अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस

आज अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस (08 मार्च,2017 ,बुधवार) हैं ||

अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस पर बधाई और शुभकामनायें ||

अंतराष्ट्रीय महिला दिवस ( INTERNATIONAL WOMAN DAY ) हर वर्ष 8 मार्च को पूरे विश्व में मनाया जाता है कोई भी पर्व या तिथि विशेष मनाने के पीछे कोई न कोई ऐसा जरुर कारण होता है जिससे हमारा समाज प्रभावित होता है हमारे समाज में महिलाओ की भागीदारी, विशेष योगदान, महिलाओ के प्रति सम्मान और महिलाओ के प्रति समाज निर्माण में योगदान को देखते हुए हर वर्ष पूरे विश्व में 8 मार्च को अंतराष्ट्रीय महिला दिवस / International Women Day मनाया जाता है अंतराष्ट्रीय महिला दिवस / International Women Day मनाये जाने का उद्देश्य जातीपाती, राजनीती, समाज में फैले कुरुतियी और उचनीच की भावना और समाज में महिलाओ को बराबरी का दर्जा दिलाना और समान अधिकारों की रक्षा करना है और आज के इस 21वि सदी के दौर में महिलाओ ने पुरुषो के साथ कन्धा से कन्धा मिलाकर समाज के हर क्षेत्र में अपनी भागीदारी निभा रही है और समाज में हर तबके की महिलाओ के अधिकारों की रक्षा हो इसी अधिकारों की रक्षा के लिए प्रतिवर्ष सयुक्त राष्ट्र संघ / United Nation Organization के नेतृत्व में हर साल 8 मार्च को पूरे World में अंतराष्ट्रीय महिला दिवस / International Women Day मनाया जाता है |

बच्चों में संस्कार डालना बच्चों में संस्कार भरने का काम मां के रूप में नारी द्वारा ही किया जाता है। यह तो हम सभी बचपन से सुनते चले आ रहे हैं कि बच्चों की प्रथम गुरु मां ही होती है। मां के व्यक्तित्व-कृतित्व का बच्चों पर सकारात्मक और नकारात्मक दोनों प्रकार का असर पड़ता है।

नारी सदैव पुरुष के साथ कंधेसे कंधा मिलाकर तो चलती ही है, बल्कि उनसे भी अधि‍क जिम्मेदारियों का निर्वहन भी करती हैं। नारी इस तरह से भी सम्माननीय है। विवाह पश्चात विवाह पश्चात तो महिलाओं पर और भी भारी जिम्मेदारि‍यां आ जाती है। पति, सास-ससुर, देवर-ननद की सेवा के पश्चात उनके पास अपने लिए समय ही नहीं बचता। वे कोल्हू के बैल की मानिंद घर-परिवार में ही खटती रहती हैं। संतान के जन्म के बाद तो उनकी जिम्मेदारी और भी बढ़ जाती है। घर-परिवार, चौके-चूल्हे में खटने में ही एक आम महिला का जीवन कब बीत जाता है, पता ही नहीं चलता। कई बार वे अपने अरमानों का भी गला घोंट देती हैं घर-परिवार की खातिर। उन्हें इतना समय भी नहीं मिल पाता है वे अपने लिए भी जिएं। परिवार की खातिर अपना जीवन होम करने में भारतीय महिलाएं सबसे आगे हैं। परिवार के प्रति उनका यह त्याग उन्हें सम्मान का अधि‍कारी बनाता है।

इतिहास उठाकर देखें तो मां पुतलीबाई ने गांधीजी व जीजाबाई ने शिवाजी महाराज में श्रेष्ठ संस्कारों का बीजारोपण किया था। जिसका ही परिणाम है कि शिवाजी महाराज व गांधीजी को हम आज भी उनके श्रेष्ठ कर्मों के कारण आज भी जानते हैं। इनका व्यक्तित्व विराट व अनुपम है। बेहतर संस्कार देकर बच्चे को समाज में उदाहरण बनाना, नारी ही कर सकती है। अत: नारी सम्माननीय है।

तिहास से देवी अहिल्याबाई होलकर, मदर टेरेसा, इला भट्ट, महादेवी वर्मा, राजकुमारी अमृत कौर, अरुणा आसफ अली, सुचेता कृपलानी और कस्तूरबा गांधी आदि जैसी कुछ प्रसिद्ध महिलाओं ने अपने मन-वचन व कर्म से सारे जग-संसार में अपना नाम रोशन किया है। कस्तूरबा गांधी ने महात्मा गांधी का बायां हाथ बनकर उनके कंधे से कंधा मिलाकर देश को आजाद करवाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। इंदिरा गांधी ने अपने दृढ़-संकल्प के बल पर भारत व विश्व राजनीति को प्रभावित किया है। उन्हें लौह-महिला यूं ही नहीं कहा जाता है। इंदिरा गांधी ने पिता, पति व एक पुत्र के निधन के बावजूद हौसला नहीं खोया। दृढ़ चट्टान की तरह वे अपने कर्मक्षेत्र में कार्यरत रहीं। अमेरिका के पूर्व राष्ट्रपति रोनाल्ड रेगन तो उन्हें ‘चतुर महिला’ तक कहते थे, क्योंकि इंदिराजी राजनीति के साथ वाक्-चातुर्य में भी माहिर थीं।

अभद्रता की पराकाष्ठा आजकल महिलाओं के साथ अभद्रता की पराकाष्ठा हो रही है। हम रोज ही अखबारों और न्यूज चैनलों में पढ़ते व देखते हैं, कि महिलाओं के साथ छेड़छाड़ की गई या सामूहिक बलात्कार किया गया। इसे नैतिक पतन ही कहा जाएगा। शायद ही कोई दिन जाता हो, जब महिलाओं के साथ की गई अभद्रता पर समाचार न हो।

अंतराष्ट्रीय महिला दिवस का इतिहास

वैसे तो सदियों से हमारे समाज में महिलाओ को सिर्फ घर के कामो तक ही सिमित रखा जाता रहा है हर समय नारी को केवल घर के काम करने वाली और परिवार की जिम्मेवारी उठाने का भार उठाने वाली ही समझा जाता रहा है कभी भी हमारे समाज में महिलाओ को बराबरी का दर्जा नही दिया जाता है इस मुख्य कारण समाज में फैले कुरूतियो और अपने अनुरूप बस पाने विकास की भावना रही है जिसके कारण हर वक्त ये महिलाये हमारे समाज में हमेसा से उपेक्षित रही है जिसको देखते हुए सर्वप्रथम विश्व के सबसे पुराने लोकत्रंत देश संयुक्त राज्य अमेरिका / United State of America मे वहा की राजनितिक पार्टी सोसलिस्ट पार्टी के तत्वाधान में 28 फरवरी 1909 को पहली बार अंतराष्ट्रीय महिला दिवस / International Women Day मनाया गया जिसका मुख्य उद्देश्य अमेरिकी लोकत्रंत में चुनाव में महिलाओ की भागीदारी और उनको वोट दिलाने के अधिकार से मनाया गया क्यू की उस ज़माने में अमेरिकी लोकत्रंत और दुनिया के अनेको देशो में महिलाओ को वोट देने का अधिकार नही था फिर 1910 में कोपेनहेगन सम्मेलन में पहली बार महिला दिवस को अंतराष्ट्रीय दर्जा दिया गया और पूरे विश्व स्तर पर महिलाओ के सम्मान हेतु और समाज में भागीदारी हेतु इसे अंतराष्ट्रीय महिला दिवस / International Women Day के रूप में मनाया जाने लगा

फिर प्रथम विश्व युद्ध के दौरान 1917 में महिला दिवस के अवसर पर रूस की महिलाओ ने अपने हक़ की अधिकारों की रक्षा और मुलभुत अधिकारों जैसे रोटी, कपड़े के मांग पर पहली बार हड़ताल पर जाने का फैसला किया, पूरे विश्व के इतिहास में यह किसी भी देश की महिलाओ द्वारा इतना साहसिक फैसला था की वहां की तत्कालीन सत्ता जार की सरकार पूरी तरह से हिल गयी और जार सरकार को अपनी सत्ता खोना पड़ा और फिर उस समय रुसी महिलाओ को वोट देने का अधिकार प्रदान किया गया और यह सब ऐतिहासिक घटना 8 मार्च को हुआ जिसके कारण रूस में स्वन्त्र रूप से अंतराष्ट्रीय महिला दिवस / International Women Day मनाया जाने लगा |जिसके कारण धीरे धीरे महिलाओ की मांगो की आवाज़ पूरे विश्व में उठने लगी जिसके कारण विश्व के सभी देशो को अपने समाज में महिलाओ के सम्मान और भागीदारी के लिए इनके मौलिक अधिकारों को प्रदान किया जाने लगा फिर संयुक्त राष्ट्र संघ के गठन के बाद पूरे विश्व में महिला के अधिकारों की रक्षा के लिए अनेक नीतिया और कार्यक्रम बनाये गये और फिर 8 मार्च को विश्व के सभी राष्ट्रों में अंतराष्ट्रीय महिला दिवस / International Women Day मनाया जाने लगा जिसके कारण अपने देश भारत / India में भी महिला दिवस / International Women Day को विशेष महत्व दिया जाने लगा और फिर व्यापक रूप से हमारे देश में भी महिला दिवस / Women Day मनाते है |
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अंतराष्ट्रीय महिला दिवस निबन्ध—

प्रिय पाठकों/मित्रों, विश्व में स्त्री/महिला को अनेको नाम से पुकारा जाता है कभी यही महिला नारी कहलाती है तो कभी स्त्री तो कभी औरत भले ही इन महिलाओ का चाहे किसी भी नाम या रूप में देखा जाय लेकिन हमारे समाज में बिना महिलाओ के सहयोग के बिना सम्पूर्ण विकास की कल्पना नही की जा सकती है चाहे इन्सान के परवरिश की बात हो या लालन पालन की हो वंशवृद्धि की हो या एक अच्छे समाज निर्माण की बात हो या कला संस्कृति और धर्म की हर जगह महिलाओ के सहयोग के बिना हमारे समाज की कल्पना भी नही की जा सकती है फिर भी समाज के अनेको हिस्सों में आज भी कई बार इन महिलाओ को उपेक्षित होना पड़ता है लेकिन इन सबसे परे आज की महिलाये अपने अदम्य साहस और साहसिक निर्णयों के चलते समाज में हर क्षेत्र में अपने हुनर और सफलता की डंका बजा रही है आज के इस महिला सशक्तिकरण के दौर में महिलाओ की स्थिति का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है की दुनिया के सबसे पुराने लोकतान्त्रिक देश संयुक्त राज्य अमेरिका / USA में भी एक महिला के रूप में हिलेरी क्लिटन / Hillary Clinton भी सबसे बड़े सवैंधानिक पद राष्ट्रपति पद के लिए अपना एक मजबूत दावा पेश कर चुकी है जो की इस बात की ओर इशारा करती है आज के दौर में ये महिलाये पुरुषो के मामले में कही भी पीछे नही है और दुनिया के हर क्षेत्रो में ये महिलाये पुरुषो के साथ कंधे से कन्धा मिलाकर चल रही है |

भारत में महिला दिवस—

वैसे तो जब से मानवता की उत्पप्ति हुई है भारतवर्ष को संस्कृति का जनक कहा जाता है और प्राचीन काल से ही भारत को विश्वगुरु का दर्जा हासिल है कहने का आशय यह है की हमारा देश भारत पूरे विश्व को मानवता की राह पर चलने का मार्ग दिखाता रहा है और बात जब महिलाओ की आती है तो हमारा देश भारत सदियों से ही महिलाओ के सम्मान में सदैव अग्रणी रहा है भारतीय संस्कृति भी तो यही कहती है

“यस्य पूज्यंते नार्यस्तु तत्र रमन्ते देवता”

अर्थात जहा नारी की पूजा होती है वहां पर ईश्वर स्वय खुद निवास करते है

हमारे भारतीय संस्कृति में महिलाओ को देवी का दर्जा प्रदान किया गया है और कहा भी गया है की जहा पर इन देवी रुपी नारियो का सम्मान नहो होता है वहा पर सम्पूर्ण मानव जाती का विनाश हो जाता है और भारत के सबसे बड़े युद्ध महाभारत भी नारी के अपमान से ही शुरू हुआ था जो की सम्पूर्ण वंश के विनाश के बाद ही संपत हुआ है कहने का आशय है भारतीय संस्कृति में एक स्त्री को विशेष दर्जा प्रदान किया गया है यहाँ तक हमारी संस्कृति में किसी भी कन्या के जन्म को धन की देवी माँ लक्ष्मी के आगमन के रूप में देखा जाता है

लेकिन बदलते परिवेश के इस दौर में जहा आज के इंसानों की सबसे बड़ी जरूरत पैसा और धन हो गया है जिसके कारण महिलाओ को लेकर अनेक प्रकार के कुरूतियो का भी जन्म हुआ है जैसे दहेज, कन्या भ्रूण हत्या, महिलाओ को शिक्षा का अधिकार न देना, समाज में केवल उपभोग की वस्तु समझना ऐसी तमाम बुराईया जन्म ले चुकी है जो की कही न कही बुरे रूप से समाज को ये कुरूतिया अंदर ही अन्दर खोखला कर रही है

लेकिन फिर भी आज के इस दौर में हमारे देश की महिलाओ ने समाज की इन कुरूतियो से आगे बढ़ते हुए सफलता के नित नये परचम लहरा रही है इन नामो से कल्पना चावला, सानिया मिर्जा /Sania Mirza, साक्षी मलिक / Sakshi Malik, दीपा कर्माकर / Dipa Karmakar, मैरीकॉम / Mary Kom, इरोम चानू शर्मिला / Irom Chanu Sharmila, माधुरी दीक्षित / Madhuri Dixit, प्रियंका चोपड़ा, स्मृति ईरानी, सुमित्रा महाजन, किरन बेदी, मदर टेरेसा, इंदिरा गाँधी, सरोजनी नायडू, लता मंगेशकर,प्रतिभा पाटिल जैसे अनेको नाम है जिन महिलाओ के अपने अदम्य साहस के बलबूते हमारे देश का नाम रोशन किया है और हमारे देश में ऐसे अनगिनत महिलाओ के नाम मिल जायेगे जो की समाज के हर क्षेत्र में अपनी प्रमुख भूमिका निभा रही है

महान कवियत्री सुभद्रा कुमारी चौहान द्वारा लिखा गया यह लेखन बरबस ही हमे याद आन पड़ता है

“मैंने हँसाना सीखा है
मैं नहीं जानती रोना।
बरसा करता पल-पल पर
मेरे जीवन में सोना॥“

अर्थात एक महिला अपने जीवन में कितना भी दुःख सह ले लेकिन दुखो के आगे लोगो को हँसाना नही छोडती है शायद यही गुण एक महिला को माँ के रूप में भी देखा जाता है माँ शब्द अपने आप में व्यापक है माँ का अर्थ ही होता है सदा देना, एक महिला के रूप में माँ कभी भी अपने संतान से प्राप्ति की कामना नही करती है इन्ही सब कारणों से भारतीय संस्कृति में माँ के रूप में एक महिला को सर्वोच्च स्थान प्राप्त है |

जानिए क्यों हैं आज के दौर में अंतराष्ट्रीय महिला दिवस की जरूरत–

महिला और हमारी भारतीय संस्कृति में बहुत ही गंभीर रिश्ता है हमारी भारतीय संस्कृति हमेशा महिलाओ का सम्मान करना सिखाती है जब जब महिलाओ का अपमान हुआ है तब तब इस धरा पर महाभारत जैसे युद्द देखने को मिलते है एक समय था जब हमारे देश में भारतीय नारी को सम्मान के साथ देखा जाता था और महिलाओ को देवी और लक्ष्मी का रूप मानकर हमारे देश में महिलाओ का पूजा जाता था लेकिन बदलते युग के इस दौर में इन्सान अपने चरित्र से इस कदर नीचे गिर गया है की उसे स्त्री एक पूजनीय और इज्जत का रूप न रहकर केवल उपभोग की वस्तु समझी जाने लगी है जो कही न कही हमारे समाज के एक बुरे और संक्रिर्ण मानसिकता को सोच को दर्शाता है |

वर्तमान में जो हालात दिखाई देते हैं, उसमें नारी का हर जगह अपमान होता चला जा रहा है। उसे ‘भोग की वस्तु’ समझकर आदमी ‘अपने तरीके’ से ‘इस्तेमाल’ कर रहा है। यह बेहद चिंताजनक बात है। लेकिन हमारी संस्कृति को बनाए रखते हुए नारी का सम्मान कैसे किय जाए, इस पर विचार करना आवश्यक है।

आजकल जैसे ही हम सभी सुबह टीवी न्यूज़, अख़बार खोलते है तो हर दस में एक खबर महिला शोषण के बारे में जरुर होती है जो की हमारे विकसित हो रहे समाज का एक बुरा सच भी है आज के दौर में जब हम कभी भी घर से बाहर निकलते है तो हर लड़की अपने मुह पर दुप्पटा बाधे ही निकलती है हो सकता है ये लडकिया या महिलाये हमारे घर या किसी के भी घर की भी हो सकती है क्या हम सभी ने कभी इस पर विचार किया है की जब भारत और पूरी दुनिया अपनी आजादी को हर साल मनाती आ रही है तो क्या किसी महिला के लिए अपने ही देश ऐसे पाबन्द होकर घर से निकलता पड़ता है तो क्या हम अपने आप को पूर्ण रूप से आजाद मान सकते है शायद नही और यही ऐसे तमाम कारण है जिससे पूरे विश्व समुदाय को आज के खुद को विकसित मानने वाले दौर में अंतराष्ट्रीय महिला दिवस / International Woman day मनाने की जरुरत की आवश्यकता पडती है |

माता का हमेशा सम्मान हो मां अर्थात माता के रूप में नारी, धरती पर अपने सबसे पवित्रतम रूप में है। माता यानी जननी। मां को ईश्वर से भी बढ़कर माना गया है, क्योंकि ईश्वर की जन्मदात्री भी नारी ही रही है। मां देवकी (कृष्ण) तथा मां पार्वती (गणपति/ कार्तिकेय) के संदर्भ में हम देख सकते हैं इसे। किंतु बदलते समय के हिसाब से संतानों ने अपनी मां को महत्व देना कम कर दिया है। यह चिंताजनक पहलू है। सब धन-लिप्सा व अपने स्वार्थ में डूबते जा रहे हैं। परंतु जन्म देने वाली माता के रूप में नारी का सम्मान अनिवार्य रूप से होना चाहिए, जो वर्तमान में कम हो गया है, यह सवाल आजकल यक्षप्रश्न की तरह चहुंओर पांव पसारता जा रहा है। इस बारे में नई पीढ़ी को आत्मावलोकन करना चाहिए। बाजी मार रही हैं लड़कियां अगर आजकल की लड़कियों पर नजर डालें तो हम पाते हैं कि ये लड़कियां आजकल बहुत बाजी मार रही हैं। इन्हें हर क्षेत्र में हम आगे बढ़ते हुए देखा जा सकता है । विभिन्न परीक्षाओं की मेरिट लिस्ट में लड़कियां तेजी से आगे बढ़ रही हैं। किसी समय इन्हें कमजोर समझा जाता था, किंतु इन्होंने अपनी मेहनत और मेधा शक्ति के बल पर हर क्षेत्र में प्रवीणता अर्जित कर ली है। इनकी इस प्रतिभा का सम्मान किया जाना चाहिए। कंधे से कंधा मिलाकर चलती नारी नारी का सारा जीवन पुरुष के साथ कंधे से कंधा मिलाकर चलने में ही बीत जाता है |

धीरेन्द्र सिंह द्वारा कही गयी इस रचना में भी एक नारी के भागीदारी को दर्शाता है

“घर से दफ़्तर चूल्हे से चंदा तक
पुरुष संग अब दौड़े यह नार
महिला दिवस है शक्ति दिवस भी
पुरुष नज़रिया में हो और सुधार’’

भले ही हमारे समाज में आज भी महिला को अबला समझी जाती है लेकिन जब भी कोई महिला अपने मन से ठान ले तो वो सफलता के वो परचम लहरा सकती है जिसकी कल्पना हम पुरुष भी नही कर सकते है इसका ताजा उदाहरण 2016 में आयोजित रियो ओल्प्म्पिक खेलो में भारतीय महिलाओ के के प्रदर्शन को देखने को मिला, और जब भी कभी कोई महिला मानसिक और शारीरिक शोषण का भी शिकार होती है तो भी वे कभी अपने कदम से पीछे नही हटती है इसकी एक बेमिशाल उदाहरण अरुणिमा सिन्हा के बुलंद हौसलों को देखकर इस बात का अंदाजा लगाया जा सकता है की अगर एक महिला प्रेम का रूप है तो वह सृष्टी संघारक के रूप में माँ दुर्गा का भी रूप धारण कर सकती है और एवेरेस्ट सरीखे ऊची से ऊची चोटी को भी अपने कदमो के नीचे कर सकती है |

अंत में हम यही कहना ठीक रहेगा कि हम हर महिला का सम्मान करें। अवहेलना, भ्रूण हत्या और नारी की अहमियत न समझने के परिणाम स्वरूप महिलाओं की संख्या, पुरुषों के मुकाबले आधी भी नहीं बची है। इंसान को यह नहीं भूलना चाहिए, कि नारी द्वारा जन्म दिए जाने पर ही वह दुनिया में अस्तित्व बना पाया है और यहां तक पहुंचा है। उसे ठुकराना या अपमान करना सही नहीं है। भारतीय संस्कृति में महिलाओं को देवी, दुर्गा व लक्ष्मी आदि का यथोचित सम्मान दिया गया है अत: उसे उचित सम्मान दिया ही जाना चाहिए।

तो आईये हम सभी आज इस अंतराष्ट्रीय महिला दिवस / International Woman day के अवसर पर हम सभी प्रण ले की हम सभी हमेशा महिलाओ का सम्मान करेगे की क्यों की यही मात्र शक्ति (महिला) हमारी माँ, बहन या किसी भी रूप में व्यक्तित्व निर्माण में अपना योगदान देती है और यही हमेसा आगे बढने को प्रेरित भी करती है |अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस पर आप सभी को बधाई और शुभकामनायें |

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