भारत बन रहा है नेपाल का मजबूत सहारा

A Nepali man carries recovered belongings through the street in the ancient city of Bhaktapur in the Kathmandu Valley on April. 28, 2015. Nepal had a severe earthquake on April 25th. Photo by Adam Ferguson for Time

-सुरेश हिन्दुस्थानी-

A Nepali man carries recovered belongings through the street in the ancient city of Bhaktapur in the Kathmandu Valley on April. 28, 2015. Nepal had a severe earthquake on April 25th. Photo by Adam Ferguson for Timeप्राय: कहा जाता है कि जिस देश की बुनियाद मजबूत होती है, उसे कोई भी हिला नहीं सकता। किसी भी उत्थान के लिए भूमि का मजबूत होना अत्यंत जरूरी माना जाता है। लेकिन अगर किसी देश की जमीन ही हिल जाए तो उसके तमाम विकसित अवधारणाएं धराशायी हो जाती हैं। वर्तमान में नेपाल में जिस प्रकार की तीव्रता के साथ जमीन हिली है, उससे उसके पांव डगमगा गए हैं। उसे खड़ा करने के लिए एक मजबूत सहारे की तलाश है। विश्व के अनेक देशों में नेपाल की दशा सुधारने की कवायदें हो रही हैं, लेकिन भारत ने जिस त्वरित गति से नेपाल की इस भयावहता को महसूस किया है, वैसा संभवत: अन्यत्र दिखाई नहीं देता। भारत द्वारा इस प्रकार की सक्रियता के पीछे स्वाभाविक प्रक्रिया हो सकती है, लेकिन विश्व के अनेक देशों के अपने निहितार्थ हो सकते हैं।

भारत के प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने जिस प्रकार से नेपाल के प्रति दर्द को व्यक्त किया है, वैसा किसी अपने के अंदर ही होता है। हम जानते हैं कि भारत और नेपाल सांस्कृतिक धारणा को लेकर एक जैसा वातावरण अपनाए हैं। जब दोनों देशों की कार्यविधि में इतना सांमजस्य है, तब व्यावहारिक निकटता हो ही जाती है। इसमें सबसे बड़ी बात तो यह है कि यह निकटता केवल सरकारी स्तर ही नहीं है, बल्कि भारत का आम जनमानस भी नेपाल के दर्द में समान रूप से दुख का अनुभव कर रहा है। देश भर में वैश्विक उत्थान और सेवा कार्यों के प्रति समर्पित राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के कार्यकर्ताओं ने नेपाल में जो अभूतपूर्व सेवा की है, वह जिन आंखों ने देखा है, वह मुक्त कंठ से प्रशंसा कर रहा है। वैसे संघ का प्रारंभ से ही इस बात पर बल रहा है कि सेवा कार्यों को करते समय कभी भी प्रसिद्धि पाने की आकांक्षा नहीं रहना चाहिए। आज तक संघ ने जितने भी सेवा कार्य किए हैं, वह सभी पूरी तन्मयता के साथ किए हैं। संघ के कार्यों में समर्पण होता है। यह समर्पण भाव का होता है, जिस संस्था में विश्व के कल्याण का सकारात्मक भाव होता है, उसके अंदर ही यह समर्पण का भाव प्रकट होता है। परहित सरिस धर्म नहिं भाई, पर पीड़ा सम नहिं अधमाई के भाव को अंगीकार करते हुए संघ अपने सेवा कार्यों को करता है। सेवा कार्य करते समय संघ किसी का संप्रदाय नहीं देखता। भारत के अनेक शहरों में घर घर जा रहे संघ के स्वयंसेवक नेपाल को सहायता करने के लिए परिश्रम कर रहे हैं।

केवल इतना ही नहीं भारत में अन्य गैर सरकारी संगठन भी नेपाल के प्रति अपनी सहानुभूति का प्रदर्शन कर रहे हैं। कई शहरों में यह संगठन में नेपाल के लिए सहायता एकत्रित कर रहे हैं। अब सवाल यह आता है कि नेपाल के प्रति भारत में इस प्रकार का भाव क्यों हैं। इसके पीछे निश्चित ही भारत और नेपाल का वह सांस्कृतिक तादात्म्य है, जो एकरूपता के प्रदर्शन के साथ निकटता का दर्शन कराते हैं।

नेपाल में चाहे विदेशी राहत टीमों को नेपाल सरकार ने यह कहकर अपने देश जाने के लिए कह दिया है कि अब नेपाल को बाहर की राहत टीमों की आवश्यकता नहीं है। सात हजार से अधिक लोग भूकंप के कारण मौत के हवाले हो गए है और हजारों की संख्या में घायल होकर मौत से जूझ रहे हैं। अब भी कई लोगों के मलबे के अंदर दबे होने की आशंका है। हाल ही में 102 वर्षीय वृद्ध आठ दिन बाद जिंदा मलबे से निकाला गया। इस प्रकार और भी लोग मलबे में दबे हुए हैं। जब जापान में नागासाकी-हिरोशिमा के एक लाख से अधिक लोग द्वितीय विश्व युद्ध में अमेरिकी अणु बम से मारे गए थे। उसकी याद में अब भी हर वर्ष जापानी अणु बम में मारे गए लोगों के प्रति शोक संवेदना व्यक्त करते हुए श्रद्धांजलि अर्पित करते हैं। नेपाल की त्रासदी की सबसे अधिक चिंता भारत के लोगों को है। भारत ने सबसे पहले नेपाल को सहायता पहुंचाई। अभी हाल ही में मध्य प्रदेश एवं अन्य राज्यों से भी नेपाल में जो लोग मृत्यु की भेंट चढ़ गए हैं, लाखों लोग बर्बाद हो गए, उनके आशियाने प्रकृति ने छीन लिए, उन्हें इन राज्यों द्वारा आर्थिक एवं अन्य मदद दी जा रही है। नेपाल की त्रासदी की पीड़ा जितनी नेपाल को है उतनी ही भारत में दिखाई दे रही है। सरकार और सामाजिक संस्थाएं नेपाल की पीड़ित जनता के लिए धन संग्रह कर रहे हैं। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के स्वयंसेवक सेवा भारती के माध्यम से पीड़ितों के लिए दान प्राप्त कर रहे हैं। इस प्रकार नेपाल सरकार ने चाहे विदेशी राहत टीमों को वापस जाने के लिए कह दिया हो, लेकिन भारत से लगातार सहायता की खेप नेपाल पहुंच रही है। चीन ने भी सहायता के लिए चीनी टीमें भेजी है। भारत द्वारा लगातार सहायता भेजने का सिलसिला चल रहा है। नेपाल के लोग और वहां की सरकार भी भारत की सरकार और श्री मोदी को सहयोग के लिए धन्यवाद दे रहे हैं। चीन और अन्य देश चाहे कूटनीति दृष्टि से नेपाल को सहयोग दे। भारत के लोगों का सांस्कृतिक संबंध नेपाल से रहा है। हम कह सकते है कि नेपाल और भारत के रिश्ते अटूट है। हिन्दुओं की आस्था जितनी पशुपतिनाथ के प्रति है उतनी ही काशी विश्वनाथ के प्रति है। सांस्कृतिक अटूट संबंध होने से चाहे नेपाल में राजनीतिक उथल-पुथल होती रहे, लेकिन भारत के साथ नेपाल के रिश्ते टूटते नहीं है। भारत का कूटनीतिक स्वार्थ नेपाल के लिए नहीं है। इसलिए भारत के प्राय: सभी सामाजिक और धार्मिक संगठन और सरकार नेपाल को अधिक सहायता पहुंचाने में जुटे हुए हैं। भाजपा के सांसद, विधायकों ने एक माह का वेतन राहत कोष में दिया है। छोटे-बड़े अफसर, कर्मचारियों ने भी अपने वेतन की राशि राहत कोष में अर्जित की है। भारत की सहायता सहयोग से नेपाल के पीड़ित बंधुओं को मदद मिले। नेपाल भी पहले से अधिक ऊर्जा से उठकर खड़ा हो, यही भारत सरकार और जनता की इच्छा है।

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