकार ने सत्ता संभाली थी, तब अर्थव्यवस्था बदहाल थी। महंगाई असमान पर थी और दूरसंचार, कोयला, राष्ट्रमंडल खेल एवं आदर्श सोसायटी के घोटालों के उजागर होने से देश शर्मसार था। विदेशी पूंजी निवेश थम गया था। किंतु अब संस्थगत सुधारों पर बल देते हुए सरकार ने बद्तर हालातों को पूरी तरह नियंत्रण में ले लिया है। यही वजह है कि पिछले तीन साल में 151 अरब डाॅलर का पूंजी निवेश भारत में हुआ है। बीते वित्तीय वर्ष में यह उछाल 36 प्रतिशत रहा है। कर कानूनों में सुधार की दृष्टि से जीएसटी विधेयक पारित कराना क्रांतिकारी पहल है। धन का लेन-देन पारदर्शी हो, इस नजरिए से डीजिटल आर्थिकी को बढ़ावा देने के लिए नोटबंदी करना साहसिक पहल थी। जनधन और उज्ज्वला जैसी योजनाओं पर तकनीकि अमल से गरीब को वास्तव में लाभ मिला है। नए कानून लाकर जमीन जायदाद के व्यापार और एनपीए पर जिस तरह से शिकंजा कसा है, उससे लगता है भविष्य में अब रियल स्टेट कारोबार में हेराफेरी और बैंकों से कर्ज लेकर विजय माल्या की तरह चंपत हो जाने वाले कारोबारियों की मुशकें कसेंगी। इन उपायों से ऐसा लगता है कि देश का ढ़ांचागत कायांतरण हो रहा है। युवाओं को नए रोजगार सृजित करने की दृष्टि से स्टार्टअप और स्टेंडअप जैसी योजनाएं भी लागू की गईं। लेकिन अपेक्षा के अनुरूप परिणाम नहीं निकले। तरक्की के इन फलकों को देखते हुए ऐसा लगता जरूर है कि अवसर तो बहुत पैदा करने की कोशिश की गई, लेकिन युवाओं को नौकरियां आखिरकार मिली नहीं। इस कारण युवाओं का निराश होना स्वाभाविक है।

दरअसल भाजपा ने अपने घोषणा-पत्र में प्रतिवर्ष 2 करोड़ रोजगार सृजित करने का वादा किया था। वर्ष-2001 की जनगण्ना के मुताबिक 23 प्रतिशत युवा बेरोजगार थे। 2011 की जनगण्ना में इनका प्रतिशत बढ़कर 28 हो गया। 18 से 29 वर्ष आयुवर्ग में स्नातक या उससे भी अधिक शिक्षित युवाओं में बेरोजगारी की दर सबसे ज्यादा 13.3 फीसदी हैं। वस्त्र, चमड़ा, खनिज, आॅटोमोबाइल, जैम्स-ज्वेलरी, परिवहन, सिले वस्त्र, सूचना तकनीक जैसे प्रमुख क्षेत्रों में 2015 में केवल 1.35 लाख रोजगार सृजित हुए। क्रिसिल रिपोर्ट का दावा है कि 2012 से 2019 के बीच केवल 3.80 करोड़ गैर कृषि रोजगार पैदा होंगे। जबकि 2005 से 2012 के बीच यह संख्या 5.20 करोड़ थी। यहां सवाल उठता है कि जब 2017-18 में 8.5 प्रतिशत सकल घरेलू उत्पाद दर बनी रहने की उम्मीद की जा रही है तो फिर उस अनुपात में नए रोजगार क्यों सृजित नहीं हो रहे है ? इन आकलनों से पता चलता है कि रोजगार के नए अवसरों में 68 फीसदी की कमी आई है। जबकि हर साल नौकरी की तलाष में 1.2 करोड़ युवा संस्थानों के दरवाजे खटखटाते है। हालांकि हकीकत पर पर्दा डालने के लिहाज से सरकारी आंकड़े बताते है कि बेरोजगारी की दर महज 5 फीसदी है। इससे यह भी साफ है कि देश में बड़ी संख्या में बेरोजगारी अप्रत्यक्ष है। बावजूद जिस तरह से देश में बेरोजगारों की संख्या और सरकारी नौकरी पालने की लालसा बढ़ रही है। उस परिप्रेक्ष्य में वर्तमान से लेकर 2050 तक 28 करोड़ नौकरियां पैदा करनी होंगी।

हमारे देश में रोजगारहीन दर के बढ़ते रहने के तीन कारण हैं। एक जीडीपी में बड़ी हिस्सेदारी वाले सेवा क्षेत्रों में नौकरियों की बढ़ोत्तरी का अनुपात समान नहीं है। कुछ सेवाओं और आईटी क्षेत्र में प्रौद्योगिकी और आॅटोमेशन के कारण बड़ी संख्या में रोजगार घट रहे हैं। दूसरी तरफ तकनीक से जुड़े रोजगार हासिल करने के लिए कहा जा रहा है कि युवा उच्च शिक्षित होने के बावजूद दक्ष नहीं हैं। इसीलिए युवाओं के कोशल प्रशिक्षण पर जोर दिया जा रहा है। दूसरे, विनिर्माण और कृषि जैसे अधिक रोजगार देने वाले क्षेत्रों में अर्थव्यवस्था गति नहीं दे पा रही है। यही कारण है कि जीडीपी में विनिर्माण की भागीदारी महज 16 प्रतिशत हैं, जबकि चीन में यह 35 प्रतिशत हैं। ऐसी उम्मीद की जा रही है कि अब जीएसटी लागू होने के बाद इस क्षेत्र की जीडीपी दर बढ़ जाएगी। वैश्विक स्तर पर हमारी विनिर्माण में जीडीपी महज 2 प्रतिशत हैं, जबकि चीन की 22 प्रतिशत हैं। तीसरे रोजगार के क्षेत्र में वेतन की कमी एक प्रमुख समस्या है। भारत में 90 प्रतिशत रोजगार कृषि और निजी क्षेत्रों में है। इन्ही क्षेत्रों में वेतन की असमानता तो है ही, कृषि के क्षेत्र में तो घाटे की भी आषंका बनी रहती है। इसीलिए सरकार खेती को लाभ का धंधा बनाने पर जोर दे रही है।

बेरोजगारी के इन्हीं हालातों के चलते देखने में आ रहा है कि युवा छोटी से छोटी सरकारी नौकरी पाने के लिए लालायित हैं। दो साल पहले उत्तर प्रदेश के विधानासभा सचिवलाय में चपरासी के 368 पदों के लिए 23 लाख आवेदन आए थे। इनमें विज्ञान, कला, वाणिज्य के स्नातक और स्नातकोत्तर आवेदक तो थे ही इंजीनियर और एमबीए युवाओं ने भी आवेदन किया था। 255 अभ्यर्थी पीएचडी थे। इससे साफ होता है कि उच्च शिक्षा अच्छी नौकरी की गांरटी नहीं रह गई है। साथ ही हमारी अर्थव्यवस्था नए रोजगार के अवसर पैदा करने में नाकाम रही है। कृषि क्षेत्र में रोजगार जैसा कुछ रह नहीं गया है। संगठित उद्योगों में नए रोजगार पैदा नहीं हो रहे है। सबसे ज्यादा नौकरियां सर्विस सेक्टर में है, किंतु इनमें से ज्यादातर अस्थाई किस्म की हैं। इनमें कभी भी नौकरी से निकाल दिया जाता है। अब तो आईआईटी और आईआईएम जैसे कुलीन शिक्षा संस्थानों से निकले युवाओं के भविश्य पर भी खतरा मंडराता दिखाई दे रहा है। अमेरिका, ब्रिटेन, कनाडा, आस्ट्रेलिया और सिंगपुर जैसे कई देशों में वीजा नीतियों में बदलाव से आईटी और आईआईएम शिक्षितों की नौकरियों पर भी संकट गहरा गया है। यदि इन देशों में उभरते राष्ट्रवाद के चलते इन युवाओं की वापसी होती है तो देश में बेरोजगारी का संकट और गहरा जाएगा।

निजी क्षेत्र में गिरावट के चलते युवा अब सिर्फ सरकारी नौकरी पाना चाहते हैं। वे अपनी योग्यता का आकलन किए बगैर उन पदो ंके लिए भी आवेदन कर रहे है, जो उनकी शिक्षा के समतुल्य नहीं है। इसी कारण बेरोजगारी पूरे देश में एक बड़ी समस्या बनकर उभर रही है। इस कारण कई नई सहायक समस्याएं भी पैदा हो रही है। समाज में अपराध के ऐसे मामले सामने आ रहे है, जिनमें शिक्षित बेरोजगार युवाओं की भूमिका अंतर्निहित है। नौकरी नहीं मिलने के तनाव में युवाओं में आत्महत्या की दर बढ़ रही है। बड़ी संख्या में युवा पीढ़ी पथभ्रष्ट होकर नशे की गिरफत में भी आती जा रही है। दरअसल युवा सरकारी नौकरी के सम्मोहन में इसलिए भी आ रहे हैं, क्योंकि वहां आजीवन आर्थिक सुरक्षा की गारंटी और सामाजिक गरिमा मिलती है। इसीलिए उच्च शिक्षित एवं तकनीकि शिक्षा प्राप्त युवा यह जानते हुए भी तृतीय और चतुर्थ श्रेणी के पदों पर आवेदन करते है कि उनकी योग्यता उक्त पद की योग्यता से कहीं अधिक है। बहरहाल केंद्र सरकार को नए रोजगार पैदा करने के लिए कुछ नए एवं पारंपरिक ढंग से सोचना होगा। तकनीक से सबृंद्ध रोजगारों के साथ यदि कृषि आधारित और लघु व कुटीर रोजगारों को आर्थिक सुरक्षा की गारंटी दी जाती है तो बेरोजगारी से निपटने की उम्मीद बढ़ सकती है।

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