चीन-पाक कोरिडोर और हमारी कुंभकर्णी नींद

बिपिन किशोर सिन्‍हा

imagesराष्ट्रीय सुरक्षा की लगातार अनदेखी गहरी चिन्ता का विषय है। १९६२ के पहले सुरक्षा की अनदेखी तिब्बत पर चीन के कब्जे और साठ हज़ार वर्ग किलोमीटर भारतीय भूभाग पर चीन के अवैध कब्जे के रूप में सामने आई। १९६२ में चीन के हाथों भारत की शर्मनाक पराजय नई पीढ़ी को भले ही याद न हो, लेकिन हमारे जैसे नागरिकों को एक शूल की भांति चुभता है। समझ में नहीं आता कि जिस देश ने अपने पड़ोसी देश का ऐसा विश्वासघात स्वयं झेला है, वह प्रत्यक्ष खतरे के प्रति क्यों आंखें मूंदकर बैठा है।

संसद ने पिछले ही हफ़्ते सर्वसम्मति से प्रस्ताव पास कर यह दुहराया कि पूरा जम्मू और कश्मीर भारत का अविभाज्य अंग है। संसद ने यह संकल्प भी दुहराया कि पाक अधिकृत कश्मीर भी भारत का अंग है और हम इसे वापस लेकर रहेंगे। मुझे याद नहीं कि भारतीय संसद ने कितनी पर इस तरह का प्रस्ताव पारित किया है। चीन अधिकृत भूभाग को वापस लेने के कई प्रस्ताव भी हमारी संसद कई बार पारित कर चुकी है। लेकिन धरातल पर हमने इस दिशा में कभी कोई काम किया भी है क्या? संसद में हम जब-जब इस तरह का प्रस्ताव पारित करते हैं, चीन और पाकिस्तान की जनता हम पर हंसती हैं। हमारा प्रस्ताव धर्मशाला में स्थित तिब्बत की निर्वासित सरकार द्वारा पारित तिब्बत की आज़ादी के प्रस्ताव से ज्यादा अहमियत नहीं रखता। हम भारत की जनता की आंखों में धूल झोंकने के लिए ही ऐसे प्रस्ताव पारित करते हैं। सभी को ज्ञात है कि इसके पीछे हमारी कोई दृढ़ इच्छाशक्ति नहीं होती। अभी-अभी जब हमने पूरे कश्मीर पर अपने अधिकार को जताते हुए संसद में प्रस्ताव पारित किया तो उसके तीसरे ही दिन नवाज़ शरीफ़ ने गुलाम कश्मीर से होकर चीन-पाक कोरिडोर के निर्माण को हरी झंडी दी। भारत के नक्शे में पूरा कश्मीर अभी भी भारत में ही दिखाया जाता है। अगर सरकार ऐसा मानती है, तो चीन-पाक कोरिडोर पर हमारी सरकार ने तीव्र विरोध क्यों नहीं दर्ज़ कराया? चीन और पाकिस्ता को जोड़ते हुए गुलाम कश्मीर से होकर पहले ही काराकोरम मार्ग का निर्माण चीन द्वारा किया जा चुका है। हमने तब भी खामोशी ओढ़ रखी थी। हम अब भी वही काम कर रहे हैं। चीन-पाक कोरिडोर भारतीय संप्रभुत्ता को चीन और पाकिस्तान की खुली चुनौती है। हमारे भूभाग से होकर कोई भी देश कोरिडोर कैसे बना सकता है? यह कोरिडोर चीन को सीधे ग्वादर बन्दरगाह तक पहुंचने का मार्ग प्रदान करेगा जो हमारे देश के लिए अत्यन्त खतरनाक है। चीन और पाकिस्तान की भारत को चारों तरफ़ से घेरने की रणनीति का यह एक सुविचारित हिस्सा है। चीन पहले से ही हमें घेरने के लिए म्यामार और श्रीलंका में अपने सैनिक ठिकाने स्थापित कर चुका है और मालदीव में अपने प्रयोग के लिए हवाई अड्डा बना चुका है। नेपाल में चीन समर्थक पार्टियों का ही बोलबाला है। निर्वाचित सरकार बनने के बाद वह जब चाहे नेपाल का इस्तेमाल अपने हित में कर सकता है। ऐसे में चीन-पाक कोरिडोर का निर्माण हमारी सुरक्षा के लिए कितना खतरनाक हो सकता है, यह छोटी सी बात हमारी समझ में क्यों नहीं आती?

हम अपने भूभाग में दूसरे देशों द्वारा किसी भी अनधिकृत निर्माण की इज़ाज़त नहीं दे सकते। हमें चीन और पाकिस्तान को स्पष्ट चेतावनी देनी चाहिए। इसके बावजूद भी अगर वे अपनी ज़िद पर अड़े रहते हैं, तो भारत को सैन्य-शक्ति का इस्तेमाल कर इसे रोकना होगा। अगर हम इसे रोकने में कामयाब नहीं होते हैं तो इतिहास हमें कभी माफ़ नहीं करेगा। जो देश अपने इतिहास से सबक नहीं लेता है, उसका भूगोल बदल जाता है।

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विपिन किशोर सिन्हा
जन्मस्थान - ग्राम-बाल बंगरा, पो.-महाराज गंज, जिला-सिवान,बिहार. वर्तमान पता - लेन नं. ८सी, प्लाट नं. ७८, महामनापुरी, वाराणसी. शिक्षा - बी.टेक इन मेकेनिकल इंजीनियरिंग, काशी हिन्दू विश्वविद्यालय. व्यवसाय - अधिशासी अभियन्ता, उ.प्र.पावर कारपोरेशन लि., वाराणसी. साहित्यिक कृतियां - कहो कौन्तेय, शेष कथित रामकथा, स्मृति, क्या खोया क्या पाया (सभी उपन्यास), फ़ैसला (कहानी संग्रह), राम ने सीता परित्याग कभी किया ही नहीं (शोध पत्र), संदर्भ, अमराई एवं अभिव्यक्ति (कविता संग्रह)

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