भ्रष्‍टाचार से जर्जर होता भारत

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ए एन शिबली

भारत में घपले और घोटाले कोई नई बात नहीं हैं। दुनिया के दूसरे देशों में भी घपले होते हैं मगर भारत में जिस पैमाने पर भ्रष्‍टाचार हो रहे हैं उससे इसकी छवि को जबरदस्‍त नुकसान पहुंचा है। समय-समय पर हाई कोर्ट और सुप्रीम कोर्ट ने भी अपनी टिप्पणी में देश में फैले भ्रष्टाचार पर नाराज़गी का इज्हार किया है मगर इस से किसी की सेहत पर कोई असर नहीं पड़ता। हाल ही में विदेशी बैंकों में जमा काले धन पर पूरी जानकारी देने में सरकार की हिच्किचाहट पर नाखुशी जताते हुए हाईकोर्ट ने कहा कि भारतीय संपत्ति को विदेशों में रखना देश को ‘लूटने’ के बराबर है। सबसे खास बात जो इस देश में है वह यह कि आप ईमानदार समझें तो किसे समझें और अगर कहीं गलत हो रहा है तो आप इंसाफ की उम्मीद कहाँ से और किस से करें। इस देश के हमाम में हर कोई नंगा है। किसी की शिकायत करनी है तो पुलिस के पास जाएंगे जो खुद ही बेईमानी में नंबर वन है। अदालत का दरवाज़ा खटखटाएं तो वहां भी बेईमानों की कमी नहीं है। देश के पूर्व मुख्य न्यानधीश जस्टिस एस पी भरूचा ने एक बार कहा था कि उच न्यायपालिका में 20 प्रतिशत जज भ्रष्ट हैं। हाल ही में सुप्रीम कोर्ट ने एक फैसले में कहा कि इलाहाबाद हाई कोर्ट में कुछ ऐसे जज हैं जिनकी ईमानदारी पर उन्हें पूरा शक है। इस बयान को वापस लेने के लिए जब याचिका डाली गयी तो जस्टिस काटजू ने कहा कि वो अपने फैसले पर क़ायम हैं और जानते हैं कि इलाहाबाद हाई कोर्ट में कोन क्या कर रहा है। न्यायपालिका में वैसे तो बहुत से लोगों के दामन पर दाग़ लग चुका है लेकिन इन में जस्टिस वी रामास्वामी, जस्टिस शमित मुखर्जी, जस्टिस पी डी दिनाकरण, जस्टिस निर्मल यादव और जस्टिस सौमित्र सेन के नाम उल्लेखनीय हैं। रामास्वामी ने पंजाब एवं हरियाणा हाई कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश रहते हुए बड़े पैमाने पर पैसे बनाए। उनके घर पर छापेमारी में सीबीआई ने काफी रक़म भी बरामद की। मुखर्जी ने 2003 में रिश्वत लेकर एक रेस्टुराँ मालिक के हक़ में फैसला दिया। दीनाकरण पर कारेड़ों रूपये की सरकारी ज़मीन पर कब्ज़ा करने का आरोप है। निर्मल यादव पर 2008 में 15 लाख रूपये की रिश्वत लेने का ठोस आरोप लगा मगर अभी भी नौकरी में बनी हुई हैं। सेन साहब पर वकालत के दौरान लगभग 30 लाख रूपये की हेरा फेरी का आरोप लगा।

वैसे तो यहाँ कई बड़े बड़े घोटाले हुये हैं मगर साल 2010 में तो हद ही हो गयी। इस वर्ष भारतीय इतिहास के कई बड़े घोटाले हुए। यह एक संयोग है कि इस वर्ष अधिकतर घोटालों में यू पी ए या फिर कांग्रेस का ही कोई न कोई व्यक्ति संलिप्त पाया गया। मगर ऐसा नहीं है कि कांग्रेस के लोग ही बेईमान हैं और बाक़ी की दूसरी पार्टियां दूध की धुली हुई हैं। इस हमाम में सभी नंगे हैं बस अंतर सिर्फ इतना है कि किसी का घोटाला सामने आ गया और किसी का अब तक सामने नहीं आया है। अफसोस की बात यह है कि राजनेता जनता के और देश के पैसे को हर तरह से लूटते हैं मगर इस से ज्यादा अफसोस की बात यह है कि घपले और घोटालों के सामने आने के बाद भी इस देश में अधिकतर मामलों में दोषियों को सज़ा नहीं मिल पाती और यही कारण है कि लाखों करोड़ों का घोटाला करने के बावजूद लोग बड़ी बेशर्मी से मुसकुराते रहते हैं और उन्हें इस बात का ज़रा सा भी एहसास नहीं होता कि उन्हों ने जो काम किया है उस पर उन्हें हंसने की नहीं बल्कि शर्म से डूब मरने की ज़रूरत है। ए राजा, लालू प्रसाद यादव, सुखराम, अशोक चौहान, बी एस येदिउरप्पा, सुरेश कलमाडी, बंगारू लक्ष्मण, जयललिता, हर्षद मेहता, केतन परिख, रामलिंगम राजू, अबदुर रहीम टेलगी और पी वी नरसिम्हा राव वो बड़े नाम हैं जो किसी न किसी घोटाले में शामिल रहे। इन के अलावा भी एक दो नहीं बल्कि ढेरों ऐसे नेता हैं या बड़े अफसर हैं जिन की छवि दाग़दार है मगर उन्हें इसका अफसोस नहीं है बल्कि उन्हें बेईमानी करने में संकोच नहीं होता। ऊपर कुछ जीवित और कुछ मर चुके लोगां या नेताओं के नाम का वर्णन इसलिए किया गया है कि क्योंकि यह लोग देश के बड़े घोटालों में शामिल रहे।

आंकड़े बताते हैं कि गत 25 सालों में दस बड़े घोटाले में ही घोटालेबाजों ने लगभग तीन लाख करोड़ रूपए का घोटाला कर दिया। वैसे तो देश में घोटाले होते ही रहे हैं और होते ही रहेंगे मगर अब तक जो घोटाले हुए हैं उन में सबसे पहले नंबर पर 2जी स्पेक्ट्रम घोटाले को रखा जा सकता है। इसके बाद देश में पैसों के हिसाब से जो बड़े बड़े घोटाले हुये हैं उनमें हर्षद मेहता मामला, बोफोर्स, हवाला कांड, केतन परिख मामला, लालू का चारा घोटाला, रामलिंगम राजू का सत्यम घोटाला, तेलगी का स्टम्प घोटाला, उत्तर प्रदेश का खगन्न घोटाला, सुरेश कलमाडी एंड कंपनी का राष्ट्रमंडल खेलों के आयोजन में घोटाला, ताज कोरीडोर मामला, मधु कोड़ा की लूट, रेल्वे भर्ती घोटाला, पुलिस भर्ती घोटाला, बराक मिसाइल घोटाला शामिल है। यह सब वो घोटाले हैं जिस ने देश को हिला कर रख दिया। इन के अलावा सैकड़ों की संख्या में घोटाले हमारे देश का मुकद्दर बन चुके हैं। सबसे पहले बात करते हैं घोटाले का वर्ष 2010 बड़े घोटालों की। देश का अब तक सबसे बड़ा घोटाला 2जी स्पेक्ट्रम घोटाला इसी वर्ष सामने आया। पूर्व संचार मंत्री ए राजा ने 2008 में मोबाइल कंपनियों को 2जी फ्रीक्वेन्सी सस्ते दामों में बेच दी। कैग ने अपनी रिपोर्ट में कहा की राजा ने प्रधान मंत्री के आदेशों को भी नज़रअंदाज़ किया और उनकी इस हरकत से देश को इतना बड़ा नुकसान हुआ। वैसे तो राजा शुरू में यह कहते रहे कि मैंने कोई गलती नहीं की है और मैं इस्तीफा भी नहीं दुंगा मगर जब उन पर दबाव पड़ा तो पहले हठधर्मी के बाद राजा को अंतत: जाना पड़ा। वैसे राजा के मामले में यह देखने में आया है कि हर कोई उसे बचाने की कोशिश करता रहा। गिरफ्तार होने के बावजूद राजा का बाद में किया होगा यह तो समय ही बताएगा।

2010 का दूसरा बड़ा घोटाला आदर्श हाउसिंग घोटाला की शक्ल में सामने आया। मुंबई में शहीद के परिवारों के लिए बने फ्लैट को बेईमान नेताओं ओर बिल्डरों ने मिलकर उनको दे दिया जो उनके लिए नहीं था। बेईमानी से यह फ्लैट नेताओं के रिश्तेदारों और सेना के बड़े अफसरों को बाँट दिये गये। इस पूरे मामले में लगभग 1000 करोड़ रूपए का घोटाला हुआ और चूंकि राज्य सरकार की खामियां खुल कर सामने आईं इस लिए राज्य के मुख्यमंत्री अशोक चौहान को अपने पद से हाथ धोना पड़ा। इस घोटाले की ताज़ा स्तिथि यह है कि पर्यावरण मंत्रालय ने आदर्श आवासीय सोसाईटी की 21 मंजिला इमारत को अनाधिकृत करार देते हुए जहां उसे तीन महीने के भीतर गिरा देने की सिफारिश की है वहीं कांग्रेस ने अब यह कहना शुरू कर दिया है कि यह मामला केंद्र और राज्य सरकार के बीच का है और उसे इस से कोई मतलब नहीं है। 2010 के तीसरे बड़े घोटाले में भी सरकार का ही एक व्यक्ति सुरेश कलमाडी शामिल रहा। यह तो अभी पूरी तरह से साबित नहीं हुआ है मगर इतना तय है की कलमाडी एंड कंपनी ने खेल के आयोजन पर बड़े पैमाने पर घोटाला किया। यह सही है कि इतने बड़े खेल का शानदार आयोजन कर के भारत ने पूरे विश्व में अपनी शान बढ़ाई मगर इस आयोजन में जो बड़े पैमाने पर घोटाला हुआ उस से भारत की विदेशों में भी नाक कटी। कलमाडी और उनके चेलों के घर पर छापे भी पड़े कई गिरफ्तार भी किए गए मगर किसी को अब तक उचित सज़ा नहीं हुई है। जब तक इन्हें जेल न भेजा जाए सजा उचित कैसे कही जाएगी।

2010 का चौथा बड़ा घोटाला कर्नाटक में हुआ। इस घोटाले में मुख्यमंत्री बी एस येदिउरप्पा के रिश्तेदारों ने लगभग 300 एकड़ ज़मीन को कौड़ी के दाम में खरीदा। हर तरफ से उन्हें हटाने की मांग हुयी मगर काफी ड्रामे और हंगामे के बाद भी वो अपने पद पर बने हुए हैं। यह वो घोटाले थे जो काफी बड़े थे और संयोग से सब के सब 2010 में ही सामने आए। मगर जहां तक घपलों और घोटालों की बात है तो वो तो इस देश के मुकद्दर में लिखा है और यही कारण है की नए नए घोटाले सामने आते रहते हैं। अब तो इस हद तक घोटाले सामने आने लगे हैं कि कभी कभी नए घोटालों के सामने आने पर जनता चौंकती भी नहीं। एक तो जनता को यह लगता है कि इस देश में घोटाला कोई नई बात नहीं है और दूसरे उसे यह लगता है कि यह घोटालेबाज़ भी दूसरे कई घोटालेबाज़ों की तरह न सिर्फ बच जाएगा बल्कि बड़ी बेशर्मी से अपनी बेईमानी और हरामखोरी जारी भी रखेगा।

बिहार के पूर्व मुख्यमंत्री लालू प्रसाद यादव 950 करोड़ रूपए के चारा घोटाला में फंसे, कई बार जेल भी गए, कुर्सी भी गंवाई, आमदनी से अधिक संपत्ति के मामले में भी फंसे मगर अब भी सीना चौड़ा कर के घूमते हैं। ऐसा लगता ही नहीं कि यही वह व्यक्ति है जो जानवरों का चारा खा गया है और कई बार जेल की हवा भी खा चुका है। बोलते ऐसे हैं जैसे सबसे बड़े ईमानदार यही हैं दूसरों से ऐसे बात करते हैं जैसे इनके अलावा सब उल्लू हैं।

एक साहब हैं सुखराम। जैसा नाम वैसी ही हरकत सुख से रहने के चक्कर में ऐसे तैसे करके खूब पैसे बनाए। 1996 में सी बी आई ने छापेमारी करके उन के घर से लगभग 4 करोड़ रूपए बरामद किए। फरवरी 2009 में कोर्ट ने सुखराम को तीन साल की सज़ा सुनाई। अपने देश में राजनीति में आई महिलाओं के भी खूब जलवे हैं। उत्तर प्रदेश की मुख्यमंत्री मायावती पर पैसों की बरसात को कौन नहीं जानता। अपने जन्म दिन पर वो करोड़ों रूपए के हार पहनती हैं। कहती हैं कि उन्हें उनके चाहने वालों ने यह पैसे दिये। कोई मायावती का कुछ नहीं बिगाड़ पाता। 2002 में ताज कोरीडोर का मामला सामने आया। इस परियोजना में मायवती पर बड़ी मात्रा में धन की हेरा फेरी का आरोप लगा। मामला अभी भी सी बी आई देख रही है और मायावती का जलवा हमेशा की तरह अब भी बरक़रार है। देश की अधिकतर जनता को यही लगता है कि ताज महल की शक्त बिगड़ने की कोशिश करने वाली मायावती का कुछ नहीं बिगडेग़ा।

एक दूसरी महिला हैं जयललिता। जयललिता जब तामिलनाडू की मुख्य मंत्री बनी थी तो उनके पास 2.61 करोड़ रूपए की दौलत थी और मुख्य मंत्री रहते रहते उनकी दौलत लगभग 70 करोड़ रूपए हो गयी। जयललिता कई घोटालों में तो शामिल रही हैं जब उनके घर की तलाशी ली गई तो लाखों रूपए की साड़ी और 28 किलो सोने भी मिले। फिलहाल जयललिता मुख्य मंत्री नहीं हैं मगर पहले जैसी ऐश की ज़िंदगी वह अब भी गुज़ार रही हैं।

झारखंड से अक्सर घपलों के समाचार सुनने को मिलते रहते हैं। वहाँ के एक मुख्यमंत्री मधु कोड़ा पर सरकार के 4000 करोड़ रूपए की हेरा फेरी का आरोप लगा। वो भी दूसरे हठधर्मियों की तरह यही कहते रहे कि उन्हों ने कोई गलती नहीं की।

मौजूदा सरकार के कई मंत्रियों या फिर नेताओं के कई घोटालों में फंसे होने की वजह से उछल रही बी जे पी का दामन भी साफ नहीं है। तहलका ने यह साबित किया था कि एक सरकारी ठेका दिलाने के लिए उस समय के पार्टी अध्यक्ष बंगारू लक्ष्मण ने एक लाख रूपए की रिश्वत ली। लक्ष्मण अब अपने पद पर नहीं हैं और उनका केस दिल्ली हाई कोर्ट में चल रहा है मगर बंगारू जी का कुछ बिगड़ेगा ऐसी उम्मीद कम ही लगती है। अब इस दुनिया में नहीं रहे पूर्व प्रधान मंत्री पी वी नरसिम्हा राव कई घोटलों में शामिल रहे। इंग्लैंड में रहने वाले भारतीय वायपारी लखुभाई पाठक ने उनपर धोखा करने का आरोप लगाया। उनपर एक विदेशी बैंक में 21 मिलियन अमेरिकी डॉलर जमा करने के भी आरोप लगे। सरकार बचाने के लिए उन के द्वारा झारखंड मुक्ति मोर्चा के सांसदों के 395 करोड़ रूपए देने के आरोप भी लगे। वैसे तो नरसिम्हा राव पर यह सारे आरोप साबित नहीं हो पाये मगर हर कोई जानता है कि सच्चाई वो नहीं है जो दुनिया के सामने आई। सेना के बारे में आम खयाल यह किया है कि वहाँ बड़े ईमानदार लोग रहते हैं। ऐसी आम राय है कि जो लोग देश की सेवा करने का जज्बा रखते हैं वहीं सेना में जाते हैं इसलिए सेना में जाने वालों से बेईमानी की उम्मीद नहीं की जा सकती मगर इतिहास गवाह है कि सेना में भी घपले हुए। सेना में कुछ घपले और घोटाले तो ऐसे हुये कि उन पर जितना भी शर्म किया जाए कम है। देश में सेना से संबंधित जो खास घोटाले सामने आए उनमें हथियारों की खरीदारी में घोटाला (बोफोर्स, बराक मिजाईल), वर्दी घोटाला, अंडा घोटाला, दूध घोटाला, जूता घोटाला, ताबूत घोटाला, सुखना ज़मीन घोटाला और ज़मीन की खरीद में घोटाला शामिल हैं।

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  1. घोटाले घोटाले घोटाले! कब तक आपलोग इन घोटालों का रोना रोते रहेंगे?इस तरह के लेखों से किसी की सेहत पर कोई असर पड़ने वाला है क्या?तो फिर इन पर बार बार चर्चा ही क्यों?लिखना ही है तो कोई समाधान तो दीजिये.इस तरह के घोटाले आगे नहीं हों इसके लिए कोई रास्ता तो सुझाइए.इन लेखों को पढ़ने से मुझे तो अब ऐसा लगने लगा है की चूँकि हमें इन सबसे कोई लाभ नहीं हुआ तो हमने अपने दिल की भडास निकालने के लिए कलम उठा लिए.पन्ने रंगने के अतिरिक्त अन्य कोई लाभ इन सब लेखों से तो है नहीं.मैंने एक बार पहले भी लिखा है की अगर कुछ करना ही तो संकल्प कीजिये की हम इस भ्रष्टाचार का हिस्सा नहीं बनेंगे.न रिश्वत देंगे न लेंगे.अपने निजी लाभ के लिए अपने पद का कभी भी दुरूपयोग नहीं करेंगे.अगर हम अपनी अपनी जगहों पर इमानदारी वर्तना शरू कर दे तो कोई कारण नहीं की इस तरह के घोटाले इतिहास की वस्तु बन कर रह जाएँ.पर क्या हम सब ऐसा कर पाएंगे?

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