सारा विश्व आज भारत की ओर देख रहा है

India emerging as world leaderराकेश कुमार आर्य

धृतराष्ट्र ने पूछा-‘‘कणिक! साम, दान, दण्ड और भेद के द्वारा शत्रु का नाश कैसे किया जा सकता है’’ यह मुझे बताइये।

कणिक ने कहा-“हे राजन इस विषय में नीतिशास्त्र के तत्व को जानने वाले एक वनवासी गीदड़ का वृतांत सुनाता हूं।

एक वन में कोई बड़ा बद्घिमान और स्वार्थ साधन में कुशल गीदड़ अपने चार मित्रों-बाघ, चूहा, भेडिय़ा और नेवले के साथ निवास करता था। एक दिन सबने हरिणों के एक सरदार को देख जो बड़ा बलवान था। उसे पकडऩे में जब वे सब सफल न हो सके, तब सबने मिलकर सलाह की। गीदड़ बोला-‘‘भाई बाघ! तुमने इस हरिण को मारने का कई बार यत्न किया पर यह बड़े वेग से दौडऩे वाला युवा और बुद्घिमान होने से पकड़ में नही आ रहा। मेरी राय है कि जब यह हरिण सो रहा हो, उस समय यह चूहा इसके दोनों पैरों को काट खाये। तब यह तेज दौड़ नही पाएगा। इस हालत में बाघ उसे पकड़ ले। फिर तो हम सब प्रसन्नचित हो इसे खा सकेंगे।’’

गीदड़ की यह बात सुनकर सबने सावधान मनसा ऐसा ही किया। चूहे द्वारा काटे हुए पैरों से लड़खड़ाते हुए मृग को बाघ ने तत्काल ही मार दिया। पृथ्वी पर हरिण के शरीर को निश्चेष्ट पड़ा देख गीदड़ ने कहा-‘‘आप सबका कल्याण हो। आप सब स्नान करके आयें। तब तक मैं इसकी रखवाली करता हूं।’’

गीदड़ के कहने पर चारों साथी नदी में स्नान करने के लिए चले गये। इधर यह गीदड़ किसी चिंता में निमग्न हो वहीं खड़ा रहा। इतने में महाबली बाघ स्नान करके सबसे पहले वहां आ पहुंचा। उसने देखा कि गीदड़ का चित्त चिंता से व्याकुल हो रहा है।

बाघ ने पूछा-‘‘महामते! किस चिंता में पड़े हो? हम सब में तुम ही सबसे अधिक बुद्घिमान हो। आज इस हरिण का मांस खाकर हम सब मौज करेंगे।’’

गीदड़ बोला-माहबाहो! चूहे ने तुम्हारे विषय में जो कुछ कहा है उसे तुम सुनो। वह कहता था-‘‘मृगों के राजा बाघ के बल को धिक्कार है। इस मृग को तो मैंने मारा है। मेरे बाहुबल का आश्रय लेकर आज बाघ अपनी भूख मिटाएगा। चूहे ने इस प्रकार घमण्ड भरी बातें कहीं हैं। उसकी सहायता से प्राप्त इस भोजन को ग्रहण करना मुझे तो अच्छा नही लगा। बाघ ने कहा-‘‘यदि वह ऐसी बात कहता है तब तो उसने मेरी आंखें खोल दीं-मुझे सचेत कर दिया है। आज से मैं अपने ही बाहुबल से ही वन जंतुओं का वध किया करूंगा और उन्हीं का मांस खाऊंगा।’’ इस प्रकार कहकर बाघ वन में चला गया। इसी समय चूहा भी स्नान करके वहां आ पहुंचा। उसे देख गीदड़ ने कहा-‘‘तुम्हारा भला हो नेवले ने जो बात कही है उसे सुन लो।’’ वह कह रहा था कि बाघ के काटने से इस हरिण का मांस विषैला हो गया है, मैं तो इसे खाऊंगा नही मुझे यह पसंद नही। यदि तुम्हारी अनुमति हो तो मैं चूहे को ही खा लूं।

यह बात सुनते ही चूहा अत्यंत भयभीत हो-बिल में घुस गया, तत्पश्चात भेडिय़ा भी स्नान करके वहां आ पहुंचा। उसके आने पर गीदड़ ने कहा-“भेडिय़ा भाई। आज बाघ तुम पर क्रोधित हो गया है। तुम्हारी अब खैर नही। वह अभी बाघिन को लेकर यहां आ रहा है। इसलिए अब तुम्हें जो उचित लगे, वह कर लो।” गीदड़ के ये शब्द सुनते ही कच्चा मांस खाने वाला भेडिय़ा दुम दबाकर वहां से भाग गया। इतने में नेवला भी आ गया।

गीदड़ ने उस नेवला से कहा-‘‘ओ नेवले! मैंने अपने बाहुबल से उन तीनों को परास्त किया है। वह हार मानकर अन्यत्र चले गये हैं। यदि तुझमें साहस हो तो पहले मुझसे लड़ ले फिर इच्छानुसार मांस खाना।’’

नेवले ने कहा-‘‘जब बाघ, भेडिया और बुद्घिमान चूहा यह सभी वीर तुमसे परास्त हो गये तब तुम तो वीर शिरोमणि हो, मैं भी तुम्हारे साथ युद्घ नही कर सकता। तब नेवला भी वहां से चला गया।’’

कणिक ने कहा-इस प्रकार उन सबके चले जाने पर अपनी युक्ति में सफल होकर गीदड़ का हृदय हर्ष से खिल उठा। उसने अकेले ही सारा मांस खा लिया।

राजन! ऐसा ही आचरण करने वाला राजा सदा दुखी रहता है और उन्नति करता है। डरपोक को भय दिखाकर फोड़ ले और अपने से अधिक शूरवीर को हाथ जोड़ वश में कर ले। लोभी को धन देकर तथा बराबर वाले और कमजोर को पराक्रम से वश में कर ले।

किसी भी देश की विदेशनीति का यही आधार होता है। हर देश अपने चारों ओर के बाघ, नेवलों और चूहों या भेडिय़ों से घिरा रहता है। अवसर आते ही कौन किस पर घात लगा ले और क्या कर दे, कुछ नही कहा जा सकता। इन सबके साथ आप एक साथ युद्घ नही कर सकते और ना ही युद्घ किसी समस्या का समाधान है, इसलिए उसे जितना अधिक हो सके उतना टाला जाए। हम सूक्ष्मता से देखने का प्रयास करें कि हमारे पड़ोस में, हमारी मित्र मंडली में, संगी साथियों में कौन बाघ है? कौन नेवला है? कौन चूहा है और कौन भेडिय़ा है? जो जैसा है उसके साथ वैसा ही व्यवहार किया जाए।

जहां तक भारत की बात है इसकी स्थिति तो और भी शोचनीय है। इसके शत्रु पाक और चीन हैं और उन दोनों के ‘शुभचिंतक’ हमारे देश के ही भीतर ‘देशभक्त’ बनकर रहते हैं। राजनीति भी करते हैं और व्यापार आदि में देश को जितना हो सकता है-चूस रहे हैं।

हमारे लिए यह भी सौभाग्य की बात है कि विदेशमंत्री के रूप में श्रीमती सुषमा स्वराज और रक्षामंत्री के रूप में श्री पार्रिकर का कार्य भी अभी तक सराहनीय रहा है। विदेशों से संबंध बिगाडऩे या सुधारने को लेकर किसी भी देश के विदेश मंत्री और रक्षामंत्री का भी विशेष योगदान रहता है। हमारे प्रधानमंत्री विदेशमंत्री और रक्षामंत्री का समन्वय बहुत ही सुंदर है।

तीनों के सुर एक जैसे होते हैं। अपने राष्ट्रीय हितों पर सजग और सावधान रहते हैं और दूसरे के हितों को खाने का प्रयास नही करते हैं। संतुलित विदेशनीति की यह पहचान है। यदि आप अपने कलेजा को दूसरे को खाने दे रहे हैं और बचाव भी नही कर पा रहे हैं तो आप कायर हैं और यदि आप दूसरे के हितों की उपेक्षा कर रहे हैं और केवल अपना-अपना स्वार्थ ही देख रहे हैं तो आप भेडिय़ा हैं। हमने स्वतंत्रता के पश्चात पाकिस्तान से कश्मीर में तथा चीन से अरूणांचल प्रदेश में अपनी 125000 वर्ग किमी की भूमि को कब्जा करवा के शत्रु को अपना ‘कलेजा’ खिलाया और उस विदेशनीति को ‘नेहरू नीति’ का नाम दिया। यह नीति सर्वथा त्याज्य थी।

अब देश की विदेश नीति परिवर्तन की ओर है। नया विश्वास बना रही है। प्रधानमंत्री अचानक पाकिस्तान पहुंचते हैं। सारा पाकिस्तान और सारा विश्व आश्चर्यचकित रह गया। भारत का प्रधानमंत्री दो तीन घंटे में ही पाकिस्तान सहित विश्व को कई संदेश देकर आया। उसने स्पष्ट कर दिया कि उसका सीना 56 इंची है और वह बिना किसी सुरक्षा की चिंता किये पाकिस्तान की सेवा के हैलिकाप्टर में भी बैठ सकता है। भारत में रहने वाले पाक शुभचिंतकों को संदेश दिया कि मोदी पाकिस्तान से मित्रता चाहता है, चीन, अमेरिका, ब्रिटेन, फ्रांस आदि शक्तियों को संदेश दिया कि हम युद्घ की ओर नही बढ़ रहे हैं और पाकिस्तान से मित्रता चाहते हैं, पर पाकिस्तान है कि मान नही रहा है। वास्तव में उस समय तक भारत की विदेशनीति को लेकर लोगों में यह संशय था कि श्री मोदी पाकिस्तान के साथ मित्रता को आगे न बढाक़र युद्घ की नीति का सहारा लेंगे। मोदी जी के लिए यह भ्रम तोडऩा अनिवार्य था। इसके अतिरिक्त पाक में जाकर श्री मोदी ने वहां की राजनीति में भूचाल ला दिया। वहां सेना और सरकार में एवं सरकार तथा विपक्ष में अविश्वास बढ़ा और इस प्रकार एक शत्रु को अपने ही जाल में फंसाने में भारत की विदेशनीति सफल रही।

बाघ, नेवले आदि के उक्त प्रसंग को थोड़ा और बढाक़र देखें तो श्री मोदी ने चीन सहित कई अन्य देशों को भी अपनी विदेशनीति को खंगालने पर विवश कर दिया है। श्री मोदी ने चीन को जापान, वियतनाम, मंगोलिया, रूस, नेपाल आदि उसके पड़ोसी देशों के साथ भारत की नीति में परिवर्तन कर चिंता में डाल दिया है। इसी प्रकार पाकिस्तान को भी अपने पड़ोसी अफगानिस्तान से दूर करने में सफलता प्राप्त की है। परिणामस्वरूप हर देश भारत की ओर देख रहा है उसे ‘उगता भारत’ नमन और वंदन के योग्य जान पड़ रहा है। लगता है भारत का भाग्योदय हो रहा है। अपनी सरकार की अच्छी नीतियों को देश के लोगों का समर्थन मिलना ही चाहिए।

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राकेश कुमार आर्य
उगता भारत’ साप्ताहिक / दैनिक समाचारपत्र के संपादक; बी.ए. ,एलएल.बी. तक की शिक्षा, पेशे से अधिवक्ता। राकेश आर्य जी कई वर्षों से देश के विभिन्न पत्र पत्रिकाओं में स्वतंत्र लेखन कर रहे हैं। अब तक चालीस से अधिक पुस्तकों का लेखन कर चुके हैं। वर्तमान में ' 'राष्ट्रीय प्रेस महासंघ ' के राष्ट्रीय अध्यक्ष हैं । उत्कृष्ट लेखन के लिए राजस्थान के राज्यपाल श्री कल्याण सिंह जी सहित कई संस्थाओं द्वारा सम्मानित किए जा चुके हैं । सामाजिक रूप से सक्रिय राकेश जी अखिल भारत हिन्दू महासभा के वरिष्ठ राष्ट्रीय उपाध्यक्ष और अखिल भारतीय मानवाधिकार निगरानी समिति के राष्ट्रीय सलाहकार भी हैं। ग्रेटर नोएडा , जनपद गौतमबुध नगर दादरी, उ.प्र. के निवासी हैं।

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  1. ​निष्पक्ष संतुलित लेख, बढ़िया विवेचन।

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