आल इज नाट वेल
आइए एक और तारीख मुकरर्र करें अगली बातचीत के लिए
-संजय द्विवेदी
कुछ चीजें कभी नहीं सुधरतीं, पाकिस्तान और उसकी राजनीति उनमें से एक है। वे फिर लौटकर वहीं आ जाते हैं जहां से उन्होंने शुरूआत की होती है। जाहिर तौर ऐसे पड़ोसी के साथ भारत का धैर्य ही निभा सकता है। बावजूद इसके यह बहुत विश्वास से कहा जा सकता है कि अगर पाकिस्तान जैसे पड़ोसी हों तो आपको दुश्मनों की जरूरत नहीं है। 1947 के बंटवारे के बाद ही पाकिस्तान एक ऐसी अंतहीन आग में जल रहा है जिसके कारण समझना मुश्किल है। भारतधृणा वहां की राजनीति का एक ऐसा तत्व बन गया है जिसके बिना वहां टिकना कठिन है।
अपनी सत्ता को बनाए और बचाए रखने के लिए पाक के राजनेता इसलिए भारत के खिलाफ राग अलापने से बाज नहीं आते। भारत-पाक के बीच विदेश मंत्री स्तर की वार्ता सद्भाव के वातावरण में हुयी, दो के बजाए वह छः घंटे चली। उसके बाद हमारे विदेश मंत्री दिल्ली वापस पहुंचे ही नहीं थे कि पाकिस्तानी विदेश मंत्री के कुबोल शुरू हो गए। इससे पता लगता है कि पाकिस्तान में एक पक्ष ऐसा है जो भारत-पाक के सहज होते रिश्तों को देख नहीं सकता क्योंकि भारतविरोध पर ही उसकी राजनीति चलती है। गुरूवार को विदेशमंत्री स्तर की वार्ता में भी माहौल को गरमाने में पाकिस्तानी विदेश मंत्री ने कोई कसर नहीं छोड़ी। गृहसचिव पिल्लै के बयान को मुद्दा बनाकर वे जिस तरह संयुक्त प्रेस कांफ्रेस में बिफरे वह नादानी ही थी। कौन नहीं जानता कि भारत विरोधी अभियानों में आईएसआई की क्या भूमिका है। अगर गृहसचिव पिल्लै ने आईएसआई का नाम लिया तो इसके लिए उनके पास प्रमाण हैं।जाहिर तौर पर यह पाकिस्तान की बौखलाहट ही कही जाएगी। बावजूद इसके भारत के संयम का पाक हमेशा लाभ लेता आया है। आतंकवाद का गढ़ बन चुका पाक बुरे हालात से गुजर रहा है। उसके अंदरूनी हालात भयावह हैं। भारतीय विदेश मंत्री ने इस प्रेस कांफ्रेस में अपना धैर्य नहीं खोया, संयम बनाए रखा, नहीं तो वार्ता वहीं खत्म हो जाती। खिसियाए पाकिस्तानी विदेश मंत्री ने भारतीय विदेश मंत्री कृष्णा के विदा होते ही नापाक बोल बोलने शुरू कर दिए। पाकिस्तानी विदेश मंत्री ने जिस तरह के हल्के बयान दिए हैं, वह कहीं से भी मर्यादा के अनूकूल नहीं कहे जा सकते। भारतीय गृहसचिव की तुलना आतंकी हाफिज सईद जैसे व्यक्ति से करना एक ऐसा बचकानापन है जिसे कोई भी गंभीर देश बर्दाश्त नहीं कर सकता। पाकिस्तान जाने कैसे इस प्रकार के नेतृत्व के हाथ में विदेश मंत्रालय जैसे गंभीर विभाग की कमान देकर बैठा है। पाक विदेश मंत्री के उलजूलूल बयान बताते हैं कि पाकिस्तान, अमरीकी दबाव में वार्ता की मेज पर आया है जबकि उसकी बातचीत को सफल बनाने में कोई रूचि नहीं दिखती। इससे पाकिस्तानी राजनीति और कूटनीति दोनों की अपरिपक्वता का पता चलता है। इससे यह भी पता चलता है पाकिस्तान दरअसल भारत से सहजतापूर्ण संबंधों के पक्ष में नहीं है। उसे किसी भी तरह भारत विरोध और कश्मीर जैसे मसलों को उठाकर अपने आवाम के बीच अपनी नाक उंची रखनी है ताकि उसके खुद के देश में हो रही बर्बादी से ध्यान हटाया जा सके।
पाकिस्तान में करीब 32 आतंकवादी गुट सक्रिय हैं जिनमें लगभग सभी आईएसआई से जुड़े हैं। अमरीकी वित्तीय मदद का एक बड़ा हिस्सा आतंकी संगठनों तक पहुंच जाता है। ऐसे कठिन देश में सद्बाव की बात करना मुश्किल ही है। बावजूद इसके भारत के पास संवाद के अलावा चारा क्या है। संभव है कि तमाम अंतर्राष्ट्रीय दबावों से पाकिस्तान आतंकवाद के खिलाफ अपनी मौखिक जिम्मेदारी प्रकट कर रहा हो किंतु लगता नहीं कि वह वहां के हालात में कोई गंभीर पहल कर पाने की स्थिति में है। भारत इस पूरे संवाद से आशान्वित नजर आ रहा था क्योंकि उसकी नीति पड़ोसियों से बेहतर रिश्तों की रही है। पाकिस्तान से बार-बार छले जाने के बावजूद भारत की इस नीति में बदलाव नहीं हुआ है। जाहिर है भारत के प्रयास अपने पड़ोसियों के साथ सामान्य संबंध बनाने के हैं। लेकिन दुखद है कि पाकिस्तान ने भारत की इस सद्भावना हमेशा मजाक बनाया या धोखा दिया। आतंकवाद से ग्रस्त होने के बावजूद वह भारत के पक्ष को समझना नहीं चाहता जबकि आज भारत उसकी जमीन पर बन रहे षडयंत्रों का सबसे बड़ा शिकार है। पाकिस्तान तल्ख जुबां से दोस्ती की बात करता है जैसे दोस्ती अकेली भारत की गरज हो। हमेशा की तरह कश्मीर का राग अलाप कर वह क्या साबित करना चाहता है। कश्मीर के हालात की उसे चिंता है तो उसे यह भी सोचना चाहिए कि आज कश्मीर जिस अंतहीन पीड़ा को भोग रहा है उसमें सबसे बड़ा योगदान पाकिस्तान का ही है। कश्मीर के हालात को बिगाड़ने में पाकिस्तानी सरकार और आईएसआई की भूमिका किसी से छिपी नहीं है। अब जबकि मुंबई हमलों में भी आईएसआई का नाम शामिल नजर आ रहा है तो पाकिस्तानी राजनीति की चूलें हिल गयी हैं और बौखलाए विदेश मंत्री, भारतीय गृहसचिव की तुलना एक आतंकी से कर रहे हैं। आजादी के बाद से ही कश्मीर के भाग्य में चैन नहीं है, जैसे-तैसे भारत विलय के बाद से आज तक वह लगातार खूनी संघर्षों का अखाड़ा बना हुआ है। सही अर्थो में भारत के अप्राकृतिक विभाजन का जितना कष्ट कश्मीर ने भोगा है, वह अन्य किसी राज्य के हिस्से नहीं आया। दिल्ली के राजनेताओं की नासमझियों ने हालात और बिगाड़े, आज हालात ये हैं कि कश्मीर के प्रमुख हिस्सों लद्दाख, जम्मू और घाटी तीनों में आतंकवाद की लहरें फैल चुकी हैं। इनमें सबसे बुरा हाल कश्मीर घाटी का है, जहां सिर्फ सेना को छोड़कर ‘भारत मां की जय’ बोलने वाला कोई नहीं है। आखिर इन हालात के लिए जिम्मेदार कौन है ? वे कौन से हालात हैं, वे कौन लोग हैं जो पाकिस्तान षड्यंत्रों का हस्तक बनकर इस्लामी आतंकवाद की लहर की सवारी कर रहे हैं। पाकिस्तान इस पूरे इलाके की तबाही का जिम्मेदार है और वही आज कश्मीरी नागरिकों की चिंता का नाटक कर विश्वमंच पर भारत की छवि को खराब करना चाहता है। जबकि उसे अपने खुद के देश के अंदर झांकना चाहिए कि वहां के अंदरूनी हालात क्या हैं।उसे अपने देश की तबाही से ज्यादा चिंता कश्मीर की है। शायद इसीलिए भारत जब आतंकवाद पर चर्चा करना चाहता है तो वह बगलें झांकने लगता है या फिर कश्मीर का सवाल उठा देता है। दोनों देशों के बीच बातचीत का एकमात्र बिंदु है वह है आतंकवाद। किंतु पाक इस सवाल पर गंभीर नहीं है। वह दाउद और हाफिज सईद जैसे भारत के दुश्मनों को शरण देगा और अमन की दुआ भी करेगा। इस ढोंग से क्या हासिल है। पाकिस्तान के छः दशकों का चरित्र धोखा देने का रहा है। यह तो भारत सरकार को ही तय करना है कि उससे बात करे या न करे किंतु संवाद से कुछ हासिल होगा यह सोचना बेमानी है। एक असफल राष्ट्र अपने पड़ोसी की समृद्धि और प्रगति को सह नहीं पाते। पाकिस्तान भी जलन, धृणा और ईष्र्या का शिकार है। वह भारत के साथ संवाद तो करेगा पर अमल अपनी उन्हीं नीतियों पर करेगा जिससे भारत कमजोर हो। दिखावे की बातचीत का उसका खेल जानकर भी हम समझने को तैयार नहीं हैं और धोखा खाना हमारी फितरत बन गयी है, तो आइए पाकिस्तान से एक और बातचीत के लिए दिन और तारीख मुकर्रर करते हैं।
मुम्बई पर हमला किसने करवाया? सभी लोग कहेंगे की पाकिस्तान ने करवाया. हो सकता हो की यह सही भी हो. लेकिन यह भी हो सकता है की जिन लोगो को भारत एवं पाकिस्तान की दुश्मनी से लाभ मिलता हो उन लोगो ने इस हमले को करवाया हो. ऐसा करना सरल है, कुछ भूखे गरीब पाकिस्तानियो को प्रयोग कर लेना किसी शक्तिशाली राष्ट्र के लिए मुश्किल नही है. इस कोण से विषय को देखना आवश्यक था.
आज जब पठानकोट पर हमला हुआ तो भारतीय एजेंसियों ने पाकिस्तान जांच एजेंसीयो को पठानकोट एयर बेस आ कर जांच करने की स्वीकृति दे दी है. यह अच्छी बात है. इससे दूध का दूध और पानी का पानी हो जाएगा.
श्री द्विवेदी जी बिल्कुल सहि कह रहे है. वाकइ भारत देश क बहुत बडा अपमान हुया है. ऐसा अगर अमेरिका, चीन, जापन के साथ होता तो लडाइ चालु हो जाती.
कुत्ते कि पुन्च तो सीधी हो सक्ति है किन्तु पकिस्तन सर्कार सत्ता कभि बदल्ने वालि नहि है.
हम कितना भि चुउमि चाटे करे, पकिस्तन बिच्हु कि तरह उपर से डन्क मरेग़.
पकिस्तन कभि भि कश्मिर (पी-ओ-के) के लिये नहि लडा क्योन्कि वोह तो हमेश से उस्के पूरि तरह से कब्जे मे है. वोह हमेशआ हमारे हिस्स के जम्मु और कश्मिर के लिये लंड रह है.
laato ke bhoot baato se nahi maante hai.
भारत पाक वार्ता : शांति बनाम क्रांति
पिछले गुरुवार को भारत -पाकिस्तान वार्ता विफल हो गई ,भारत के विदेश मंत्री एस.एम् .कृष्णा बैरंग लौट आये .सिवाय अपमान के भारत को कुछ हासिल नहीं हुआ. ना जाने इस प्रकार की वार्ता कब तक चलती रहेगी ,कब तक भारत को अपमान का घूंट पीना पड़ेगा . पाकिस्तान के विदेश मंत्री शाह महमूद कुरैशी ने भारतीय विदेश मंत्री के खिलाफ जो टिपण्णी की है वह बहुत ही अमर्यादित एवं असहनीय है .इस अमर्यादित टिपण्णी के बाद प्रधान मंत्री डॉ. मनमोहन सिंह का यह कहना कि सभी मुद्दों पर बातचीत होगी ,बड़ा आश्चर्य जनक है. गुरूवार की घटना के बाद पाकिस्तान से मर्यादा की आस करना व्यर्थ है. एक तरफ तो भारत की शांति की नीति रही है तो दूसरी तरफ पाकिस्तान क्रांति चाहता है.
पाकीस्तान जब अपने आंतर्विरोधोंके कारण विघटित होना आरंभ होगा, तब भारत, उसे बचाने के लिए ना दौड पडे; और इस प्रकार पाकीस्तानकी जनताकी भलाई के लिए मार्ग प्रशस्त करे। इतना ही भारत कर सकता है।
इससे अधिक कुछ भी होना असंभव है।
जब पूर्वी पाकीस्तान को स्वतंत्रता दिलायी और बंगलादेश बनाया, तब भी भारतने ९२-९३ हज्जार युद्ध बंदियोंको मुक्त करने के बदले, P O K को वापस लेनेका अवसर खो दिया था।
दुबारा ऐसा अवसर ना खोया जाए। पाकीस्तानका विघटन दिवालपर लिख्खा दीखाई दे रहा है। योगी अरविंदने भी तो यही भविष्य वाणी की है।
ठीक बात.