मै थी एक सोने की चिड़िया , मेरी थी हर बात निराली .
सदाबहार नदी-तालों से ,खेतों में उगती हरियाली.
घोर-परिश्रम और ज्ञान से , हर घर में थी खुसिहाली.
तप-त्याग और सदाचार से , मेरे चेहरे पर थी लाली.
सोने-चान्दी,हीरे-पन्नों से , घर- आँगन थे भरे-भरे .
देश-भ्रमण करने वाले , चकित देखते खड़े-खड़े.
ईश्वर ने इज्जत बख्शी , मानव रूप में कदम धरे.
वेद-पुराण आदि ग्रंथों का , लोग हमेशा श्रवण करे.
हमने ही तो अखिल विश्व को ,धर्म-ज्ञान की शिक्षा दी.
ऋषि-मुनियों की गहन खोज ने ,नव-सृजन की दीक्षा दी .
वीर-तपस्वी पुत्रों ने ना, भोग-विलास की इक्षा की .
वेदों और जीवन-मूल्यों का,विश्व- समाज को भिक्षा दी.
बदला समय व्यवस्था बदली ,जन-जन में फैली कुटलाई.
सज्जन मन भी भ्रमित हुआ ,घटने लगी में मेरी अरुणाई.
मेरे पुण्य -तपोभूमि पर , सहसा पाप की बदली छाई .
हुआ कलंकित दामन मेरा , दूर हुई रब की परछाईं .
दूर हुआ सत्कर्म समाज से , स्वार्थ का पलड़ा झुकता पाया.
ऋषि सुतों का मन भरमाया , फ़ैल गई फिर पाप की छाया .
भ्रष्टाचार का कहर जो टुटा , मेरा कोमल मन मुरझाया .
सत्य से आगे निकली माया , हुई कलंकित मेरी काया.
फिर अचानक क्रूर काल ने , मुझको कीचड़ में लिटा दिया.
जिस पर था विश्वास देश का , उसी ने चिर का हरण किया.
भोग-स्वार्थ की प्रबल कामना , राष्ट्र-प्रेम का हरण किया .
कुछ पुत्रों ने लोभ में आकर , अरि के हाथों सौंप दिया.
अरि ने मुझको जी भर लुटा , मेरे तेज का हरण किया.
जाती-धर्म और लोभ में सुत ने , मौन हार का वरण किया .
आज़ाद-भगत जैसे वीरों ने , अरि का खूब प्रतिकार किया.
पर गद्दारों की टोली ने , उनके बलिदानों को विफल किया.
अर्धनग्न सी विवश खड़ी , मै सब कुकर्मो को देख रही.
अपने लोगों से लूट-लूट कर , हर-दिन,हर-पल सिसक रही.
बेबस होकर राम-कृष्ण को , आज निमंत्रण भेज रही,
पुत्रों से मोह टूट चुका अब , रब की राहें देख रही.
क्या कलुषित-भ्रष्ट समाज में , राम-कृष्ण फिर आयेंगे .
क्या अपने अद्भुत चमत्कार से , फिर मेरी लाज बचायेंगे .
या यूँ ही प्रलय – काल तक ,मैं तिल-तिल मरती जाऊंगी .
या अपने पुत्रों के राष्ट्र-प्रेम को , फिर जिन्दा कर पाऊँगी .
आज भेडियों की टोली में , नजर नहीं कोई आता राम.
शुभ –दिन शायद गुजर गए हैं , आने लगी है धुंधली शाम.
फिर भी आशा लगी हुई है , कोई लाल तो आएगा .
दबी-सताई पुण्य-भूमि को , फिर से स्वर्ग बनाएगा.
सफल हुई अगर कामना , फिर से नया-सृजन होगा.
भोग की इक्षा भागेगी तब , दिव्य अलौकिक मन होगा.
सदाचार के पुण्य के बल से , अंधकार तब भागेगा.
दिव्य स्वप्न सब पुरे होंगे , राष्ट्र- प्रेम जब जागेगा.