अल्पसंख्यकों की सुरक्षा और हितों को लेकर नया कानून

अमेरिका का नया फंडा

पाकिस्तान में घुस कर लादेन को मारने के कारनामे से उत्साहित होकर एक बार फिर दूसरे देशों के अंदरूनी मामलो में दखल देने के लिये अमेरिका एक नया फंडा (कानून) तैयार कर रहा है। जिस में इस बार उस के निशाने पर भारत सहित पूर्व एशिया और दक्षिण मध्य एशिया के देश है। अमेरिका एक नये कानून के तहत इन देशों मे अल्पसंख्यको की सुरक्षा और इन के हितो की खुद निगरानी करने के लिये एक विशेष दूत की नियुक्ति करने की योजना बना रहा है। अमेरिकी संसद में पिछले दिनो एक बिल अमेरिकी कांग्रेस (संसद) में सांसद फैंरक वॉल्फ और अन्ना ईषू ने मंजूरी के लिये पेश किया है। प्रस्तावित बिल के मुताबिक अमंेरिका का एक विशेष राजदूत धार्मिक रूप से अल्पसंख्यको के धर्म से जुडे अधिकारो को बढावा देगा। अल्पसंख्यको के अधिकारो के हनन पर ये दूत अमेरिकी सरकार को अल्पसंख्यको के अधिकार की रक्षा के लिये उचित कार्यवाही करने के लिये सिफारिश करेगा। खास तौर पर ये दूत अपने अपने देशों में देश के नागरिको के साथ धार्मिक भेदभाव बरतने वाले देशों और उन देशों के उन संगठनो पर भी नजर रखेगा जो अल्पसंख्यको के साथ धार्मिक मामलो को लेकर हिंसा भडकाने की कोशिश करते है और इन हिंसाओ में अल्पसंख्यको का जानमाल का बडा नुकसान होता है। ऐसे समुदायो की आर्थिक और सुरक्षा संबंधी जरूरतो को पूरा करने के लिये ये दूत विशेष तौर पर काम करेगा। यदि अमेरिका काँग्रेस संसद इस नये बिल को पास कर देती है तो भारत में अल्पसंख्यको से भेदभाव की बरतने वाले तमाम राजनीतिक और गैर राजनीतिक संगठनो पर अमेरिका की गाज गिर सकती है। इस के अलावा नियुक्त अमेरिकी दूत अल्पसंख्यको के तमाम गंभीर मुद्दो को अंतरराष्ट्रीय मंचो पर भी उठायेगा। इस अमेरिकी बिल के मुताबिक इस विशेष दूत के लिये ये जरूरी होगा कि वह मानवधिकारो और धार्मिक आजादी के लिये अल्पसंख्यको के हितो में काम करने वाला दुनिया में एक जाना पहचाना चेहरा हो। इस के अलावा ये दूत दुनिया में तमाम अमेरिकी राजदूतो के समकक्ष होगा।

इस नये बिल में भारत का विशेष तौर पर जिक्र किया गया है। आखिर इस बिल के पीछे अमेरिका की क्या मंशा है अभी कुछ नही कहा जा सकता। आखिर अमेरिका इस बिल की आड में कौन सा खेल खेलना चाहता है अभी ये भी कहना संभव नही हो पा रहा है पर इतना जरूर कहा जा सकता है कि अमेरिका इस बिल के सहारे ये संदेश जरूर देना चाह रहा है कि वो भारत के मुसलमानो सहित दुनिया के तमाम मुसलमानो के हितो के लिये काम करना चाहता है। अमेरिका इस बिल के मुताबिक भारत में अल्पसंख्यको की स्थिति पर विशेष निगाह रखेगा। अमेरिका इस बिल और विशेष तौर पर भारत को इस बिल में इतनी अहमीयत क्यो दे रहा है ये तो वक्त आने पर ही पता चलेगा परन्तु अमेरिकी संसद इस बिल से काफी उत्साहित है। इस उत्साह का अन्दाज इस बात से लगाया सकता है कि इस विशेष दूत के कामकाज पर अमेरिका हर साल चार करोड रूपये से ज्यादा खर्च करने को तैयार है। भारत के जो लोग इस बिल पर अभी से अपनी नजर रखे है उन लोगो का ये मानना है कि अगर अमेरिकी संसद में ये बिल पास हो जाता है तो अमेरिका अपने इस विशेष दूत के जरिये भारत में आरएसएस सहित सिमी और तमाम ऐसे राजनीतिक संगठनो और राजनेताओ पर नजर रख सकता है जिन पर अल्पसंख्यको पर अत्याचार करने के साथ ही अपने अपने राज्यो में धार्मिक दंगे भडकाने के अरोप होने के साथ ही इन पर देश के विभिन्न थानो में मामले दर्ज है। इस नये कानून के जरिये अमेरिका अपने विशेष दूत के जरिये खास तौर से भारत में संघ परिवार से जुडे तमाम संगठनो की गतिविधियो पर नजर रखना चाहता है। क्यो की इन संगठनो द्वारा बार बार ईसाई मिशनरियो और ईसाईयो पर भारत में बार बार हो रहे हमलो से अमेरिका भारत में ईसाईयो की स्थिति मजबूत करना चाहता है। क्यो कि भारत में अल्पसंख्यको पर संघ परिवार और उस से जुडे तमाम संगठनो और इन से जुडो लोगो पर आतंकवादी और अल्पसंख्यक विरोधी गतिविधियो में शामिल होने के आरोप लगते रहते है। कई लोगो पर तो भारत की अदालतो में मुक्दमे चल रहें है। हालाकि आरएसएस खुद को राष्ट्रवादी संगठन बताता है और ये कहता है कि वो देश मुसलमानो के खिलाफ नही है। पर पिछले दिनो देश की जांच एजेंसियो द्वारा की गई जांच से ये बात सिद्व हो चुकी है कि भारत में सिमी से ज्यादा खतरनाक संघ है। मुस्लिम आतंकवाद से ज्यादा खतरनाक हिन्दू आतंवाद है। संघ खुद को पक्का सच्चा देश भक्त बताता है किन्तु आजादी के बाद से यदि संघ की देश भक्ति पर नजर डाले तो महात्मा गॉधी कि हत्या जिस नाथू राम गोडसे ने की वो संघ का कार्यकर्ता था। संघ के कार्यालय पर तिरंगे की जगह भगवा लहराया जाता है। संघ हमेशा भारत को हिन्दू राष्ट्र बनाने की बात करता है। इस पर यदि और गहराई से मन्थन किया जाये तो सीधे सीधे ये भी कह सकते है कि आज के भारत से उसे किसी प्रकार का सरोकार नही उसे तो वो भारत चाहिये जिस में हिन्दू राष्ट्र हो हिद्वुत्व का राज हो। ये कैसी देश भक्ति है ये कैसा देश प्रेम है।

जानकारो का मानना है कि ये बिल जल्द ही कानून की शक्ल ले लेगा। यदि ऐसा होता है तो आरएसएस सहित उस से जुडे तमाम संगठन अब ज्यादा दिनो तक अल्पसंख्यको पर देश में अत्याचार और झूठे आरोप लगा कर राष्ट्रीय और अंर्तराष्ट्रीय स्तर पर लोगो की ऑखो में धूल नही झोक सकते। जैसा कि पिछले दिनो आतंकवादी गतिविधियों व बम धमाको की जॉच से जूडे मामलो में आर्श्चजनक रूप से संघ और उस से जुडे संगठनो पर आरोप लगे थे। देश के हिन्दू मुस्लिम सौहार्द को नुकसान पहॅुचाने के लिये आरएसएस ने मुस्लिम इबादतगाहो में बम रखे। मालेगॉव विस्फोट से सांध्वी प्रज्ञा की मोटर साईकिल का उपयोग किए जाने के सबूत और अन्य लोगो में लेफिटनेंट कर्नल प्रसाद श्रीकांत पुरोहित, स्वामी दयानन्द पांडे, और सेवानिवृत मेजर उपाध्याय की इस में सहभागिता के सम्बन्ध में जॉच के बाद पूरी दुनिया के सामने हिन्दू आतंकवाद सामने आया ओर सामने आया आरएसएस के कुछ कार्यकर्ताओ का असली चेहरा। जनवरी 2008 में तमिलनाडू के तेनकासी में आरएसएस कार्यालय पर हुए पाईप बम धमाको को मुस्लिम जेहादी लोगो ने अन्जाम दिया संघ ने पूरे जोर शोर से इस का प्रचार किया किन्तु जॉच होने के बाद जब इस मामले में हिन्दू लडको के नाम सामने आने लगे तो इसे दबा दिया गया। 23 अक्टूबर को इडियन एक्सप्रेस ने अपने अंक में साफ साफ लिखा कि मालेगॉव व मोडासा में हुए बम धमाको में शामिल लोगो का संबंध अखिल भारतीय विधार्थी परिशद से है। ये सारे के सारे लोग और सारे के सारे संगठन वो है जो कि भारत को हिन्दू राष्ट्र बनाना चाहते है हिदुत्व और हिन्दू राष्ट्र की विचारधारा के सर्मथक है। देश के बेगुनाह नागरिको का खून बहाने वाले ये लोग क्या राष्ट्रवादी है। इन बम विस्फोटो में शामिल संगठन राष्ट्रवादी संगठन हो सकते है।

वही आखिर अमेरिका आज किस मुॅह से किन अल्पसंख्यको अधिकारो की बात कर रहा है आज दुनिया के सामने अमेरिका की छवि दिन प्रतिदिन खराब होती जा रही है। इस की कई वजह है। छोटे देशों पर अमेरिकी आतंक, रोज रोज अपनी दादागिरी से अर्न्तराष्ट्रीय स्तर पर मानवधिकारो का हनन, अमेरिकी नागरिको का खुद को असुरक्षित महसूस करना, आतंकवाद के नाम पर बेकसूर देशों पर बमबारी करना। अमेरिकी जेलो में बन्द कैदियो के साथ जानवरो से बदतर व्यवहार अमेरिकी ग्राफ को नीचे लाने में काफी हद तक जिम्मेदार है। इस बिल में जिन देशों में अल्पसंख्यको पर निगरानी रखने की योजना तैयार की गई है उन मे भारत के अलावा पाकिस्तान भी शामिल है। जब कि चीन ने अमेरिका के इस बिल को खुले आम चुनौती दे डाली है। अमेरिकी संसद में मंजूरी के लिये पेश इस बिल का नाम ’’हृाट प्रोवाइड फॉर द इस्टैब्लिशमेंट ऑफ द स्पेशल ऑनवॉय टू प्रमोट फ्रीडम ऑफ रिलीजियस माइनॉरिटीज इन द नियर ईस्ट एंड साउथ सेंट्रल एशिया रखा गया ळें इस बिल को अमेरिका की दोनो पार्टिया-डेमोक्रैटिक और रिपब्लिकन का भरपूर सर्मथन हासिल है। इस के अलावा अमेरिका के परम्परावादी ईसाई इस बिल को जोरदार सर्मथन दे रहे है। देखना ये है कि ये बिल भारत सहित दुनिया के विभिन्न देशों में अल्पसंख्यको के हितो की कितनी रक्षा कर पाता है।

 

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