नागा समझौता- अखंड भारत की दिशा में एक और कदम

 

3 अगस्त 2015 को भारत सरकार और भारतीय नागा मूल के आइसाक-मुइवा द्वारा संचालित नागा आन्दोलनकारी संगठन ‘नेशनल सोशलिस्ट काउंसिल ऑफ़ नागालैंड’ यानि NSCN(IM) के बीच ऐतिहासिक समझौता हुआ है | ऐसे कई समझौते अतीत में हो चुके हैं, लेकिन जब मणिपुर में इसी के साथी संगठन NSCN (K) के हमले में हमारे 18 जवान मार दिए गए, मणिपुर और मेघालय ILP  की आग में जल रहे हैं, पूरे पूर्वोत्तर में कांग्रेस, वामपंथी और गैर-भाजपाई सरकारें हैं, बांग्लादेशी घुसपैठ और चीन के गैर दोस्ताना माहौल में यह समझौता किस हद तक विशेष है, इसका एक अनुमान हम स्वयं भी लगा सकते हैं और बाकी धुंध समय के साथ जरूर साफ होगी |

नागा विद्रोह की पृष्ठभूमि

यह समझौता कोई अचानक हुई घटना नहीं है | इसके पीछे का इतिहास काफी पेचीदा बना दिया गया है |

1918 में नागा क्लब बना, जिसने 1929 में साइमन कमीशन को एक ज्ञापन सौंपा कि हम भारतीय प्रशासकीय ईकाई से अलग रहकर स्वतंत्र राष्ट्र रहना चाहते हैं | फिजो के नेतृत्व में नागा क्लब 1946 में नागा नेशनल काउंसिल में बदल चुका था | इमति अलिबा और टी शाखरी इसके सदस्य थे | जब अंग्रेजों ने भारत से वापस इंग्लैंड लौटना तय किया तब ही नागालैंड में आन्दोलन चला रहे नागा नेता अंगामी जापू फिज़ो ने असमिया, मैतेई, गारो, खासी, लुशाई, मिकिर, मिशमिस आदि पूर्वोत्तर की सभी प्रमुख जनजातियों से व्यक्तिगत तौर पर अलग-अलग बातचीत करके भारत से अलग राष्ट्र बनाने पर समर्थन प्राप्त करना चाहा, जिसमें उसे सफलता नहीं मिली | इसके बावजूद देश को आज़ादी मिलने से एक दिन पहले ही 14 अगस्त 1947 को उसने नागा बाहुल्य क्षेत्र के स्वतंत्र देश होने की घोषणा कर दी | नागा क्षेत्र को भारतीय गणराज्य से बाहर स्वतंत्र देश बनाने की यह सोच अंग्रेज़ी नीतियों का ही परिणाम था |

भारतीय सीमावर्ती प्रशासनिक सेवा में नियुक्ति होने के कारण NNC के सचिव पद से इमति अलिबा सेवानिवृत्त हुए तो 1950 के दशक में NNC में जापू फिज़ो की पैठ बढती गयी | तब नागालैंड असम का एक पहाड़ी जिला (हिल डिस्ट्रिक्ट) ही था | 1949 नवम्बर में अपने विरोधी विज़ार अंगामी को मात्र एक वोट से हराकर फिज़ो NNC का अध्यक्ष बना और लोगों से आम चुनावों का बहिष्कार करने की अपील कर डाली | मार्च 1956 में फिज़ो ने अंडरग्राउंड ‘नागा फ़ेडरल गवर्नमेंट’ (NFS) और ‘नागा फ़ेडरल आर्मी’ (NFG) बनायीं और यहाँ से विद्रोह ने ज़ोर पकड़ा | यह एक प्रकार से भारतीय संविधान के खिलाफ होना था | नागा विद्रोह दबाने के लिए दिल्ली से सेना भेजी गयी | फिजो बचकर पूर्वी पकिस्तान भागा, और वहां से जून 1956 में लन्दन | उसके बाद वह कभी भारत नहीं लौटा, 1990 में लन्दन में ही उसकी मृत्यु हुई | नागा आन्दोलन के नेतृत्वकर्ता को मरना भी अपनी नागाभूमि पर नसीब न हो सका |  लेकिन विदेशी ज़मीन से भी जीवनभर वह इस अलगाववादी आन्दोलन का समर्थन करता रहा |

NSCN- नागा विद्रोह की जननी

10-11 नवम्बर, 1975  को एक समझौता हुआ, जिसमें कहा गया था कि नागा फ़ेडरल गवर्नमेंट बिना किसी शर्त के भारत की संप्रभुता को स्वीकार करती है, हालांकि समझौते में नागा लोगों के हित में भी कुछ प्रावधान थे | भारत सरकार के प्रतिनिधि के रूप में नागालैंड के तत्कालीन राज्यपाल श्री लल्लन प्रसाद सिंह और NNC के केवी येली (जापू फिजो के छोटे भाई) के नेतृत्व में पांच नागा नेताओं ने इस पर दस्तखत किये | इस समझौते को 1975 के शिलोंग समझौते के नाम से जाना जाता है | इस वक़्त फिज़ो लन्दन में था | लेकिन यह सर्वस्वीकारीय हल नहीं था, क्योंकि अंगामी जापू फिजो के छोटे भाई केवी येली को अंडरग्राउंड उग्रवादी संगठनों का प्रतिनिधित माना जाता था न कि नागा फ़ेडरल गवर्नमेंट का | ये कहकर NNC के तत्कालीन अध्यक्ष आईसाक चिसी स्वू और महासचिव थुइन्गालेंग मुइवा ने लन्दन में बैठे फिज़ो को भी सात लोगों का दल भेजकर समझौते का विरोध करवाने की पुरजोर कोशिश की, लेकिन फिज़ो इस विषय में मौन रहा, न समर्थन ही किया और ना विरोध | NNC की तरफ से शिलोंग समझौते को विद्रोही गुटों के साथ हुआ समझौता  और विश्वासघात करार देकर यहाँ तक कह दिया गया कि नागा लोगों के अधिकारों को बेचा गया है | इसका ज़िम्मेदार फिज़ो को ठहराया गया | इसी बगावत से नागालैंड की निर्विवाद संप्रभुता यानि ग्रेटर नागालिम पाने के लिए विद्रोह की आग प्रबल होती गयी |  आइसाक चिसी स्वू, थुइन्गालेंग मुइवा और एस खापलांग की तिकड़ी ने शिलोंग समझौते के पांच साल बाद NNC को पुनर्जीवित करने के उद्देश्य 31 जनवरी, 1980 को ‘नेशनल सोशलिस्ट काउंसिल ऑफ़ नागालैंड’ (NSCN) का रूप दिया, जो 8 साल बाद ही 30 अप्रैल 1988 को दो फाड़ हो गया | एक के मुखिया भारतीय नागा मूल के आइसाक और मुइवा हैं तो दूसरे को बर्मा नागा मूल का खापलांग चलाता है | 3 अगस्त 2015 को जो भारत सरकार-नागा समझौता हुआ है वह भारतीय मूल के आइसाक और मुइवा संचालित नागा संगठन के मध्य हुआ है, जिसे हम NSCN(IM) के नाम से अधिक जानते हैं |

शांतिवार्ता की पहल और समस्या समाधान में बाधा

सबसे पहले 15 जून 1995 को तत्कालीन प्रधानमंत्री पी वी नरसिम्हाराव ने मुइवा और स्वू के साथ पेरिस में मुलाकात कर शांति प्रक्रिया शुरु की थी | फिर नवम्बर 1995 में गृहराज्यमंत्री राजेश पायलेट ने बेंकोक में, 3 फरवरी 1997 को तत्कालीन प्रधानमन्त्री एच डी देवेगौड़ा ने ज्यूरिक में और 30 सितम्बर 1998 को प्रधानमन्त्री अटल बिहारी वाजपेयी ने पेरिस में NSCN (IM) के प्रतिनिधि मंडल से मुलाकत कर शांतिवार्ता को आगे बढाया था | आखिरी समझौता NSCN(IM) गुट और भारत सरकार के मध्य 31 जुलाई 2007 को अनिश्चितकाल के लिए बढ़ा दिया गया था | 25 जुलाई 1997 को भारत सरकार ने NSCN(IM) के साथ संघर्ष विराम समझौते पर हस्ताक्षर किये, जो 1 अगस्त 1997 से लागू हुआ था, उसके बाद से आज तक लगभग 80 से ज़्यादा समझौते किये जा चुके हैं, लेकिन स्थिति जस की तस बनी हुई है |

राजग सरकार ने नगालिम की मांग को मानते हुए एक समझौते की प्रक्रिया प्रारंभ की थी लेकिन यह समझौता हो पाता, उससे पहले ही अरूणाचल प्रदेश, असम और मणिपुर ने इस योजना का विरोध करना प्रारंभ कर दिया था । 2003 की इस घटना में इन राज्यों में अन्य जनजातीय संगठनों ने नागा विद्रोहियों के खिलाफ हथियार उठा लिये थे और बड़े पैमाने पर नागा और अन्य तीन राज्यों के आदिवासियों में भयंकर युद्ध तक शुरू हो गया था। संगठन शक्ति में नागा बेहतर थे, परिणामस्वरुप हजारों की संख्या में अन्य अदिवासी मारे गए, जनजातियों का वहां से पलायन होने लगा।। वह समझौता सर्वस्वीकार्य नहीं था, इसलिए यह समस्या आज तक खिंची चली आई। ILP लागू करने की मांग को लेकर मणिपुर की वर्तमान स्थिति पर मणिपुर दूरदर्शन की एक एंकर ने अपना डर ज़ाहिर करते हुए मुझसे कहा था कि यदि मोदी सरकार का यह समझौता भी उसी तर्ज़ पर हुआ होगा तो यह आग में घी का काम करेगा |

पिछले समझौतों से उत्पन्न हुई शंका

समाधान शर्तों से नहीं, आपसी समझ से संभव है | किसी भी प्रकार के विद्रोही गुट के साथ संधि करना समस्या का समाधान नहीं है | अभी तक की सरकारें विद्रोहियों की शर्तों पर समझौता करती आयीं हैं | इन समझौतों का अर्थ इतना ही होता है कि वे उग्रवादी गुट हमारी सेना, नागरिक, और राष्ट्र को नुक्सान पहुंचाना स्थगित कर देते हैं | लेकिन तब भी वे संधि का पालन करेंगे ही, ऐसा कोई बंधन वे स्वीकार नहीं करते | उल्लंघन हुआ है, इतिहास में ऐसा अनेकों बार हुआ है | यूपीए सरकार के साथ हुए 2001 में संघर्ष विराम समझौते का उल्लंघन करते हुए, 4 जून 2015 को चीन की शह पर मणिपुर में खापलांग गुट NSCN (K) का हमला इसका ताज़ा सबूत हैं, जिसमें हमारी सेना के 18 जवान मारे गए |

अभी हाल ही में  दिल्ली पुलिस की स्पेशल सेल ने खापलांग गुट के ‘नेशनल सोशलिस्ट काउंसिल ऑफ़ नागालैंड’ NSCN(K) के एक आतंकी नगमसिनलंग पनमई (49 वर्ष) को गिरफ्तार किया है जिसने स्वीकार किया कि वह मार्च 2015 में वह म्यांमार में खाप्लांग से मिलने गया था, जिसके बाद ही मणिपुर के चंदेल जिले में सेना के ट्रक को निशाना बनाया गया था | उसने खुलासा किया है कि म्यांमार (बर्मा) मूल के खापलांग का NSCN गुट भारत विरोधी गतिविधियों में लिप्त है |

सभी उग्रवादी गुटों के अपने-अपने हित और स्वार्थ हैं अत: सभी की मांगों का समर्थन राष्ट्रविरोधी ही साबित होगा, क्योंकि इसमें जनता का हित कम उग्रवादी गुटों का स्वार्थ अधिक निहित होता है |  इसलिए किसी एक गुट को साथ में लेकर अन्य गुटों पर संधि प्रस्ताव का सन्देश स्वीकारने के लिए दबाव बनाना सरकार की दूरदृष्टि को दर्शाता है, ताकि पिछली कमियों को ठीक कर, एक मंच पर सर्वमान्य निर्णय लिए जा सकें |

वर्तमान समझौते का अकारण विरोध

पूर्वोत्तर के आम लोगों का भविष्य, आने वाली पीढ़ी का बचपन, भारत की ‘लुक ईस्ट नीति’ की सफलता, चीन को मुँहतोड़ जवाब, पूर्व के देशों के साथ व्यापर को बढ़ावा (क्योंकि पूर्वोत्तर भारत के पूर्व का व्यापार द्वार है), भारत के सांस्कृतिक सम्राट राजा खारवेल की भांति सांस्कृतिक समरसता और बाकी भारत में नक्सली या अन्य प्रकार की हिंसा पर रोक, ऐसे कई समस्याओं का समाधान इस समझौते से संभव हैं |

इस अवसर पर असम,  अरूणाचल और मणिपुर के मुख्यमंत्रियों क्रमश: तरुण गोगोई, नबाम तुकी और ओकराम इबोबी सिंह का विरोध केवल कांग्रेस हाईकमान के दबाव का परिणाम है, क्योंकि संसद में उनकी स्थिति कमज़ोर है |

24 नवम्बर, 2013 को इन्हीं नबाम तुकी ने ईटानगर के इंदिरा गाँधी पार्क में संस्कार भारती के तत्वावधान में आयोजित एक सांस्कृतिक कार्यक्रम ‘सरहद को स्वरांजलि’ में चीन को जवाब देते हुए बुलंद आवाज़ में कहा था कि अरुणाचल प्रदेश भारत का अखंड हिस्सा है और स्वयं आज पूर्वोत्तर के लोगों को भड़काने का काम भी कर रहे हैं, यह कोरी राजनीति ही है |

पूर्वोत्तर अपार संभावनाओं से भरा क्षेत्र है | इस समझौते के बाद यहाँ विकास को निश्चित ही गति मिलेगी | इसलिए जिन तीन मुख्यमंत्रियों ने अपनी आशंका जताई है, उन्हें अपनी शंका समाधान के लिए समझौते के सार्वजनिक होने तक का धैर्य धरना चाहिए, क्योंकि दबाव में उनके द्वारा शुरू किया गया विरोध, उनके राज्यों के लोगों को उकसाने का काम करेगा | आम जन को कांग्रेस-भाजपा की राजनीति से मतलब नहीं | वह केवल इतना समझता है कि उसकी ज़मीन विद्रोहियों को दे दी गयी और कोई भी नागरिक नहीं चाहता कि उसकी मातृभूमि का बंटवारा कर दिया जाये | यदि ज़मीन पाने का यही मापदंड है तो भविष्य में हर राज्य में नए-नए विद्रोही गुट किसी ना किसी लैंड की मांग करते दिखाई देंगे | दार्जिलिंग में गोरखालैंड, असम में बोडोलैंड, मेघालय में गारोलैंड, खासीलैंड, मणिपुर में कूकीलैंड और अरुणाचल के चाइना बॉर्डर में न्यू चाइनालैंड | यह भारत 565 रियासतों को मिलाकर गणतंत्र बना है | विपक्षी दलों की अदूरदृष्टि, क्षण भर में भारत के कई खंड होने के रास्ते खोल देगी |

समझौते के बाद ग्रेटर नागालिम स्वाधीनता दिवस क्यों ?

यदि सरकार के साथ समझौता हो चुका है, तब भी NSCN(IM) सचिव थुइन्गालेंग मुइवा का 14 अगस्त को नागालैंड में डिमापुर के हेबरॉन कैंप में ‘नागा स्वतंत्रता दिवस’ मनाना स्वयं को भारत से स्वतंत्र राष्ट्र जताना ही है | जिसमें अरुणाचल, असम मणिपुर और बर्मा (म्यांमार) में रहने वाले 3000 से अधिक नागा नेताओं और समर्थकों की उपस्थिति केवल एक जश्न नहीं बल्कि भारतीय संप्रभुता को चुनौती है | ऐसे में इस प्रकार के समझौतों के बाद भी भारत सरकार के प्रति इन उग्रवादी गुटों की वचनबद्धता कभी भी प्रतिकूल हो सकती है | इसमें नागालैंड के पडोसी, कांग्रेस शासित तीनों प्रदेश भी बाधा खड़ी करेंगे, क्योंकि ग्रेटर नागालिम समस्या का समाधान किसी भी सरकार के लिए बहुत बड़ी उपलब्धि होगी | लेकिन शांतिवार्ता सफल हुई तो संभव है अगले वर्ष से विद्रोही नागा भी भारतीय स्वतंत्रता दिवस मनाएं |

ग्रेटर नागालिम और एक प्रश्न

सन् 1988 में इस गुट के नेताओं के द्वारा स्वतंत्रता के बदले स्वायतता (autonomous state) की बात की जाने लगी | लेकिन नागा विद्रोहियों में इस बात को लेकर एक मत है कि एक अलग नागालिम नामक राज्य का गठन किया जाये, जिसको अधिक से अधिक स्वायत्तता प्रदान की जाये। यही एक बात समस्या के समाधान में बाधा रही है |  ग्रेटर नागालिम का मतलब है असम, मणिपुर, अरुणाचल प्रदेश के नागा क्षेत्र के साथ म्यांमार का बहुत बड़ा भू-भाग | जिस नागालैंड का नक्शा आज 16527 वर्ग कि.मी है, वह लगभग 1,20000 वर्ग कि.मी का हो जायेगा |

वैशवीकरण के युग में एक प्रश्न कि मणिपुर, असम या अरुणाचल में नागा बहुल इलाकों को नागा भूमि में मिलाकर नागाओं के लिए ग्रेटर नागालिम की मांग क्यों? पड़ोसी प्रदेशों में रह कर भी नागा जनजातियों का विकास सामान रूप से संभव है | कम से कम भारत, दुनिया का सबसे बड़ा लोकतंत्र इस की पूरी स्वतंत्रता देता है |

1947 में जब देश का बंटवारा हुआ तो भी सारे मुस्लिम भाई हिंदुस्तान छोड़कर पाकिस्तान नहीं चले गए थे | आज भी पाकिस्तान से ज़्यादा मुसलमान भारत में रहते हैं और संविधान के अनुसार उनको भी वही सामान अधिकार और अवसर प्राप्त हैं जो बाकी धर्मों के लोगों को हैं | ऐसे में ग्रेटर नगालिम की मांग केवल सत्ता पिपासा को दर्शाती है या चर्च के दबाव को |

पूर्वोत्तर में अलगाववाद का प्रमुख कारण चर्च

रेजीनॉल्ड कूपलैंड के द्वारा तैयार योजना के अंतर्गत पूर्वोत्तर क्षेत्र के टुकड़े करा भारतीय गणराज्य से बाहर जनजातीय आधार पर कई स्वतंत्र देश बनाना ही अंग्रेजों की नीति थी | जैसा कि यूरोप, अफ्रीका और रूस में हो चुका है | एक जाति को (जो धर्मपरिवर्तन के बाद ईसाई बन चुकी है) वहां की दूसरी जाति (जिसने ईसाई धर्म में परिवर्तन नहीं किया और अपने मूल धर्म का पालन कर रहे हैं) से लड़ाना | और इस प्रकार ग़ैर-ईसाईयों का खात्मा करना, जैसा कि अफ्रीका के छोटे से देश कोंगो और पूरे अफ्रीका में हुआ | लेकिन भारत के राष्ट्रीय नेताओं के कठोर विरोध ने इस योजना को  कागज़ों से आगे नहीं बढ़ने दिया ।

स्कूल, हॉस्टल, अनाथालय, अस्पताल, वृद्धाश्रम के माध्यम से सेवा कार्य धर्म प्रचार, इनके नौकरीशुदा प्रचारक-प्रचारिकाओं के माध्यम से हर घर में बाईबल, प्रत्येक रविवार चर्च में जाना अनिवार्य होना, अपनी तनख्वाह का कुछ प्रतिशत चर्च को दान देना, कुछ ऐसे माध्यम हैं जो ईसाईयत फ़ैलाने के तौर-तरीके हैं | इसके बाद जो ईसाई नहीं बने, उनका पलायन या खून खराबा गुप-चुप और शांत तरीकों से कराया जाता है | जैसे कोंगो में हुए नरसंहार का कारण दुनिया को ये बताया गया कि एक आदिवासी जनजाति की दूसरी आदिवासी जनजाति के साथ लड़ाई | जबकि सच्चाई यह है कि जो लोग ईसाई धर्म स्वीकार कर चुके थे उनके पास लड़ने के लिए अच्छे हथियार थे |

पूर्वोत्तर में ग्रेटर नगालिम बनाने के बाद का चित्र भी इसी तरह का होगा | उदाहरण के लिए मणिपुर चारों तरफ पहाड़ियों से घिरा है, बीच में घाटी है- जिसमें पूर्वी और पश्चिमी इम्फाल, थोउबाल और बिष्णुपुर जिले आते हैं, जिनमें रहने वाले मूल मणिपुरीवासी मैतेई और वैष्णव हैं | बाकी जिले पहाड़ी हैं और इन पहाड़ी जिलों में नागा बहुलता है, कहीं कहीं कूकी भी हैं | अब जब ग्रेटर नागालैंड बन जायेगा तब अफ्रीका की तरह यहाँ भी घाटी में रहने वाले मूल निवासियों पर ईसाईयत अपनाने का दबाव होगा और धर्मपरिवर्तन की अनुपस्थिति में खून-खराबा यानि मूल प्रजातियों का पलायन या विनाश | असल में यही है ईसाई आतंकवाद यानि Christian Terrorism | हमने मुस्लिम आतंकवाद और कुछ ‘तथाकथित सेक्युलर’ लोगों के मुँह से हिन्दू आतंकवाद सुना था लेकिन क्रिस्चियन टेररिज्म (ईसाई आतंकवाद) विकसित देशों के पूँजीपतियों द्वारा पोषित है और मीडिया पूंजीपतियों द्वारा पोषित संस्था है |

ईसाई धर्म यानि चर्च में बढती फूट पर चर्चा फिर कभी करेंगे, लेकिन आज जब कई विकसित ईसाई देशों में ‘नो रिलिजन’ कहने वाले लोगों की संख्या बढती जा रही है (यही कारण है कि योग और अध्यात्म पश्चिम में लोकप्रिय हो रहा है) ऐसे में चर्च अपना धंधा चालू रखने के लिए गरीब देशों का रुख कर रहे हैं या कहा जाये उन देशों में विकास होने ही नहीं दिया जाता, ग़रीब लोगों का उपयोग चर्च ईसाईयत बढ़ाने के लिए करते हैं | हमारा पूर्वोत्तर चर्च के इसी दूरदर्शी षड़यंत्र का शिकार है | हमें इस चुनौती से निपटना है, जो सैकड़ों वर्षों पहले शुरू हुए चर्च के बढ़ते कदम से शुरू हुई थी |

नागा क्लब या NSCN का गठन नागाओं ने नहीं किया, ईसाई धर्म स्वीकार कर चुके पूर्व नागा लोगों से चर्च ने करवाया | पूर्व नागा इसलिए कहा कि ईसाई धर्म में कोई जनजाति नहीं होती, केवल ईसाई होते हैं | इसमें काबुई नागा जैसी मूल नागा जनजातियाँ शामिल नहीं हैं जो आज भी अपनी परम्परा को जिंदा रखे हुए हैं |

नागाओं की रानी माँ गाईदिनलियू और NSCN की सोच में अंतर

रानी माँ गाईदिनलियू एक ऐसा प्रभावी चरित्र है जिन्होंने भारत के स्वाधीनता संग्राम में नागाओं का नेतृत्व किया । अराष्ट्रवादी ताकतें तब भी मौजूद थीं और आज भी हैं । प्राणों को खतरा होने के बावजूद रानी माँ ने हमेशा ही NSCN (तब NNC) जैसे अलगाववादी गुटों का विरोध किया और संगठित भारत का समर्थन किया । आज NSCN जैसे राष्ट्रविरोधी संगठन ग्रेटर नगालिम की मांग करते हैं, जबकि इनसे ज्यादा समर्थन और साहस रानी माँ के पास था । रानी माँ का जन्म मणिपुर के तामेंगलोंग जिले में जेलियांगराँग नागा जनजाति में हुआ था । फिर भी उन्होंने लम्बे समय तक नागालैंड में रहकर सभी नागा जनजातियों की सेवा की | भारत के हर महापुरुष की भांति रानी माँ ने भी एकजुट भारत का सपना देखा । इसी का परिणाम है कि पूर्वोत्तर के लोग स्वयं को भारतीय कहते हैं । गांधी जी के विचारों को पूर्वोत्तर में फैलाने का श्रेय रानी माँ को जाता है । स्वतंत्र भारत के प्रथम प्रधानमन्त्री श्री जवाहरलाल नेहरु ने गाइदिन्लियु को कहा था कि तुम तो नागा लोगों की रानी हो ।

मोदी सरकार के साथ हुए समझौते से संभावित लाभ

मोदी सरकार के साथ हुए समझौते ने पिछले 40 वर्षों के भारत सरकार और इस अलगाववादी संगठन के बीच बार-बार होते संघर्षविराम को शांतिवार्ता के मंच तक पहुँचाया है |

NSCN (IM) आतंक की जड़ है, अब उसी संगठन के साथ शांतिवार्ता की सफल शुरुआत से अन्य गुटों विशेषकर खापलांग गुट NSCN (K) को भी शांतिवार्ता में शामिल होने के लिए दबाव बनेगा अन्यथा वह कमज़ोर पड़ेगा | इसके दो कारण होंगे- पहला कि उसका प्रभाव बर्मा में है, दूसरा नागालैंड की आम जनता इस समस्या से निजात चाहती है और वह उसी संगठन का साथ देगी जो समाधान की दिशा में कदम बढ़ाएगा |

nagaयदि नॉन-टेरीटोरिअल रिजोल्यूशन फ्रेमवर्क एग्रीमेंट इस समझौते का हिस्सा है तो विरोध जता रहे तीनों राज्यों की अपनी क्षेत्रीय सीमा और संप्रभुता कायम रहेगी पर साथ ही उन्हें अपने नागा बाहुल्य इलाकों में विकास के लिए अधिक स्वायत्ता और सुविधाएँ उपलब्ध करानी होगीं |

पूर्वोत्तर भारत प्राकृतिक, सांस्कृतिक और ऐतिहासिक रूप से अत्यंत समृद्ध है | शिक्षा और रोज़गार वे दो क्षेत्र हैं जो पूर्वोत्तर के विकास के लिए आवश्यक हैं | और इस समझौते की सफलता के फलस्वरूप सबसे तेज़ विकास शिक्षा और रोज़गार की दिशा में होगा | जैसी कि घोषणा हो चुकी है कि मणिपुर में खेल विश्वविद्यालय की स्थापना होगी | पूर्वोत्तर में एम्स अस्पताल खुलेगा, आईटीआई संस्थानों की संख्या बढ़ेगी | स्किल इंडिया की सोच से व्यवसायिक शिक्षा का दायरा बढेगा | औद्योगिक घरानों को इंजिनीयर, कारीगर, मजदूर यहाँ तक कि कुछ को कच्चामाल भी सब वहीँ उपलब्ध होंगे |

अब तक पूंजीपति केवल इस कारण पूर्वोत्तर में निवेश नहीं कर पाते थे कि उद्योग लगाने का जितना बजट होता था, उसके अनुसार (प्रतिशत में) भारी रकम उन्हें अंडरग्राउंड गुटों को घूस के रूप में उद्योग शुरू करने के पहले देनी होती थी | इस समझौते ने पूजीपतियों को पूर्वोत्तर भारत में निवेश करने का हौंसला दिया है | पूँजी निवेश होगी, नए उद्योग और कारखाने लगेंगे, पूर्वोत्तर के लोगों को रोज़गार मिलेगा | इससे पूर्वोत्तर के लोगों का पलायन रुकेगा | पलायन रुकेगा तो संस्कृति बची रहेगी |

समझौते के बाद अपने वक्तव्य में प्रधानमंत्री जी ने कहा था- नागाओं का साहस और प्रतिबद्धता प्रसिद्ध है, ऐसे में उनकी विशिष्ट संस्कृति और इतिहास को मान्यता देना, भारत की सांस्कृतिक समरसता और एकता को ही दर्शायेगा और सत्तर दशक लम्बी इस लड़ाई का अंत होगा |

गुलशन कुमार गुप्ता

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