भारत में विश्व जनसँख्या दिवस के मायने

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राजीव गुप्ता

गत वर्ष 31 अक्टूबर 2011 को गैर सरकारी संस्थाओ के अनुसार भारत में 7 अरबवें बच्चे के जन्म के साथ विश्व की जनसँख्या 7 अरब हो गयी ! संयुक्त राष्ट्र जनसंख्या कोष (यूएनएफपीए) के प्रतिनिधि ब्रूस कैम्पबेल ने एक संवाददाता सम्मेलन में ने इस बढ़ती हुई आबादी को एक चुनौती मानते हुए कहा था कि “हमने जबकि मानव विकास के लिए ठोस बुनियाद तैयार की है लेकिन अमीर और गरीब के बीच मतभेद और गहरी खाई अभी भी कायम है !” वर्तमान समय में जिस तेजी दर से विश्व की आबादी बढ़ रही है उसके हिसाब से विश्व की आबादी में प्रत्येक साल 7.8 करोड़ लोगों की वृद्धि होगी और इसका दबाव प्राकृतिक संसाधनों पर पड़ेगा ! यू.एन.ओ के सेक्रेटरी-जनरल ने इस वर्ष के विश्व जनसँख्या दिवस के मौके पर अपने सन्देश में कहा है कि 1945 में यू.एन.ओ की उत्पत्ति से लेकर 2012 तक विश्व – जनसँख्या में लगभग तिगुनी वृद्धि हुई है और यह लगातार बढ़ रही है ! 7 अरब से ज्यादा लोग इस ग्रह पर रहते है और उन्हें बुनियादी सुविधाए रोटी , कपडा, मकान, स्वास्थ्य एवं शिक्षा उपलब्ध करवाने की चुनौती के साथ – साथ प्रसव स्वास्थ्य सेवा एक प्रमुख समस्या अभी तक बनी हुई है ! विश्व स्वास्थ्य संगठन के आकड़ो के अनुसार गरीबी के कारण करोडो महिलाये प्रसव के समय काल-ग्रसित हो जाती है ! यही नहीं विश्व समुदाय के समक्ष स्थानान्तरण भी एक समस्या के रूप में उभर रहा है ! क्योंकि बढ़ती आबादी के चलते लोग बुनियादी सुख-सुविधा के लिए दूसरे देशो में पनाह लेने को मजबूर है ! भारत में बंग्लादेशी – घुसपैठ इसका प्रत्यक्ष उदाहरण है ! अमेरिका के डेली न्यूज में छपी एक रिपोर्ट के मुताबिक जानवरों की प्रजातियों में 30 प्रतिशत तक की गिरावट आई है क्योंकि मानव ने अधिक से अधिक प्राकृतिक संसाधनों का दोहन शुरू कर दिया है ! निरंतर वनों की संख्या में कमी हो रही है और पेयजल की समस्या मुह बाये खडी है ! इस रिपोर्ट में यहाँ तक कहा गया है कि अगर मानव द्वारा प्राकृतिक संसाधनों का दोहन इसी प्रकार होता रहा और जनसँख्या में वृद्धि इसी रफ़्तार से बढ़ती रही तो 2030 तक हमें पृथ्वी जैसे दो ग्रहों की आवश्यकता हो जायेगी !

 जनसँख्या – स्थिति

चीन को अपनी 1 .3 अरब जनसँख्या के चलते विश्व में प्रथम स्थान हासिल है तो भारत भी अपनी 1 .2 अरब जनसँख्या के साथ विश्व में दूसरे नंबर पर है ! विशेषज्ञों ने चिंता जताई है कि अगर भारत की जनसँख्या इसी दर से बढ़ती रही तो 2030 तक हमें विश्व में प्रथम स्थान हासिल हो जायेगा ! अभी हाल के जनसंख्या परिणामों के अनुसार भारत की आबादी 120 करोड़ से अधिक है, जो अमेरिका, इंडोनेशिया, ब्राजील, पाकिस्तान और बांग्लादेश की कुल जनंसख्या से ज्यादा है ! ध्यान देने योग्य है कि भारत के कई राज्य विकास में भले ही पीछे हो परन्तु उनकी जनसँख्या विश्व के कई देशो की जनसँख्या से अधिक है ! उदाहरणार्थ तमिलनाडू की जनसँख्या फ़्रांस की जनसँख्या से अधिक है तो वही उडीसा अर्जेंटीना से आगे है ! मध्यप्रदेश की जनसँख्या थाईलैंड से ज्यादा है तो महाराष्ट्र मेक्सिको को टक्कर दे रहा है ! उत्तरप्रदेश ने ब्राजील को पीछे छोड़ा है तो राजस्थान ने इटली को पछाड़ा है ! गुजरात ने साऊथ अफ्रीका को मात दे दी तो पश्चिम बंगाल वियतनाम से आगे बढ़ गया ! यही नहीं हमारे छोटे – छोटे राज्यों जैसे झारखण्ड, उत्तराखंड, केरल, आसाम ने भी कई देशो जैसे उगांडा, आस्ट्रिया, कनाडा, उज्बेकिस्तान को बहुत पीछे छोड़ दिया है ! अपनी इस उपलब्धि के साथ हम यह कह सकते है कि भारत में जनसँख्या के आधार पर विश्व के कई देश बसते है ! परन्तु यह भी सच है कि भारत के पास विश्व का मात्र 2.4 प्रतिशत क्षेत्र है परिणामतः संसाधनों के मामले में हम कही ज्यादा पीछे है जिससे चिंतित होकर एक बार पूर्व ग्रामीण मंत्री रघुवंश प्रसाद ने यहाँ तक कह दिया था कि भले ही क्षेत्र और संसाधन के मामले में अमेरिका हमसे आगे हो परन्तु जनसँख्या के कारण कई अमेरिका भारत में मौजूद है !

किसानो की स्थिति

जनसँख्या के सम्बन्ध मे माल्थस जैसे प्रसिद्द अर्थशास्त्री के अनुसार जनसँख्या ज्यामितीय (2, 4, 8, 16, …) ढंग से और खाद्य सामिग्री गणितीय ( 1, 2, 3, 4…) ढंग से बढती है परिणामतः खाद्य उत्पादन – जनसँख्या में सामंजस्य रखने के लिए जनसँख्या नियंत्रण आवश्यक है ! ध्यान देने योग्य है कि माल्थस की इस अवधारणा को भारत मे हुई हरित क्रांति ने ही झुठला दिया था और उस समय नई और वैज्ञानिक खेती ने खाद्य-उत्पादन के क्षेत्र मे एक क्रांति ला दिया था ! परन्तु भारत में हुई इस हरित क्रांति के लगभग 50 साल बाद भी हम नई खेती के तरीको को मात्र 20 – 25 प्रतिशत खेतो तक ही ले जा पायें है ! आज भी भारतीय – सकल घरेलू उत्पाद ( जीडीपी) में कृषि का लगभग 15 प्रतिशत का योगदान है ! बावजूद इसके भारत की आधी से ज्यादा एनएसएसओ के ताजा आंकड़ो के आधार पर लगभग 60% जनसँख्या गरीबी में अपना जीवनयापन कर रही है ! देश का कुल 40 प्रतिशत हिस्सा सिंचित/असिंचित है ! इन क्षेत्रो के किसान पूर्णतः मानसून पर निर्भर है ! आज भी किसान जोखिम उठाकर बीज, खाद, सिंचाई इत्यादि के लिए कर्ज लेने को मजबूर है ऐसे में अगर फसल की पैदावार संतोषजनक न हुई आत्महत्या करने को मजबूर हो जाता है ! भारत में किसानो की वर्तमान स्थिति बद से बदत्तर है ! जिसे सुधारने के लिए सरकार को और प्रयास करना चाहिए ! इसी के मद्देनजर किसानो की इस स्थिति से निपटने हेतु पंजाब के राज्यपाल शिवराज पाटिल की अध्यक्षता में गत वर्ष अक्टूबर में एक कमेटी बनायीं गयी थी जो शीघ्र ही सरकार को अपनी रिपोर्ट सौपेगी ! इन सब उठापटक के बीच इसका एक दूसरा पहलू यह भी है कि सीमित संसाधन के बीच यह देश इतनी बड़ी आबादी को कैसे बुनियादी जरूरतों को उपलब्ध करवाए यह अपने आपमें एक बड़ा सवाल है जिसके लिए आये दिन मनरेगा जैसी विभिन्न सरकारी योजनाये बनकर घोटालो की भेट चढ़ जाती है और भारत – सरकार देश से गरीबी खत्म करने के खोखले दावे करती रहती है !

स्वास्थ्य – सेवा

सिर्फ इतना ही नहीं भारत में स्वास्थ्य – सेवा तो भगवान भरोसे ही है अगर ऐसा माना जाय तो कोई अतिश्योक्ति नहीं होगी ! एक तरफ जहा हमारी सरकार चिकित्सा – पर्यटन को बढ़ावा देने की बात करती है तो वही देश का दूसरा पक्ष कुछ और ही बयान करता है जिसका अंदाज़ा हम आये दिन देश के विभिन्न भागो से आये राजधानी दिल्ली के सरकारी अस्पतालों के आगे जमा भीड़ को देखकर लगा सकते है जहाँ एक छोटी बीमारी की इलाज के लिए ग्रामीण इलाके के लोगों को दिल्ली – स्थित एम्स आना पड़ता है ! भारत की स्वास्थ्य – सेवा के प्रति जनसँख्या – नियंत्रण पर सरकार कितनी लापरवाह है इस भयावह तस्वीर से अंदाज़ा लगाया जा सकता है ! आज भी ग्रामीण क्षेत्रों में शहरों की अपेक्षा मृत्यु-दर ज्यादा है ! एक आकडे के मुताबिक आजादी के इतने वर्षों के बाद भी इलाज़ के अभाव में प्रसव – काल में 1000 मे 110 महिलाये दम तोड़ देती है ! ध्यान देने योग्य है कि यूएनएफपीए के कार्यकारी निदेशक ने प्रसव स्वास्थ्य सेवा पर चिंतित होते हुए कहा है कि विश्व भर में प्रतिदिन लगभग 800 से अधिक महिलाये प्रसव के समय दम तोड़ देती है ! विश्व स्वास्थ्य संगठन की अगर माने तो प्रसव के समय दम तोड़ने वाली महिलाओ में 99 प्रतिशत महिलाये विकाशसील देशो से सम्बंधित है जबकि प्रायः उन्हें बचाया जा सकता है ! सीआईए के आकड़ो के अनुरूप शिशु मृत्यु-दर सबसे कम मोनैको देश में है जहा 1.8 बच्चे ही काल-ग्रसित होते है तो वही भारत में स्थिति बिलकुल उल्टी है ! भारत में आज भी एक हजार बच्चो में से 46 बच्चे काल के शिकार हो जाते है और 40 प्रतिशत से अधिक बच्चे कुपोषण के शिकार हो जाते है ! इतना ही नहीं जनसँख्या – वृद्धि को रोकने हेतु भारत – सरकार की नियत भी सवाल के घेरो में है क्योंकि सरकार ने आशा और आंगनबाडी की कर्मचारियों पर जो आज भी 1000 – 1500 रूपये मासिक वेतन के लिए भटकते है उन्ही पर परिवार कल्याण योजनाओं की जिम्मेदारी सौपी है !

परिवार – नियोजन पर जोर

जन्मदर को कम करके जनसंख्या वृद्धि में कटौती करने को ही आम तौर पर जनसँख्या नियंत्रण माना जाता है ! परन्तु महत्वपूर्ण सवाल यह है की इस देश की इतनी बड़ी जनसख्या – वृद्धि की समस्या की जिम्मेदारी किस पर छोड़ा जाय ! संजय गांधी ने इस दिशा में जिम्मेदारी तय करने की कोशिश की तो उन्हें अतिवादी की संज्ञा दे दी गयी ! पिछले वर्ष विज्ञानं भवन में बढती आवादी की चर्चा के बीच स्वास्थ्य-मंत्री गुलाम नबी आजाद के यशोगान के बीच पहल की बात कही गम हो गयी ! मंत्री जी के पास समस्या के समाधान के लिए कई उपाय थे लेकिन सबसे असरदार एवं कारगर उपाय यह था कि गाँव में बिजली पहुचनी चाहिए , दूरदर्शन पहुचने चाहिए ताकि लोग मनोरंजन करने के साथ – साथ जागरूक हो सके ! साथ ही उन्होंने कानून का सहारा लेकर जनसंख्या पर नियंत्रण की बात को पूरी तरह से इनकार कर दिया ! सरकार के पास कोई ठोस नीति नही है एवं उसमे जनसँख्या रोकने की दृढ़ इच्छाशक्ति भी नही है अगर ऐसा माना जाय तो अतिश्योक्ति नहीं होगी ! साथ ही जनसँख्या – वृद्धि को लोग धार्मिकता से जोड़ते हुए भगवान / खुदा का आशीर्वाद मानते हुए इसे रोकने का पुरजोर विरोध करते है ! इतना ही नहीं नसबंदी के ख़िलाफ़ फतवा तक जारी करते है ! इस विषम परिस्थिति में इस समस्या पर नियंत्रण कैसे पाया जाय यह एक गंभीर प्रश्न है ! संसद में देशहित को ध्यान में रखते हुए इस समस्या को लेकर बहस होनी चाहिए लेकिन सब मौन है ! परन्तु हमारी सरकार पांच सितारा होटलों में एक दूसरे की पीठ थपथपा कर अपनी जिम्मेदारी से मुक्त होना चाहती है जबकि जनसँख्या – बिस्फोट की चर्चा ग्रामीण एवं अशिक्षित समाज के बीच होनी चाहिए ! इतना ही नहीं नौकरशाहों के सुझावों पर सरकार को गंभीरता से सोचना चाहिए ! ज्ञातव्य है कि जिला बारमेर के कलेक्टर ने जोर देकर कहा था कि सरकार जिन्हें सहूलियत देती है वहां इसके लिए कुछ शर्त जरूर रख सकती है अर्थात परिवार नियोजन नही तो सरकारी नौकरी नहीं , इंदिरा आवास ,रोजगार गारंटी और दूसरी सहूलियत नही ! अनिवार्य जनसंख्या नियंत्रण का एक महत्वपूर्ण उदाहरण पीपल्स रिपब्लिक ऑफ़ चाइना की एक ही बच्चे की नीति है जिसमें एक से ज्यादा बच्चे होना बहुत बुरा माना जाता है ! इस नीति के तहत चीन ने अपने यहाँ ऐसे लोगो के सरकारी नौकरियों में प्रवेश पर प्रतिबन्ध लगा दिया जिन्हें के एक से अधिक बच्चे है ! परन्तु भारत सरकार के लिए यह सुझाव बेतुका है क्योंकि मुद्दा सीधे – सीधे वोट की राजनीति जुड़ा है ! परिणामतः परिवार नियोजन की बात करते ही सरकार के हाथ-पैर फूलने लगते है ऐसे में बिल्ली के गले में घंटी कौन बांधे यह एक बड़ा सवाल है ! वोट की राजनीति से ऊपर उठकर सरकार को कुछ ठोस कदम उठाने ही होंगे परन्तु जब तक परिवार – नियोजन का नाम बदल कर परिवार – कल्याण करने की सियासत होती रहेगी तब तक इस दिशा में कोई उम्मीद करना बेकार है !

 

 

 

जनसँख्या एक वरदान

 

 

 

भारत की बढ़ती हुई इस जनसँख्या का एक दूसरा पहलू भी है ! चिंता की बजाय यह आने वाले समय में वरदान भी बन सकती है ! अगर हम पूंजीपतियों की माने तो आने वाले समय में खपत की बहुलता के चलते भारत विश्व का सबसे बड़ा बाजार होगा परिणामतः विश्व के बड़े – बड़े उद्योगपतियों की नजर भारत पर होगी ! जिसकी शुरुआत वैश्वीकरण के नाम पर हो चुकी है ! उदाहरणार्थ ऑटोमोबाईल, शीतपेय जैसी कंपनिया भारत के हर नागरिको तक अपनी पहुच बनाने को बेकरार है तो वही भारतीय बाजारों में मोबाईल कंपनियों की बाढ़ – सी आ गयी है ! और तो और भारतीय त्योहारों का भी पूंजीकरण कर समय-समय पर बाजार लोक – लुभावने स्कीमे निकालकर उन्हें आकर्षित करने का प्रयास करता है ! आर्थिक सुधार के नाम पर प्रत्यक्ष विदेशी निवेश जैसे भारत-सरकार विश्व के लिए हर संभव रास्ता खोलना चाह रही है ! इतना ही नहीं दुनिया के बड़े – बड़े व्यापारी आज भारत में आना चाहते है गुजरात इसका प्रमुख उदाहरण है ! ध्यान देने योग्य है कि गुजरात सरकार कई विदेशी कंपनियों के साथ समझौते कर अपने यहाँ उनकी पूंजी निवेश कराकर विकास में भारत के सभी राज्यों से आगे है ! इतना ही नहीं अगर हम एक गैर सरकारी संगठन के आकड़ो की माने तो आने वाले समय में भारत में नवयुवको / नवदम्पत्तियो की बहुलता होगी जिसके चलते ये बाजार का केंद्र बिदु होगे और इन्हें ध्यान में रखकर वस्तुआ का निर्माण किया जायेगा ! भारत में सेवा-क्षेत्र सस्ता होने के कारण यहाँ पर प्रतिष्ठित कपनियो ने अपने – अपने “कॉल सेंटर” स्थापित किये है जिससे लाखो लोगो को रोजगार उपलब्ध है ! भारत अलग-अलग संस्कृतियों, भाषाओं और विविधता भरे विषयो वाला बाजार है ! बाजार की यह विविधता ही वैश्वीकरण के दौर में मनोरंजन कंपनियों को स्थानीय भाषाओं और संस्कृति के हिसाब से वस्तुओ को बेचने का मौका देती है ! बहरहाल दोनों पक्षों को ध्यान में रखकर जनसँख्या में हो रही बेतहासा वृद्धि के चलते सरकार को कुछ ठोस कदम उठाने चाहिए जिससे कि जनसख्या – विस्फोट के कारण हम किसी भयावता तस्वीर से रूबरू होने से ना हो ! इसके साथ – साथ भारत सरकार को प्राथमिक शिक्षा के अलावा कौशल-विकास एवं अनुसंधान – केन्द्रित शिक्षा पर और अधिक ध्यान देने की जरूरत है जिससे कि भारत में नए – नए आविष्कार और अनुसंधान को बढ़ावा मिले ! क्योंकि जितने अधिक परिवार शिक्षित एवं जागरूक होंगे उतनी ही शिशु – मृत्युदर और प्रसव के समय होने वाली महिलाओ की मौत की सम्भावनाये भी कम होगी ! जागरूकता को लेकर भारत – सरकार का “पल्स-पोलियो उन्मूलन” का अभियान सराहनीय एवं अनुकरणीय है ! ध्यान देने योग्य है विश्व स्वास्थ्य संगठन भारत पल्स-पोलियो जैसी गंभीर बीमारी से मुक्त हो चुका है ! इसी तर्ज़ पर सरकार को और अधिक प्रयास सभी क्षेत्रो चाहे वह गरीबी-उन्मूलन हो, शिक्षा हो अथवा स्वास्थ्य हो में करना चाहिए ताकि विश्व जनसँख्या दिवस का भारत में मायने और अधिक बढ़ जाये

 

 

 

 

 

 

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  1. हमें अच्छा लगे या बुरा ये एक सच्चाई है की २०३० तक हम डेढ़ सौ करोड़ से ज्यादा हो जायेंगे जबकि चीन की आबादी उस समय केवल १४६ करोड़ होगी. २०७० तक हमारी आबादी दो सौ करोड़ पहुँच सकती है.अतः हमारे योजनाकारों को इस वास्तविकता को स्वीकार करके नीतियां और कार्यक्रम बनाने चाहिए. एक एरिया जिसके बारे में कहना चाहूँगा. सिंगापूर का जनसँख्या घनत्व भारत से लगभग अठारह गुना है. फिर भी वहां हमसे कहीं बेहतर सड़कें, बेहतर आवास और स्कूल आदि हैं. क्योंकि उन्होंने आवासीय भवनों को वर्टिकल बढ़ने दिया है. हमारे यहाँ अभी भी मल्टीस्टोरी बिल्डिंगों के लिए बने नियमों में ऊँचाई पर कड़े अंकुश हैं. मेरठ जैसे शहरों में अंडरग्राउंड पार्किंग नहीं बना सकते. इस प्रकार के बेतुके नियमों से हम भविष्य की चुनौतियों का मुकाबला नहीं कर सकते. शहरों के मास्टरप्लान बनाते समय मौके पर प्रभावित होने वाले वर्गों से कोई चर्चा नहीं होती. एयरकंडीशंड कमरों में बैठकर आवासीय और कृषि क्षेत्रों का फैसला हो जाता है.मेरठ में कई क्षेत्रों में कोलेज व आबादी से लगी भूमि को कृषि भूमि घोषित कर दिया जाता है. बिना ये विचारे की कोलेज और आवासीय कोलोनी से लगी भूमि पर खेती कौन करेगा.इसके आलावा आने वाली चुनौतियों के लिए अभी से पूरी तेयारी से जुटना होगा.

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