महंगाई की मार

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अनिल त्यागी

महंगाई का शोर चीख पुकार में बदलने को है, पता नहीं किस दिन जनता मंहगाई के भूत से लड़ने के लिये अराजकता का रास्ता अपना ले, लेकिन इन सबसे बेफिकर केन्द्र की राजसत्ता विफल बैठकों के आयोजन भर कर रही है। विपक्ष सहयोग के स्थान पर सरकार की खिल्ली उड़ाने की मुद्रा में है। बेबस सरकार के प्रधानमत्री जितने गुना कोशिश की घोषणा करते है उतने ही गुना महंगाई बढ जाती है। खाद्य वस्तुओं की मंहगाई दर 18 प्रतिशत के आकड़े पार कर गई है। ऐसे में मनमोहन सिंह की आर्थिक विकास की दस प्रतिशत दर की घोषणा गरीबों के जले पर नमक छिडकती सी लगती है।

महंगाई का आइना व प्रतीक प्याज बन गया है, पिछले वर्ष चीनी ने कड़वाहट भर दी थी। शरद पवार साहब की कोशिशें सफल होती तो सरकार अब तक चीनी के मुद्दे पर ही विफल हो जाती पर सरकार की कोशिशे सफल हुई ,पर कितनी? बीस इक्कीस रूपये से जाकर बत्तीस रूपये पर थम गई यानि कि लगभग डेढ गुना पर जाकर रूकी। जनता ने पचास रूपये के बदले कुछ राहत पर संतोष किया फिर दालों ने आम आदमी को दल कर रख दिया आम दाल अस्सी से सौ तक चढ गई इस पर भी कुछ काबू हुआ तो प्याज परत दर परत सरकार को उधेड़ती नजर आ रहीं है।

किसी सब्जी का रेट बढना नया नही है सीजन के आधार पर आलू प्याज टमाटर महगे होते है तो जिसकी औकात हो वही खाता है बाकी सस्ता होने का इतजार करते है, भिंडी जब अस्सी और सौ के भाव बिकती है तो कोई मध्यम वर्ग का आदमी इसकी और देखता भी नहीं, आस्ट्रेलिया और रूस के सेव अभी तक हाईप्रोफाइल लोगों तक ही सीमित है। ऐसे में अकेले प्याज पर ही इतना बाबेला क्यो?

प्याज यदि चाहे तो लोग न भी खरीदे या कम खरीदे सम्भव है पर ऐसा नहीं है कि मंहगा सिर्फ प्याज ही है, आटा दाल चावल चीनी तेल घी नमक आलू जैसी सभी खाद्य वस्तुओं के दाम बढे ही नही रोज बढ रहे है। प्याज के दाम बहुत ही ज्यादा बढे तो लोगो ने उसे ही मुद्दा बना लिया खाद्य वस्तुए ही नही स्कूल पढाई कपडा सिलाई पहनना ओढना सब कुछ आम लोगो की पहुंच से बाहर होता जा रहा है। वैज हो या नान वेज सब पर महगाई की मार है।

केन्द्र सरकार राज्य सरकारों पर जिम्मेवारी थोपने के प्रयास में है पर आम आदमी इस तर्क को मानने को तैयार नहीं है। केन्द्र की बात कुछ सही भी नजर आती है, राज्यों के काम काज में दखल का अधिकार केन्द्र के पास नही है तभी तो केन्द्र को प्याज व्यापारियों पर छापे के लिये आयकर विभाग के अफसरों को लगाना पडा छापों को असर पडता नजर आया पर लोभी व्यापारियों ने हडताल के हथियार से इसे विफल करने का सफल प्रयास कर लिया अब या तो केन्द्र की सरकार तानाशाही के आस पास जाकर एस्मा जैसे अगले हथियार इस्तेमाल करें या कार्यवाही के लिये राज्यों का मुंह ताकती रहे। पर केन्द्र के नेताओं को ऐसे बेशर्म बयान देने से पहले सोचना चाहिये कि जहां-जहां व्यापारियो ने हडताल की नासिक और दिल्ली में वहां दोनों ही जगह राज्य सरकार भी कांग्रेस की ही है। ऐसे में मंहगाई का ठीकरा राज्य सरकारों पर थोपना अजीब सा लगता है। सरकार केन्द्र की हो या राज्य की इच्छाशक्ति गंवा चुकी है, बाजार को बाजार के हाल पर और आम आदमी को बेहाल छोड़कर सरकार विकास दर के आंकडों का राग गाने के अलावा कुछ भी तो करती नजर नहीं आती।

सरकार ऐसी बचकानी घोषणाएं करती है जिनसे लगता है कि भारत एक देश नही अलग अलग राज्य भर है। दिल्ली में प्याज पर सबसीडी देने का ऐलान कितना अलगाववादी है, कालाबाजारी करें दिल्ली का व्यापारी, सस्ता प्याज खाये दिल्ली की जनता बाकी देश जाये भाड़ में. राहुल गांधी हमेशा से ही दो भारत की बात कहते आये है यहॉ यह दो भारत वही सरकार बना रही है जिसकी अहम पार्टी के ताकतवर महासचिव राहुल जी ही है। कश्‍मीर के लोगो को सस्ता सामान मुहैया कराने पर शोर मचाने वाली भाजपा दिल्ली मे हो रही इस अलगाववादी कोशिश पर शायद इसी लिये खामोश है क्योंकि उसके भी सारे बडे नेता दिल्ली में ही रहते है।

सरकार को गभीर होना होगा मंहगाई रोकने की ईमानदार कोशिश करनी होगी, सरकार को चाहिये कि खाद्य पदार्थो का खरीद मूल्य निर्धारित करते समय उसका विक्रय मूल्य भी घोषित करने की नीति अपनाये यह कोई ज्यादा मशक्कत का काम भी नहीं है।और यदि प्राकृतिक आपदाओं या अन्य किन्ही भी कारणों से यदि खरीद मुल्य और समर्थन मूल्य में बढोतरी हो तो उसे सब्सीडी का अन्तर देकर पूरा किया जाये इससे सरकार का कोई नुकसान भी नहीं होने वाला। यदि सब्सिडी देनी पडी तो मंहगाई भत्ते कम होंगे और सरकार कुल मिलाकर फायदे में ही रहेगी।

सरकार को होने वाली फसलों का सही अनुमान लगाना होगा जिससे की मूल्य निर्धारित करने में निश्चितता हो और आम आदमी अपना बजट सही बना सके।

सरकार को खाद्य पदार्थो के वायदा बाजार और सट्टेबाजी पर पूरी तरह रोक लगानी होगी जिससे की व्यापारी इन पदार्थो की नकली किल्लत दिखाकर मनमाने दाम वसूल न कर सके।

दलहन और तिलहन की फसलों को बढावा देना होगा और इन वस्तुओं को सही समय पर पर्याप्त आयात कर देश की जरूरत के मुताबिक भंडारण की नीति अपनानी होगी। खाद्य पदार्थों के निर्यात को निरूत्साहित करने के उपाय करने होंगे।

खाद्य पदार्थों के अपमिश्रण और उनसे सम्बन्धित सभी अपराधो के लिय कडे दण्ड निर्धारित करने होंगे, खाद्य सुरक्षा बिल जैसे उपाय जल्दी से जल्दी अपनाने होंगे इसके लिये राजनेताओं को भी पक्ष विपक्ष के पचडे से बाहर आकर देश हित मे एकता दिखानी होंगी। सरकार संकल्प तो करे देश के लोग उसके साथ होंगे।

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