अंतर्राष्ट्रीय योग दिवस

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21 जून 2017 को मनाए जा रहे तीसरे अंतर्राष्ट्रीय योग दिवस की थीम है- YOGA FOR HEALTH- जो योग की शरीर,मस्तिष्क एवं प्रकृति के बीच समन्वय,संतुलन और साम्य स्थापित करने वाली जीवन शैली को बढ़ावा देने की अद्भुत क्षमता को रेखांकित करती है। प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी के अथक प्रयासों के बाद संयुक्त राष्ट्र संघ ने 11 दिसम्बर 2014 को अपनी प्रस्ताव संख्या 69/131 के माध्यम से 21 जून को अंतर्राष्ट्रीय योग दिवस के रूप मनाए जाने की घोषणा की थी। प्रधानमंत्री ने 27 सितम्बर 2014 को UNGO के सम्मुख योग दिवस मनाने का प्रस्ताव रखते समय कहा था कि योग केवल एक व्यायाम की पद्धति नहीं है बल्कि इसके माध्यम से हम स्वयं को विश्व और प्रकृति के साथ एकाकार कर सकते हैं। जब योग दिवस को अंतर्राष्ट्रीय मान्यता मिली तो इसके प्रचार-प्रसार में जुड़े संगठनों में प्रसन्नता की लहर दौड़ गई। आर्ट ऑफ़ लिविंग के संस्थापक श्री श्री रविशंकर ने कहा कि किसी भी दर्शन, धर्म अथवा संस्कृति के लिए राज्य आश्रय के बिना अस्तित्व बचाए रखना बहुत कठिन होता है। योग अभी तक लगभग एक अनाथ की भांति जी रहा था। यू एन द्वारा मान्यता मिलने के बाद इसके लाभ पूरी दुनिया तक पहुँच सकेंगे।
विमर्श का प्रारंभ इसी बिंदु से करते हैं। क्या राज्याश्रय मिलना योग के लिए हितकारी है? क्या योग राजनीति का शोधन कर सकता है? या राजनीति योग का इस्तेमाल अपने हित में कर लेगी? क्या विश्व में जिस योग का प्रचार किया जा रहा है वह पातंजल योग सूत्र में वर्णित अष्टांग योग के अनुसार है? योग को लोकप्रिय बनाने की कवायद में क्या हम योग के मूल लक्ष्य से भटक गए हैं?
पतंजलि ने योग को चित्त वृत्तियों के निरोध के रूप में परिभाषित किया। जय-पराजय की आसक्तियों का परित्याग कर समभाव से अपने कर्म का निष्पादन ही योग है, गीता में श्रीकृष्ण का कथन है- समत्वं योग उच्यते। समता में स्थित रहना ही योग है। पातंजल योग सूत्र के अष्टांग योग में आध्यात्मिक यात्रा के जिन सोपानों का वर्णन किया गया है वे बड़े महत्वपूर्ण हैं- यम(अहिंसा, सत्य,अस्तेय,ब्रह्मचर्य,अपरिग् रह), नियम(शौच,संतोष,तप स्वाध्याय,ईश्वर प्रणिधान),आसन, प्राणायाम,प्रत्याहार (इंद्रियों को अंतर्मुख करना) धारणा(एकाग्रचित्त हो मन को वश में करना), ध्यान(साकार ध्यान,निराकार ध्यान) समाधि(आत्मा और परमात्म तत्व का मिलन)। आत्मसाक्षात्कार हेतु अंतर्मुख होने के पांच बहिरंग साधन यम,नियम,आसन,प्राणायाम और प्रत्याहार हैं जबकि ध्यान,धारणा और समाधि तीन अंतरंग साधन हैं। इस अष्टांग योग की प्रारंभिक सीढ़ी यम और नियम हैं। पढ़ने में ये छोटे छोटे शब्द मात्र हैं। किंतु केवल एक सत्य का आश्रय ले युधिष्ठिर धर्मराज बन गए। बैरिस्टर मोहनदास करमचंद गांधी ने जब इन यम-नियमों का पालन करना प्रारंभ किया तो वे महात्मा गाँधी बन गए। किन्तु आज इन आरंभिक सीढ़ियों को भुला दिया गया है और बात आसन-प्राणायाम की हो रही है। इन्हें अष्टांग योग में शरीर और प्राण पर नियंत्रण स्थापित करने की विधियों के रूप में प्रस्तुत किया गया है। किन्तु आज इन्हें शारीरिक सौष्ठव और तंदुरुस्ती के साधनों के रूप में प्रयुक्त किया जा रहा है। योग को योगा कहने वाली पीढ़ी और उस पीढ़ी के विद्वानों ने हॉट योगा,पावर योगा और यिन योगा जैसे योग के नए वैरिएंट्स आविष्कृत किए हैं जो भौतिक सफलता को सब कुछ मानने वाले लोगों हेतु योग फॉर भोग के नारे को साकार करने का माध्यम बन रहे हैं। योग का भौतिकवादी पाठ रचने वाले योगा टीचर्स को योग गुरु कहा जाने लगा है और इनके नामों के आधार पर योग की नई शाखाएं आविष्कृत हो गई हैं जो एरोबिक्स, जिमनास्टिक्स, मार्शल आर्ट्स,ब्रीदिंग एक्सरसाइजेज आदि के साथ योगासनों का कॉकटेल प्रस्तुत करती हैं। शरीर को परमात्व तत्व को जानने का साधन मानने के बजाए विषय भोगों और भौतिक सुखों की अनुभूति का साधन मान लिया गया है।
आज जब हम अंतराष्ट्रीय योग दिवस मना रहे हैं तो उन संस्थानों, आंदोलनों और इनके नेतृत्वकर्त्ताओं की चर्चा आवश्यक है जिन्होंने पिछले वर्षों में योग के विश्व में प्रचार प्रसार हेतु कार्य किया है। स्वामी विवेकानंद ने पातंजल योग सूत्र की अद्भुत व्याख्या अपनी पुस्तक राज योग में की है। विवेकानंद ने योग की विभिन्न पद्धतियों ज्ञान योग, भक्ति योग, कर्म योग आदि की व्याख्या आधुनिक ज्ञान विज्ञान के संदर्भ में की और योग के शास्त्रीय स्वरुप के आधुनिक विश्व में प्रचार की आधारशिला तैयार की। पातंजल योग सूत्र में उल्लिखित क्रिया योग के आधार पर महावतार बाबा,युक्तेश्वर तथा लाहिड़ी महाशय की परंपरा के योग्य उत्तराधिकारी स्वामी योगानंद ने योग और क्रिश्चियनिटी का समन्वय करने की चेष्टा की। योगी अरविन्द अपने पूर्ण योग के आधार पर पृथ्वी पर स्वर्ग का अवतरण कराना चाहते थे। वे केवल अपनी मुक्ति के संकुचित उद्देश्य हेतु नहीं अपितु अतिमानस के अवतरण द्वारा पूरे विश्व की चेतना को ईश्वरत्व तक ले जाने हेतु प्रयत्नशील थे। अघोर परंपरा के मूर्धन्य संत अघोरेश्वर भगवान राम ने अनेक साधना पद्धतियों का समन्वय स्थापित किया। कालान्तर में महर्षि महेश योगी,स्वामी सत्यानंद सरस्वती,योग गुरु आयंगर, पंडित श्रीराम शर्मा आचार्य एवं ओशो ने योग को विभिन्न प्रकार से आधुनिक परिप्रेक्ष्य में व्याख्यायित किया और इसकी विभिन्न पद्धतियों का समावेश अपनी साधना में किया। आज भी सद्गुरु जग्गी वासुदेव, डॉ प्रणव पंड्या एवं श्री श्री रविशंकर ने योग को विमर्श में बनाए रखा है।
किन्तु आज यदि योग जन चर्चा का विषय बना है तो उसका श्रेय बहुत सीमा तक स्वामी रामदेव को जाता है। 1995 में दिव्य योग मंदिर ट्रस्ट की स्थापना के बाद से स्वामी रामदेव ने असंख्य योग शिविरों का आयोजन कर योग और स्वदेशी उत्पादों के बारे में जागरूकता फैलाई और योग तथा आयुर्वेद को एक वैकल्पिक चिकित्सा पद्धति एवं जीवन शैली के रूप में प्रस्तुत किया। टी वी चैनल्स पर उनके कार्यक्रम असाधारण रूप से लोकप्रिय हुए। बहुत सारे शुद्धतावादी भी उनके पुरुषार्थ और परिश्रम से अभिभूत होकर यह मानने लगे थे कि मानव को रोग मुक्ति दिलाने वाली योग की शक्ति के माध्यम से बाबा रामदेव उनके जीवन में अध्यात्म का आलोक भर देंगे। किन्तु स्वामी रामदेव धीरे धीरे राजनीति और व्यापार की ओर उन्मुख हुए। राजनीति में भी उनका प्रवेश कुछ ऐसा था कि जिस संत का स्पर्श पाकर राजनीति को पवित्र हो जाना था उसने संत के प्रति जनमानस में संदेह उत्पन्न कर दिया। जिन राजनीतिज्ञों को संत के सम्मुख शरणागत होना था, संत उनके स्तुति गान में जुट गया। यदि आज पतंजलि हजारों करोड़ की कंपनी है, यह स्वदेशी पूंजीपतियों द्वारा वित्तपोषित और स्वदेशी उत्पादों तथा आयुर्वेदिक औषधियों की अग्रणी निर्माता एवं विक्रेता है तो इसमें किसी को ईर्ष्या ग्रस्त होने का कोई अधिकार नहीं है। यदि पतंजलि अपने उत्पादों की एग्रेसिव मार्केटिंग कर रही है और अन्य कम्पनीज के साथ निम्न स्तरीय विज्ञापन युद्ध में रत है तो इस पर कोई आपत्ति नहीं होनी चाहिए क्योंकि आज की बाजारवादी व्यवस्था में इससे भी घटिया स्तर पर गिरने की परंपरा रही है। यदि पतंजलि आज अपने प्रसार की जल्दीबाजी में बहुत सारे उत्पादों के लिए दूसरों के स्वामित्व वाली प्रोडक्शन यूनिट्स पर आश्रित है और बिना शत प्रतिशत जांच के अपना ब्रांड नेम देने के लिए तैयार है तो इसमें भी कोई आश्चर्य की बात नहीं है क्योंकि यह तो बड़ी कंपनियां करती ही हैं। पतंजलि और उसके संस्थापक श्री रामदेव की जीवनी आज के युवाओं को और प्रेरणास्पद तथा निर्विवाद लगती यदि वे स्टीव जॉब्स या मार्क जुकरबर्ग या रतन टाटा और मुकेश अंबानी जैसे कॉर्पोरेट लीडर होते। एक अतिसामान्य किसान परिवार के युवक का सामान्य आर्थिक-शैक्षिक पृष्ठभूमि को पीछे छोड़कर शिखर पर पहुंचना और उसका बहादुरी से स्वीकारना कि ब्रांडिंग और पैकेजिंग के इस युग में उसने योग की उपयुक्त ब्रांडिंग-पैकेजिंग द्वारा उक्त सफलताएँ प्राप्त की हैं, व्यक्तित्व विकास की पाठ्य पुस्तकों में स्थान पाने योग्य है। कालेधन और भ्रष्टाचार के मुखर विरोधी का इसलिए नर्म पड़ जाना कि उसके दीर्घकालिक संस्थागत और व्यापारिक हित प्रभावित न हो जाएँ भी आपत्तिजनक नहीं लगता क्योंकि इसे ही तो रणनीति कहा जाता है। परेशानी केवल इस बात से है कि रामदेव जी, स्वामी रामदेव हैं और स्वामी शब्द के साथ लोगों की आशाएं-अपेक्षाएं जुड़ी होती हैं। संत के लिए मनसा-वाचा-कर्मणा जरा सा भी स्खलन स्वीकार्य नहीं है, इसीलिए तो उसका दर्जा इतना ऊँचा है। स्वामी रामदेव में लोग उस संत परंपरा के उत्तराधिकारी को तलाशते हैं तभी उनका यह स्वरुप लोगों को खेद पहुंचाता है।
हिन्दू धर्म पूरे विश्व को सन्देश देता है-

ॐ पूर्णमदः पूर्णमिदं पूर्णात्पुर्णमुदच्यते
पूर्णस्य पूर्णमादाय पूर्णमेवावशिष्यते ॥
एवं यह भी कि-सर्वे भवन्तु सुखिनः सर्वे सन्तु निरामया। सर्वे भद्राणि पश्यन्तु मा कश्चित् दुःखभाग् भवेत्।।
जब हम विश्व को यह संदेश सुनाने जा रहे हैं तो हमें यह सुनिश्चित कर लेना चाहिए कि हमारे अपने देश में हम इन सिद्धांतों को साकार करने में समर्थ हो रहे हैं अथवा नहीं।
बहरहाल योग जो अभी तक existed like an orphan था,अब राज्याश्रय पा चुका है। अंतर्राष्ट्रीय योग दिवस पर स्कूलों के थके और ऊबे हुए शिक्षकों की देख रेख में विभिन्न दिवसों में कतार बनाने के अभ्यस्त बच्चों की कतारें सज जाएंगी। योग की राह पर आगे बढ़ने की पात्रता देने वाली प्रथम दो सीढ़ियों यम-नियम की धज्जियाँ उड़ाने वाले थुल थुल नेता,अधिकारी,व्यापारी अपने बेडौल शरीरों को बेढंगे तौर पर हिलाने को मजबूर किए जाएंगे और इस प्रहसन को देखकर वे भूखे प्यासे लोग भी मुस्कराने के लिए मजबूर हो जाएंगे जिनके पास गलाने के लिए चर्बी नहीं है और जिनकी एक मात्र बीमारी भूख और गरीबी है।
डॉ राजू पाण्डेय

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