कश्मीर मुद्दे पर आईएसआई का अंतरराष्ट्रीय षड्यंत्र

फई के बयान से फिर बेनकाब हुआ पाक 

पवन कुमार अरविंद

कश्मीरी अलगाववादी नेता डॉ. गुलाम नबी फई की गिरफ्तारी के बाद से पाकिस्तान भले ही यह कहता रहा हो कि अमेरिका ने फई की गिरफ्तारी इस्लामाबाद को बदनाम करने के उद्देश्य से की है तथा फई से उसका व उसकी खुफिया एजेंसी आईएसआई का कोई लेन-देन नहीं हुआ है, लेकिन अमेरिकी अदालत के बुधवार के फैसले के बाद फई द्वारा जारी लिखित बयान ने स्वयं ही इस्लामाबाद की वास्तविक मनसा स्पष्ट कर दी है। इस बयान में फई ने कहा है कि कश्मीर के लोगों को अमेरिका से डरना नहीं चाहिए। उसने कहा, “मैं कहता हूं कि कश्मीर के लोगों को यह सोच कर डरने की जरूरत नहीं है कि विश्व शक्तियां और खास कर अमेरिका उन्हें निराश करेगा।” अदालत के फैसले के बाद फई के वकील खुर्रम वाहिद ने उसके लिखित बयान की प्रतियां वितरित की। वाहिद ने कहा कि यह बयान अदालत के फैसले के बाद तैयार किया गया है।

फई ने कहा, “जम्मू-कश्मीर राज्य के लोगों के प्रति मेरी आजीवन प्रतिबद्धता रही है चाहे वह किसी भी धार्मिक और सांस्कृतिक पृष्ठभूमि के हों। मेरी प्रतिबद्धता उन्हें अपने भविष्य का फैसला करने के लिए आत्मनिर्णय का अधिकार हासिल करने में मदद करने की है। ईश्वर चाहता है कि मैं आने वाले समय में ऐसा करता रहूं।” इस पत्र में अलगाववादी नेता फई ने अमेरिका के परंपरागत समर्थन तथा दक्षिण एशिया क्षेत्र के प्रति राष्ट्रपति बराक ओबामा के विचारों की सराहना भी की है।

अमेरिकी अटार्नी ने बताया कि 19 जुलाई को गिरफ्तारी के बाद पूछताछ के दौरान फई ने आईएसआई के साथ अपने संबंध और धन मिलने की बात स्वीकार कर ली थी। एफबीआई ने अपने शपथ-पत्र में भी इस बात का जिक्र किया है। फई के उपर्युक्त दोनों बयान यह स्पष्ट करने के लिए पर्याप्त हैं कि वह कश्मीरी अलगाववाद का न केवल प्रबल समर्थक है, बल्कि उसने अमेरिका में कश्मीर मसले पर पाकिस्तान से धन लेकर उसके पक्ष में माहौल बनाने के लिए सक्रिय रूप से प्रयासरत था।

कश्मीरी मूल के अमेरिकी नागरिक फई को संघीय जांच ब्यूरो (एफबीआई) ने कश्मीर मसले पर लाबिंग और पाकिस्तान सरकार व उसकी खुफिया एजेंसी आईएसआई के लिए काम करने के आरोप में 19 जुलाई को वर्जीनिया में गिरफ्तार किया था। वॉशिंगटन स्थित कश्मीर सेंटर या कश्मीर अमेरिकी परिषद (केएसी) के कार्यकारी निदेशक 62 वर्षीय फई पर अमेरिका में भारत के खिलाफ अभियान चलाने और कश्मीर पर पाकिस्तान के लिए लाबिंग करने का आरोप है। संगठन का दावा रहा है कि यह ग़ैर-सरकारी है और अमेरिकियों से ही इसे धन मिलता है। लेकिन एफ़बीआई का कहना था कि 1990 के दशक से लेकर अब तक इस संगठन को पाकिस्तान सरकार और उसकी खुफिया एजेंसी से गैर-कानूनी रूप से 40 लाख डॉलर मिले हैं। इस धन का इस्तेमाल उसने अमेरिका की कश्मीर नीति को प्रभावित करने के लिए किया। केएसी के माध्यम से उसने कश्मीर के लिए लॉबिंग की, सेमिनार आयोजित कराए, अखबारों में लेख लिखे और अमेरिकी नेताओं के साथ बैठकें कीं।

फई की गिरफ्तारी के बाद पाकिस्तान ने एफबीआई के आरोप को ही खारिज कर दिया और कहा था कि अमेरिकी एजेंसी के आरोप निराधार व मनगढ़ंत हैं। पाकिस्तानी विदेश मंत्रालय ने अमेरिका पर उसके खिलाफ अपमानजनक अभियान चलाने का आरोप लगाया। विदेश मंत्रालय ने कहा कि हमने इस्लामाबाद स्थित अमेरिकी दूतावास में अपनी आपत्ति दर्ज करायी है, खासकर पाकिस्तान के खिलाफ अपमानजनक अभियान पर।

ध्यातव्य है कि अमेरिकी अदालत ने बुधवार को फई को ज़मानत देते हुए उसे घर में ही नज़रबंद रखने का आदेश दिया। अदालन ने कहा कि वह अमेरिका से बाहर नहीं जा सकता। उसको इलेक्ट्रॉनिक निगरानी में रखने का भी आदेश सुनाया गया है। इसके लिये उसके पैर में रेडियो टैग बांधा जायेगा। वर्जीनिया प्रांत के एलेक्जेंड्रिया जिला अदालत के मजिस्ट्रेट जॉन एंडरसन ने बुधवार को फई को एक लाख डॉलर के निजी मुचलके पर जमानत का फैसला किया। साथ ही इस मामले में गिरफ्तार उसके दूसरे साथी ज़हीर अहमद से भी मिलने की इजाजत नहीं होगी। अदालत ने फई दम्पति से अपने-अपने पासपोर्ट भी जमा करने के लिये कहा है।

ब्राइलक्रीम और 30 प्लस कोड से फई को मिलता था पैसा

एफबीआई का आरोप था कि फई ने एक विदेशी एजेंट की तरह अमेरिका में काम किया। उसने विदेशी एजेंट रजिस्ट्रेशन एक्ट का उल्लंघन किया है। किसी अन्य देश के लिए छिपे तौर पर एजेंट के रूप में काम करना एक अपराध है। यहां तक कि वह आईएसआई से कोड वर्ड में बात करता था। ‘ब्राइलक्रीम’ और ’30 प्लस’ कुछ ऐसे गुप्त कोड थे जिसके माध्यम से आईएसआई और फई के बीच पैसे का लेनदेन होता था। एफबीआइ के मुताबिक, फई का पाकिस्तानी सूत्रधार जावेद अजीद खान ने उससे पूछा था कि क्या तुम्हें सारा सामान मिल गया? इसके जवाब में फई ने कहा था कि 75 मिलीग्राम ब्राइलक्रीम के अलावा उसे सबकुछ मिल गया है।

एफबीआई को संदेह है कि केएसी के माध्यम से अमेरिका कश्मीर को लेकर दुष्प्रचार जारी रखने के लिए फई द्वारा मांगे गए 75 हजार डॉलर के लिए यह कूट भाषा थी। उसी बातचीत में फई ने उससे दो-तीन पीस ब्राइलक्रीम (बालों में लगाने वाला क्रीम) लंदन लेते आने को कहा था। इसके बारे में एफबीआइ को संदेह है कि उसने अपने पाकिस्तानी आकाओं से 20-30 हजार डॉलर की मांग की थी। अगले वर्ष फई ने अपने एक अन्य पाकिस्तानी आका अहमद से पैसे के लिए कूट शब्द शक्तिवर्धक कैप्सूल ’30 प्लस’ की मांग की। एफबीआइ के मुताबिक, फई ने अपने लिए 30 हजार डॉलर की मांग की थी। इस बातचीत के बाद केएसी के खाते में 10 जनवरी से 28 मार्च के बीच तीन चेक के जरिए 23 हजार डॉलर जमा किए गए। फई के साथ अमेरिकी नागरिक जहीर अहमद को भी इस मामले में अभियुक्त बनाया गया है। दोषी पाए जाने पर दोनों को पांच साल तक कारावास की सजा हो सकती है।

हालांकि, अमेरिका व अन्य देशों में कश्मीर मसले पर लॉबिंग करने वालों में केवल फई व जहीर ही नहीं हैं, इसके अलावा भी कई लोग हैं। एफबीआई के मुताबिक, अमेरिका में आईएसआई के एजेंट पाकिस्तानी मूल के अमेरिकी नागरिकों की जासूसी कर रहे हैं और ये लोग इन नागरिकों को धमका भी रहे हैं। इस अभियान में मेजर जनरल मुमताज अहमद बाजवा शामिल है जो आईएसआई के सुरक्षा निदेशालय में काम करता है और विदेशों में कश्मीर पर आतंकी संगठनों का कामकाज देखता है। साथ ही न्यूयॉर्क स्थित पाकिस्तानी वाणिज्य दूतावास में काम करने वाला अधिकारी मोहम्मद तस्लीम को आईएसआई का एजेंट बताया गया है। तस्लीम आईएसआई के विचारों से सहमत नहीं होने वाले लोगों की जासूसी करता है और पाकिस्तानी सेना का विरोध करने वालों को धमका रहा है। वह खुद को एफबीआई का एजेंट बताता था। इस पर सीआईए के निदेशक लियोन पैनेटा और आईएसआई प्रमुख अहमद शुजा पाशा के बीच काफी गरम बहस हुई थी। इसके साथ ही पाकिस्तान के अंतरराष्ट्रीय गतिविधियों के लिए लंदन स्थित नाज़िर अहमद शॉल का जस्टिस फाउंडेशन कश्मीर सेंटर, ब्रुसेल्स व बेल्जियम में अब्दुल मजीद ट्रेंबू का कश्मीर सेंटर यूरोपियन यूनियन प्रमुख रूप से शामिल हैं।

फई की गिरफ्तारी में अमेरिका ने जानबूझकर की देरी

इस संदर्भ में एफबीआई का कहना है कि वह इस साल की शुरुआत में ही फई को गिरफ्तार कर सकता था, लेकिन कुछ राजनैतिक मजबूरियों की वजह से ऐसा संभव नहीं हो सका। इसका अंदाजा स्वत: ही लगाया जा सकता है कि अमेरिकी विदेश मंत्रालय और सीआईए ने उसे ऐसा करने से रोका होगा। क्योंकि अमेरिका को उस समय अलकायदा सरगना ओसामा बिन लादेन के पाकिस्‍तान में होने की जानकारी थी। शायद इसी कारण से अमेरिका पाकिस्‍तान से अपने संबंध खराब करना नहीं चाहता था। इसीलिए एफबीआई को फई को गिरफ्तार करने से रोका गया था। जब अमेरिकी सेना ने आतंकी ओसामा बिन लादेन को पाकिस्‍तान से खोजकर मार डाला उसके बाद से फई की गिरफ्तारी की इजाजत एफबीआई को मिल गई थी। फिलहाल अमेरिका की इस कार्रवाई से इतना साफ हो गया है कि वह सब कुछ अपने हिसाब से करता है। उसे पता था कि फई काफी समय से आईएसआई के लिए काम कर रहा था। उसके बाद भी उसने उसकी गिरफ्तारी में देरी की।

भारतीय एजेंसियों के रेडार पर भी था फई

फई पर भारतीय खुफिया एजेंसियों की नजर काफी पहले से थी। जानकारी के मुताबिक, आईबी 2007 से ही घाटी में जारी उसकी गतिविधियों नजर रखे हुआ था। कश्मीर के डीजीपी ने स्वीकार किया है कि घाटी में कई मामलों में फई का नाम आता रहा है। खासतौर पर भारत विरोधी गतिविधियों के लिए आर्थिक मदद मुहैया कराने के मामले में उसकी अहम भूमिका रही है। उनका कहना है कि फई के खिलाफ बहुत सारी जानकारियां हैं। फिलहाल अमेरिकी जांच एजेंसी की रिपोर्ट की प्रतीक्षा की जा रही है। गृह मंत्रालय के एक वरिष्ठ अधिकारी के मुताबिक, सैयद अली शाह गिलानी और अन्य अलगाववादी नेताओं ने फई की गिरफ्तारी पर जो प्रतिक्रिया दी, उससे साफ जाहिर है कि वह कश्मीरी अलगाववादियों के बीच में कितना लोकप्रिय था।

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