प्रवीण दुबे
कोई देश कितनी ही तरक्की क्यों न कर ले यदि उसने अपने जन को, देश की माटी, देश की संस्कृति, देश के इतिहास, देश के महापुरुषों, देश की परम्पराओं से जोडऩे का प्रयास नहीं किया तो तय मानिए उसका भविष्य सुरक्षित नहीं कहा जा सकता। ”यूनान, मिश्र, रोमां सब मिट गए जहां से कुछ बात है कि हस्ती मिटती नहीं हमारीÓÓ यह सच है कि युगों-युगों से भारत यदि कायम है तो सिर्फ इसलिए कि हमारे पुरुखों ने यहां के जन को अपनी महान परम्पराओं से जोड़े रखा। आज जब इस दृष्टि से हम विचार करते हैं तो यह देख ‘मन परेशान हो उठता है कि आज इस देश के जन को अपनी परम्पराओं, संस्कृति, इतिहास, महापुरुषों से काटने का एक गहरा षड्यंत्र चल रहा है। इस षड्यंत्र को जो शक्तियां अंजाम दे रही हैं वे अदृश्य रहकर, परदे के पीछे से अपने कुत्सित प्रयासों में जुटी हुई हैं। ये शक्तियां हमारे बीच इस तरह से घुल-मिल गई हैं कि इस देश का जन समझ नहीं पाता। ऐसे माहौल में जब कोई व्यक्ति इश देश के इतिहास, परम्पराओं और संस्कृति की बात करता है उसे स्थापित करने की बात करता है तो मन प्रसन्नता से भर उठता है। रविवार को भाजपा के प्रधानमंत्री पद के उम्मीदवार और इस देश के सबसे लोकप्रिय नेताओं में शामिल नरेन्द्र मोदी ने हरियाणा के रेवाड़ी में जनसभा को संबोधित किया। इस जनसभा में मोदी ने लोह पुरुष के नाम से विख्यात सरदार वल्लभ भाई पटेल को याद करते हुए जो आव्हान किया वास्तव में आज देश में चौतरफा ऐसे कार्यों की आवश्यकता है। श्री मोदी ने सरदार वल्लभ भार्ई पटेल की याद में स्टेच्यू ऑफ लिबर्टी से दुगनी बड़ी स्टेच्यू ऑफ यूनिटी अर्थात एकता की मूर्ति स्थापित करने का आव्हान किया। अब देखिए इस एकता की मूर्ति के लिए मोदी ने जो आव्हान किया उसके पीछे का चिंतन ही यह साबित करता है कि देश में मोदी सर्वाधिक लोकप्रिय क्यों हैं? मोदी ने एक तरफ दुनिया की सबसे ऊंची एकता की मूर्ति की स्थापना के लिए सरदार वल्लभ भाई पटेल का नाम तय करके कांग्रेस के मुंह पर करारा तमाचा मारा है दूसरी ओर कांग्रेस को कठधरे में खड़ा किया है। देश की आजादी के बाद भारत को एक रखकर मजबूती प्रदान करने वाले लोह पुरुष सरदार वल्लभ भाई पटेल को देश का प्रथम प्रधानमंत्री सिर्फ इस कारण नहीं बनने दिया गया क्योंकि पंडित जवाहर लाल नेहरू की महत्वाकांक्षा सर चढ़कर बोल रही थी। लोह पुरुष को नेहरू की महत्वाकांक्षा के चलते प्रधानमंत्री नहीं बनने दिया गया। वास्तव में यह भारत का बड़ा दुर्भाग्य और उस समय के नेताओं की बड़ी भूल थी। बात यहीं समाप्त नहीं होती आजादी के बाद सर्वाधिक समय तक देश पर शासन करने वाली कांग्रेस ने कभी भी देश के महापुरुषों से इस देश के जन को जोडऩे का प्रयास नहीं किया। यदि उसने ऐसा किया होता तो रेवाड़ी में जो स्टेच्यू ऑफ यूनिटि स्थापित करने का आव्हान मोदी ने रविवार को किया वह बहुत पहले ही बन गया होता। मोदी ने स्टेच्यू ऑफ यूनिटि के निर्माण में देश के जन को जोडऩे का सार्थक आव्हान भी किया। उन्होंने लोह पुरुष की इस विशाल प्रतिमा की स्थापना के लिए हर गांव से लोहे का वह टुकड़ा देने का आव्हान किया है जो किसान ने अपने हल की जोत में प्रयोग किया हो। उन्होंने 21 अक्टूबर के बाद इस आव्हान को सार्थक करने के लिए अभियान का शंखनाद करने की घोषणा भी की। धन्य हैं मोदी और उनकी सोच। वास्तव में देश को आज ऐसे ही नेता की जरुरत है।
यदि स्टेच्यू ऑफ़ यूनिटी के रूप में लोह पुरुष सरदार वल्लभ भाई पटेल की प्रतिमा स्थापित होती है तो यह अवश्य ही देश के जन को जोड़ने का श्री नरेन्द्र मोदी का अग्रिम प्रयास होगा| समय बीतते, श्री मोदी के प्रधान मंत्री बनने के उपरान्त दिल्ली में नेता सुभाष चन्द्र बोस की विशाल प्रतिमा स्थापित होनी चाहिए जोकि वास्तव में विजयी दूसरे स्वतंत्रता संग्राम का प्रतीक होगी| राष्ट्रविरोधी तत्वों द्वारा पहले स्वतंत्रता आन्दोलन का अपहरण व फलस्वरूप तथाकथित स्वतंत्रता के उपरान्त से भारतीय जीवन में अतिशय अध:पतन, अव्यवस्था, व अनैतिकता शोधकर्ताओं की खोज का विषय बने रहेंगे, भारतीय जनसमूह को चाहिए कि वे भारत सरकार द्वारा १८८५ में जन्मी कांग्रेस पार्टी के छिन्न-भिन्न कर देने की मांग करें|