अंतर्राष्ट्रीय पिकनिक दिवस – 18 जून

intl-picnic_day.pngडा- राधेश्याम द्विवेदी
18 जून को दुनिया भर में अंतर्राष्ट्रीय पिकनिक दिवस के रूप में मनाया जाता है। यह दोस्तों और परिवारों को एक साथ अच्छा समय बिताने का और खुशियाँ मनाने का दिन होता है। इनडोर या आउटडोर पिकनिक की योजना बनाएँ और अपने परिवार तथा दोस्तों के साथ इसके मजे लें। इस पिकनिक दिवस पर बच्चों को लाड़-दुलार करें, उनके लिए लंच में कुछ खास बनाएँ और उनके साथ खेलें। याद रखें कि बच्चों को अपने दैनिक कार्यों से हटकर कुछ करना अच्छा लगता है और पिकनिक इसका एक अच्छा विकल्प है।
जरूरी बातें:- एक अच्छे पिकनिक के लिए इन जरूरी बातें याद रखें-
1. पिकनिक के लिए एक ऐसे स्थान का चयन करें जहाँ छाया हो जिससे धूप से बचा जा सके
2. अत्यधिक गर्मी से थकान हो सकती है और आपके पिकनिक के आनंद मं खलल पड़ सकती है।
3. खाने-पीने की चीजें पर्याप्त मात्रा में रखें और तरल या तले-भुने खाद्य पदार्थों की तुलना में सूखे खाद्य पदार्थों को प्राथमिकता दें।
4. एक प्लास्टिक बैग में एक गीला कपड़ा रखें। बच्चे खेलते समय प्रायः अपने हाथ गंदे कर लेते हैं। ऐसे में गीले कपड़े से पोछकर उनके हाथ साफ किए जा सकते हैं।
5. अपने साथ डिस्पोजेबल कप और ग्लास ले जाएँ तथा सभी कूड़े को प्लास्टिक के एक बैग में इकट्ठा कर कूड़ेदान में फेंकना याद रखें।
6. पीने का पानी लेकर जाएँ और यहाँ-वहाँ का अस्वच्छ पानी न पीएँ।
पिकनिक एक ऐसा टॉनिक है जो आपके तन और मन को नई ताजगी और स्फूर्ति से भर देता है। तो क्यों न इस अंतर्राष्ट्रीय पिकनिक दिवस पर एक पिकनिक की योजना बनाएँ और अपने सगे-संबंधियों, दोस्तों और अपने खास अपनों के साथ इसका भरपूर आनंद लें! खूब सारी मस्ती और मजा लें! पिकनिक का क्षेत्र , जहाँ लोगों का समूह आराम कर सकता है और हरे-भरे परिवेश में आनंद उठा सकता है। यदि आवश्यकता हो तो बनाकर लाए हुए भोजन को गर्म करने के लिए किचन स्पेस के लिए भी पहले से अनुरोध किया जा सकता है। पिकनिक के दिन अधिकांश स्कूलों में घर से ही टिफिन ले जाना होता है तो उस दिन बच्चे का फेवरिट लंच पैक कर दिया जाता है और कुछ चिप्स, चाकलेट के साथ बस तक पहुँचा दिया जाता है। बस में बैठते ही बच्चा मुक्त हो जाता है और फिर शाम की वापसी के समय तक इंतजार की कब तक आयेगा। शाम को बस आने में देर होने पर चिंतित गार्जियन की न जाने कहाँ होगा, कैसे होगा। वापसी पर चिंतित गार्जियन का सामना दुनिया भर की खुशियाँ समेटे बच्चे से होता है और वो एक ही सांस में बता देना चाहता है की क्या क्या किया। घर पहुँचते ही सब लोग घेर लेते हैं लेकिन थका बच्चा सोना चाहता है क्योंकि मुक्त होकर उड़ने के मौके कम ही मिलते हैं और वह उन मौकों को समेटे हुए ही सो जाना चाहता है। ये तो बात रही पांचवीं -छठी तक के बच्चों की।
बड़े बच्चों की पिकनिक बदलती जाती है उनमें भी हाई स्कूल तक पहुँच चुके बच्चों के लिए आउटिंग का मतलब अलग ही होता है क्योंकि वो शरीर के साथ दिमाग में भी हो रहे परिवर्तनों के दौर में होते हैं, उनके लिए घर वाले अधिक चिंतित भी नहीं होते क्योंकि वे समझदार हो चुके रहते हैं। थोड़ी बहुत समस्या टीचर को होती है लेकिन उनकी भलाई भी इसी में रहती है की वो बच्चों के साथ दोस्त की तरह पेश आयें। इस उम्र की पिकनिक में मज़े लेने के तमाम नए तरीके आ जाते हैं और बाहर निकल कर उनको आजमाने की भी बात होती है। बस में बैठते ही इशारे होने लगते हैं और आँखों ही आँखों में तमाम बातें होने लगती हैं लेकिन साथ वालों की निगाहें भी इसको ताड़ती रहती हैं। ऐसी पिकनिक में अधिकांश यही होता है की लौट कर वापस आने पर गँवा दिए गए मौके का ही मलाल रहता है और फिर संकल्प भी लिया जाता है की अगली बार ऐसा नहीं होगा। लेकिन वो ये भूल जाते हैं की सुनहरे मौके जीवन में बार-बार नहीं आते। सबसे खतरनाक होती है कालेज में पहुँच गए बच्चों की पिकनिक क्योंकि शारीरिक रूप से बच्चे पैदा कर देने की उमर होती है और समाज की पढ़ाई इनको सारी कलाओं में पारंगत कर चुकी होती है। इस उम्र की पिकनिक में जो चला गया वो उन्हें कभी भूल नहीं सकता, भले ही बाद में वो पूरी दुनिया की सैर करले।

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