डब्ल्यूटीओ में भारत की जीत के मायने : डॉ. मयंक चतुर्वेदी

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किसी भी देश के राष्ट्राध्यक्ष या प्रधानमंत्री के सामर्थ्य का आंकलन तब होता है, जब दुनिया के देश उसकी कही बातों को बिना लाग-लपेट स्वीकारने लगें। कल तक जो बाते वैश्विक संदर्भों में  भारत के लिए असंभव नजर आ रही थीं मानों एका-एक आज साकार होने लगी हैं। केंद्र में बहुमत की सरकार आने के बाद प्राय: यही देखने में आ रहा है कि भारत के आंतरिक मोर्चों पर लिए जा रहे निर्णय हों या विदेश नीति से जुड़े निर्णय, सभी में जिस प्रकार से तत्काल सहमति बन रही है, वैसी तत्परता पहले कभी देखने को नहीं मिली। अच्छी बात यह है कि भारत की आवाज दुनिया के ताकतवर देश अब बिना किसी आग्रह के मान रहे हैं।

भारत ने पिछले साल बाली में हुई वर्ल्ड ट्रेड ऑर्गेनाइजेशन की पहली ग्लोबल ट्रेड एग्रीमेंट समिट में हुए करार ट्रेड फैसिलिटेशन समझौते को जब इसी वर्ष जुलाई में मानने से इनकार कर दिया था भारत का कहना था कि जब तक खाद्य सब्सिडी को लेकर डब्ल्यूटीओ में स्थायी समाधान नहीं ढूंढा जाता, तब तक वह टीएफए पर हस्ताक्षर नहीं करेगा। इस वक्त जरूर ऐसा लग रहा था कि अंतर्राष्ट्रीय दवाब के कारण भारत को कहीं झुकना ना पड़े। क्यों कि इस समझौते में वैसे तो सभी बातें भारत के पक्ष में थीं लेकिन अमेरिका और बाकी विकसित देशों का हमारे खाद्य सुरक्षा कानून को आगे जारी रखने को लेकर सहमति नहीं बन रही थी। उस समय भारत ने डब्ल्यूटीओ की जनरल काउंसिल की बैठक में कहा था कि वह इस समझौते को तब तक नहीं मानेगा, जब तक कि विकसित देश हमारे खाद्य सुरक्षा कानून को निरंतर चलाए रखने का कोई ठोस रास्ता नहीं ढूंढ़ लेते। साथ ही भारत ने यह भी स्पष्ट कर दिया था कि वह मूलत: इस समझौते के खिलाफ नहीं हैं।

 

डब्ल्यूटीओ के इस अनुबंध में वैसे दूसरे देशों से होने वाले व्यापार को आसान बनाने के लिए ठोस कदम उठाए जाने थे। करार होने के बाद सभी उम्मीद कर रहे थे कि वैश्विक अर्थव्यवस्था में करीब 60 लाख करोड़ रुपए की वृद्धि हो जाएगी। साथ ही दुनियाभर में 2 लाख से ज्यादा लोगों को रोजगार मिलेगा। इनमें से 1.80 करोड़ रोजगार विकासशील देशों में तैयार होंगे। किंतु भारत की अपनी समस्याएं थीं, जिन्हें विकसित देश नहीं समझ पा रहे थे किंतु डब्ल्यूटीओ में अर्जेंटिना और साऊथ अफ्रीका ने इसे महसूस किया और वे wtoभारत के पक्ष में आ खड़े हुए। इस कारण यह मुद्दा आगे के लिए टाल दिया गया था।  

वस्तुत: भारत को इस अनुबंध से इंकार इसलिए था क्यों कि भारत ने डब्ल्यूटीओ से कृषि सब्सिडी की गणना के मानक बदलने के लिए कहा था, ताकि वह न्यूनतम समर्थन मूल्य पर किसानों से खाद्यान्नों की खरीद कर सके। साथ ही डब्ल्यूटीओ के मानकों का उल्लंघन किए बिना देश की गरीब जनता को सस्ती दरों पर उसे बेच सके। मौजूदा नियमों में खाद्यान्न सब्सिडी की सीमा तय है। यह खाद्यान्न उत्पादन के कुल मूल्य के दस फीसद के बराबर है। भारत को इस बात का अंदेशा रहा है कि यदि उसका खाद्य सुरक्षा कार्यक्रम पूरी तरह से लागू हुआ तो वह सीमा को पार कर जाएगा।

आज चार माह बाद इसे लेकर वर्ल्ड ट्रेड ऑर्गेनाइजेशन और भारत के बीच सहमति का रास्ता बना है। भारत की बढ़ती शक्ति और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के देशहित में लिए जा रहे नि‍र्णयों के सामने डब्ल्यूटीओ को भी झुकना पड़ा है। आज यही कारण है जो अमेरिका ने आखि‍रकार हमारे रुख को समझा और खाद्य सुरक्षा को लेकर हमें खुला समर्थन दिया।

अमेरिका के भारत के पक्ष में आ जाने के बाद अब स्थ‍ितियां तेजी से बदल रही हैं। विश्व व्यापार संगठन में व्यापार सुविधा समझौते (टीएफए) को लागू करने का रास्ता साफ हो गया है। लेकिन इस शर्त पर कि भारत की खाद्य सुरक्षा के लिए महत्वपूर्ण पीस क्लॉज को तब तक जारी रखा जाएगा जब तक इस दिशा में स्थायी समाधान नहीं मिल जाता। हमारे लिए अच्छा यह है कि इसके लिए कोई समय सीमा निर्धारित नहीं की गई है। बदली हुई परिस्थि‍तियों में  पीस क्लॉज के के अंतर्गत खाद्य सब्सिडी की सीमा पार कर जाने पर भी डब्ल्यूटीओ के सदस्य को जुर्माने से छुटकारा मिलेगा। दूसरे शब्दों में कहा जा सकता है कि फिलहाल भारत पर दस फीसद की मौजूदा सीमा लागू नहीं होगी। जबकि डब्ल्यूटीओ का बाली अनुबंध के अनुसार पीस क्लॉज 2017 तक लागू रह सकता था।

वास्तव में देखा जाए तो प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की सितंबर में अमेरिकी यात्रा के दौरान हुई सफल द्विपक्षीय वार्ता के कारण अमेरिका में भारत की स्थिति को लेकर ज्यादा स्पष्टता नजर आने लगी, वहां के अधि‍कारियों को भी लगने लगा कि खाद्य सुरक्षा को लेकर भारत की चिंताएं वाजिब हैं आज वाशिंगटन में अमेरिकी व्यापार प्रतिनिधि माइकल फ्रोमैन का भी अधि‍कारिक बयान आ गया है जिसमें उन्होंने कहा कि दोनों देशों के बीच सहमति बनने के बाद बाली पैकेज को आगे बढ़ाने का रास्ता साफ हो गया है। भारत को भी उम्मीद है कि डब्ल्यूटीओ की आम सभा दिसम्बर में होने जा रही बैठक में इस समझौते को स्वीकृति प्रदान कर देगी जिससे व्यापार समझौते के बीच आनेवाली सभी अड़चने समाप्त हो जाएंगी।

वस्तुत: इस निर्णय से भारत के हित में होगा यह कि खाद्यान्न सब्सिडी की सीमा की शर्त न रह जाने के बाद सरकार न्यूनतम समर्थन मूल्य पर किसानों से खाद्यान्नों की खरीद बनाए रख सकेगी। साथ ही वह खाद्य सुरक्षा कार्यक्रम के तहत खाद्यान्नों का भंडारण और गरीबों को इसका वितरण भी कर सकती है। सब्सिडी सीमा पार होने पर डब्ल्यूटीओ सदस्य उसे नियमों के उल्लंघन का दोषी नहीं ठहरा सकेंगे। इस सब के बीच खास बात यह भी है कि भारत अपने किसानों के हितों की रक्षा कर सकेगा।  वास्तव में यही हमारी वर्तमान में बढ़ती हुई  वैश्विक शक्ति का परिणाम है। यदि मोदी पहले दिन से प्रधानमंत्री बनते ही सख्त निर्णय और विकास की योजनाओं को लेकर अपना विजन नहीं रखते तो हो सकता है कि आज गुडगवर्नेंस और वैश्विक क्षि‍तिज पर भारत के छा जाने का अवसर शायद ही हमें मिलता।

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मयंक चतुर्वेदी
मयंक चतुर्वेदी मूलत: ग्वालियर, म.प्र. में जन्में ओर वहीं से इन्होंने पत्रकारिता की विधिवत शुरूआत दैनिक जागरण से की। 11 वर्षों से पत्रकारिता में सक्रिय मयंक चतुर्वेदी ने जीवाजी विश्वविद्यालय से पत्रकारिता में डिप्लोमा करने के साथ हिन्दी साहित्य में स्नातकोत्तर, एम.फिल तथा पी-एच.डी. तक अध्ययन किया है। कुछ समय शासकीय महाविद्यालय में हिन्दी विषय के सहायक प्राध्यापक भी रहे, साथ ही सिविल सेवा की तैयारी करने वाले विद्यार्थियों को भी मार्गदर्शन प्रदान किया। राष्ट्रवादी सोच रखने वाले मयंक चतुर्वेदी पांचजन्य जैसे राष्ट्रीय साप्ताहिक, दैनिक स्वदेश से भी जुड़े हुए हैं। राष्ट्रीय मुद्दों पर लिखना ही इनकी फितरत है। सम्प्रति : मयंक चतुर्वेदी हिन्दुस्थान समाचार, बहुभाषी न्यूज एजेंसी के मध्यप्रदेश ब्यूरो प्रमुख हैं।

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