-अंकुर विजयवर्गीय-
चीन में इस घटना को इंटरनेट सेंसरशिप के दूसरे दौर के तौर पर देखा गया है कि वहां त्वरित संदेश-सेवा प्रदाताओं पर नए प्रतिबंध थोपे गए हैं। प्रौद्योगिकी के सागर में चीन का कोई भी कदम लहर पैदा करता है, क्योंकि वह संसार का सबसे बड़ा मोबाइल बाजार है। लेकिन इस घटना ने अभिव्यक्ति की आजादी पर चीन की विश्वसनीयता पर सवालिया निशान लगाया है। चीन ने त्वरित संदेश सेवा प्रदाताओं पर नए कायदे थोप दिए हैं। उन अकाउंट पर भी ये नियम लागू हैं, जो अपने फॉलोअर को सामूहिक संदेश भेज सकते हैं। अक्सर मीडिया या अन्य कंपनियां इस तरीके का इस्तेमाल करती हैं। इसके लिए पब्लिक अकाउंट चाहिए, जहां खबरें प्रकाशित-प्रसारित होने से पहले सरकार से इजाजत ली जाती है।
ऐसे प्रतिबंध से मैसेजिंग ऐप्स पर सबसे ज्यादा असर होगा। जैसे, टेनसेंट्स की वीचैट ऐप। इसके 40 करोड़ यूजर हैं। दूसरे मैसेजिंग टूल हैं: टेनसेंट्स की क्यूक्यू, अलीबाबा ग्रुप होल्डिंग लेवांग ऐप्स, नेटइज इंक की यिझिन और शिओमी इंक की मिलिओ। ये सभी काफी मशहूर हैं, क्योंकि ये यूजर को वॉयस मैसेज, तस्वीरें, ग्रुप चैट, वीडियो और टेक्स्ट मैसेज की इजाजत देती हैं। पब्लिक या ऑफिशियल अकाउंट एक मैसेज को बड़े समूह तक आसानी से भेज सकता है, जबकि निजी यूजर के लिए यह मुश्किल है। त्वरित संदेश सेवा प्रदाताओं से बिना इजाजत वाले अकाउंट से किसी संदेश का प्रकाशन-प्रसारण मना है। ऐसा शिन्हुआ न्यूज एजेंसी बताती है। वह इसमें जोड़ती है कि सर्विस प्रोवाइडर उन अकाउंट पर नजर रखें, जो संदेश प्रसारित-प्रचारित करते हैं। इस पूरे मामले पर बीजिंग का यह तर्क है कि ये प्रतिबंध राष्ट्रीय हित में हैं। शिन्हुआ एजेंसी का कहना है कि ‘त्वरित संदेश सेवा का इस्तेमाल कुछ लोग हिंसा, आतंकवाद, अश्लीलता व धोखाधोड़ी’ के लिए करते हैं।’ वह बताती है कि नए नियम से ‘उन तथ्यों की आवाजाही तेज होगी, जिसे लोग जानना-सुनना पसंद करते हैं।’
वैसे मई 2010 का एक वाकया इस सेंसरशिप को समझने में आसान है, जब चीन के सिनजियांग क्षेत्र में 10 महीने से बंद इंटरनेट सेवाएं बहाल कर दी गईं थी। 10 महीने पहले इस इलाके के अल्पसंख्यकों के खिलाफ व्यापक हिंसाचार हुआ था और उसके बाद इंटरनेट सेवाएं बंद कर दी गईं। इस क्षेत्र में 10 महीनों से मोबाइल सेवाएं बंद थीं। एसएमएस भेजना बंद था। टेक्स्ट संदेश भेजने पर पाबंदी थी। राज्य प्रशासन ने उपग्रह संचालित समस्त संचार नेटवर्क को बंद कर दिया था। यहां यह महत्वपूर्ण है कि भारत में गुजरात और मुंबई के दंगों के समय नेट सेवाएं अथवा किसी भी किस्म का उपग्रह संचार इतने लंबे समय तक कभी बंद नहीं किया गया। उल्लेखनीय है चीन की आबादी में 10 में से 6 लोग इस क्षेत्र में रहते हैं। इस इलाके में तुर्की से आयी उइघूर मुस्लिम जाति की आबादी ज्यादा है, लेकिन इस इलाके के समस्त कारोबार और रिहायशी इलाकों में हेन जाति के लोगों को कम्युनिस्ट प्रशासन ने अन्य प्रान्तों से लाकर जबरदस्ती बसाया, जिसके कारण उइघूर जाति के लोगों को व्यापक स्तर पर उपेक्षा का सामना करना पड़ा। 2009 के जुलाई माह में ये लोग हेन जाति का वर्चस्व थोपे जाने का विरोध कर रहे थे और मांग कर रहे थे कि उनके साथ भेदभाव खत्म हो, उस समय उनके प्रदर्शन पर पुलिसबलों का हमला हुआ और 200 लोग मारे गए। सैंकड़ों लोग घायल हुए और इसके बाद इंटरनेट सेवाएं बंद कर दी गईं।
गौरतलब है कि फेसबुक, ट्विटर और यूट्यूब जैसी सोशल नेटवर्किंग साइट्स कई मुल्कों में लोकतांत्रिक मूल्यों का झंडा बुलंद किए घूम रही हैं। निश्चित रुप से ईरान से लेकर ट्यूनीशिया और मिस्र में इन सोशल नेटवर्किंग साइट की ताकत भी दिखी है। ईरान में 2009 में राष्ट्रपति चुनावों में धांधली के विरोध के स्वर सोशल मीडिया के जरिए ही दुनिया तक पहुंचे। ट्यूनीशिया में तानाशाह जाइन अल आबीदीन बेन अली की सरकार के खिलाफ जनमत तैयार करने में सोशल मीडिया के औजारों ने बड़ी भूमिका निभायी। मिस्र में तो वर्चुअल दुनिया से उठी क्रांति की लहर सड़कों तक इस तरह पहुंची की राष्ट्रपति होस्नी मुबारक ने इंटरनेट पर ही पूर्ण प्रतिबंध लगा डाला। इससे पहले ऐसा सिर्फ एक बार हुआ था। साल 2007 में म्यांमार की सरकार ने इंटरनेट पर पूरी तरह पाबंदी लगायी थी। मिस्र में इंटरनेट पर पूर्ण पाबंदी की खबर ने दुनियाभर में खूब सुर्खियां बटोरी। इसके चलते देश को करीब 100 मिलियन डॉलर के नुकसान की खबर भी खूब प्रकाशित-प्रसारित हुई। पर सच यह है कि मिस्र में इंटरनेट सेंसरशिप का पुराना इतिहास है। पूर्ण पाबंदी भले कभी न रही हो, लेकिन इंटरनेट सेंसरशिप हमेशा रही है। मीडिया की आज़ादी को लेकर काम करने वाली साइट ‘रिपोर्टर्स विदाउट बॉर्डर्स’ ने साल 2010 में इंटरनेट के ‘दुश्मनों’ की जो सूची जारी की है, उनमें एक मिस्र है। बाकी देशों में सऊदी अरब, म्यांमार, चीन, उत्तरी कोरिया, क्यूबा, ईरान, उज़बेकिस्तान, सीरिया, ट्यूनीशिया, तुर्कमेनिस्तान और वियतमान हैं।
चीन के पास दुनिया की व्यापक व बेहतर इंटरनेट सेंसरशिप व नियंत्रण प्रणाली है। दुनिया भर के जानकार चीन के ताजा कदम को सूचना-प्रवाह पर नियंत्रण बताते हैं। चीन अपने आंतरिक मसलों में हस्तक्षेप के नाम पर इंटरनेट सेंसरशिप का जो शिगूफा छोड़ रहा है, उसमें कितना दम है यह तो वक्त ही बताएगा, किंतु ग्लोबलाइजेशन के इस युग में सूचना और संपर्क के मामले में अपने आप को पूरी दुनिया से अलग रखने की चीन की यह कोशिश केवल विवादों को जन्म देने वाली सिद्ध होगी।