भारत-रत्न दिलवाने की जिद

विनोद उपाध्याय

2 जनवरी 1954 में भारत के तत्कालीन राष्ट्रपति राजेंद्र प्रसाद ने जब कला, साहित्य, विज्ञान और सार्वजनिक सेवा में उल्लेखनीय योगदान करने वालों को भारत का सर्वोच्च नागरिक सम्मान देने के लिए भारत रत्न की स्थापना की थी तब यह सोचा भी नहीं होगा की भविष्य में यह विवाद का केंद्र बनेगा। भारत रत्न का विवाद अब एक ऐसे मोड़ पर आ गया है जहां इस सर्वोच्च सम्मान को राजनीति का मुद्दा बना लिया गया है और विभिन्न राजनीतिक दलों के नेता अपने मनपसंद को यह सर्वोच्च सम्मान दिलाने की जिद कर रहे हैं।

आज भारत-रत्न ऐसा सम्मान बन गया है जिसे पाने या दिलाने के लिए अभियान चलाया जाता है। सबसे पहले भाजपा ने पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी को भारत रत्न देने की मांग की। भाजपा के इस क़दम के बाद तो दावेदारों की गोया झड़ी सी लग गई। मायावती ने काशीराम को भारत रत्न के लिए सबसे उपयुक्त दावेदार बताया तो चौधरी अजीत सिंह अपने पिता पूर्व प्रधानमंत्री चौधरी चरण सिंह के लिए भारत रत्न का दावा पेश करने से नहीं चूके। इसी प्रकार समाजवादी पार्टी के नेता मुलायम सिंह ने आचार्य नरेन्द्र देव का नाम भारत रत्न के लिए प्रस्तावित किया। कोई रतन टाटा कहता है तो कोई सचिन तेंदुलकर तो मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री अटल से बिमुख होकर अब ध्यानचंद का गुण गा रहे हैं।

हालांकि भारत रत्न के उपरोक्त प्रस्तावक दल अथवा प्रस्तावक नेता अपने दावों के समर्थन में कुछ भी बखान क्यों न करें परन्तु भारत रत्न सम्मान चयन समिति के विचार भी प्रस्तावकों के विचारों से मेल खाते हों, यह ज़रूरी नहीं है। उदाहरण के तौर पर नि:सन्देह अटल बिहारी वाजपेयी भारतीय राजनीति पर पांच दशकों तक निरंतर छाए रहने वाले एक बड़े राजनैतिक क़द का नाम है। सत्ता पक्ष में रहे हों अथवा विपक्ष में अपनी कुशल राजनैतिक सूझबूझ का उन्होंने हमेशा ही परिचय दिया है। राजनैतिक जीवन से सम्मानजनक बिदाई के रूप में उनके लिए भारत रत्न से अच्छा उपहार और हो भी क्या सकता था? परन्तु वाजपेयी के आलोचकों द्वारा उन्हीं के राजनैतिक जीवन के खाते में कारगिल घुसपैठ, संसद पर हुआ आतंकवादी हमला तथा कंधार विमान अपहरण कांड में कुछ दुर्दान्त आतंकवादियों को बाइज्जत दिल्ली से कंधार पहुंचाया जाना व उन्हीं के शासनकाल में हुए गुजरात दंगे भी शामिल हैं। ऐसे में भारत रत्न जैसे सर्वोच्च भारतीय नागरिक सम्मान को तराज़ू के किस पल्ले पर रखा जा सकता है। ऐसी ही परिस्थितियां कांशीराम व चौधरी चरण सिंह के नामों को लेकर उत्पन्न होती हैं। इन बातों से तात्पर्य यही निकलता है कि भारत रत्न जैसा सर्वोच्च नागरिक सम्मान ऐसे उच्चकोटि के व्यक्ति को दिया जाना चाहिए जो सर्वमान्य हो, आलोचनाओं का शिकार न हो तथा वास्तव में अपने महान व्यक्तित्व की बदौलत भारत के एक आकर्षक रत्न के रूप में चमकता हुआ दिखाई दे। परन्तु दु:ख की बात यह है कि अब शायद इस देश में ऐसे लोग चिरांग लेकर ढूंढने से भी नहीं मिल सकेंगे जो कि किसी न किसी कारण किसी न किसी व्यक्ति की आलोचना का केंद्र न हों। इसका सबसे बड़ा कारण है समाज में विभिन्न स्तरों पर तेंजी से बदलती जा रही विचारधारा और इसी वैचारिक बदलाव के कारण भारत रत्न जैसे अलंकरण को भी ग्रहण लगता जा रहा है।

अगर भारत रत्न प्राप्त करने वालों की बात करें तो उनके अलावा भी कुछ ऐसे लोग थे जो भारत रत्न पाने के हकदार थे,लेकिन उन्हें भारत रत्न क्यों नहीं दिया गया,इसका जवाब तो निरधारित करने वाली कमेटी के पास भी नहीं होगा। जिनको भारत रत्न मिलना चाहिए था वह नाम आज भी इसी इन्तजार में हैं जैसे इन नामों में महात्मा गांधी,सुभाष चन्द्र बोस,भगत सिंह,चन्द्रशेखरआजाद,राजगुरु, सुखदेव,अशफाकउल्ला खां इत्यादि। अगर गम्भीरता से इन नामों पर विचार किया जाए तो क्या ये लोग भारत रत्न पाने के हकदार थे या नहीं? इन्होंने ने जो भारत माता की सेवा की क्या उससे बढ़कर भी कोई सेवा की जा सकती थी। क्या सुभाष चन्द्र बोस भारत रत्न पाने के योग्य नहीं थे कि उनका नाम भारत रत्न के लिया घोषित करके भी वापस ले लिया गया। लेकिन जातिवाद,क्षेत्रवाद और पार्टीवाद के इस दौर में इन महान विभूतियों को दरकिनार कर अपनी पसंद के नाम को उछाला जा रहा है।

पहले तो गनीमत थी कि पार्टियां कम से कम पब्लिक के बीच उछालकर भारत रत्न नहीं मांगा करती थी लेकिन अब तो स्थिति ऐसी हो गई है कि भारत रत्न इस तरह से पार्टियों द्वारा मांगा जा रहा है जैसे मजदूर अपनी मजदूरी मांगने की बात कर रहा हो। अगर इसी तरह चलता रहा तो वह दिन दूर नहीं जब भारत रत्न का महत्व भी एक आम दिये जाने वाले पुरस्कार के समान हो जायेगा।

भारत रत्न एक ऐसा सम्मान है जिसे पाने के बाद पाने वाला अपने आप को गौरवन्ति महसूस करता है,भारत रत्न भारत वर्ष में दिया जाने वाला सर्वश्रेष्ठ नागरिक पुरस्कार है। और भारत रत्न पाने के लिये किसी जाति,देश या प्रदेश जैसी कोई योग्यता नहीं केवल योग्यता चाहिए तो वह यह कि वह भारतकी नि:स्वार्थ सेवा करने वाला हो। लेकिन आज बिना सेवक बने ही भारत रत्न पाने की होड़ में भारत रत्न पर भी राजनीति की जाने लगी है। आज के राजनेताओं ने अपनी राजनीति को चलाने के लिये भारत रत्न जैसे पवित्र और निष्पक्ष पुरस्कार को भी नहीं बख्शा है।

एक अरसे से सचिन तेंदुलकर को भारत-रत्न दिए जाने की बात की जा रही है। ग्वालियर में जब उन्होंने वनडे के इतिहास में पहला दोहरा शतक जड़ा तो इस मांग ने और जोर पकड़ा। इसके बाद हाल ही में विश्वकप जीतने के बाद मानो अगला लक्ष्य सचिन तेंदुलकर को भारत-रत्न दिलाना ही हो गया है। सचिन तेंदुलकर निस्संदेह आज के दौर के सर्वश्रेष्ठ खिलाड़ी हैं। लेकिन उन्हें उनके अवदान का श्रेय देने में इतनी अति बरती जाती है कि अन्य खिलाडिय़ों का बेहतर प्रदर्शन हाशिए पर ही चला जाता है। खेद यह है कि मीडिया और क्रिकेट मैचों के प्रायोजक बाजार के चलते जानबूझ कर खिलाड़ी को भगवान का दर्जा देने की स्थिति बनायी गई। हिटलर के सलाहकार गोएबल्स की उक्ति ध्यान आती है कि एक झूठ को इतनी बार बोलो कि वह सच लगने लगे। सचिन अच्छे खिलाड़ी हैं, उन्हें क्रिकेट प्रेमियों का प्यार वैसे ही भरपूर मिल रहा है। लेकिन अगर वे भगवान बन जाते हैं, तो इससे उन उत्पादों की बिक्री और आसान हो जाती है, जिसका वे विज्ञापन करते हैं। उन मैचों को ज्यादा प्रायोजक मिल जाते हैं, जिसमें उनके किसी विशेष रिकार्ड पर ज्यादा से ज्यादा सट्टा लगता है। ऐसे में उन्हें भारत-रत्न दिए जाने की मांग राजनीतिक दलों द्वारा किया जाना भी आश्चर्यजनक नहीं लगता। अभी तक भारत रत्न दिए जाने के लिए खेल को कोई श्रेणी नहीं बनाया गया था। लेकिन अब कई महत्वपूर्ण मुद्दों पर सुस्ती दिखाने वाली केंद्र सरकार ने इस मुद्दे पर अभूतपूर्व तेजी दिखाई। सरकार ने देश के खिलाडिय़ों को सबसे बड़े नागरिक सम्मान भारत रत्न देने का रास्ता प्रशस्त कर दिया। सरकार की इस पहल से मास्टर ब्लास्टर सचिन तेंदुलकर को भारत रत्न से नवाजने की क्रिकेट प्रशंसकों की मांग पूरी हो सकती है।

इधर मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने मांग की है कि सचिन के पहले हाकी के जादूगर मेजर ध्यानचंद को भारत-रत्न दिया जाए। शिवराज सिंह चौहान ने कहा है कि सचिन भी बेमिसाल खिलाड़ी हैं लेकिन मेजर ध्यानचंद ने भी पूरी दुनिया में देश का मान बढ़ाने का काम किया है। लिहाजा ध्यानचंद को मरणोपरांत खेलों के क्षेत्र में भारत रत्न दिया जाना चाहिए। सचिन को भारत रत्न देने के नाम पर मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान की टिप्पणी पर इंदौर शहर काग्रेस अध्यक्ष प्रमोद टंडन कहते है कि मुख्यमंत्री खेल के नाम पर ओछी राजनीति कर रहे हैं। वे कहते हैं कि सचिन तेंदुलकर के सामने मेजर ध्यानचंद का नाम लेकर प्रदेश के मुख्यमंत्री माहौल खराब कर रहे हैं। सचिन देश के महान खिलाड़ी हैं और वो भारत रत्न के हकदार हैं। पूरी दुनिया में सचिन ने देश का नाम रोशन किया है और पूरी दुनिया सचिन को जानती है। ऐसे में सचिन भारत रत्न के हकदार हैं। मेजर ध्यानचंद और कई बड़े खिलाड़ी देश में हुए हैं। जिनको देश कभी नहीं भूल सकता। फिलहाल जब सचिन की बात हो रही है तो मुख्यमंत्री को अपनी मर्यादा का ख्याल रखना चाहिए। टंडन ने कहा कि राजनीति करने के कई मुद्दे हैं, ऐसे में खेल को कम से कम बख्श देना चाहिए।

 

शिवराज की इस मांग में भले राजनीति छिपी हो, लेकिन उनकी बात सही है। हाकी इस देश का राष्ट्र्रीय खेल है और ध्यानचंद इसलिए हमारे अनमोल रतन हैं। उन्होंने तीन बार ओलंपिक में भारत को स्वर्ण पदक दिलवाया है। क्या यह क्रिकेट का विश्वकप जीतने से बड़ी उपलब्धि नहीं है। अगर खेल के क्षेत्र से ही भारत-रत्न दिया जाना है, तो फिर सचिन के पहले कई योग्य दावेदार हैं। पर उससे पहले सवाल यह है कि क्या एक व्यक्ति को भारत का सर्वोच्च सम्मान दिया जाना क्या इतना आवश्यक हो गया है कि उसके लिए पुरस्कार के मानदंडों में ही बदलाव किया जाए। निजी चैनलों और बाजार के प्रभाव में भावुक जनता आए, यह तो समझ में आता है। किंतु क्या सरकार को भी इस दबाव में आना चाहिए। अथवा उन नियमों, नीतियों व कानूनों की समीक्षा में अपना अमूल्य समय लगाना चाहिए, जिससे व्यापक समाज का, जनता का सीधा हित जुड़ता है।

मेजर ध्यानचंद को भले ही भारत रत्न दिए जाने की मांग तेज हो गई हो लेकिन उनके बेटे अशोक कुमार का मानना है कि हॉकी की दुनिया के दिग्गज को इस सम्मान की जरूरत नहीं है। उन्होंने कहा, ध्यानचंद को भारत रत्न की जरूरत नहीं है लेकिन हॉकी को है, क्योंकि ऐसा होने से इस खेल के हालात सुधर जाएंगे। अशोक कुमार स्वयं हॉकी के बड़े खिलाड़ी रहे हैं। अगर वे इस तरह के तर्क दे रहे हैं तो उसमें हॉकी की दुर्दशा का दर्द साफ झलक रहा है। पहली बात तो यह है कि हांकी हमारा राष्ट्रीय खेल होने के बावजुद भी दोयम दर्जे की शिकार है। इस लिए अशोक कुमार की बात में दम दिखता है कि हॉकी को सम्मान मिलेगा तो खिलाडिय़ों का मनोबल ऊंचा उठेगा। लेकिन इस बात का यह मतलब कतई नहीं है कि सचिन को सम्मान नहीं दिया जाना चाहिए। लेकिन पिछले कुछ वर्षों से अपने मन पसंद को भारत रत्न दिलाने का प्रहसन चल रहा है वह ठीक नहीं है।

 

3 COMMENTS

  1. भारत रत्न देने के लिए कुछ तो आंकलन बिंदु होंगे जिनके बल पर भारत रत्न जैसा सर्वोच्च राष्ट्रीय पुरुस्कार दिया जाता है| उन्ही पर जो भी खरा उतरे उसी को भारत रत्न दिया जाना चाहिए| मेरा मानना है की अगर खेल श्रेणी को भी भारत रत्न देना है तो ध्यानचंद सही चयन होंगे. व्हो हमारे राष्ट्रीय खेल को अपने समय में शीर्ष पर ले गए और इस खेल को संजीवनी तो नहीं पर टोनिक रूप कुछ तो मिलेगा अन्यथा क्रिकेट को ही राष्ट्रीय खेल घोषित कर देना चाहिए!!. (अगर सोनिया, राहुल, कलमाड़ी, राजा, तेलगी आदि को ही देना है तो)

  2. आदरणीय विनोदजी में आपके विचारो से पू र्ण ते सहमत हू.आजकल के राजनीतिज्ञों को आम आदमी की समस्या से कुछ मतलब नहीं हे.आजकल हर बात पर राजनीती करण एवंबाजारीकरण का चलन बढता ही जा रहा हे. आपने जिन महापूराषओ के नाम सुजाहे हे ,आजकल के नेताओ का उन से दूर -दूर तक लेना देना नहीं हे.यहाँ तक वहअपने परिश्रम से नहीं चापूलोसी से सिर्फ पैसा बनाने ये आये हे. सचिन जीतो अन्तराष्ट्री लोकप्रियता प्राप्त हे परंतू ध्यान चंद जी का सम्मान हमारे राष्ट्री खेल का सम्मान होगा .

  3. भारत रत्न सहित सारे राष्ट्रीय सम्मान वर्षों से तुष्टिकरण नीति के तहत चाटुकारों को ही बांटे जाते हैं. यह एक सत्य है. क्या एम.जी. रामचन्द्रन, कामराज, राजीव गांधी, टाटा, बिस्मिल्ला खां आदि भारत रत्न के पात्र थे? नरसिंहा राव के समय एक ही साथ टाटा को भारत रत्न दिया गया और अटल जी को पद्म विभूषण। क्या जबर्दस्त मज़ाक था! बिस्मिल्ला खां ने यह पुरस्कार मिलने के बाद कहा था कि इससे अच्छा होता सरकार मुझे एक पेट्रोल पंप का लाइसेंस दे देती, ताकि मेरे बाल-बच्चों का भविष्य सुरक्षित हो जाता. भूल से भी महात्मा गांधी, नेताजी सुभाष चन्द्र बोस, भगत सिंह, आज़ाद, पंडित मदन मोहन मालवीय, जय प्रकाश नारायण जैसे महान व्यक्तियों के लिए भारत रत्न की मांग मत उठाइये. इन्हें एमजीआर और कामराज की पंक्ति में मत खड़ा होने दीजिए. हम तो सोनिया गांधी, राहुल गांधी, अफ़ज़ल गुरु, नीरा राडिया, राजा, करुणानिधि और विनायक सेन के लिए भारत रत्न की उम्मीद लगाए बैठे हैं।

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