दो वर्ष में मोदी सरकार ने अर्थव्यवस्था को सुचारू किया

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modigovtमौजूदा नरेंद्र मोदी के नेतृत्व वाली केंद्र सरकार के दो वर्ष पूरा होने पर हमें यह पता होना चाहिए कि हमारी अर्थव्यवस्था इससे पहले किस हालत में थी, आज हम कहां खड़े हैं। कांग्रेस नेतृत्व वाली संयुक्त प्रतिशील गठबंधन (यूपीए) सरकार को 2004 में विरासत के रूप में बेहद मजबूत अर्थव्यवस्था मिली थी। अटल बिहारी वाजपेयी के नेतृत्व वाली एनडीए सरकार में वित्त मंत्री जसवंत सिंह ने कई उपाय कर अर्थव्यवस्था को विकास की पटरी पर ला खड़ा किया था। 2003-04 में जीडीपी विकास 8.06 फीसद था। बुनियादी और वैश्विक विकास का सहारा पाकर यूपीए सरकार ने पहले कार्यकाल के तीन साल में इस स्थिति को जरूर बेहतर बनाए रखा। दावोस के विश्व आर्थिक मंच में भारत को मुक्त बाजार वाले लोकतंत्र में तेजी से विकसित होती अर्थव्यवस्था बताया। 2006 में अर्थव्यवस्था तब रफ्तार पकड़ रही थी। संभावनाएं होने के बावजूद यूपीए सरकार ने इस मौके को गंवा दिया। अर्थव्यवस्था की बाधाओं को दूर कर और बंदरगाह, बिजली व रेल-सड़क परिवहन को दुरुस्त कर निवेश आकर्षित किया जा सकता था। इससे रोजगार के मौके भी बढ़ते। यूपीए सरकार ने सकारात्मक कदम उठाने की बजाए लोक लुभावन योजनाओं से अपनी छवि चमकाने की तरफ ज्यादा ध्यान दिया। 2005 में ही उसने राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी योजना शुरू कर दी। यह दुनिया में अपने किस्म की सबसे बड़ी योजना थी, चाहते तो बहुत कुछ होता, लेकिन 2006 से 2012 तक इस योजना पर पौने दो लाख करोड़ रुपए बहाए जा चुके हैं लेकिन ग्रामीण विकास का सपना वहीं का वहीं है। 2009 से 2012 के बीच, जब वित्त मंत्रालय की कमान प्रणब मुखर्जी के हाथ थी, सरकार की उधारी 748 करोड़ रुपए रोज से बढ़ कर 1560 करोड़ रुपए दैनिक हो गई। चालू खाते का घाटा जीडीपी के दो फीसद से बढ़ कर करीब छह फीसद हो गया। 2003-04 में जो जीडीपी विकास दर 8.06 फीसद थी, वह 2008-09 में 6.72 फीसद और 2012-13 में 4.96 फीसद रह गई। यूपीए सरकार के पहले पांच साल में उपभोक्ता मूल्य सूचकांक दहाई में रहा है। पूरे नौ साल का औसत नौ फीसद है। खाद्य मूल्य सूचकांक भी अनिर्णय और अदूरदर्शी नीतियों की वजह से छह साल तक दहाई से पार ही रहा।

एनडीए सरकार के 2003-04 के आंकड़ों से तुलना करें तो तस्वीर और साफ हो जाती है। 2003-04 में वित्तीय घाटा माइनस 4.3 फीसद था जो 2008-09 में माइनस 6 फीसद और 2012-13 में माइनस 5.9 फीसद हो गया। व्यापार घाटा 2003-04 में माइनस 13.7 अरब डालर था। यह 2008-09 में यह माइनस 119.5 अरब डालर हो गया और 2012-13 में माइनस 188.4 अरब डालर। विदेशी कर्ज यूपीए सरकार में तेजी से बढ़ा है जो 2003-04 के 112.7 अरब डालर से बढ़कर 2008-09 में 224.5 अरब डालर और 2012-13 में 360.4 अरब डालर तक छलांग लगा गया है। उपभोक्ता मूल्य सूचकांक जो 2003-04 में 3.8 फीसद था वह 2012-13 में आठ फीसद रहा। 2003-04 में सरकारी खर्च चार लाख 71 हजार 203 करोड़ रुपए था। 2008-09 में यह आठ लाख 83 हजार 956 करोड़ रुपए हो गया और 2012-13 तक सोलह लाख 65 हजार 297 करोड़ रुपए तक पहुंच गया। सरकारी उधारी 2003-04 में एक लाख 35 हजार 934 करोड़ रुपए थी, 2008-09 में यह दो लाख 73 हजार करोड़ रुपए हुई और 2012-13 में छह लाख 29 हजार करोड़ तक पहुंच गई। सबसिडी के रूप में 2003-04 में 64 हजार 323 करोड़ रुपए खर्च हुए। 2008-09 में यह रकम एक लाख 29 हजार 708 करोड़ रुपए तक पहुंच गई। 2012-13 तक दो लाख, 31 हजार करोड़ रुपए सरकारी अनुदान के रूप में बांटे गए। यूपीए सरकार के करीब एक दशक में बचत और निवेश के मोर्चे पर सात लाख करोड़ रुपए से ज्यादा का नुकसान हुआ। यूपीए सरकार के पहले कार्यकाल में 2004-05 से 2009-10 के बीच 27 लाख 60 हजार नए पद सृजित हुए जबकि उसके पहले के पांच साल में यह आंकड़ा छह करोड़ का था।

लेकिन घोटालों से दागदार दशकभर के शासन के बाद भारत अब चहुंमुखी बदलाव देख रहा है। अर्थव्यवस्था के विभिन्न क्षेत्रों में रौनक लौटी है और जैसे-जैसे देश सब के लिए बेहतर जीवन के आश्वासन के साथ सकारात्मक बदलाव की दिशा में प्रधानमंत्री के विज़न व मिशन को अमल के लिए आगे बढ़ रहा है, इन क्षेत्रों में व्यावसायिक गतिविधियां बढ़ी हैं। अब जब एनडीए सरकार आज सत्ता में दो साल पूरे कर रही है तो समय है कि इसका भी आकलन किया जाए।

जहां भ्रष्टाचार अपने चरम पर था, विभिन्न संस्थाओं की साख घटाई गई और उनका महत्व इतना कम कर दिया गया कि स्थिति उलटना कठिन हो गया। अर्थव्यवस्था की हालत खराब थी, बहुत बड़ा वित्तीय, राजस्व, चालू खाते का घाटा और व्यापार घाटा मुंह बाये खड़ा था। विश्वास का भी बड़ा अभाव था। इन परिस्थितियों में जनता ने एनडीए को भारी बहुमत के साथ सत्ता सौंपी। मोदी सरकार के आते ही दुनिया की अर्थव्यवस्था जहां सुस्त पड़ रही थी, वहीं भारतीय अर्थव्यवस्था में पुनर्जीवन लौटने लगा। एनडीए सरकार के तहत भारत दुनिया में सर्वाधिक तेज़ी से बढ़ती हुई बड़ी अर्थव्यवस्था बन गया। ये भारतीय अर्थव्यवस्था के लिए एक ऐतिहासिक साल था। पस्त पड़ चुकी विकास दर, भारी महंगाई और उत्पादन में कमी के दौर से उबरते हुए एनडीए सरकार ने ना सिर्फ मैक्रो-इकनॉमिक फंडामेंटल्स को मजबूत किया, बल्कि अर्थव्यवस्था को एक तेज रफ्तार विकास पथ ले आई। भारत की जीडीपी विकास दर कुलांचे भर कर 7.4% हो गई, जो दुनिया की सभी बड़ी अर्थव्यवस्थाओं में सबसे अधिक है।

विभिन्न रेटिंग एजेंसी और थिंकटैंक ने अनुमान जताया है कि एनडीए सरकार के तहत अगले कुछ वर्षों में भारत का विकास तेजी से होगा। मजबूत बुनियाद और एनडीए सरकार द्वारा किए जा रहे सुधारों के चलते मूडीज ने हाल में भारत की रेटिंग को ‘स्टेबल’ से अपग्रेड करके “पॉजिटिव” कर दिया। ब्रिक्स (BRICS) की शुरुआत होने के बाद कई लोगों को लगने लगा कि “आई” (इंडिया) इस रेस का घोड़ा नहीं है और भारत को संदेह के साथ देखा गया। आज ये भारत ही है जिसके बारे में माना जा रहा है कि वह ब्रिक्स के ग्रोथ इंजन के रूप में उसे शक्ति प्रदान कर रहा है। सरकार द्वारा मैन्युफैक्चरिंग पर खास जोर देने के साथ ही औद्योगिक उत्पादन सूचकांक पिछले साल निगेटिव ग्रोथ के मुकाबले इस साल 2.1% की दर से बढ़ा। थोक कीमतों पर आधारित महंगाई (WPI) में तेज गिरावट देखी गई और ये अप्रैल 2014 में 5.55% के मुकाबले घटकर अप्रैल 2015 में -2.65% प्रतिशत हो गई। एफडीआई इनफ्लो ऐतिहासिक गति से बढ़ रहा है। एफडीआई इक्विटी इनफ्लो 40% की उछाल दर्ज कर बीते साल के 1,25,960 करोड़ रुपये के मुकाबले इस साल 1,75,886 करोड़ रुपये हो गया। राजकोषीय घाटा भी लगातार गिरावट की स्थिति में है। भारत का चालू खाता घाटा बीते साल जीडीपी के मुकाबले 4.7% के स्तर से इस साल जीडीपी का 1.7% रह गया। भारत के विदेशी मुद्रा भंडार में उल्लेखनीय बढ़ोतरी हुई और ये 309.4 अरब डॉलर से बढ़कर 343.2 अरब डॉलर हो गया। इससे किसी वैश्विक उठा-पटक की स्थिति में भारत को जोखिम से बचने में मदद मिलेगी।

आर्थिक स्थिति पर संयुक्त राष्ट्र की ताज़ा रिपोर्ट में भारत की जीडीपी वृद्धि दर 2016 व 2017 में क्रमश: 7.3 व 7.5 फीसदी रहने की बात कही गई, इस दौरान चीन की दर क्रमश: 6.4 व 6.5 फीसदी रहेगी। यह बताने के लिए काफी है कि अर्थव्यवस्था को कितनी दक्षता से संभाला जा रहा है। भारत का रुतबा बढ़ा और प्रत्यक्ष विदेशी निवेश 48 फीसदी से बढ़ा। जून 2014 में मैन्युफेक्चरिंग 1.7 फीसदी से बढ़ रही थी, जबकि 2016 में यह दर 12.6 फीसदी हो गई है। महंगाई काबू में आई है और भारत का विदेशी मुद्रा भंडार अब तक के रिकॉर्ड 363.12 अरब डॉलर तक पहुंच गया है। 2015-16 के पहले 11 महीनों में ही 51.64 अरब डॉलर का प्रत्यक्ष विदेशी निवेश देश में आया।

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