विजय सोनी
भारतीय रेल दुनिया की सबसे बड़ी और व्यस्ततम रेलवे है। जापान, चीन या कई देश चाहे कितनी भी द्रुतगामी हवा से बात करनेवाली रेल भले ही चलाये किन्तु इंडियन रेलवे की दुनिया में अपनी ख़ास विशेषता है, हमारी रेलवे कई कई देशों की कुल आबादी संख्या से भी ज्यादा यात्रियों को प्रतिदिन यात्रा “कराने” और लगभग इतने ही लोगों को “प्रतीक्षारत” रखने की क्षमता भी रखती है, सरकारी क्षेत्र का ये सबसे बड़ा उपक्रम हमारे लिए ना केवल गर्व का बल्की जीवन को चलने चलाने का भी महान साधन है ,हर यात्री भगवान् को स्मरण कर अपने शुभ-अशुभ सभी लक्ष्यों तक पहुचने के लिए इस पर आश्रित है, टिकिट की मारामारी, तत्काल की उहापोह, दलाल और दलाली जैसी कठिन से कठिन परिस्थितयों से जैसे तैसे निपट कर कन्फर्म टिकिट मिल जाए तो किस्मत को धन्यवाद देकर, ट्रेन तक सही समय पहुँचने रेलवे इन्क्वारी १३९ का आभार मान कर यात्री स्टेशन पहुंचकर ट्रेन में अंततोगत्वा सवार हो ही जाता है, फिर अपने सामन-जान-माल की सोचते सोचते ईश्वर को धन्यवाद देते हुवे आगे और आगे स्टेशन दर स्टेशन अपने गंतव्य तक सकुशल पहुँचने की प्रार्थना करते करते हुए इसके माध्यम से चलता रहता है इसीलिए कहा गया है की “चलती का नाम गाड़ी”. सकुशल मंजिल तक पहुंचकर फिर अपनी घर वापसी के लिए उक्त जद्दोजेहद का क्रम फिर दोहराया जाता है, इस प्रकार की आदत और बेबसी के हम आदि हो गए हैं, किन्तु एक अत्यंत दुर्भाग्यजनक ट्रेन एक्सीडेंट “ज्ञानेश्वरी एक्सप्रेस”का ७-८ महीने पहले हुवा इस हादसे के ज़िम्मेदार नक्सली में से कुछ गिरफ्तार भी हुए पुलिस अपना काम कर रही है, ममता जी रेल मंत्री हैं ,वो बंगाल से हैं, हादसा और नक्सली वारदात भी उन्ही के प्रदेश जिसमे वामपंथियों का शासन आज तक कायम है, में ही हुआ ,ममता जी भी एक कद्दावर नेता होते हुवे भी बेबस हैं, लाचार हैं या क्या हैं समझ से बाहर है, सुरक्षा के पुख्ता इंतज़ाम की जिम्मेवारी केंद्र और राज्य दोनों सरकारों की है, किन्तु दोनों अपनी अपनी राजनीतिक रोटियां सेक रहे हैं, यात्रियों को होनेवाली परेशानियों से उनका कोई लेना देना नहीं है, दोनों का अहम् टकरा रहा है, कहने के लिए कुछ समय के लिए टाइम शेदुल बदल कर रात्री में रेलों का परिचालन सुरक्षा के अभाव में बंद कर दिया गया,ऐसा लगा बहुत जल्द सब कुछ सामान्य हो जाएगा किन्तु ८-९ महीने तक आज भी वैसी ही हालत है, बंगाल से होकर चलने वाली सभी रेल गाड़ियाँ रात्री रोक दी जाती हैं या रात्री चलने वाली सभी गाड़ियों को सुबह ८-९ घंटे लेट रवाना किया जाता है, देश की जनता इस प्रकार के परिवर्तित शेदुल से परेशान हैं, जनता सोच रही है की क्या कारण है? ये लेट लतीफी कब तक चलेगी? केंद्र की सरकार कब तक मजबूर रहेगी? क्या राज्य की सरकार निक्कमी है? क्या दोनों सरकारों में इतनी क्षमता भी नहीं है? क्या मजबूरी है की दोनों सरकारों ने अपने अपने घुटने विध्वन्स्कारियों के सामने टेक दिए या तोड़ लिए हैं? क्या भारत “आज़ाद भारत” की अक्षम सरकारें कुछ कर सकेगी ?ममता जी की ममता कब बरसेगी? इन सुलगते सवालों का ज़वाब कौन देगा? फ़ुटबाल की गेंद की तरह दोनों एक दूसरे के पाले में गेंद को लुढका लुढका कर शाबाशी लुटने का प्रयास कर रहें है,सरकार यदि कोई “चीज़” है तो उसे चाहिए के कठोर से कठोर कदम उठा कर शीघ्र तय शेदुल पर गाड़ियों का परिचालन प्रारंभ कर यात्रियों पर “ममता” रस की बारिश करे .
अब तो ये सच दिखाई देने लगा है क्यों की रेल बजट आ कर चला भी गया किन्तु ममता जी ने इस दिशा में कोई कदम नहीं उठाया ,बंगाल में चुनाव भी घोषित हो गए हैं ,देखें जनता अब क्या ज़वाब देती है .
बिलकुल सही है ,ममता जी और कमुनिस्ट सरकार दोनों के मतभेद के कारण ये स्थिति इतने लम्बे समय से कायम है जिसमे देश के आम नागरिकों और रेल यात्रियों को भारी असुविधा हो रही है ,इसका शीघ्र निराकरण आवश्यक है .