चर्च के लिए भारत की प्रभुसत्ता दांव पर

फरवरी के प्रथम सप्ताह में उडीसा प्रदेश की कानून व्यवस्था की जांच पडताल करने के लिए यूरोपीय संघ ने अपने एक टीम भेजी थी। इस टीम में अन्य देशों के अलावा स्पेन, हंगरी, पोलैंड, आयरलैंड, नीदरलैंड, फिनलैंड, इंग्लैंड और इटली के सदस्य थे। इन देशों के दिल्ली में जो दूतावास हैं उनके अधिकारियों को इस टीम में यूरोपीय संघ ने शामिल किया हुआ था। यह टीम भुवनेश्वर में पहँची तो नवीन पट्नायक की सरकार के प्रमुख अधिकारियों ने इस टीम को प्रदेश की कानून व्यवस्था के बारे में जानकारी दी और साथ ही यह भी बताया कि पिछले साल प्रदेश के जिन भागों में दंगा फसाद हुआ था उसमें दंगा पीडितों को सरकार ने क्या क्या सहायता दी है और आगे सरकार क्या क्या पग उठाने वाली है , इसका आश्वासन भी दिया। लेकिन यूरोपीय संघ की यह टीम उडीसा सरकार के इन आश्वासनों और इन रपटों से संतुष्ट नहीं हुई। वह स्वंय जनजातीय क्षेत्रों में जाकर दंगा पडितों से मिली, उनके बयान लिये और मौके पर पहॅुच कर जांच पडताल की। यूरोपीय संघ की इस प्रकार की टीम को किसी दूसरे देश में जाने की हिम्मत नहीं है और न ही उसका अधिकार है। लेकिन उडीसा में यह इसलिए संभव हुआ क्योंकि इस टीम को भारत सरकार की शह ही नहीं मिली हुई थी बल्कि सरकार उसकी पूरी सहायता भी कर रही थी। क्योंकि नियमानुसार दिल्ली स्थित विदेशी दूतावासों का काई भी अधिकारी भारत सरकार की अनुमति के बिना कहीं नहीं जा सकता और खास करके किसी प्रदेश में जाकर वहाँ हुए लडाई झगडे, दंगा फसाद के लिए जॉच अधिकारी की भूमिका तो किसी भी हालत में नहीं अपना सकता। जाहिर है यूरोपीय संघ की यह टीम भारत के आन्तरिक मामलों में जॉच पडताल करने का यह जिम्मा केन्दा्र सरकार की सहमति और योजना से ही निभा रही थी। उडीसा सरकार इस टीम को अपने प्रदेश में आने से रोक सकती थी परन्तु उसके लिए जिस साहस और प्रतिबद्धता की जरूरत होती है वह नवीन पट्नायक की सरकार में नहीं है। यह भी हो सकता है कि पटनायक की सरकार स्वयं ही इस टीम का स्वागत करने के लिए आतुर हो।

यूरोपीय संघ की इस टीम के आने का और जांच अधिकारी के तौर पर जिम्मेदारी संभालने का मुख्य कारण उडीसा में मतांतरित ईसाइयों की स्थिति की जांच पडताल करना है। इन देशों का यह मानना है कि उडीसा में ईसाइयों पर बहुत अत्याचार हो रहे है। और उनके साथ दुर्व्‍यवहार किया जा रहा है। पिछले साल इन्हीं तथाकथित आरोपों के चलते चर्च ने माओवादियों के साथ मिलकर स्वामी लक्ष्मणानन्द सरस्वती की हत्या करवा दी थी। सरस्वती चर्च के मतांतरण आंदोलन में बाधा डाल रहे थे और इसी यूरोपीय संघ के देशों द्वारा भेजी जाने वाली धन राशि के बल बूते पर जनजाति के भोले भाले लोगों को मतांतरित कर रहे चर्च का पर्दाफाश कर रहे थे। चर्च ने जनजाति के लोगों को मतांतरित ही नहीं किया बल्कि उनकी जमीन पर धोखे से कब्जा करके वहाँ चर्च के भवन बनवा दिये या फिर पादरियों के रहने के लिए आलीशान मकान। चर्च ने स्वामी लक्ष्माणानन्द सरस्वती से भयभीत हो कर और अपने कुक्रत्यों को पर्दाफाश होते देख कर स्वामी जी की हत्या करवा दी। उससे भडके जन आक्रोश से भयभीत होकर चर्च विदेशों मे बैठे अपने आकाओं के पास गुहार लगाने लगा। यूरोपीय संघ से यह टीमें चर्च का उत्साह बढाने के लिए, स्थानीय शासक ीय कर्मचारियों को डराने के लिए और सबसे बडकर ऐसे वातावरण तैयार करने के लिए मैदान में कूदी हैं जिसमें कोई भी व्यक्ति अथवा समूह चर्च की भारत विरोधी गतिविधियों का पर्दाफाश ने कर सके। भारत सरकार चर्च के हित के लिए देश की सम्प्रभुता को भी दाव पर लगाने के लिए तैयार बैठी है और जो काम स्थानीय पुलिस और जॉच आयोगा का है, वह काम विदेशों के प्रतिनिधिमंडलों से करवा रही है। उडीसा सरकार ने स्वामी जी की हत्या के बाद उडीसा में हुए दंगों की जॉच के लिए न्याय मूर्ति महापात्र आयोग स्थापित किया हुआ है और वह अपना काम कर भी रहा है, तब भला यूरोपीय संघ का यह जॉच दल भारत में ही समान्तर जॉच कैसे कर सकता है।

परन्तु क्योंकि भारत में सोनिया गांधी भी उसी चर्च का प्रतिनिधित्व करती है जिसके प्रतिनिधि के रूप में यूरोपीय संघ का यह जांच दल उडसी में गांव-गांव में घूम रहा है। वैसे तो इटली इसमें अपना प्रतिनिधि भेजने के बजाय सोनिया गांधी से ही कह देता और वह अपने यहॉ से किसी को भेज देती तब भी इटली का सही प्रतिनिधित्व हो ही जाता।पता चला है कि उडीसा में कुछ लोगों ने यूरोपीय संघ के इस जॉच दल को काले झंडे भी दिखायें हैं। आशा बंधती है कि उडीसा का स्वाभिमान अभी मरा नहीं है। लेकिन यूरोपीय संघ के इस जॉच दल पर सबसे ज्यादा सार्थक टिप्पणी भुवनेश्वर के श्री पी0के0 थामस ने की है जिनका सम्पादक के नाम एक पत्र न्यू इडियन एक्सप्रेस में 5 फरवरी को छपा है। श्री पी0के0 थामस के अनुसार यूरोपीय संघ का जांच दल उडीसा में आया है जबकि इस जॉच दल के सदस्य देशों में से किसी देश के लोग भी उडीसा में बसे हुए नहीं है इसलिए उन पर अत्याचार होने का प्रश्न ही पैदा नहीं होता। यदि जॉच दल के इन देशों को उडीसा में मानवाधिकारों के हनन की चिन्ता है तो इन्हें उडीसा के बजाये अल्जीरिया अथवा तिब्बत जाना चाहिए था, जहाँ की नस्लों को खत्म करने की कोशिश हो रही है। उडीसा आने का केवल एक ही कारण हो सकता है कि इन देशों को यह लगता है िकइस प्रदेश में इसाई मत को मानने वाले लोगों के साथ दर्ुव्यवहार किया जा रहा है। इसका अर्थ यह हुआ कि यूरोपीय संघ के यह देश अपने आप को इसाई देश मानते हैं और यह भी समझते हैं कि दुनियॉ में जहॉ इसाईयों के साथ दुर्व्‍यवहार होता है वहॉ दखलअंदाजी करना इनका अधिकार है। थामस के अनुसार तब ये देश वास्तव में सैक्यूलर नहीं हैं,बल्कि थियोकरेटिक देश हैं। परन्तु सोनिया गांधी की सरकार को तो न थामस की चिन्ता है और न ही थामस के देश भारत के लोगों की। उसका मकसद तो चर्च के हितों की रक्षा करना है। फिर चाहे उसके लिए देश की प्रभसत्ता भी दांव पर क्यों न लगानी पडे।

– डॉ कुलदीप चन्द अग्निहोत्री

6 COMMENTS

  1. जब केन्द्रीय सरकार के मुखिया की चाबी एक पांचवी पास विदेशी महिला के हाथ हो, विपक्ष शिखंडी हो, बुद्धिजीवी सोया हुआ हो और आम जन बेहोश हों तो भारत की संप्रभुता को कौन बचा सकता है ?

  2. Politics among nations की पाठ्य पुस्तक कहती है, कि, (१) सैनिक बलसे, (२)धन बलसे, (३) सांस्कृतिक प्रभुता जमाकर; इन ३ प्रकारोंसे साम्राज्यवाद जडे जमाता है, और शत्रु देशको, दासतामें जकड लेता है।हमारे भारतने इस शास्त्रमे और कुछ प्रकार जोड दिए हैं। (४था) है, राजनीतिको और राज नेताओंको भ्रष्ट करके,(५वां) है, मिडीया को चारा खिलाके, (६वां) है, मुद्रित माध्यमोंको खरीद करके।
    गत ६२/६३ वर्षोंमें भारतने ४८ गुना उन्नति(?) की है; १९४७ में एक डॉलर= एक रुपया हुआ करता था, आज एक डॉलर = ४७-४८ रुपयोंका भाव चल रहा है। जिस दिन भारतमें देशके प्रति श्रद्धासे, और कर्तव्यसे प्रेरित समाज घटकर ५०% से कम हो जाएगा, तो “अधिकार” (हक) छीननेके लिए उद्यत समाज भारतको फिरसे दासता की शृंखलामें आबद्ध कर सकता है। आज भारतके मंदिर स्वतंत्र नहीं, कश्मिरसे उसका स्वामी भगाया गया है, (जैसे कश्मिर पाकीस्तान ही न हो?)–और अपने देशमे वह निराश्रित हो गया है। राष्ट्रीय समाजके आध्यात्मिक नेताओंकी हत्त्या हो रही है,उन्हें कानूनके फंदेमें उलझाया जा रहा है, मंदिरोंके परिसरकी भूमि खरीदी जा रही है।क्या इसे स्वतंत्रता कहते हैं? तो फिर परतंत्र इससे अलग क्या होता है? सभीके अधिकारोंकी पूर्ति अपने कर्तव्यसे, फ़र्जसे, Duty से जो करते आया है, वह अन्याय कबतक सहेगा? सोनेका अंडा देनेवाली मुरगीकोहि ???

  3. नवीन पट्नायक की सरकार और सोनिया गांधी की सरकार ko देश की प्रभसत्ता दांव पर लगाने का कोई हक़ नहीं है …………और हमें वेदेशी हाश्ताचेप को रोकना है ………….. क्यों की हमारी सरकार तो सो रही है …………….. लेकिन हमें जागना है …….और सभी भारतवासी को जगाना है ? इन यूरोपीय संघ को बता देना है की भारत किशी धर्म विशेस का देश नहीं है .यहाँ सभी भाई भाई है ……….

  4. Sharam ki baat hai har bhaaratvaasi ke liye …….
    Videshiyon ka ye asli chehra …… Soniya Gandhi ka bhi chehra ……. kyon apne deshvaasiyon ko nahi dikh traha ……

    SAB KUCH LUTA KE HOSH MEIN AAYENGE >>>>

  5. भारत की प्रभुसत्ता काफी साल पहले ही दांव पर लग चुकी है, और उसी दांव के पेंच के तहत यह सब हो रहा है !

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