भारत-श्रीलंका : समुद्री सुरंग

ranilvikramsingheडॉ. वेदप्रताप वैदिक

श्रीलंका के प्रधानमंत्री रनिल बिक्रमसिंघ ने प्रधानमंत्री बनने के बाद सबसे पहले भारत की यात्रा की, यह तथ्य ही इस बात का संकेत है कि उनकी दृष्टि में भारत का महत्व कितना है| उन्होंने महिंद राजपक्ष को हराया, जो पहले राष्ट्रपति थे और जो तमिल टाइगरों को हटाकर श्रीलंका के राष्ट्रीय महानायक बनकर उभरे थे| राजपक्ष तमिल-विरोधी तो थे ही, वे चीन की तरफ झुकते हुए भी दिखाई पड़ते थे| इसीलिए नए राष्ट्रपति मैत्रीपाल श्रीसेन और प्रधानमंत्री बिक्रमसिंघ- दोनों ही भारत के प्रियपात्र हैं|

रनिल ने भारत आकर जो सबसे महत्वपूर्ण बात कही, वह यह है कि वे श्रीलंका के तमिलों को समानता और गरिमामय जीवन सचमुच में प्रदान करेंगे| श्रीलंका के तमिल क्षेत्रों को कई बार स्वायत्तता आदि देने के वादे किए गए हैं और संविधान में संशोधन भी किए गए हैं लेकिन आज तक उन्हें लागू नहीं किया गया है| सिंहली नेताओं पर तमिलों के घोर अविश्वास के कारण ही श्रीलंका में अलगाववाद और आतंकवाद का तांडव मचा था, जिसका शिकार भारत भी हुआ लेकिन रनिल ने अब भारत से वादा किया है कि वे अब नया संविधान भी ला रहे हैं, जो तमिलों के साथ पूरा न्याय करेगा| रनिल का यह वादा इस समय इसलिए भी बहुत महत्वपूर्ण बन गया है कि संयुक्तराष्ट्र संघ के मानव अधिकार आयोग की रपट भी आ चुकी है| उस रपट में तमिलों पर किए गए भयंकर अत्याचारों का पर्दाफाश हुआ है| निश्चय ही उससे श्रीलंका की काफी बदनामी होगी| रनिल का बयान उसकी अगि्रम काट करेगा|

दोनों देशों के बीच चल रहे मछुआरों के विवाद पर भी दोनों प्रधानमंत्रियों की सार्थक वार्ता रही| आशा है कि अब झड़पें और मुठभेड़ें कम होंगी| दोनों देशों में व्यापार की मात्रा बढ़ाने, प्रतिरक्षा मामलों में अधिक सहयोग करने और श्रीलंका में भारतीय पूंजी के अधिक विनिवेश के प्रस्तावों पर भी बात हुई| भारत अब वाबुनिया नामक तमिल क्षेत्र के एक अस्पताल को भी यंत्रों से सुसज्जित करेगा| दक्षेस-उपग्रह से संबंधित चार समझौते भी हुए हैं| भारत के व्यापार और आर्थिक सहयोग के आधार पर श्रीलंका में कम से कम 10 लाख नए रोजगार पैदा होने की आशा है| हमारे सड़क, यातायात और जहाजरानी मंत्री नितीन गडकरी और विक्रमसिंघ की भेंट बड़ी रोचक रही| गडकरी ने भारत और श्रीलंका के बीच 22 किमी का जो समुद्री फासला है, उसमें एक सुरंग बनाने का प्रस्ताव भी रखा है| यह और कुछ नहीं, रामसेतु ही है| इसे रनिल ने हनुमान-सेतु भी कहा है| तलाईमन्नार से धनुषकोटि तक बननेवाली इस सुरंग के लिए एशियाई विकास बैंक पांच बिलियन डॉलर से भी ज्यादा देने को तैयार है| यदि अगले चार साल में यह सपना साकार हो जाए तो क्या कहने? भाजपा-सरकार का नाम इतिहास में स्वर्णाक्षरों में लिखा जाएगा| यह समुद्री सुरंग दोनों देशों के दिलों का रंग ही बदल देगी|

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