क्षेत्रपाल शर्मा
(वार्ष्णेय महाविद्यालय अलीगढ में सांस्कृतिक कार्यक्रम में 02 फ़रवरी 12 को संबोधन)
पर पीड़ा अघ….
साथ ही कवि भवानी प्रसाद मिश्र जी की कविता ” बुनी हुई रस्सी ” की निहित भावना को समझाते हुए मुख्य अतिथि के रूप में उक्त कार्यक्रम में यह रेखांकित किया, कि युवक इस शिक्षा मंदिर और उसके बाद के समय में भी कुल दीपक के रूप में उभरें और जीवन अगरबत्ती की मानिन्द जिएं . जहां रहें वातावरण महके. इस संदर्भ में अपने छात्र जीवन में नवाब छतारी साहब के एक भाषण के अंश को याद करते हुए कहा कि प्रकृति में गौर से देखोगे तो एक डिजाइन है यह डिजाइन बरकरार रहनी चाहिए और पर्यावरण दूषित न हो एसा कोई काम नहीं करना चाहिए ,यही लय है जहां समाज और नेचर में यह लय नहीं होगी तो वही प्रलय है.युवक इन को ध्यान रखतेहुए समाज के काम आएं, जो रेशे रस्सी के काम नहीं आते उन्हें रस्सी बुनने वाला रद्दी के हवाले कर देता है , उसी तरह समाज एसे तत्वों को जो किसी काम के नहीं ,हाशिए में कर देता है.युवक अपने परिवार वालों की अपेक्षाओं पर खरे उतरें. मार्ग में आने वाली झरबेरी जैसे अवांछित तत्वों, झान्सों एवं शोषण से अपनी हिफ़ाजत करते हुए आगे बढें युवक , सरल, परिश्रमी, मितव्ययी, विनीत स्वाभिमानी, कर्तव्यपरायण और आलस्यत्यागी बनें , अपने जीवन को साइंटिफ़िक सोच पर आधारित करें.वेलेन्टाइन . मोबाइल पर ज्यादा खर्च , एफ़ जनरेसन और तड़क भड़क वाला और आर्टीफ़ीसिअल जैसी कुरीतियों से अपने को दूर रखें जिससे उनके जीवन में तनाव कम से कम हो. बड़े लोगों की गलतियां देखकर प्रतिक्रियावादी भी न हों.
कोई भी आदत एसी न पालें जिससे तनाव उत्पन्न हो .अहंकार से भी अपने आप को दूर रखें और जीवन में कोई भी संकट स्थाई नहीं होता( इस पर याद दिलाया गया किशोर कुमार का गाया फ़िल्मी गीत , थक जाना नहीं तुम कहीं हार के…..) इस विचार को सदैव ध्यान में रखें.और अद्यतन जानकारी विशेषकर कम्प्यूटर पर हिन्दी प्रयोग की जानकारी रखें.कम्प्यूटर पर एक ही आपरेटिंग सोफ़्ट्वेअर रखें. लाइनक्स Linux परopen office org 3पर हिन्दी का विकल्प है अथवा इसे गूगल सर्च से डाउन्लोड कर लें . फ़्री एन्टीवाइरस www.avast.com से डाउनलोड कर लें, एक साथ दो एन्टीवाइरस न रखें .
फ़्री हिन्दी सीडी जिसको अपना नाम पता आदि सब्मिट करके घर मंगाने के लिए www.ildc.in साइट पर जाएं जिस पर फ़ोन्ट कन्वर्टर आसानी से उपलब्ध हैं . साथ ही दस्तावेजों के बदलने के लिए फ़्री ओनलाइन सेवा www.file.investintech.com की मदद ली जा सकती है.
और आप हिन्दी उपन्यास , हिन्दी पत्रिकाएं,अखबार आदि के लिए इन साइटों पर आप जा सकते हैं
www.pravakta.com देखें.
ओडिओ और वीडिओ फ़ाईलें कन्वर्ट करने के लिए milksoft साइट पर उपलब्ध है .हिन्दी टाइपिंग फ़ोनेटिक रूप से करने के लिए (यद्यपि इन्स्क्रिप्ट मेथड से आप हिन्दी टाइप सीखेंगे तो वह भी आसान है,)
www.baraha.com ,or google hindi input setup जो गूगल के मोर आप्सन को ड्रोप करने पर मिलेगासे डाउन्लोड किया जा सकेगा.
यह कार्यक्रम समाज शास्त्र विभाग द्वारा आयोजित किया गया था ,जिसमें एम ए समाज शास्त्र के छात्र -छात्राओं की सक्रिय सहभागिता थी. विभाग प्रभारी डा. कष्णा अग्रवाल, डा. मुकेश चन्द, डा . अनिल कुमार वार्ष्णेय ,डा एम वाई खान,डा. निर्मला कुमारी , डा सहदेव शर्मा , डा. उमेश दीक्षित व ऋतिका भट्ट आदि उपस्थित थे.
कवि अयोध्या सिंह उपाध्याय हरिओध की कविता बूंद की व्यथा का जिक्र करते हुए बताया कि जब समय साथ देगा तो यह अवसर आप को सफ़लता का अवश्य हासिल होगा. आप एक दिन जरूर कामयाब होंगे.सीप के मोती बनोगे.
श्री मैथिली शरण गुप्त जी ने कहा है कि
हम कौन थे क्या हो गए अब और क्या होंगे अभी आओ …
आप कल के जिम्मेदार नागरिक हैं , आप में से ही आगे उच्च अधिकारी बनेंगे. इसी स्वर्णिम भविष्य की शुभकामनाओं के साथ इस व्याख्यान का विराम हुआ .
श्री क्षेत्रपाल शर्मा का आलेख – ‘युवक सामाजिक मूल्यों को स्थापित करें’ कालेज के युवकों में दिया व्याख्यान है. इस पर इक़बाल हिन्दुस्तानी की प्रतिक्रिया जरूरत से ज्यादा तल्ख़ है. मेरा सीधा सीधा प्रश्न है कि क्या देश के युवकों को प्रेरित करना (भले ही समाज भ्रष्ट हो) जरूरी नहीं है? दूसरा प्रश्न यह है कि कौनसा ऐसा समाज है जो भ्रष्ट से भ्रष्ट होते हुए भी अपने अन्दर से समाधान नहीं देता? हिन्दुस्तानीजी इतना भी नकारात्मक होने की क्या वजह है? सही तरह से प्रेरित युवक पूरा सिस्टम क्या पूरी दुनिया भी बदल सकता है. प्रश्न यह है कि क्या हम अपने युवकों पर निवेश करना चाहते हैं अथवा उन्हें भी संदेह की नज़र से देखना चाहते हैं? कालेज और स्कूल हमारे वे अस्तबल हैं जहाँ भविष्य के हिंदुस्तान की नस्ल तैयार होती है .इन्हीं ज़गहों पर प्रेरणा ,प्रोत्साहन और हौसला अफजाई करना अच्छी बात है. हिन्दुस्तानी नाम लिखने से हम हिन्दुस्तानी नहीं हो सकते. सच्चा हिन्दुस्तानी वह है जो इन युवकों के साथ कन्धा से कंधा मिला कर इनके दुःख और दर्द में शरीक हो .लिखने मात्र से जज्वा पैदा नहीं होता. जज्वा अन्दर से व्यवहार और कर्म से व्यक्त होना चाहिए.. यही वक़्त की सबसे बड़ी ज़रुरत है. युवकों के बीच दी गए इस भाषण के लिए मैं शर्माजी को तहेदिल से इस आशा के साथ साधुवाद देना चाहता हूँ कि लोग मात्र खोखला लेखन न करें व्यावहारिक दृष्टि से युवकों के मध्य जाएँ.
युवक भी इसी भ्रष्ट समाज का अंग हैं ऐसे में पूरा सिस्टम बदले बिना वे कैसे सामाजिक मूल्य स्थापित कर सकते हैं?