अंधकार में डूबा विश्व महाशक्ति बनता भारत

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निर्मल रानी

कुछ माह पूर्व पाकिस्तान से यह समाचार प्राप्त हुआ था कि वहां बिजली और कोयले की कमी के चलते तथा वहां की बदहाल व कमज़ोर अर्थव्यवस्था के कारण दर्जनों रेलगाडिय़ों को निलंबित कर दिया गया था। यह ख़बर न केवल चौंकाने वाली थी बल्कि ऐसी ख़बर से यह एहसास भी होता था कि पाकिस्तान वास्तव में ख़स्ताहाली के दौर से गुज़र रहा है। परंतु भारत जैसे आर्थिक रूप से उभरते हुए देश में भी कभी ऐसा होगा इस बात की तो कल्पना भी नहीं की जा सकती थी। गत् दिनों स्वतंत्र भारत के इतिहास में भी यह दृश्य देखने को मिला जबकि उत्तरी,उत्तर-पूर्व व पूर्वी भारत के लगभग 24 राज्य पूरी तरह अंधकार में समा गए।

परिणामस्वरूप इन सभी 24 राज्यों में बिजली से चलने वाली रेल गाडिय़ां पूरी तरह ठप्प हो गईं,मैट्रो रेल सेवा थम गई। बंगाल, झारखंड व बिहार की कई कोयला खदानों में सैकड़ों मज़दूर अचानक बिजली फेल हो जाने के कारण खदानों में ही फंसे रह गए जिन्हें आपात स्थिति में बाद में सुरक्षित बाहर निकाला गया। ट्रेफिक सिग्रल्स बंद हो गए जिसके कारण यातायात ठप्प हो गया। और तो और दिल्ली व राष्ट्रपति भवन, संसद भवन, प्रधानमंत्री निवास,कार्यालय, साऊथ ब्लॉक व नॉर्थ ब्लॉक जैसे अत्यंत प्रमुख व अतिसंवेदनशील स्थान सभी अंधकारमय हो गए।

आधिकारिक तौर पर इस गड़बड़ी का कारण उत्तरी, पूर्वी व पूर्वी-उत्तरी पॉवर ग्रिड का एक-एक कर फेल हो जाना बताया गया है। 2002 में भी उत्तर भारत इसी प्रकार की पॉवर ग्रिड फेल होने की समस्या का सामना कर चुका है। सबसे पहले इस बार उत्तरी ग्रिड में गड़बड़ी पैदा हुई जिसके कारण हरियाणा,राजस्थान दिल्ली, उत्तरप्रदेश, उत्तराखंड,हिमाचल प्रदेश, पंजाब ,जम्मु-कश्मीर व चंडीगढ़ राज्य अंधेरे में डूब गए। अभी इस पर नियंत्रण हुआ ही था कि इतने में 24 घंटे के भीतर ही पूर्वी ग्रिड में भी ख़राबी आ गई जिसके चलते पश्चिम बंगाल, बिहार, झारखंड, उड़ीसा तथा सिक्किम में अंधेरा छा गया। ग्रिड फेल होने का तकनीकी कारण यह बताया गया है कि पॉवर ग्रिड की फ्रीक्वेंसी पर राज्यों द्वारा अधिक विद्युत दोहन किए जाने के परिणामस्वरूप पॉवर ग्रिड फेल होने की संभावना बढ़ जाती है। किसी भी राज्य द्वारा निर्धारित कोटे से अधिक विद्युत का दोहन किए जाने पर राज्यों को 20 रुपये प्रति यूनिट के हिसाब से जुर्माना लगाए जाने का भी कानून है।

देश के अधिकांश राज्यों में अंधेरा छा जाने जैसी असाधारण घटना पर चिंता जताते हुए तत्कालीन केंद्रीय विद्युत मंत्री सुशील कुमार शिंदे ने यह कहा भी था कि कोटे से अधिक विद्युत का दोहन करने वाले राज्यों को न केवल इसका जुर्माना भरना पड़ेगा बल्कि उनका कोटा भी घटा दिया जाएगा। वास्तव में भारत जैसे आर्थिक महाशक्ति की ओर आगे बढऩे वाले देश के लिए यह अत्यंत चिंता का विषय है कि जहां कुल पांच पॉवर ग्रिड हों जो पूरे देश में विद्युत का संचालन सुनिश्चित कर रहे हों उनमें से तीन पॉवर ग्रिड फेल हो जाएं। ज़ाहिर है ऐसे में देश की लगभग 70 करोड़ आबादी इस विद्युत त्रासदी से प्रभावित होते हुए अंधेरे में समा जाएगी।

भारत जैसे संघीय ढांचे वाले देश में विद्युत उत्पादन व आपूर्ति का नियम मोटे तौर पर कुछ इस प्रकार निर्धारति किया गया है। सर्वप्रथम राज्यों द्वारा विद्युत का उत्पादन किया जाता है। और यह राज्य अपनी उत्पादित बिजली को केंद्रीय ग्रिड के हवाले कर देते हैं। इसके पश्चात केंद्रीय ग्रिड अथॉरिटी नियम व कोटे के अनुसार प्रत्येक राज्य को निर्धारित मात्रा में बिजली आपूर्ति वापस देती है। स्वतंत्रता के समय देश का साठ प्रतिशत विद्युत उत्पादन निजी कंपनियों के हाथों में था। परंतु आज 80 प्रतिशत विद्युत उत्पादन सरकारी क्षेत्रों द्वारा किया जा रहा है। जबकि मात्र 12 प्रतिशत बिजली निजी कंपनियों द्वारा पैदा की जा रही है। उधर देश के कई राज्यों के विद्युत बोर्ड अधिकांशत: आर्थिक रूप से बुरी तरह घाटे में चल रहे हैं। कई राज्यों के बिजली बोर्ड तो कंगाल हो चुके हैं। देश के बिजली घरों को इस समय कोयले की भी भारी कमी का सामना करना पड़ रहा है। यही नहीं बल्कि विद्युत विभाग को उत्पादन के साथ-साथ विद्युत वितरण के क्षेत्र में भी भारी परेशानी उठानी पड़ रही है।

आंकड़ों के अनुसार 1947 में भारत में विद्युत का उत्पादन मात्र 1362 मेगावाट था जोकि अब बढक़र एक लाख सत्तर हज़ार मेगावाट हो गया है। हालांकि भारतीय विद्युत उत्पादन केंद्रों में इस समय 205,340.26 मेगावाट विद्युत उत्पादन की क्षमता है। परंतु कोयले की कमी के कारण इतना विद्युत उत्पादन संभव नहीं हो पा रहा है। भारत में प्रति व्यक्ति बिजली की खपत भी दुनिया के तमाम प्रगतिशील देशों की तुलना में काफ़ी कम है। उदाहरण के तौर पर जहां कनाडा में प्रति व्यक्ति बिजली की खपत 18347 यूनिट है वहीं अमेरिका में 13647 यूनिट प्रति व्यक्ति है। इसी प्रकार चाईना में 2456 यूनिट प्रति व्यक्ति खपत है जबकि भारत में केवल 734 यूनिट प्रति व्यक्ति के हिसाब से खपत होती है। हमारे देश में प्रत्येक वर्ष विद्युत आपूर्ति की मांग में सात प्रतिशत की बढ़ोत्तरी भी होती है। हमारा देश संघीय पूंजी का पंद्रह प्रतिशत से भी अधिक धन विद्युत उत्पादन पर ख़र्च करता है। इसके बावजूद अभी भी हमारे देश में अधिकांश राज्य ऐसे हैं जिनका अभी तक पूरी तरह विद्युतीकरण नहीं हो सका है। पूर्ण रूप से विद्युतीकरण होने वाले राज्यों में अभी केवल 9 राज्यों की ही गिनती होती है। इनमें तमिलनाडू, आंध्रप्रदेश, हरियाणा, गुजरात, कर्नाटक, पंजाब, दिल्ली ,गोआ व केरल राज्य शामिल हैं।

दरअसल हमारे देश में बिजली की खपत उद्योग तथा व्यापार के क्षेत्रों की तुलना में घरेलू व कृषि उत्पाद के क्षेत्रों में कहीं अधिक होती है। आर्थिक उदारवाद के दौर के शुरु होने के बाद जिस प्रकार भारतीय बाज़ार में उपभोक्तावाद का चलन तेज़ी से बढ़ा है उससे भी बिजली की खपत पर काफी प्रभाव पड़ा है। तेज़ी से बढ़ता शहरीकरण भी बिजली की बढ़ती खपत में बड़ा भागीदार है। दूसरी ओर गांव में हो रहा निरंतर विकास भी बिजली की खपत को बढ़ा रहा है। छोटे कल कारखाने व घरेलू उद्योग भी आए दिन बढ़ रहे हैं। जिस प्रकार इस समय मोबाईल फोन लगभग हर ख़ास-ओ-आम के पास देखा जा सकता है उसी प्रकार कल तक अमीरों के घरों की शान समझा जाने वाला एयर कंडीशंड लगभग अब प्रत्येक मध्यवर्गीय शहरी व क़स्बाई व्यक्ति की ज़रूरत बन चुका है। माइक्रोवेव,टेलीविज़न,वाशिंग मशीन, कूलर एक-एक घर में कई-कई अदद देखे जा सकते हैं।फ्रिज, रेफ्रिजरेटर, कंप्यूटर आदि वस्तुएं लगभग सभी घरों की ज़रूरत बन चुकी हैं। ज़ाहिर है यह सभी उत्पाद पूरे देश में प्रतिदिन करोड़ों की तादाद में बिकते है तथा उपभोक्ता इन्हें बाज़ार से उठाकर अपने घर ले जाते है तथा सीधे तौर पर उन्हें विद्युत आपूर्ति से संबद्ध कर देते हैं। जबकि विद्युत का उत्पादन आए दिन नहीं बढ़ता। खासतौर पर इस वर्ष की तरह यदि प्रकृति द्वारा मॉनसून की तरफ़ से अपना मुंह फेर लिया जाए और देश सूखे की चपेट में आ जाए ऐसे में विद्युत संकट का और अधिक गहराना लाजि़मी है। वैसे यह भी बताया जाता है कि विद्युत उत्पादन के तीस फीसदी भाग का विद्युत के ट्रांसमिशन अर्थात् उत्पादन से लेकर केंद्रीय ग्रिड तक जाने व केंद्रीय ग्रिड से राज्यों को वापस बिजली दिए जाने तथा वहां से लेकर बिजलीघरों से होते हुए उपभोक्ताओं के घरों तक पहुंचने के रास्ते में ही क्षरण हो जाता है। यह समस्या भी बिजली की कमी के संकट में भागीदार रहती है।

बहरहाल आर्थिक महाशक्ति के रूप में उभरते हुए भारत जैसे विशाल देश में 24 घंटों में दो बार केंद्रीय ग्रिड का फेल होना केंद्रीय विद्युत मंत्रालय तथा राज्य सरकारों को भी बहुत कुछ सोचने पर मजबूर करता है। केंद्रीय ग्रिड अथॉरिटी को चाहिए कि वह ग्रिड में आने तथा वहां से सप्लाई की जाने वाली विद्युत की मात्रा तथा इसके अनुसार ग्रिड के रखरखाव पर पूरी चौकस नज़र रखें। ऐसे उपाय भी किए जाने चाहिए कि राज्य अपने निर्धारित कोटे से अधिक विद्युत का दोहन न कर सकें। इसके अतिरिक्त कोयला सहित ईंधन के अन्य स्त्रोतों का यथाशीघ्र व समुचित उपयोग कर भारत को अपनी विद्युत उत्पादन क्षमता के अनुसार विद्युत उत्पादन किए जाने की कोशिश करनी चाहिए। साथ-साथ विद्युत उपभोक्ताओं को भी चाहिए कि उपरोक्त विद्युत संकट व परिस्थितियों को समझते व महसूस करते हुए अपनी घरेलू अथवा कृषि संबंधी ज़रूरतों को सीमित व नियंत्रित तरीके से पूरा करें। अन्यथा कोई आश्चर्य नहीं कि भविष्य में भी यदि विद्युत की मांग व आपूर्ति के मध्य का फ़ासला इसी प्रकार बढ़ता गया तो ऐसे हादसे हमारे मुल्क के लिए भी एक साधारण सी घटना बन जाएं।

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