कश्‍मीर के वार्ताकार बनवाएंगे एक और पाकिस्तान / नरेंद्र सहगल

नरेन्द्र सहगल 

जम्मू-कश्मीर को भारतीय संविधान के दायरे से बाहर करने (1952) तुष्टीकरण की प्रतीक और अलगाववाद की जनक अस्थाई धारा 370 को विशेष कहने, भारतीय सुरक्षा बलों की वफादारी पर प्रश्नचिन्ह लगाने, पाकिस्तान को कश्मीर मुद्दे पर एक पक्ष बनाने, पाक अधिकृत कश्मीर को पाक प्रशासित मानने और प्रदेश के 80 प्रतिशत देशभक्त नागरिकों की अनदेखी करके मात्र 20 प्रतिशत पृथकतावादियों की ख्वाइशों/ जज्बातों की कदर करने जैसी सिफारिशें किसी देशद्रोह से कम नहीं हैं।

लगभग डेढ़ वर्ष पूर्व केन्द्र सरकार द्वारा नियुक्त वार्ताकारों ने कश्मीर समस्या के समाधान के लिए एक रपट तैयार की है। यदि मुस्लिम तुष्टीकरण में डूबी सरकार ने उसे मान लिया तो देश के दूसरे विभाजन की नींव तैयार हो जाएगी। यह रपट जम्मू-कश्मीर की अस्सी प्रतिशत जनसंख्या की इच्छाओं, जरूरतों की अनदेखी करके मात्र बीस प्रतिशत संदिग्ध लोगों की भारत विरोधी मांगों के आधार पर बनाई गई है। तथाकथित प्रगतिशील वार्ताकारों द्वारा प्रस्तुत यह रपट स्वतंत्र कश्मीर राष्ट्र का रोड मैप है।

रपट का आधार अलगाववाद

1952-53 में जम्मू केन्द्रित देशव्यापी प्रजा परिषद महाआंदोलन के झंडे तले डा. श्यामा प्रसाद मुखर्जी ने जम्मू-कश्मीर को भारत का अभिन्न अंग बनाए रखने के लिए अपना बलिदान देकर जो जमीन तैयार की थी उसी जमीन को बंजर बनाने के लिए अलगाववादी मनोवृत्ति वाले वार्ताकारों ने यह रपट लिख दी है। इस रपट के माध्यम से भारत के राष्ट्रपति, संसद, संविधान, राष्ट्र ध्वज, सेना के अस्तित्व पर ही प्रश्न चिन्ह लगा दिए गए हैं। देश के संवैधानिक संघीय ढांचे अर्थात एक विधान, एक निशान और एक प्रधान की मूल भावना को चुनौती दी गई है।

आईएसआई के एक एजेंट गुलाम नबी फाई के हमदर्द दोस्त दिलीप पडगांवकर, वामपंथी चिंतक एम. एम. अंसारी और मैकाले परंपरा की शिक्षाविद् राधा कुमार ने अपनी रपट में जो सिफारिशें की हैं वे सभी कश्मीर केन्द्रित राजनीतिक दलों, अलगाववादी संगठनों, आतंकी गुटों और कट्टरपंथी मजहबी जमातों द्वारा पिछले 64 वर्षों से उठाई जा रहीं भारत विरोधी मांगें और सरकार, सेना विरोधी लगाए जा रहे नारे हैं। स्वायत्तता, स्वशासन, आजादी, पाकिस्तान में विलय, भारतीय सेना की वापसी, सुरक्षा बलों के विशेषाधिकारों की समाप्ति, जेलों में बंद आतंकियों की रिहाई, पाकिस्तान गए कश्मीरी आतंकी युवकों की घर वापसी, अनियंत्रित नियंत्रण रेखा और जम्मू-कश्मीर एक विवादित राज्य इत्यादि सभी अलगाववादी जज्बातों, ख्वाइशों को इस रपट का आधार बनाया गया है।

तुष्टीकरण की पराकाष्ठा

रपट के अनुसार एक संवैधानिक समिति का गठन होगा जो 1953 के पहले की स्थिति बहाल करेगी। 1952 के बाद भारतीय संसद द्वारा बनाए गए एवं जम्मू-कश्मीर में लागू सभी कानूनों को वापस लिया जाएगा जो धारा 370 के तहत जम्मू-कश्मीर को दी गई स्वायत्तता का हनन करते हैं। इस सीमावर्ती प्रदेश के विशेष दर्जे को स्थाई बनाए रखने के लिए धारा 370 के साथ जुड़े अस्थाई शब्द को विशेष शब्द में बदल दिया जाएगा, ताकि स्वायत्तता कायम रह सके।

रपट में स्पष्ट कहा गया है कि प्रदेश में तैनात भारतीय सेना और अर्द्धसैनिक बलों की टुकडि़यां कम की जाएं और उनके विशेषाधिकारों को समाप्त किया जाए। वार्ताकार कहते हैं कि राज्य सरकार के मनपसंद का राज्यपाल प्रदेश में होना चाहिए। जम्मू-कश्मीर में कार्यरत अखिल भारतीय सेवाओं के अधिकारियों की संख्या पहले घटाई जाए और बाद में समाप्त कर दी जाए। जिन्होंने पहली बार अपराध किया है उनके केस (एफ आई आर) रद्द किए जाएं। अर्थात् एक-दो विस्फोट माफ हों, भले ही उनमें सौ से ज्यादा बेगुनाह मारे गए हों।

पाकिस्तान का समर्थन

रपट की यह भी एक सिफारिश है कि कश्मीर से संबंधित किसी भी बातचीत में पाकिस्तान, आतंकी कमांडरों और अलगाववादी नेताओं को भी शामिल किया जाए। रपट में पाक अधिकृत कश्मीर (पीओके) को पाक प्रशासित जम्मू-कश्मीर (पीएजेके) कहा गया है। वार्ताकारों के अनुसार कश्मीर विषय में पाकिस्तान भी एक पार्टी है और पाकिस्तान ने दो तिहाई कश्मीर पर जबरन अधिकार नहीं किया, बल्कि पाकिस्तान का वहां शासन है, जो वास्तविकता है।

ध्यान से देखें तो स्पष्ट होगा कि वार्ताकारों ने पूरे जम्मू-कश्मीर को आजाद मुल्क की मान्यता दे दी है। इसी मान्यता के मद्देनजर रपट में कहा गया है कि पीएजेके समेत पूरे जम्मू-कश्मीर को एक इकाई माना जाए। इसी एक सिफारिश में सारे के सारे जम्मू-कश्मीर को पाकिस्तान के हवाले करने के खतरनाक इरादे की गंध आती है। पाकिस्तान के जबरन कब्जे वाले कश्मीर को पाक प्रशासित जम्मू-कश्मीर मानकर वार्ताकारों ने भारतीय संसद के उस सर्वसम्मत प्रस्ताव को भी अमान्य कर दिया है जिसमें कहा गया था कि सम्पूर्ण जम्मू-कश्मीर भारत का अभिन्न भाग है। 1994 में पारित इस प्रस्ताव में पाक अधिकृत कश्मीर को वापस लेने का संकल्प भी दुहराया गया था।

राष्ट्रद्रोह की झलक

कश्मीर विषय पर पाकिस्तान को भी एक पक्ष मानकर वार्ताकारों ने जहां जम्मू-कश्मीर में सक्रिय देशद्रोही अलगाववादियों के आगे घुटने टेके हैं, वहीं उन्होंने पाकिस्तान द्वारा कश्मीर को हड़पने के लिए 1947, 1965, 1972 और 1999 में भारत पर किए गए हमलों को भी भुलाकर पाकिस्तान के सब गुनाह माफ कर दिए हैं। भारत विभाजन की वस्तुस्थिति से पूर्णतया अनभिज्ञ इन तीनों वार्ताकारों ने महाराजा हरिसिंह द्वारा 26 अक्तूबर, 1947 को सम्पूर्ण जम्मू-कश्मीर का भारत में किया गया विलय, शेख अब्दुल्ला के देशद्रोह को विफल करने वाला प्रजा परिषद् का आंदोलन, 1972 में हुआ भारत-पाक शिमला समझौता, 1975 में हुआ इन्दिरा-शेख समझौता और 1994 में पारित भारतीय संसद का प्रस्ताव इत्यादि सब कुछ ठुकराकर जो रपट पेश की है वह राष्ट्रद्रोह का जीता-जागता दस्तावेज है।

केन्द्र सरकार के इशारे और सहायता से लिख दी गई 123 पृष्ठों की इस रपट में केवल अलगाववादियों की मंशा, केन्द्र सरकार का एकतरफा दृष्टिकोण और पाकिस्तान के जन्मजात इरादों की चिंता की गई है। जो लोग भारत के राष्ट्र ध्वज को जलाते हैं, संविधान फाड़ते हैं और सुरक्षा बलों पर हमला करते हैं, उनकी जी-हुजूरी की गई है। यह रपट उन लोगों का घोर अपमान है, जो आज तक राष्ट्रीय ध्वज तिरंगे को थामकर भारत माता की जय के उद्घोष करते हुए जम्मू-कश्मीर के लिए जूझते रहे, मरते रहे।

कांग्रेस और एनसी की मिलीभगत

वार्ताकारों ने जम्मू-कश्मीर की आम जनता के अनेक प्रतिनिधिमंडलों से वार्ता करने का नाटक तो जरूर किया है, परंतु महत्व उन्हीं लोगों को दिया है जो भारत के संविधान की सौगंध खाकर सत्ता पर काबिज हैं (कांग्रेस के समर्थन से) और भारत के संविधान और संसद को ही धता बताकर स्वायत्तता की पुरजोर मांग कर रहे हैं। उल्लेखनीय है कि जम्मू-कश्मीर के मुख्यमंत्री उमर अब्दुल्ला ने अनेक बार अपने दल नेशनल कांफ्रेंस (एन.सी.) के राजनीतिक एजेंडे श्पूर्ण स्वायत्तता की मांग की है। स्वायत्तता अर्थात् 1953 के पूर्व की राजनीतिक एवं संवैधानिक व्यवस्था। इस रपट से पता चलता है कि इसे केन्द्र की कांग्रेसी सरकार, नेशनल कांफ्रेंस, आईएसआई के एजेंटों और तीनों वार्ताकारों की मिलीभगत से घढ़ा गया है।

अगर यह मिलीभगत न होती तो जम्मू-कश्मीर की 80 प्रतिशत भारत-भक्त जनता की जरूरतों और अधिकारों को नजरअंदाज न किया जाता। देश विभाजन के समय पाकिस्तान, पीओके से आए लाखों लोगों की नागरिकता का लटकता मुद्दा, तीन- चार युद्धों में शरणार्थी बने सीमांत क्षेत्रों के देशभक्त नागरिकों का पुनर्वास, जम्मू और लद्दाख के लोगों के साथ हो रहा घोर पक्षपात, उनके राजनीतिक, आर्थिक, सामाजिक अधिकारों का हनन, पूरे प्रदेश में व्याप्त आतंकवाद, कश्मीर घाटी से उजाड़ दिए गए चार लाख कश्मीरी हिन्दुओं की सम्मानजनक एवं सुरक्षित घरवापसी और प्रांत के लोगों की अनेकविध जातिगत कठिनाइयां इत्यादि किसी भी समस्या का समाधान नहीं बताया इन सरकारी वार्ताकारों ने।

फसाद की जड़ धारा 370

इसे देश और जनता का दुर्भाग्य ही कहा जाएगा कि पिछले छह दशकों के अनुभवों के बावजूद भी अधिकांश राजनीतिक दलों को अभी तक यही समझ में नहीं आया कि एक विशेष मजहबी समूह के बहुमत के आगे झुककर जम्मू-कश्मीर को धारा 370 के तहत दिया गया विशेष दर्जा और अपना अलग प्रांतीय संविधान ही वास्तव में कश्मीर की वर्तमान समस्या की जड़ है। संविधान की इसी अस्थाई धारा 370 को वार्ताकारों ने अब विशेष धारा बनाकर जम्मू-कश्मीर को पूर्ण स्वायत्तता देने की सिफारिश की है। क्या यह भारत द्वारा मान्य चार सिद्धांतों, राजनीतिक व्यवस्थाओं-पंथ निरपेक्षता, एक राष्ट्रीयता, संघीय ढांचा और लोकतंत्र का उल्लंघन एवं अपमान नहीं है?

यह एक सच्चाई है कि भारतीय संविधान की धारा 370 के अंतर्गत जम्मू-कश्मीर के अलग संविधान ने कश्मीर घाटी के अधिकांश मुस्लिम युवकों को भारत की मुख्य राष्ट्रीय धारा से जुड़ने नहीं दिया। प्रादेशिक संविधान की आड़ लेकर जम्मू-कश्मीर के सभी कट्टरपंथी दल और कश्मीर केन्द्रित सरकारें भारत सरकार द्वारा संचालित राष्ट्रीय महत्व के प्रकल्पों और योजनाओं को स्वीकार नहीं करते। भारत की संसद में पारित पूजा स्थल विधेयक, दल बदल कानून और सरकारी जन्म नियंत्रण कानून को जम्मू-कश्मीर में लागू नहीं किया जा सकता।

देशघातक और अव्यवहारिक सिफारिश

सरकारी वार्ताकारों ने आतंकग्रस्त प्रदेश से सेना की वापसी और अर्धसैनिक सुरक्षा बलों के उन विशेषाधिकारों को समाप्त करने की सिफारिश की है जिनके बिना आधुनिक हथियारों से सुसज्जित प्रशिक्षित आतंकियों का न तो सफाया किया जा सकता है और न ही सामना। आतंकी अड्डों पर छापा मारने, गोली चलाने एवं आतंकियों को गिरफ्तार करने के लिए सामूहिक कार्रवाई के अधिकारों के बिना सुरक्षा बल स्थानीय पुलिस के अधीन हो जाएंगे जिसमें पाक समर्थक तत्वों की भरमार है। वैसे भी जम्मू-कश्मीर पुलिस इतनी सक्षम और प्रशिक्षित नहीं है जो पाकिस्तानी घुसपैठियों से निपट सके।

अलगाववादी, आतंकी संगठन तो चाहते हैं कि भारतीय सुरक्षा बलों को कानून के तहत इतना निर्बल बना दिया जाए कि वे मुजाहिद्दीनों (स्वतंत्रता सेनानियों) के आगे एक तरह से समर्पण कर दें। विशेषाधिकारों की समाप्ति पर आतंकियों के साथ लड़ते हुए शहीद होने वाले सुरक्षा जवान के परिवार को उस आर्थिक मदद से भी वंचित होना पड़ेगा जो सीमा पर युद्ध के समय शहीद होने वाले सैनिक को मिलती है।

क्या आजाद मुल्क बनेगा कश्मीर?

1953 से पूर्व की राज्य व्यवस्था की सिफारिश करना तो सीधे तौर पर देशद्रोह की श्रेणी में आता है। इस तरह की मांग, सिफारिश का अर्थ है कश्मीर में भारतीय प्रभुसत्ता को चुनौती देना, देश के किसी प्रदेश को भारतीय संघ से तोड़ने का प्रयास करना और भारत के राष्ट्रीय ध्वज, राष्ट्रीय गान, संविधान एवं संसद का विरोध करना। सर्वविदित है कि 1953 से लेकर आज तक भारत सरकार ने अनेक संवैधानिक संशोधनों द्वारा जम्मू-कश्मीर को भारत के साथ जोड़कर ढेरों राजनीतिक एवं आर्थिक सुविधाएं दी हैं। जम्मू-कश्मीर के लोगों द्वारा चुनी गई संविधान सभा ने 14 फरवरी, 1954 को प्रदेश के भारत में विलय पर अपनी स्वीकृति दे दी थी। 1956 में भारत की केन्द्रीय सत्ता ने संविधान में सातवां संशोधन करके जम्मू-कश्मीर को देश का अभिन्न हिस्सा बना लिया।

इसी तरह 1960 में जम्मू-कश्मीर के उच्च न्यायालय को भारत के सर्वोच्च न्यायालय के अधिकार क्षेत्र में लाया गया। 1964 में प्रदेश में लागू भारतीय संविधान की धाराओं 356-357 के अंतर्गत राष्ट्रपति शासन की संवैधानिक व्यवस्था की गई। 1952 की संवैधानिक व्यवस्था में पहुंचकर जम्मू-कश्मीर पाकिस्तान के जबड़े में फंस जाएगा। पाक प्रेरित अलगाववादी संगठन यही तो चाहते हैं। तब यदि राष्ट्रपति शासन, भारतीय सुरक्षा बल और सर्वोच्च न्यायालय की जरूरत पड़ी तो क्या होगा? क्या जम्मू-कश्मीर को पाकिस्तान के हवाले कर देंगे?

भारत की अखण्डता से खिलवाड़

पाकिस्तान का अघोषित युद्ध जारी है। वह कभी भी घोषित युद्ध में बदल सकता है। जम्मू-कश्मीर सरकार अनियंत्रित होगी। हमारी फौज किसके सहारे लड़ेगी। जब वहां की स्वायत्त सरकार, सारी राज्य व्यवस्था, न्यायालय सब कुछ भारत सरकार के नियंत्रण से बाहर होंगे तो उन्हें भारत के विरोध में खड़ा होने से कौन रोकेगा? अच्छा यही होगा कि भारत की सरकार इन तथाकथित प्रगतिशील वार्ताकारों के भ्रमजाल में फंसकर जम्मू-कश्मीर सहित सारे देश की सुरक्षा एवं अखंडता के साथ खिलवाड़ न करे।

4 COMMENTS

  1. This problem is connected with the 1300 years long history of slavery of India. How Mahatmas are named and their contribution. Gandhi’s relation with Maniben and others made him Mahatma or his service in British Imperial army as sergeant major. Indian Freedom history concocted many myth about Nehru and Gandhi. Why British left India, at what cost Nehru got power? Why Indira gandhi (itrafaros) named them self Gandhi? Please search the true and impartial history you will get the answer.

  2. वार्ताकारों दारा कश्मीर के बारे में रिपोर्ट पेश किये जाने के बाद बहस का दौर तो आरभ होना ही था. यह हर स्थान पर हो रहा है और प्रवक्ता पर इसका जोर ज़रा ज्यादा हीँ है?मैं केवल एक प्रश्न पूछता हूँ,आज के हालात के मद्दे नजर इस समस्या का हल क्या है?ऐसे मेरे विचार से समस्या इतनी जटिल हो गयी है कि अब इसे वहाँ के निवासियों पर छोड़ देना चाहिए कि उनकी मनसा क्या है?हमारी विभिन्न घटकों की सरकारें इस समस्या को हल करने में कितनी सफल रही हैं ,वह तो सबके सामने है.

  3. तीनो वार्ताकारों की पृष्ठभूमि से स्पष्ट है कि इनका भारत और भारतीयता से कोई भी लेना देना नहीं है ,चूकि ये देशद्रोहियों से इतनी सुविधाएँ प्राप्त कर चुके हैं अब चाहें तो भी उनकी गुलामी से मुक्त नहीं हो सकते,लेकिन सवाल यह उठता है के जिन्होंने इन्हें वार्ताकार नियुक्त किया क्या उनकी निष्ठां इस देश में है या नहीं. स्प्रेक्ट्रम आवंटन में चिदम्बरम की जो भूमिका थी लगता है उस से बड़ी भूमिका कश्मीर को लेकर हो सकती है अतः जांच तो चिदम्बरम की भूमिका की होनी चाहिए लिकिन फ़िलहाल असंभव लगता है .सारा दृश्य केवल निराशा ही पैदा करने वाला है.

  4. aaj jo mahadasha hamare desh ki chal rahi hai ,vah sab rastriy netaon ki den hai ! yadypi mahatma gandhi ne 1947 me vibhajan ke samay muslimo ke tushtikaran ko jari rakhate hue pakistan dekar bhi apane desh me rakh lene ke lie tatkalin netrtw ko kuchh na karane ke lie mana liya tha ! usaka trashad ham aaj tak vismrit nahi kar pae hain ! aur a b punah vahi sab doharana ab janata-janardan yadi karwat badal degi to kya hoga ? aaj ke karandharon ko kachha hi kh jaegi! yatha sambhav koshis yahi honi chahie ki ab batawara na ho..? yadi kangreesh ki o or se huaa to bada bhibhats hoga !! kshmir ke mamlat me meri nek salah hai ki vah i s sabase dur hi rahe! rashtr dharm me tyag aur tapasya ki bhi awashykata hai kori kuchh labh ke lie jivan nark banana uchit nahi hai!! kangresh ko pichhali trution se sikhane ka a b samay nahi raha !! a b trutiyan n a ho, yah drshtigat karana awashyak hai ! janata bhrashtachar ko chhama kar degi parantu desh droh nahi !!

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