आँख में उँगली डाल
एक ज़ोरदार नारे ने
हमें झकझोर कर जगा दिया –
“स्वच्छ भारत”
आजतक पता ही नहीं था
कि हम स्वच्छ नहीं हैं ।
हम तो अबतक
यही मानते रहे
कि हमने नहा कर तन बदन साफ़ किया ।
घर-द्वार बुहार कर
कूडा कचरा घर के बाहर कर दिया।
पूजा-पाठ करके
मन शुद्ध किया।
स्वच्छ रहने के लिये
इससे अधिक
और चाहिये ही क्या ?
पर यह नया नारा –
इसने तो हमें
बिलकुल गन्दा घोषित कर दिया !
और हमें यह सोचने पर मजबूर कर दिया
कि
घर ही नहीं,
बाहर भी हमें साफ़ रहना है
बड़ा बेढब
और कठिन काम है ।
जिस देश की संस्कृति संस्कार में
यह बसा हो –
कि साफ़ सुथरी दीवार खोजकर ही
मुँह में भरी
पीक की पिचकारी मारना ही
सभ्यता और हमारी सर्वोच्च संस्कृति का
चरमोत्कर्ष है ।
उस भारत भूमि को साफ़ करना,
और साफ़ रखना,
बड़ी टेढ़ी खीर है ।
यह “टेढ़ी खीर”मुहावरा
शायद ऐसी ही परिस्थितियों के लिये बना होगा ।
हमारे प्रधान मंत्री
राष्ट्र भाषा हिन्दी के अच्छे जानकार हैं ।
पर लगता है
इस मुहावरे से इनका साबका नहीं पड़ा,
वरना ऐसा असम्भाव्य नारा कभी न देते ।
ऐसा नहीं है
कि घर बाहर साफ़ नहीं रखा जा सकता ।
न ही स्वच्छ भारत
कोई ऐसा सपना है ,
जो पूरा नहीं हो सकता ।
पर सवाल और सोच,
जो इसे पूरा नहीं होने दे रहा,
वो बहुत गम्भीर है ।
सपना ही सही,
मान लीजिये, यह सपना
साकार हो गया
तो बताइये
इस चमत्कार,
इस करिश्मे का
श्रेय किस पार्टी को मिलेगा ?
जिसने नारा दिया
उसी को, न ?
अब जिसको श्रेय ,
उसी की पार्टी
जमकर भारत पर
कुंडली मार बैठेगी ।
और बाक़ी सब पार्टियाँ हाशिये पर
महज़ ताली बजाती रह जायें,
बरसों बरसों तक
जनमत में कोई चान्स नहीं ।
भला यह किसको मंज़ूर ?
ऐसी भयंकर परिस्थिति न हो,
इसीलिये
रोज़ नया पोस्टर
हमारे प्रधानमंत्री का
स्वच्छ स्वरूप लिये
भारत रूपी दीवार पर लगता है ,
और पूरा विपक्ष मिल कर
उस पर थूक कर
अस्वच्छ भारत की
सार्थकता
और मजबूरी
सिद्ध करता है ।
–आशा वर्मा
Simra gaon ka Vikas Adhuri Sadke