ओ३म् का विवाद बनाम भारत का लोकतंत्र

अंतर्राष्ट्रीय योग दिवस (21 जून 2016) की आहट होते ही कुछ छद्मी धर्मनिरपेक्षियों ने कहना आरंभ कर दिया है कि अंतर्राष्ट्रीय योग दिवस के लिए या किसी भी योग शिविर में मुसलमानों के लिए ‘ओ३म्’ बुलवाना उचित नही है। ऐसे लोगों से उचित रूप से पूछा जा सकता है कि यदि ‘ओ३म्’ भारत में नही बोला जाएगा तो फिर कहां बोला जाएगा? और साथ ही यह भी कि यदि ‘ओ३म्’ भारत में नही बोला जा सकता है तो फिर इसका स्थानापन्न क्या हो? क्या वह ‘अल्लाहो अकबर’ होगा? ‘ओ३म्’ का विरोध करने वाले कुछ तो बोलें।

‘ओ३म्’ के विषय में महर्षि दयानंद जी महाराज सत्यार्थ प्रकाश के प्रथम समुल्लास में लिखते हैं :- ‘ओ३म्’ यह ओंकार शब्द परमेश्वर का सर्वोत्तम नाम है, क्योंकि इसमें जो अ, ऊ, म तीन अक्षर मिलकर एक ‘ओ३म्’ समुदाय हुआ है, इस एक नाम से परमेश्वर के बहुत नाम आते हैं, जैसे अकार से विराट, अग्नि और विश्वादि। उकार से हिरण्यगर्भ, वायु तैजसादि। मकार से ईश्वर, आदित्य और प्राज्ञादि नामों का वाचक और ग्राहक है। उसका ऐसा ही वेदादि सत्यशास्त्रों में स्पष्ट व्याख्यान किया है कि प्रकरणानुकूल ये सब नाम परमेश्वर ही के हैं।

हमारा लोकतंत्र भारत विरोधी शक्तियों के यहां गिरवी रखा है, इसलिए वह तो यह नही कह सकता कि ‘ओ३म्’ ही सकल ब्रह्माण्ड में एक ऐसा पंथनिरपेक्ष नाम या शब्द है जो विश्व के सभी मत पंथों के साम्प्रदायिक चिन्हों को भी स्वयं के साथ समाविष्ट एवं समायोजित कर लेता है। सचमुच भारत के लोकतंत्र की यह एक विडंबना ही है कि वह सच को सच नही कह सकता। अब तनिक विचार करें कि ‘ओ३म्’ कैसे सबके साथ अपना समायोजन कर लेता है? विद्वानों का मानना है कि ‘ओ३म्’ के तीन अक्षर अ, ऊ और म् ईश्वर (अ) जीव (ऊ) और प्रकृति (म) के वाचक हैं। अत: जो लोग प्रकृतिवादी है अर्थात विश्व के सारे ताम झाम को प्रकृति का ही खेल मानते हैं उनके लिए ‘ओ३म्’ इसलिए स्वीकार्य है कि इसमें प्रकृति एक महत्वपूर्ण सोपान के रूप में उपस्थित है। जो लेाग निराकार परमेश्वर की उपासना के समर्थक हैं वे इसके ‘अ’ अक्षर के अर्थ को समझकर अपना काम चला सकते हैं। जबकि जो लोग संसार के मायावी बंधनों से विरक्त होकर वैराग्य धारण कर चुके हैं वे अपने आपको प्रकृति के मायावाद से निकालकर ईश्वराभिमुख कर लेते हैं। उनके लिए ‘ऊ’ अक्षर ऐसा है जो उन्हें ‘ओ३म्’ के साथ जोड़ देता है। ‘ओ३म्’ में हिंदी गिनती का ३ का अंक इसीलिए लगाया जाता है कि म अर्थात प्रकृति से विमुख हुआ जीव (ऊ) ईश्वर की ओर चले। हिंदी गिनती का ३ मकार से पीठ फेरकर विमुख हुआ सा लगता है।

‘ओ३म्’ ईश्वर का निज नाम है। जिसे वेद में स्वयंभू भी कहा गया है। अथर्ववेद (10/8/44) में ईश्वर के गुणों की चर्चा करते हुए कहा गया है कि भगवान निष्काम, धीर, अविनाशी, स्वयंभू, आनंद से भरपूर है उसमें किसी प्रकार की त्रुटि अर्थात ऊनापन या कमी नही है। उसी धीर, अजर, सदा, जवान आत्मा (परमात्मा) को जानने वाला मृत्यु से नही डरता। वेद की इसी बात को कुरान नेे पकड़ा है। वेद जिसे स्वयंभू कह रहा है उसी को कुरान ने ‘खुदा’ कहा है। यह बोली का अंतर है। भाषा का और भाषा के भाव का नही है। बोलियां भाषा का विकृत रूप होती हैं जो भाषा के विकार के रूप में उत्पन्न हुए शब्दों से बन जाया करती है। अरबी, फारसी, उर्दू में से खुदा चाहे जिस भाषा का शब्द हो पर उसका भाव तो वही है जो सभी भाषाओं (बोलियों) की जननी संस्कृत के स्वयंभू शब्द का है। स्वयंभू का अर्थ है जो स्वयं ही आ गया अर्थात उत्पन्न हुआ है। किसी के घर में जब बच्चा जन्म लेता है तो उसके लिए हम यह भी कह देते हैं कि उनके यहां कल एक बच्चा आया है या बच्ची आयी है। इसी प्रकार जब कोई व्यक्ति मृत्यु को प्राप्त होता है तो उसको हम ‘चला गया’ कहकर भी दूसरों को बता देते हैं कि उसकी मृत्यु हो गयी है।
वेद का स्वयंभू और कुरान का खुदा तो समानार्थक है और ‘ओ३म्’ के साथ अपना सामंजस्य भी स्थापित कर लेते हैं परंतु ‘ओ३म्’ के किसी एक गुण के साथ ही इनका सामंजस्य है। इसलिए यदि कोई कहे कि ‘ओ३म्’ नही तो उसके स्थान पर स्वयंभू या खुदा भी कहा जा सकता है तो यह भी अयुक्तियुक्त ही होगा। क्योंकि ये दोनों शब्द ईश्वर के स्वयंभू गुण को ही दर्शाते हैं जबकि ‘ओ३म्’ में ईश्वर का पूर्णत्व प्रकट होता है।

भू: भुव: स्व: इस ‘ओ३म्’ में से ही निकलने वाली तीन ऐसी रश्मियां हैं जो इस ‘ओ३म्’ के और भी अधिक विस्तृत रूप को और उसकी व्यापकता को प्रकट करती है। भू: उसकी उत्पादक या उत्पत्तिकत्र्ता शक्ति (जैनेरेटर ऑफ दि क्रिएचर) को बताता है। इसे हमारे पुराणों में उसकी ब्रह्मा शक्ति का नाम दिया गया है। इसके पश्चात भुव: उसके दु:खहर्ता अर्थात सृष्टि का पालन, पोषण, वृद्घि और विकास करने के गुण को अर्थात सृष्टि के संचालक (ऑप्रेरेटर ऑफ दि क्रिएचर) स्वरूप को प्रकट करता है पुराणों में ‘ओ३म्’ के इस स्वरूप को ‘विष्णु’ अर्थात सृष्टि का पालक कहा गया है। जबकि ‘स्व:’ ईश्वर के निज नाम ‘ओ३म्’ की संहारक शक्ति का नाम है, जिसे सुखप्रदाता कहा जाता है। पुराणों में ईश्वर की इस शक्ति का नाम महेश कहा जाता है। ईश्वर सृष्टि का संहार भी हमारे उपकार के लिए करता है। इसलिए वह सृष्टि संहारक अर्थात (डेस्ट्रोयर ऑफ दि क्रिएचर) भी कहा जाता है। अब जैनेरेटर, ऑपरेटर और डेस्ट्रॉयर तीनों शक्तियों के प्रथम अक्षर को लीजिए। शब्द बना त्रह्रष्ठ। यही अंग्रेजी सहित कई भाषाओं का वह शब्द है जो ईश्वर का पर्यायवाची माना गया है। एक प्रकार से त्रह्रष्ठ ब्रह्मा, विष्णु, महेश अथवा भू: भुव: स्व: का संक्षिप्त रूप है।

अब जैसे भू: भुव: स्व: को हम ‘ओ३म्’ का स्थानापन्न नही मान सकते वैसे ही त्रह्रष्ठ को भी ‘ओ३म्’ का स्थानापन्न नही माना जा सकता। भू: भुव: स्व: और त्रह्रष्ठ तो संकेतक है किसी अन्य शक्ति के जो स्पष्ट करते हैं कि हम जिस शक्ति के प्रतीक हैं वह अनंत गुणों से विभूषित है। उन अनंत गुणों को ये तीनों एक दिशा देती है। सारी सृष्टि का निचोड़ लाकर रख देती हैं। सारी सृष्टि का निचोड़ ही जगत है। इस शब्द में जकार का अर्थ जन्म है गकार का अर्थ गति है और तकार का अर्थ संहार अथवा मृत्यु है। इस प्रकार जगत का अर्थ जन्म और मृत्यु के बीच होते रहने वाली गति से है। पर यह जन्म और मृत्यु के बीच की श्वास प्रश्वास की सारी गति भी सांसों की डोर को ‘ओ३म्’ ‘ओ३म्’ रटकर रसना के माध्यम से पवित्र करती जा रही है। रसना और वासना का लोप हो रहा है और हमारा जीवन उच्चता में ढलता जा रहा है। सारा जगत ‘ओ३म्’ के सामने नतमस्तक है और उसी से प्राण ऊर्जा प्राप्त कर रहा है। इस प्रकार संसार का सारा वांग्मय ‘ओ३म्’ की मधुर ध्वनि का राग गाता सा जान पड़ता है। सर्वत्र उसी का मधुर संगीत चल रहा है। जिसे उसके रसिया जितनी गहराई से अनुभव करते हैं वे उतने ही आनंदित और प्रसन्नचित रहते हैं।

योग प्राणायाम ‘ओ३म्’ रस को इसी मस्ती के साथ हमारे अंत:करण में प्रात:काल स्थापित करने का सामथ्र्य रखते हैं। जिससे हम सारे दिन नवीन प्राण ऊर्जा का संचार अपने भीतर होता हुआ अनुभव करते हैं। व्यक्ति चौबीस घंटे की थकान और नीरसता से ऊपर उठता है और अगले 24 घंटे के लिए अपनी जीवन बैटरी को पुन: चार्ज करता है। अमेरिका के नासा तक ने जांच करके देखी है कि इस ‘ओ३म्’ नाम में ही सर्वाधिक आकर्षण क्यों है और इसके जप से क्या क्या लाभ होते हैं? परिणाम देख कर वह चकित रह गये पर हमारे पूर्वजों के परिश्रम पर मुहर लगा गये कि ‘ओ३म्’ ही वह अविनाशी अक्षर हैं, जिसके जप से हमारे आत्मा में दिव्यता की अनुभूति होती है, और सूर्य की किरणों से भी ‘ओ३म्’ का संगीत निकल रहा है। पर इधर हमारा लोकतंत्र है जो अपने दिव्य अलौकिक और गौरवपूर्ण विरासत को सहेजने में असफल हो रहा है। क्योंकि उसने एक नियम बना लिया है कि दूसरों के दोषों को बताओ मत उनके साथ सामंजस्य बनाओ और हो सके तो उनके दोषों या कमियों के सामने अपने अच्छे को भी तुच्छ मान लो।

प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी जी इस बात के लिए धन्यवाद के पात्र हैं कि उन्होंने अपनी अदभुत और विलक्षण विरासत को संभालते हुए देश को ही नही अपितु विश्व को भी ‘ओ३म्’ के साथ तारम्य स्थापित करने के लिए प्रेरित किया है। कितनी बड़ी उपलब्धि है यह कि विश्व के एक सौ से अधिक देश एक साथ ‘ओ३म्’ की शरण में जाकर दिव्यशांति का अनुभव करने के लिए संकल्पबद्घ है। जिन लोगों को इसमें साम्प्रदायिक दिखायी देती है-वह अपनी साम्प्रदायिकता की तंग गलियों में सड़ते रहें-हम तो मोदी सरकार के इस प्रयास को विश्वशांति की दिशा में उठाया गया एक ठोस कदम ही मानते हैं। ‘वसुधैव कुटुम्बकम्’ का आदर्श एक जैसे चिंतन से ही प्राप्त हो सकता है।om-omkara

1 COMMENT

  1. योग करते समय ॐ के सस्वर उच्चारण से लाभ होता है, लेकिन कोई नागरिक अपनी धार्मिक कट्टरता के कारण न बोलना चाहे तो न बोले. लेकिन जो ॐ बोलना चाहते है उन्हें न रोका जाए.

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