पाक अधिकृत कश्मीर का भारतीय रुख

pokसुरेश हिंदुस्थानी

पाकिस्तान अधिकृत कश्मीर या कहें गुलाम कश्मीर में पाकिस्तान के विरोध में जो आवाज उठाई जा रही है, उसके कारण यह इस बात को बल मिला है कि गुलाम कश्मीर के लोग अब भारत के साथ ही रहना चाहते हैं। इसकी सुगबुगाहट कश्मीर क्षेत्र में आई भीषण बाढ़ के समय से ही दिखाई देने लगी थी। इससे पाकिस्तान का दोहरा चरित्र एक बार फिर उजागर हो गया है। पाकिस्तान कहता था कि कश्मीर के लोग भारत से अलग होना चाहते हैं ? लेकिन पाकिस्तान के हुक्मरानों ने कश्मीर के साथ हमेशा अन्याय ही किया है। यह दर्द वहां के नागरिकों की जुबान से छलकने लगा है। अब तो गुलाम कश्मीर की सरकार भी इस सत्य को खुले तौर पर स्वीकार करने लगी है कि पाकिस्तान अधिकृत कश्मीर की जनता पाकिस्तान की सच्चाई को जान चुकी है। इस गुलाम कश्मीर की जनता इस सच को अच्छी प्रकार जान चुकी है, कि कश्मीर का पूरा भाग स्वाभाविक रूप से भारत का हिस्सा है, और वे भारत के साथ रहने में अपनी भलाई समझते हैं।

भारत के विरोध में आतंकी गतिविधियों का संचालन करने वाले पाकिस्तान का वर्तमान वातावरण ऊहापोह वाली स्थिति का प्रदर्शन कर रहा है। वर्तमान में पाकिस्तान की सबसे बड़ी परेशानी यह है कि उसके कब्जे वाले कश्मीर में पाकिस्तान के खिलाफ प्रदर्शन होने लगे हैं। गुलाम कश्मीर के मुजफ्फराबाद, गिलगित में जिस प्रकार के प्रदर्शन हो रहे हैं, उससे आतंक फैलाने वाले नेता सकते में आ गए हैं। उनको इस कश्मीर में मिलने वाले समर्थन में कमी आई है। पाकिस्तान के इशारे पर काम करने वाले अलगाववादी नेताओं ने कश्मीर में जिस प्रकार से वहा की जनता में भ्रम की स्थिति पैदा की, उसकी असलियत सामने आने के बाद पाकिस्तान नए बहाने तलाश रहा है। यह सच्चाई किसी से छुपी नहीं हैं कि पाकिस्तान ने हमेशा लोगों को भड़काया है। और लोग उसके झांसे में आते चले गए, लेकिन बनाबटी उसूल कभी सत्य को प्रमाणित नहीं करते। अंतिम विजय सत्य की होती है। कहते हैं कि लोगों के मन में नफरत का बीज बोकर प्रेम की उम्मीद नहीं की जा सकती। फिर पाकिस्तान की यह सबसे बड़ी भूल ही कही जाएगी कि वह पाकिस्तान अधिकृत कश्मीर की जनता  के मन में नफरत का पाठ पढ़ाकर फिजूल में ही प्रेम चाहती है। पाकिस्तान ने जो बोया है उसको तो भुगतना ही होगा।

पाकिस्तान अधिकृत कश्मीर में आज वैसे ही हालात हैं जैसे 1971 में बंगलादेश में पैदा हुए थे। आज यह बात कई लोगों को पता है कि बंगलादेश, पाकिस्तान से बुरी तरह से परेशान हो गया था। भारत की सक्रिय भूमिका के चलते बंगलादेश, पाकिस्तान से अलग होकर स्वतंत्र देश का अस्तित्व प्राप्त कर सका। पाकिस्तान के अधिकार वाले कश्मीर में देखा जाए तो वहां विकास की संभावनाएं शून्य हैं। पाकिस्तान की सरकारों द्वारा इस कश्मीर की सरकार को कतई सहयोग नहीं मिलता, इस कारण यहां की सरकार का तो भारत के प्रति विश्वास बढ़ा ही है, साथ ही पाक अधिकृत कश्मीर की जनता के मन में भारत की वर्तमान सरकार के प्रति अच्छा भाव पैदा हो रहा है।

पाकिस्तान अधिकृत कश्मीर की जनता ने पुलिस और सेना पर जो गंभीर आरोप लगाए हैं उसमें वहां की जनता बुरी तरह से प्रताड़ित दिखाई दे रही है। जनता का स्पष्ट तौर पर कहना है कि सेना और पुलिस उनकी महिलाओं को जबरदस्ती उठाकर ले जाते हैं। और कई दिनों तक अपने पास रखकर उसे वापस कर देते हैं। उनके मुताबिक महिलाओं के साथ वहशियाना कृत्य किया जाता है। इस प्रकार की बातों दुनिया का कोई भी नागरिक सहन नहीं कर सकता।
संयुक्त राष्ट्र संघ दुनिया की प्रमुख संस्था है, जिसके मंच से कही गई बातों की चर्चा वैश्विक स्तर पर होती है। जिस तरह सोवियत संघ और अमेरिका के बीच शीतयुद्ध चल रहा था, इस पर पूर्ण विराम सोवियत संघ के विघटन के बाद लगा। हालांकि अब भी शक्तिशाली देशों के बीच शक्ति की स्पर्धा चल रही है। अमेरिका-चीन के बीच कूटनीति सांप-नेवले का खेल चल रहा है। यह भी प्रकृति नियमों पर प्रहार हुआ कि जिस भारत की सीमा प्रकृति ने निर्धारित की, उसको 1947 में मिटाकर राजनैतिक नेतृत्व ने अस्थाई विभाजन की रेखा खींच दी। इसका दुष्परिणाम यह है कि विभाजन की रेखा से बना कृत्रिम देश पाकिस्तान भारत से ही टकराने की स्थिति पैदा करता रहता है। संयुक्त राष्ट्र संघ के मंच से पाक के प्रधानमंत्री नवाज शरीफ ने हमेशा की तरह कश्मीर का राग अलापा। इसके पहले भारत के प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने वैश्विक समस्याओं की ओर ध्यान केंद्रित करते हुए संयत भाषा में अपने विचार व्यक्त किए थे, लेकिन कश्मीर का राग अलापने का भारत की ओर से जवाब देना भी कूटनीतिक बाध्यता थी। आतंकवाद और चर्चा एक साथ नहीं चल सकते। भारत सभी मुद्दों पर चर्चा करने को तैयार है। इस संदर्भ में यह भी उल्लेख करना होगा कि पाक कब्जे वाले कश्मीर के लोग पाकिस्तान की गुलामी की जंजीरे तोडऩे के लिए बगावत कर रहे हैं। वे भारत के साथ मिलकर अपना भविष्य सुधारना चाहते है। पाक कब्जे के कश्मीर में 1971 जैसी स्थिति बनी हुई है। जिस तरह पूर्वी बंगाल के लोग पाकिस्तान के अत्याचारों से त्रस्त थे, उसी तरह की स्थिति पाक कब्जे वाले कश्मीर में है। बड़ा देश होने से भारत का दायित्व है कि जिस तरह भारत की सेना ने पूर्वी बंगाल को पाकिस्तान के पंजे से मुक्त कराया था, उसी तरह पाक कब्जे वाले कश्मीर को भी मुक्त कराना होगा। दोनों देशों के बीच यह मुद्दा प्रमुख है। कूटनीतिक क्षेत्रों के विशेषज्ञ यह समीक्षा कर सकते है कि पहली बार राष्ट्रसंघ के मंच से पाकिस्तान को करारा उत्तर दिया गया है। अभी तक कश्मीर का राग पाकिस्तान अलापता था, अब पाक कब्जे के कश्मीर की बात चर्चा के केंद्र में आ गई है।

1 COMMENT

  1. बांगला देश को मुक्त कराने वाले हालात कुछ अलग थे, व विश्व राजनीति भी अलग हालत में थी, आज पाकिस्तान की सैन्य ताकत भी बदल चुकी है , उसके ड्रैगन के साथ सैन्य व राजनीतिक संबंध भी कोई भी युद्ध होने पर हालात को प्रभावित करेंगे, उस समय को दोहराने की बात कहना आसान लगता है लेकिन वास्तविकता के धरातल पर बहुत जटिल है , अमेरिका की ढुल मूल नीति पर भी यकीन नहीं किया जा सकता , क्योंकि उसकी टांग भी पाकिस्तान व अफगानिस्तान में फंसी हुई है , भारत की अंदरुनी हालत भी अब पहले से अलग है , पाकिस्तान के आतंकवादी व उनके स्लीप्स शैल अंदरुनी हालत में परेशानी पैदा कर सकते हैं , , पाक के कटटर धार्मिक संगठन वहां की सरकार के साथ खड़े हो कर हमारे लिए परेशानी पैदा कर सकते हैं , इस लिए सभी दृष्टिकोण से इस विषय पर सोचना होगा , वैसे भी वहां पर एक बार हुए विरोध से हमें कोई ज्यादा उम्मीदें बंधने की जरूरत नहीं है , मत भूलिए की इस्लामिक जनता की प्रतिबद्धताएं बदलने में ज्यादा समय नहीं लेती , बबँग्ला देश इसका उदहारण हमारे सामने है जो कभी भी आँख निकालने लगता है

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