भारत-चीन की ताकत और अमेरिका का दाम

indo-chinaचीन की ताकत को लेकर भारत की सेना के विभिन्न अंगों के अध्यक्षों ने भारत की जनता को विधिवत सूचना देना प्रारम्भ कर दिया है। आमतौर पर मीडिया को इस प्रकार की सूचनाएं अब तक सेनाध्यक्ष नहीं देते थे यह काम राजनीतिज्ञों के जिम्मे था। परन्तु अब शायद सूचना के अधिकार का डर होगा कि सेनाध्यक्षों ने बिना मांगे ही सूचना देना शुरू किया है। सबसे पहले यह सूचना जलसेना अध्यक्ष ने जनता को दी थी। उन्होंने जनता को एक प्रकार से चेतावनी देते हुए कहा था कि भारत की जलसेना की क्षमता चीन की जल सेना के आगे कहीं भी नहीं ठहरती। उनके अनुसार चीन इस क्षेत्र में भारत से कहीं आगे है। उसके बाद वायु सेना अध्यक्ष मैदान में उतरे उन्होंने भी मोर्चा संभाला उनके अनुसार जल सेना की बात तो छोड़िए भारत की वायु सेना तो चीन के मुकाबले एक तिहाई क्षमता वाली भी नहीं है। भारतीय सेना के थल सेना के अध्यक्ष इससे पहले ही भारत की जनता को चीन की शक्ति के आतंकित करने वाले आंकड़े बता ही चुके थे। जैसा कि हमने शुरू में कहा है कायदे से इन प्रश्नों पर सेनाध्यक्षों को मीडिया से बात नहीं करनी चाहिए लेकिन अब वे ऐसा कर रहे हैं तो जाहिर है कि इसके पीछे कहीं न कहीं सरकार की सहमति भी होगी हीक्योंकि यदि भारतीय सेना के ताकत के ये तथ्य ही जनता को बताना उद्देश्य था तो यह काम तो प्रेस कॉन्फ्रेंस बुलाकर रक्षा मंत्री ही आसानी से कर सकते थे। परन्तु सरकार को लगा होगा कि यदि चीनी सेना की ताकत के ये आंकड़ें उसने अगर जनता को बताए तो जनता शायद इस पर विश्वास न करे इसलिए सरकार ने सेना को ही आगे कर दियाकि आप खुद ही भारतीय सेना की ताकत के बारे में लोगों को बता दो ताकि उनको पता चल जाए कि चीन के मुकाबले भारत की औकात क्या है।

अब प्रश्न यह है कि आखिर भारत सरकार को भारत की जनता को ही भारत की औकात बताने की जरूरत क्यों पड़ी? इसका एक सीधा सा कारण है चीनी सेना भारतीय सीमा का इच्छानुसार अतिक्रमण करती रहती है। पिछले दिनों तो लद्दाख में वह एक किलोमीटर से भी ज्यादा भारतीय क्षेत्र में घुस आई थी। अरुणांचल प्रदेश में उसने 250 बार से भी ज्यादा भारतीय सीमा में घुसपैठ की है। ऐसा प्रदेश के मुख्यमंत्री खांडु दोर जी का कहना है जाहिर है कि इससे देश के लोगों का गुस्सा चीन के प्रति भड़केगा ही अब गुस्से में उबलते लोगों को चुप कैसे कराया जाए? शायद सरकार के पास उसका एक ही तरीका बचा होगा कि जनता को सेना द्वारा डराया जाए। जिस सेना को चीन के साथ मोर्चा लेना था वह सेना भारत की जनता के मन में चीन की शक्ति का भय पैदा कर रही है। लेकिन अपने देश के लोग भी ज़ज्बाती हैं। चीन ने क्योंकि पहले ही भारत की काफी भूमि दबाई हुई है और हिमालय के अनेक क्षेत्रों में वह अपना दावा भी ठोकता रहता है और सीमा में घुसपैठ करता है यह तो आम बात है। इसलिए चीन के प्रति लोगों का गुस्सा इतनी जल्दी थमने में नहीं आता आखिर भारत परमाणु शक्ति सम्पन्न देश है यह बात चीन भी अच्छी तरह समझता है। इसलिए लोगों को लगता है कि भारत सरकार को परमाणु शक्ति संपन्न होने के कारण कम से कम चीन से बराबर के स्तर पर बात तो करनी चाहिए। इस प्रश्न का उत्तर देने के लिए के. संथानम नाम के एक वैज्ञानिक मैदान में उतरे हैं उनका कहना है कि जिस पोखरण परीक्षण के बलबूते आप लोग परमाणु शक्ति होने का दम्भ पाल रहे हो वह परीक्षण तो असफल परीक्षण था, यानि भारत के परमाणु शक्ति सम्पन्न देश होने की बात झूंठी है। यह अलग बात है कि के. संथानम इस बात का खुलासा नहीं करते कि इस महत्वपूर्ण सूचना को वह 10 वर्षों से अपने सीने के भीतर क्यों छुपाए बैठेथे। यह सूचना देने की उन्हें जरूरत उस वक्त क्यों पड़ी, जिस वक्त चीन ने जबरदस्ती भारतीय सीमा में घुसपैठ करना प्रारम्भ किया?

थोड़ा गहराई में जाने से रहस्य समझ में आने लगते हैं भारत की जनता निराश और हताश होगी। चीन की ताकत का भय उनके मन में बुरी तरह बैठ जाएगा जो दुर्भाग्य से 1965 की पराजय के बाद पहले से ही कहीं न कहीं सुप्त अवचेतना में बैठा हुआ है। भारत की जनता हताशा में घिरती जाएगी और चीन का व्यवहार निरंतर उत्तेजना पैदा करता रहेगा। ऐसे मौके पर अमेरिका की भूमिका प्रारम्भ हो सकती है निराश भारतीय जनता की सहायता के लिए अमेरिका आगे आएगा वह भारतीयों को अभयदान देगा कि चीन से डरने की जरूरत नहीं है अमेरिका आप लोगों के साथ है। भारत क्‍योंकि लोकतांत्रिक देश है और लोकतंत्र की सुरक्षा करने का अधिकार अमेरिका ने अपने पास सुरक्षित रखा हुआ है, इसलिए वह भारत में लोकतंत्र को मरने नहीं देगा। वह भारत को उदार सहायता की पेशकश करेगा उसको हथियार देने की पेशकश करेगा और उसको यह भी कहेगा कि आप को परमाणु हथियार देने की जरूरत ही नहीं है संकट के समय अमेरिका भारत को परमाणु हथियार देने में नहीं हिचकिचाएगा, इसलिए सीटीबीटी पर हस्ताक्षर की बात भी आ सकती है। चीन यदि भारत पर आक्रमण कर देता है, जिसकी अभी भी पचास प्रतिशत संभावना विद्यमान है तो अमेरिका की भारत में घुसपैठ और भी आसान हो जाएगी। निराश और हताश भारतीय अमेरिका की इस भलमनसाहत से कृतज्ञ होंगे फिर अमेरिका के आगे गर्दन उठाना कृतघ्‍नता ही मानी जाएगी। लड़ाई होती है तो आर्थिक नुकसान भी होगा और विकास भी पिछड़ेगा। ऐसी दशा में अमेरिका भारत में निर्धनों की सहायता के लिए भी पैसा मुहैया कराएगा ही और उस पैसे का विरोध करना तो एक प्रकार से गरीब विरोधी कार्यवाई मानी जाएगी। इतना तो सभी जानते हैं कि गरीबों को ऊपर उठाने के लिए अमेरिका, भारत में जो अरबों डॉलर भेजता है वह विभिन्न प्रकार की एनजीओ के माध्यम से ही भेजता है। अमेरिका की छायातले खड़ी ऐसी एनजीओ जल्दी ही शेर हो जाएंगी। ‘वर्ल्ड विज़न’ तो इस प्रकार की एक एनजीओ है जिस पर अभी भी आरोप लग रहा है कि उसने उड़ीसा में स्वामी लक्ष्मणानंद सरस्वती की हत्या करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है तब ऐसी न जाने कितनी एनजीओ खड़ी हो जाएंगी जो गरीबों की मदद भी करेंगी और उन्हें मतांतरित भी करेंगी।

यदि चीन भारत पर हमला नहीं भी करता तब भी चीन की शक्ति से डरा हुआ भारत अमेरिका की गोद में बैठने के लिए ललाहित तो हो सकता है। यह स्थिति भी अमेरिका को अपने हितों के अनुकूल ही लगेगी। पूरा थीसिस यह है कि भारत चीन के सामने सैनिक शक्ति में पिद्दी है, उसे यदि कोई बचा सकता है तो अमेरिका ही बचा सकता है। इसलिए यदि भारत सरकार अभी से विभिन्न क्षेत्रों में अमेरिका की अनेक शर्तों को मानना शुरू कर देगी तो यह घाटे का सौदा नहीं होगा। लगता है कि भारत सरकार भी इसी ऐजण्डा पर काम कर रही है उसे किसी न किसी तरह भारतीय जनता को अमेरिका को अनुगामी बनने के लिए तैयार करना है।

लेकिन मुख्य प्रश्न इससे कहीं बड़ा है। चीन ने 1962 में भारत पर आक्रमण किया था। उसे पराजित किया और उसके काफी बड़े भू-भाग पर कब्जा कर लिया। बाद में ऐसा कहा गया कि चीन के आक्रमण के समय भारत सरकार को सेना की शक्ति बढ़ाने का अवसर नहीं मिला। कुछ युद्ध विषारद यह भी मानते हैं कि 1962 में भी भारतीय सेना चीनी सेना से किसी प्रकार भी कमजोर नहीं थी लेकिन उस वक्त भारत सरकार चीन से लड़ने के लिए मानसिक रूप से तैयार नहीं थी। अभी भी इस प्रश्न पर विवाद छिड़ा रहता है कि यदि 1962 के युद्ध में भारत ने चीन के खिलाफ वाजिव सेना का प्रयोग किया होता तो यह युद्ध जीता जा सकता था। लेकिन वाजिव सेना का प्रयोग किन के कहने पर नहीं किया गया, इसकी जांच की रपटें अभी भी भारत सरकार के सौ तालों के बीच बंद हैं। अब यदि चीन की सैन्य ताकत बड़ चुकी है तो उसके लिए दोषी कौन है? भारत सरकार अपना दोष स्वीकार करने की बजाए लोगों को डराकर अमेरिका की गोद में धकेलना चाहती है। सरकार को चाहिए कि वह लोगों को डराने की बजाए सेना की शक्ति बढ़ाने की ओर ध्यान लगाए क्योंकि चीन ऐसा शत्रु है जो केवल ताकत की भाषा समझता है और दुर्भाग्य से भारत सरकार इसी भाषा से बचना चाहती है।

– डा. कुलदीप चंद अग्निहोत्री

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डॉ. कुलदीप चन्‍द अग्निहोत्री
यायावर प्रकृति के डॉ. अग्निहोत्री अनेक देशों की यात्रा कर चुके हैं। उनकी लगभग 15 पुस्‍तकें प्रकाशित हो चुकी हैं। पेशे से शिक्षक, कर्म से समाजसेवी और उपक्रम से पत्रकार अग्निहोत्रीजी हिमाचल प्रदेश विश्‍वविद्यालय में निदेशक भी रहे। आपातकाल में जेल में रहे। भारत-तिब्‍बत सहयोग मंच के राष्‍ट्रीय संयोजक के नाते तिब्‍बत समस्‍या का गंभीर अध्‍ययन। कुछ समय तक हिंदी दैनिक जनसत्‍ता से भी जुडे रहे। संप्रति देश की प्रसिद्ध संवाद समिति हिंदुस्‍थान समाचार से जुडे हुए हैं।

4 COMMENTS

  1. Pproblem ye nahi ki chima ke pass hamare se jyada hathiyaar h balki ye h ki hamare netao ki hum burai to kRte h jaise is waqt me kar raha but iska koi result nahi aata ye baate aam janta ke dilo fimaag me kai salo se dabi aa rahi hoyi h aur natija sunya aapki jaankari ke liye bata du aap jis china ki taakat ke baare me itnaa fenk rahe h japan jaise chote se desh ne use do baar yudh me haraya h aur dusri baar to haalat ye thi ki america ko dakhal andaji karke japan par do atom bomb daalne pade ,,,khair aap ab bolrnge ki us time china ki takat kam hogi japan ke aage ya china ready nahi hoga aise halat ke liye to aapko galatfahami h janab japan konsa apne ghar se saare aadmi lekar ladayi me utra tha kya koi ladayi me apne pure desh ko jhonk deta h

    Ok ab baat kare dusre kisi yudh ki to mr. Doctor sahab aapko pata h russia jaise behad takatwar desh ko japan buri tarah maat de chuka h
    America ko vietnaam maat de chuka h
    Apne 13 pafosi desho ko ek sath isriel hara chuka h ek sath and wo bhi us halat me jab wo unse bahut backward tha to aap please public ke dimag me aise ul-julul baate kar dar paida karne ki kosis na hi kare to behatar hoga hame desh ke logo ko shaan se sar uthaakar jine ko ptotsahit karna chahiye naa ki unko darkar ghar me dubak jane ko ya sarkaar ke khilaf road par aa jane ko uksaye wo bhi us condition me jab govt. Yudh jaisi condition se gujar rahi ho
    Last me main sirf itna kahinga yudh me hathiyaaro se jyada ye ye chij result ko effective banati h ……
    1. Waqt chot aur jagah hamare anukul ho
    2 dimag me dushman aur dil me desh ho
    Bas itna hi agar aap kar paaye to jeet aapki tay h jeep wale do sainiko ne america ke modern tanko ko dwast kiya wo yaad h aapko 1971 me pakistaan ke khilaf

  2. चीन भारत को आश्वस्त करना चाहता है कि मेरे साथ आ जाओ. मेरे आर्थिक विस्तारवाद से मत डरो, इसमें तुम्हारा भी विकास होगा. लेकिन भारत सावधानी अपनाना चाहता है कि वह फिर धोखा न दे. यह अविश्वास चीन और भारत को साथ आने नही देता. मिडिया पर अमेरिका यूरोप की अधिक पकड़ है, इसलिए मिडिया भी भारत और चीन के बीच डर और अविश्वास को बढ़ा रहा है. लेकिन चीन और भारत के बीच मित्रता की संभावना तलाशने की जरूरत है.

    टर्की में सैनिक क़ु का प्रयास असफल हो गया, टर्की के राष्ट्रपति “रिजेप टाइप एर्डोगन” ने फिर से अपनी पकड़ बना ली है. पहले टर्की नाटो के साथ था. रूस के साथ उसके सम्बन्ध खराब थे. लेकिन इस घटना के बाद टर्की के सम्बन्ध नाटो और अमेरिका से खराब होने के संकेत मिल रहे है, टर्की और रूस पास आए है.

    क्या रूस और टर्की एक साथ आ है. चीन रूस का पुराना शत्रु है. मोदी के कार्यकाल में भारत की अमेरिका से नजदीकियां बढ़ी है. रूस भारत का पुराना मित्र है. विश्व में फिर से खेमेबंदी हो रही है. अलग अलग देशो के अलग अलग स्वार्थ है, उनका मिलन बिंदु कहा होगा यह समय तय करेगा.

  3. समस्या कॊ समजनॆ हॆतु नया द्रस्तिकॊन दिया ह, धन्यवाद्

  4. डा. अग्निहोतत्री जी ने बहुत ही विचारणीय पहलू उठाया है। पिछले लेख की तरह ही इस लेख को भी अच्छे से वर्णित किया है।

    वाकई चीन हमारे लिए बहुत बड़ सिरदर्द है और उससे बड़ी समस्या हमारे देश की अमेरिका के प्रति झुकाव। क्या वाकई हमारे सेनाध्याक्षों को हमारी कमजोरी जगजाहिर करनी चाहिए। कूटनीति और राजनीति कहती है कि जमना में कभी निराशाजनक सेदेश नहीं जाना चाहिए।

    क्या चार फुटे चीनियों से हम डर जाऐगे। ठीक है 1962 में हम तैयार नहीं थे और हमारे साथ धोखा हुआ था। किन्तु आज न तो हमारी सेना कमजारे है और नाही हमारी जनता सत्य से अनभिज्ञ है। इतिहास गवाह है कि कुशल युद्ध नीति से छोटी सेनाओं ने भी बड़ी ताकतकर सेनाओं को हराया है। जरूरत है हमारी सेना, हमारी जनता में आत्मविश्वार और जोश की भावना पैदा करने की।

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