भारतीय सेना, सुरक्षा और विवाद

राघवेंद्र प्रसाद मिश्र

सेना की साख पर दाग लगना न तो देशहित में है और न ही सेना की। इस साल जिस तरह से जन्मतिथि विवाद के चलते सुर्खियों में आने वाले वीके सिंह ने नित नये खुलासे कर सरकार के साथ सेना को सांसत में डाल दिया इससे बड़ा सेना के लिए हतप्रभ करने वाली घटना और क्या हो सकती है। टाट्रा ट्रकों की खरीद में हुई रिश्वत की पेशकश की घटना ने पूरी सेना को शर्मसार कर दिया है।

भारतीय सेना पर देश की जनता का जो भरोसा कायम है वह वीर सपूतों की ही देन है, जिसे बनाये रखने की जिम्मेदारी देशवासियों के साथ-साथ सेना की भी होती है। इस वर्ष जिस तरह से सेना की साख पर आये दिन दाग पे दाग लगते गये वह न तो देशहित में है और न ही हमारी सेना के। युद्ध और शांति के समय देश की हिफाजत करने वाली सेना के शीर्षस्थ पदों पर बैठे लोगों ने इस वर्ष वीरता और शौर्य की जगह विवादों के चलते सुर्खियों में जगह बनाई है। कई जगह सेना अधिकारियों और जवानों के बीच मारपीट की घटनाएं भी हुईं। इसके पीछे जवानों का आक्रोश भी सामने आया पर सही मायने में देखा जाए तो यहां अनुशासनहीनता भी खूब हुई। सेना के शीर्ष पदों पर पदस्थ लोग जब अपने अधीनस्थ जवानों का शोषण करने लगेंगे तो यह तो होना ही था। अन्य विभागों की तरह सेना में अधिनस्थ जवानों का शोषण किया जाना व उन से वह काम कराया जाना जो उनके प्रोटोकाल में शामिल न हो तो वबाला होना स्वाभाविक है। भारतीय सेना का गौरवमयी इतिहास रहा है, यह वही देश है जहां एक जवान शहीद होता था तो पूरे देशवासियों की आंखें नम हो जाती थीं। समय के अनुसार परिवेश बदला तो सेना का भी स्वरूप बदल गया, और आज देखते ही देखते सेना अपनी विश्वसनीयता खोती जा रही है।

जन्मतिथि विवाद को लेकर सुर्खियों में आने वाले पूर्व सेनाध्यक्ष जनरल वीके सिंह ने जिस तरह से नित नये खुलासे किये उससे समूचा देश हतप्रभ रह गया। उन्होंने इस विवाद मे 16 जनवरी को उच्चतम न्यायालय ले गए, जहां उन्हें 10 फरवरी को निराशा ही हाथ लगी। उच्चतम न्यायालय ने उनकी इस याचिका को खारिज करते हुए कहा कि सरकार का फैसला ही उनके सेवा संबंधी मामलों में लागू होगा। मामला यहीं थम गया होता तो शायद कुछ हद तक ठीक होता। जनरल सिंह ने नया खुलासा करते जब यह बयान दिया कि कम स्तरीय 600 टाट्रा ट्रकों को खरीदने के लिए सौदे की अनुमति देने के एवज में उन्हें 14 करोड़ रुपए के लालच दिया गया। उनका इस बयान ने सेना के साथ-साथ सरकार को भी सांसत में डाल दिया। मामले की गंभीरता को देखते हुए सरकार ने इसकी सीबीआई जांच कराने की अनुमति भी दे दी। मई में जनरल सिंह की सेवानिवृत्ति के बाद उनकी जगह विवादों में घिरे लेफ्टिनेंट जनरल बिक्रम सिंह ने ली। उनकी नियुक्ति को जनहित याचिका के तहत चुनौती दी गई, जिसे उच्चतम न्यायालय ने 23 अप्रैल को यह कहते हुए खारिज कर दिया कि जम्मू कश्मीर में कथित फर्जी मुठभेड़ सहित अन्य लंबित मामलों की सुनवाई पर कोई असर नहीं पड़ेगा। सेना की कमान संभालते ही सेना प्रमुख ने जनरल वीके सिंह को उस फैसले को पलटते हुए लेफ्टिनेंट जनरल दलबीर सिंह सुहाग की पदोन्नति पर लगा प्रतिबंध हटा दिया। इसी तरह फरवरी में सुकना भूमि घोटाले में आरोपी जनरल रमेश हलगानी को रक्षा मंत्रालय ने बेदाग करार देते हुए सेना का उप प्रमुख नियुक्त कर दिया। सेना के भीतर मचे इस उथल-पुथल को वह भले ही हल्के में ले रही हो पर इसका जो परिदृश्य उभर कर देश की जनता के सामने आया है उससे देशवासियों को भारतीय सेना पर विश्वास जरूर डगमगा गया है। ऐसा नहीं है कि हमारी सेना उपलब्धियां हासिल करने में पीछे रही है। इस वर्ष स्वदेश में विकसित माइक्रो, लाइट पायलट, लैस टार्गेट एअरक्राफ्ट लक्ष्य-1, स्वदेश इंटरसेप्टर मिसाइल, 290 किमी दूरी तक मारक क्षमता वाले ब्रह्मोस सुपरसोनिक क्रूज मिसाइल, 350 किमी मारक क्षमता वाली परमाणु संपन्न पृथ्वी-2 बैलिस्टिक मिसाइल, 3000 किमी की मारक क्षमता वाले परमाणु संपन्न अग्नि-3 बैलिस्टिक मिसाइल, पृथ्वी बैलिस्टिक मिसाइल के नौसैनिक संस्करण धनुष का एक युद्धक पोत से सफल परीक्षण और परमाणु आयुध ले जाने में सक्षम, करीब 4,000 किमी मारक क्षमता वाली अग्नि-4 मिसाइल का सफल परीक्षण हुआ। इसी तरह देश ने अंतर महाद्वीपीय बैलिस्टिक मिसाइल अग्नि पांच की प्रक्षेपण क्षमता हासिल कर ली। 15,000 किलोमीटर दूर का निशाना साधने की क्षमता हासिल करने के साथ ही भारत अमेरिका, रूस, फ्रांस और चीन के साथ चुनिंदा देशों के समूह में शामिल हो गया, जिनके पास यह क्षमता है। फिलहाल उपलब्धियों के पीछे अपनी अंदरूनी खांमियों को नजरंदाज नहीं किया जा सकता। प्रयास यह होना चाहिये कि सेना के शीर्षस्थ पदों पर बैठे लोगों व जवानों के बीच टकराव की स्थिति न उत्पन्न होने पाये। अधिनस्थों के बीच व्याप्त आक्रोश को प्राथमिकता के तौर पर निपटाने का प्रयास किया जाना चाहिए, जिससे सेना की साख पर लगने वाले दाग से बचा जा सके। भारतीय कवि माखनलाल चतुर्वेदी ने सैनिकों के सम्मान में बहुत पहले ही पुष्प की अभिलाषा की रचना की थी, जो इस तरह है-

चाह नहीं मैं सुरबाला के गहनों में गूंथा जाऊं,

चाह नहीं प्रेमी माला में बिंध प्यारी को ललचाऊं,

चाह नहीं सम्राटों के शव पर हे हरि डाला जाऊं,

चाह नहीं देवों के सिर पर चढ़ूं भाग्य पर इठलाऊं,

मुझे तोड़ लेना वनमाली, उस पथ पर तुम देना फेंक,

मातृ भूमि पर शीश चढ़ाने, जिस पर जावें वीर अनेक।।

 

1 COMMENT

  1. निम्न आप सेना की उपलब्धियां क्यों गिनाते हैं? मैं इन को सेना की उपलब्धियां नहीं मानता. ये हमारी तकनीकी उपलब्धियां अवश्य मानी जा सकती है.
    लेखक: (१)माइक्रो, लाइट पायलट, लैस टार्गेट एअरक्राफ्ट लक्ष्य-1, स्वदेश इंटरसेप्टर मिसाइल,
    (२) 290 किमी क्षमता वाले ब्रह्मोस सुपरसोनिक क्रूज मिसाइल,
    (३) 350 किमी वाली परमाणु संपन्न पृथ्वी-2 बैलिस्टिक मिसाइल,
    (४) 3000 किमी की मारक क्षमता वाले अग्नि-3 बैलिस्टिक मिसाइल,
    (५)परमाणु आयुध सहित 4,000 किमी मारक क्षमता वाली अग्नि-4 मिसाइल,
    (६)15,000 किलोमीटर दूर का निशाना साधने की क्षमता वाला भारत अमेरिका, रूस, फ्रांस और चीन के साथ चुनिंदा देशों के समूह में शामिल हो गया, जिनके पास यह क्षमता है।—–
    मैं इन को सेना की उपलब्धियां नहीं मानता. स्पष्ट करेंगे?

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