भाजपा नेता नरेंद्र मोदी के साथ साक्षात्कार

(श्री नरेंद्र मोदी द्वारा Reuters को दिए साक्षात्कार का हिंदी अनुवाद)

Reuters स्टाफ़ द्वारा

रॉस कॉल्विन एवं श्रुति गोत्तिपति द्वारा

 

modi1-300x182क्या आपको इस बात से निराशा होती है कि बहुत-से लोग अभी भी आपको 2002 के दंगों से जोड़ते हैं?

लोगों को आलोचना करने का अधिकार है। हम एक लोकतांत्रिक देश में रहते हैं। प्रत्येक व्यक्ति का अपना दृष्टिकोण होता है। यदि मैंने कुछ गलत किया हो, तो मैं स्वयं को अपराधी महसूस करूंगा। निराशा तब आती है, जब आपको ये लगता है कि “मैं पकड़ा गया। मैं चोरी कर रहा था और मैं पकड़ा गया।” मेरे मामले में ऐसा नहीं है।

क्या जो हुआ आपको उसका अफ़सोस है?

मैं आपको बताता हूँ। भारत का सर्वोच्च न्यायालय विश्व का एक अच्छा न्यायालय माना जाता है। सर्वोच्च न्यायालय ने एक स्पेशल इन्वेस्टीगेशन टीम (एसआईटी) बनाई थी सबसे वरिष्ठ, सबसे प्रतिभाशाली अधिकारी एसआईटी की निगरानी कर रहे थे। उसकी रिपोर्ट आई। उस रिपोर्ट में पूरी तरह क्लीन-चिट दी गई है, पूरी तरह क्लीन-चिट। एक और बात, अगर कोई भी व्यक्ति एक कार चला रहा है, हम चला रहे हैं या कोई और कार चला रहा है और हम पीछे बैठे हैं, फिर भी अगर कार ने नीचे कोई कुत्ते का पिल्ला आ जाए, तो हमें इसका दुःख होगा या नहीं? बिलकुल होगा। मैं मुख्यमंत्री रहूँ या न रहूँ। मैं एक मनुष्य हूँ। अगर कहीं भी, कुछ भी बुरा होता है, तो स्वाभाविक रूप से उसका दुःख तो होता ही है।

क्या इस पर आपकी सरकार की प्रतिक्रिया कुछ अलग होनी चाहिए थी?

अभी तक हमें लगता है कि जो सही था वह करने में हमने अपनी पूरी शक्ति लगा दी थी।

लेकिन क्या आपको लगता है कि आपने 2002 में जो किया, वह ठीक था?

बिलकुल। हमें ईश्वर ने जितनी भी बुद्धि दी है, मेरा जितना भी अनुभव है और उस स्थिति में मेरे पास जो कुछ भी उपलब्ध था, और एसआईटी के इन्वेस्टीगेशन में यही साबित हुआ है।

क्या आप मानते हैं कि भारत का नेतृत्व एक धर्मनिरपेक्ष व्यक्ति के हाथों में होना चाहिए?

हम ऐसा मानते हैं … लेकिन धर्मनिरपेक्षता की परिभाषा क्या है? मेरे लिए, धर्मनिरपेक्षता ये है कि भारत सबसे पहले है। मैं कहता हूँ, मेरी पार्टी का सिद्धांत है ‘सभी के लिए न्याय’। किसी का तुष्टिकरण नहीं। हमारे लिए धर्मनिरपेक्षता का अर्थ यही है।

आलोचक कहते हैं कि आप एकाधिकारवादी हैं, समर्थक कहते हैं कि आप एक निर्णायक नेता हैं। असली मोदी कौन सा है?

यदि आप स्वयं को नेता कहते हैं, तो आप में निर्णय लेने की क्षमता होनी चाहिए। यदि आपमें निर्णय लेने की क्षमता है, तभी आप नेता हो सकते हैं। ये दोनों एक ही सिक्के के दो पहलू हैं। … लोग चाहते हैं कि नेता निर्णय ले। केवल तभी वे किसी व्यक्ति को अपना नेता मानते हैं। ये एक गुण है, कोई कमज़ोरी नहीं है। दूसरी बात ये है कि यदि कोई एकाधिकारवादी है, तो वह इतने वर्षों तक कोई सरकार कैसे चला सकता है? … सामूहिक प्रयास के बिना सफलता कैसे मिल सकती है? और इसीलिए मैं कहता हूँ कि गुजरात की सफलता मोदी की सफलता नहीं है। यह टीम गुजरात की सफलता है।

इस सुझाव पर क्या कहना चाहेंगे कि आप आलोचना स्वीकार नहीं करते?

मैं हमेशा कहता हूँ कि लोकतंत्र की शक्ति आलोचना में ही है। यदि आलोचना नहीं हो रही है, तो इसका अर्थ ये है कि लोकतंत्र का अस्तित्व ही नहीं है। और यदि आप आगे बढ़ना चाहते हैं, तो आपको आलोचना का स्वागत करना चाहिए। और मैं आगे बढ़ना चाहता हूँ, मैं आलोचना का स्वागत करना चाहता हूँ। लेकिन मैं आरोपों के खिलाफ़ हूँ। आलोचना और आरोपों में बहुत अंतर है। आलोचना करने के लिए, आपको शोध करना पड़ेगा, आपको चीजों की तुलना करनी पड़ती है, आपको जानकारी और तथ्य इकट्ठे करने पड़ेंगे, तभी आप आलोचना कर सकते हैं। लेकिन कोई भी आज परिश्रम करने को तैयार नहीं है। इसलिए सबसे सरल तरीका ये है कि आरोप लगा दिए जाएं। लोकतंत्र में आरोप लगा देने से कभी स्थिति में सुधार नहीं होगा। इसलिए मैं आरोपों के खिलाफ़ हूँ, लेकिन मैं आलोचना का सदैव स्वागत करता हूँ।

ओपिनियन पोल में अपनी लोकप्रियता के बारे में

मैं ये कह सकता हूँ कि 2003 से जितने भी ओपिनियन पोल हुए हैं, उनमें लोगों ने मुझे सर्वश्रेष्ठ मुख्यमंत्री के रूप में चुना है। और ऐसा नहीं है कि सर्वश्रेष्ठ मुख्यमंत्री के रूप में मुझे पसंद करने वाले लोग सिर्फ गुजरात से ही थे। गुजरात से बाहर के लोगों ने भी मेरे लिए वोट किया है। एक बार मैंने इंडिया टुडे ग्रुप के अरुण पुरी जी को एक पत्र लिखा था। मैंने उनसे अनुरोध किया:- “हर बार मैं ही इसमें जीतता हूँ, इसलिए अगली बार कृपया गुजरात को हटा दीजिए, ताकि किसी और को जीतने का मौका मिले। नहीं, तो मैं ही जीतता रहूँगा। कृपया मुझे प्रतिस्पर्धा से अलग रखें। और मेरे अलावा भी किसी और को जीतने का मौका दें।”

सहयोगी दलों और भाजपा के भीतर के लोग ये कहते हैं कि आप बहुत अधिक धृवीकरण करने वाले व्यक्ति हैं

यदि अमेरिका में, डेमोक्रेट्स और रिपब्लिकन्स के बीच धृवीकरण न हो, तो लोकतंत्र कैसे चलेगा? यह तो (होना ही है)। लोकतंत्र में डेमोक्रेट्स और रिपब्लिकन्स के बीच धृवीकरण तो होगा ही।

यही लोकतंत्र का मूल स्वरूप है। यही लोकतंत्र का मूल गुण है। यदि सभी लोग एक ही दिशा में जाते हों, तो क्या आप उसे लोकतंत्र कहेंगे?

लेकिन सहयोगी और भागीदार आपको अभी भी विवादास्पद मानते हैं

मैंने अभी तक मेरी पार्टी के लोगों में से किसी का या हमारे साथ गठबंधन करने वालों में से किसी का भी आधिकारिक बयान (इस बारे में) पढ़ा या सुना नहीं है। हो सकता है कि मीडिया में इस बारे में लिखा गया हो। लोकतंत्र में वे लिखते हैं … और अगर आप कोई नाम बता सकें कि भाजपा में इस व्यक्ति ने ऐसा कहा है, तो मैं इसका जवाब दे सकता हूँ।

आप अल्पसंख्यकों को, मुस्लिमों सहित, अपने लिए मतदान करने पर कैसे राज़ी करेंगे?

सबसे पहली बात, भारत के नागरिकों को, मतदाताओं को, हिन्दुओं और मुसलमानों को, मैं बांटने के पक्ष में नहीं हूँ। मैं हिन्दुओं और सिखों को बांटने के पक्ष में नहीं हूँ, मैं हिन्दुओं और ईसाइयों को बांटने के पक्ष में नहीं हूँ। सभी नागरिक, सभी मतदाता, मेरे देशवासी हैं। इसलिए मेरा मूल सिद्धांत ये है कि मैं इस मुद्दे को इस प्रकार नहीं देखता। और ऐसा करना लोकतंत्र के लिए खतरा भी होगा। धर्म आपकी राजनैतिक प्रक्रिया का साधन नहीं होना चाहिए।

यदि आप प्रधानमंत्री बनते हैं, तो आप किस नेता की तरह कार्य करेंगे?

पहली बात ये है कि, मेरे जीवन का ये सिद्धांत है और मैं इस बात का पालन करता हूँ कि: मैं कभी भी कुछ बनने का सपना नहीं देखता। मैं कुछ करने का सपना देखता हूँ। इसलिए अपने आदर्श-पुरुषों से प्रेरणा लेने के लिए मुझे कुछ बनने की आवश्यकता नहीं है। यदि मैं वाजपेयी जी से कुछ सीखना चाहूँ, तो मैं उसे सीधे गुजरात में लागू कर सकता हूँ। उसके लिए, मुझे दिल्ली का (उच्च पद का) सपना देखने की ज़रूरत नहीं है। यदि मुझे सरदार पटेल की कोई बात अच्छी लगती है, तो मैं उसे मेरे राज्य में लागू कर सकता हूँ। यदि मुझे गाँधीजी की कोई बात पसंद आती है, तो मैं उसे लागू कर सकता हूँ। प्रधानमन्त्री की कुर्सी के बारे में बात किए बिना भी हम इस पर चर्चा कर सकते हैं कि हाँ, हर व्यक्ति से हमें अच्छी बातें सीखनी चाहिए।

उन लक्ष्यों के बारे में, जो अगली सरकार को हासिल करने चाहिए

देखिए, चाहे जो भी नई सरकार सत्ता में आए, उसका पहला लक्ष्य लोगों का खोया हुआ विश्वास फिर से प्राप्त करना ही होना चाहिए।

सरकार नीतियाँ थोपने की कोशिश करती है। क्या यही नीति जारी रहेगी या नहीं? अगर दो महीने बाद, उन पर दबाव आता है, तो क्या वे इसे बदलेंगे? क्या वे ऐसा कुछ करेंगे कि – अब कोई घटना होती है, और वे सन 2000 का कोई निर्णय बदलेंगे? यदि आप अतीत के निर्णयों को बदलते हैं, तो आप पॉलिसी के बैक-इफेक्ट लाएंगे। तब दुनिया में कौन यहाँ आएगा?

इसलिए चाहे जो भी सरकार सत्ता में आए, उसे लोगों को विशवास दिलाना होगा, उसे लोगों के मन में भरोसा जगाना होगा, “हाँ, नीतियों के मामले में संगतता बनी रहेगी”, यदि वे लोगों से एक वादा करते हैं, और उसका सम्मान करते हैं, उसे पूरा करेंगे। तो आप वैश्विक पटल पर स्वयं को रख सकते हैं।

लोग कहते हैं कि गुजरात के विकास की बातें बढ़ा-चढ़ाकर बताई जाती हैं

लोकतंत्र में अंतिम निर्णय कौन लेता है? अंतिम निर्णय मतदाता का होता है। यदि ये सिर्फ बढ़ा-चढ़ाकर कही गई बात होती, यदि ये सिर्फ झूठा शोर होता, तो जनता इसे रोज़ देखती। “मोदी ने कहा था कि वह पानी देगा।” लेकिन तब लोग कहते “मोदी झूठा है। पानी हमारे यहाँ नहीं पहुँचा है।” तब मोदी को कौन पसंद करता? भारत के सतत परिवर्तनशील राजनैतिक तंत्र में, लगातार बदलते राजनैतिक दलों के होते हुए, अगर लोग मोदी को तीसरी बार चुनते हैं, और उसे लगभग दो-तिहाई बहुमत मिलता है, तो इसका मतलब लोग ये महसूस करते हैं कि मोदी जो बोलता है वह सच है। हाँ, सड़क बनाई जा रही है, हाँ, काम किया जा रहा है, बच्चों को शिक्षा मिल रही है। स्वास्थ्य के क्षेत्र में नई योजनाएं आ रही हैं। 108 (आपातकालीन नंबर) की सेवा उपलब्ध है। लोग ये सब देखते हैं। इसलिए हो सकता है कि कोई ये कहे कि सिर्फ बड़ी-बड़ी बातें की जा रही हैं, लेकिन जनता उस पर विश्वास नहीं करेगी। जनता उसे ठुकरा देगी। और जनता में बहुत शक्ति है, बहुत।

क्या आपको अधिक समावेशक आर्थिक विकास के लिए काम करना चाहिए?

गुजरात एक ऐसा राज्य है, जिस्स्से लोगों को बहुत अधिक अपेक्षाएं हैं। हम अच्छा काम कर रहे हैं, इसलिए हमसे अपेक्षाएं भी अधिक हैं। ये स्वाभाविक भी है। इसमें कुछ भी गलत नहीं है।

कुपोषण, शिशु मृत्यु दर के आंकड़ों पर-

गुजरात में, शिशु मृत्यु दर में अत्यधिक सुधार हुआ है। हिन्दुस्तान के किसी भी अन्य राज्य की तुलना में, हमारा प्रदर्शन बेहतर रहा है। दूसरी बात, कुपोषण के बारे में, आज हिन्दुस्तान में, वास्तविक आंकड़े मौजूद नहीं है। जब आपके पास वास्तविक आंकड़े ही नहीं हैं, तो आप विश्लेषण कैसे करेंगे?

हम समावेशक विकास में विश्वास करते हैं, हम मानते हैं कि इस विकास का लाभ समाज के अंतिम व्यक्ति तक पहुँचना चाहिए और और उसे इससे लाभ होना चाहिए। हम यही कर रहे हैं।

लोग ये जानना चाहते हैं कि वास्तविक मोदी कौन है – हिन्दू राष्ट्रवादी नेता या व्यापार-समर्थक मुख्यमंत्री?

मैं एक राष्ट्रवादी हूँ। मैं एक देशभक्त हूँ। इसमें कुछ भी गलत नहीं है। मैं एक हिन्दू के रूप में जन्मा हूँ। इसमें कुछ भी गलत नहीं है। इसलिए, मैं एक हिन्दू राष्ट्रवादी हूँ, हाँ, आप ऐसा कह सकते हैं। मैं एक हिन्दू राष्ट्रवादी हूँ क्योंकि मेरा जन्म हिन्दू के रूप में हुआ है। मैं देशभक्त हूँ, इसमें कुछ भी गलत नहीं है। जहां तक प्रगतिवादी, विकासोन्मुख, कार्यशील, या जो भी है, लोग कहते रहते हैं, कह रहे हैं। इन दोनों में कोई विरोधाभास नहीं है। ये दोनों छवियाँ एक ही हैं।

ब्रांड मोदी और पीआर रणनीति के पीछे कार्यरत लोगों के बारे में-

पश्चिमी विश्व और भारत – इन दोनों में बहुत अंतर है। यहाँ भारत में, कोई पीआर एजेंसे किसी व्यक्ति की छवि नहीं बना सकती। मीडिया से किसी व्यक्ति की छवि नहीं बन सकती। अगर कोई भारत में अपना नकली चेहरा प्रोजेक्ट करने का प्रयास करता है, तो मेरे देश में इसकी बहुत बुरी प्रतिक्रिया होती है। यहाँ, लोगों को सोच अलग है। लोग बनावटीपन को लंबे समय तक बर्दाश्त नहीं करेंगे। यदि आप खुद को उसी तरह प्रोजेक्ट करें, जैसे आप सचमुच हैं, तो लोग आपकी कमियों को भी स्वीकार कर लेंगे। व्यक्ति की कमज़ोरियों को स्वीकार किया जाता है। और लोग ये कहेंगे कि हाँ, ठीक है, ये ईमानदार आदमी है, ये कड़ी मेहनत करता है। तो, हमारे देश में सोच अलग है। जहाँ तक किसी पीआर एजेंसी की बात है, तो मैंने कभी कोई पीआर एजेंसी नहीं देखी है, न उनकी सुनी है और न किसी से मिला हूँ। मोदी की कोई पीआर एजेंसी नहीं है और न कभी थी।

(स्त्रोत: https://blogs.reuters.com/india/2013/07/12/interview-with-bjp-leader-narendra-modi/ से हिंदी में अनूदित)

साभार – https://blog.sumant.in/2013/07/blog-post.html

17 COMMENTS

  1. नरेंद्र मोदी ने कहा,”अगर कोई भारत में अपना नकली चेहरा प्रोजेक्ट करने का प्रयास करता है, तो मेरे देश में इसकी बहुत बुरी प्रतिक्रिया होती है।.
    नरेंद्र मोदी यहाँ भारतीयों क़ी बिल्कुल ग़लत और हिपक्रिटिकल यानि ढोंगभरी तस्वीर पेश कर रहे हैं. यह भी भारतीयों के ढोंगी चरित्र का एक नमूना है. जितना हिपोक्रिसि यानि ढोंग भारत में है,उतना बिरले ही किसी अन्य देश में हिपोक्रिसि यानि ढोंग ,जिसे मैं नैतिक दोगलापन कहता हूँ, हमारा राष्ट्रीय चरित्र बन चुका है. वहाँ यह कहना कि “अगर कोई भारत में अपना नकली चेहरा प्रोजेक्ट करने का प्रयास करता है, तो मेरे देश में इसकी बहुत बुरी प्रतिक्रिया होती है.” खुद में एक ढोंग है.

    • ​एक बड़ी सीधी सी बात है की इंटरव्यू कौन ले रहा है, एजेंसी देश की है या बाहर की? उसी के अनुसार देश की तश्वीर रखी जाती है। भारतीयों के जिस ढोंग की आप बात कर रहे हैं वो कमोबेश हर देश में मिलेंगे, हम कोई विरले नहीं हैं। घर में हम जैसे भी हैं लेकिन बाहर वाले के सम्मुख अपने देश की उजली तस्वीर ही रखनी चाहिए, और यही उचित है। इसी को आत्म गौरव कहते हैं। उचित अनुचित का ज्ञान सभी भारतियों को होना चाहिए। क्या किसके सम्मुख रखना है क्या नहीं, ये कला बखूबी आनी चाहिए। और नमो ने ये बात बखूबी रखी है विदेशी समाचार एजेंसी के सामने, इसमें गलत क्या है?

      • शिवेंद्र मोहन जी, फिर वही हिपॉक्रीसी. नाइलन के पर्दे से नंगापन ढँकने का प्रयत्न. हम क्या हैं,यह आज सब कोई जानता है, अतः अपने को छिपाने के बदले अपने को बदलने का प्रयत्न कीजिए.

        • अपने को बदलने का प्रयत्न ही तो हो रहा है …. फिर दर्द क्यों हो रहा है? जो आपको दिखाई दे रहा है केवल वही सत्य है क्या?

    • आदरणीय सिंह साहब-नमस्कार।

      कोई ठोस बिंदू पर बात कीजिए।जैसे —
      (१)गुजरात शासक मोदी का भ्रष्टाचारी शासन
      (२)गुजरात ने किया हुआ खोखला विकास,
      (३) गुजरात में, कागज पर हुयी सडकें
      (४) या बिजली की पूर्ति का झूटा शंखनाद,
      (५) अहमदाबाद में दिया जाता २४ घंटो पानी का जूठा वचन।
      (६) इ गवर्नेंस का कंप्युटर पर नाटक।
      (७) और “टाईम्स ऑफ इण्डिया” ने झुट मूट ही क्षमा मांगी थी।
      (८) कोई पूंजी निवेश हुआ ही नहीं गुजरात में, केवल असत्य प्रचार चल रहा है।
      (९) गुजरात तो कांग्रेस के शासन में अधिक समृद्ध था-पर अब उसकी स्थिति बहुत बुरी है।
      मैं आपको बहुत और विषय दे सकता हूँ। जिनपर आप आसानी से लिख सकते हैं।

      सच्चाई और सही सही तर्क और आंकडॆ प्रस्तुत कीजिए।
      शब्दों का ऐसा प्रयोग और वैसा प्रयोग क्यों किया? इससे कोई बात नहीं बनती।
      मान्यताओं की वैयक्तिक स्वतंत्रता आपको है। वही मान्यताएं सार्वजनिक कर्रने के लिए आपकॊ आंकडे और तर्क देना चाहिए। तर्क का ही उत्तर दिया जा सकता है।
      मैं गलती भी स्वीकार कर सकता हूँ। यदि सच प्रमाणित हो।

      पर इसको तो पढ लीजिए सिंह साहब।

      Narendra Modi story a hoax – Times of India Clarifies

      Read more at: https://news.oneindia.in/2013/07/14/narendra-modi-story-a-hoax-times-of-india-clarifies-1259138.html
      ३ बार एक ही टिप्पणी देकर क्या प्रमाणित करना चाहते हैं, आप?

      • डाक्टर मधुसूदन, इस तीन बार वाली भूल के लिए मुझे खेद है, पर यह तकनीकी गड़बड़ी है. ऐसा जान बूझ कर नहीं किया गया है. अगर समझ बूझ कर ऐसा किया जाता तो फेश बुक पर भी यह तीन बार आता. रही बात मोदी जी के पक्ष और विपक्ष में बोलने की,तो चूँकि मैं मोदी जी के गुजरात के विकास से पूर्ण वाकिफ़ नहीं हूँ,अतः उस पर मैं टिप्पणी नहीं देता. रही बात २००२ की, तो मैने इस पर २००२ में ही टिप्पणी दी थी कि यह तीन दिनो तक चला हुआ दंगा मेरी समझ से परे है. मोदी जी के प्रति मेरा दूसरा मतभेद है,उनका भ्रष्टाचार के प्रति रवैया और लोका युक्त की बहाली. मैने बार बार कहा है कि मोदी जी का यह नारा कि कांग्रेस हटाओं देश बचाओ १९७२ से १९७७ के बीच वाले इस नारे से भिन्न नहीं है कि इंदिरा हटाओ ,देश बचाओ. इंदिरा तो उस समय हटी,पर बाद में क्या हुआ? डाक्टर साहब,किसी पार्टी या व्यक्ति के हटने से देश का भविष्य नहीं बदलने वाला है आवश्यकता हैव्यवस्था परिवर्तन की और मोदी जी इसके बारे में मौन हैं.

      • डाक्टर मधुसूदन, इस तीन बार वाली भूल के लिए मुझे खेद है, पर यह तकनीकी गड़बड़ी है. ऐसा जान बूझ कर नहीं किया गया है. अगर समझ बूझ कर ऐसा किया जाता तो फेश बुक पर भी यह तीन बार आता. रही बात मोदी जी के पक्ष और विपक्ष में बोलने की,तो चूँकि मैं मोदी जी के गुजरात के विकास से पूर्ण वाकिफ़ नहीं हूँ,अतः उस पर मैं टिप्पणी नहीं देता. रही बात २००२ की, तो मैने इस पर २००२ में ही टिप्पणी दी थी कि यह तीन दिनो तक चला हुआ दंगा मेरी समझ से परे है. मोदी जी के प्रति मेरा दूसरा मतभेद है,उनका भ्रष्टाचार के प्रति रवैया और लोका युक्त की बहाली. मैने बार बार कहा है कि मोदी जी का यह नारा कि कांग्रेस हटाओं देश बचाओ १९७२ से १९७७ के बीच वाले इस नारे से भिन्न नहीं है कि इंदिरा हटाओ ,देश बचाओ. इंदिरा तो उस समय हटी,पर बाद में क्या हुआ? डाक्टर साहब,किसी पार्टी या व्यक्ति के हटने से देश का भविष्य नहीं बदलने वाला है आवश्यकता हैव्यवस्था परिवर्तन की और मोदी जी इसके बारे में मौन हैं.

        • आ. सिंह साहब
          आप कम से कम टाईम्स ऑफ इण्डिया का स्पष्टीकरण तो देख लीजिए; जिसने अपनी गलती ही मान ली है।—>आपकी सुविधा के लिए, कडी मैं ने दी हुय़ी है।
          (१) आपने जिस समाचार के आधार पर विवाद छेड कर काफी सारी टिप्पणियाँ भी प्रोत्साहित की थी, उसका स्पष्टीकरण देख कर अपनी स्वीकृति की, टिप्पणी भी दीजिए।
          (२) गुजरात के विषय में यदि आप नहीं जानते, कोई बात नहीं, फिर टिप्पणी किस आधारपर होती है?
          (३) कुछ कल्पना कीजिए, कि, ५८ जलते हुए यात्रियों की स्थिति क्या हुयी होंगी? प्रतिक्रिया रूप दंगा अपेक्षित ही था, न होता तो अच्छा ही होता, पर मुझे अचरज ही होता।
          (४)गांधी का अहिंसक गुजरात भी क्रोधित हुआ?तो, पुलिस, क्या हर जगह जा सकती थी? भारत विभाजन के समय लाखों लोग मारे गए, ऐसा सुना है।तो,पुलिस ने क्या किया था? शासन, कुछ कर क्यों नहीं, पाया था? बस उसी प्रकार की यह भी स्थिति समझमें आती है।
          (५) और एक प्रश्नः दंगा प्रतिक्रिया थी, रेल जलने की, क्रिया की। प्रतिक्रिया की आलोचना, और क्रिया पर आप मौन? दोनों बुरा ही मानता हूँ। पर नरेंद्र का दोष नहीं मानता।

          (६)भारत का भला यदि चाहते हैं, तो गठ्ठन बांध लीजिए—और सच्चाई के आधार पर विरोध कीजिए; कोई बात नहीं।पर इस निर्मल हृदय देश भक्त वीर नरेंद्र को मत अवश्य दीजिए।
          (७) भारत माता के परम कल्याण का शंखनाद मुझे सुनाई दे रहा है।अब,आषाढ चूकने का अवसर नहीं है?
          सच्चाई के पक्ष में विचार कीजिए,कि गुजरात ने जो दस वर्ष में प्रगति की है, वह कांग्रेस शासन ने पचास वर्षों में भी नहीं की।मुझे तो नरेन्द्र के सिवा कोई पर्यायी नेता नहीं दिखाई देता।
          क्या अपको दिखाई देता है? नाम दीजिए।
          (८) भा. ज. पा. ने तो टाईम्स ऑफ इण्डिया पर न्यायालयीन कार्यवाही करनी चाहिए।
          मैं ने सूत्रों को, सुझाव तो दिया ही है।

          सादर- मधुसूदन

          • डाक्टर मधुसूदन,मैने टाइम्स ऑफ इंडिया का वह स्पष्टीकरण देखा है. अगर आप कहते हैं,तो मैं मान लेता हूँ कि नरेंद्र मोदी ने न ऐसा कुछ किया था या न कहा था,पर वह आलेख,जहाँ ये टिप्पणियाँ दी गयी थी, एक व्यंग था. उस व्यंग को जो इतना उछाला गया,उसकी आवश्यकता भी नहीं थी,पर इस समय तो हम नरेंद्र मोदी के साक्षात्कार की चर्चा कर रहे हैं, अतः यह अलग विषय हो जाता है. नरेंद्र मोदी से मुझे कोई व्यक्तिगत दुश्मनी तो है नहीं,पर नेताओं का बड़बोला पन सुनते हुए कान पक गये हैं,अतः ऐसे किसी भी बड़बोलापन के विरुद्ध मेरी आवाज़ उठेगी ही,चाहे वे नरेंद्र मोदी ही क्यों न हों. अन्य विषय जैसे गुजरात के दंगे पर मेरे विचार में कोई भी स्पष्टीकरण शायद ही परिवर्तन लाए. ऐसे बातें बहुत हैं,पर यहाँ उसकी आवश्यकता मैं नहीं समझता.

  2. नरेंद्र मोदी ने कहा,”अगर कोई भारत में अपना नकली चेहरा प्रोजेक्ट करने का प्रयास करता है, तो मेरे देश में इसकी बहुत बुरी प्रतिक्रिया होती है।.
    नरेंद्र मोदी यहाँ भारतीयों क़ी बिल्कुल ग़लत और हिपक्रिटिकल यानि ढोंगभरी तस्वीर पेश कर रहे हैं. यह भी भारतीयों के ढोंगी चरित्र का एक नमूना है. जितना हिपोक्रिसि यानि ढोंग भारत में है,उतना बिरले ही किसी अन्य देश में होगा. हिपोक्रिसि यानि ढोंग ,जिसे मैं नैतिक दोगलापन कहता हूँ, हमारा राष्ट्रीय चरित्र बन चुका है. वहाँ यह कहना कि “अगर कोई भारत में अपना नकली चेहरा प्रोजेक्ट करने का प्रयास करता है, तो मेरे देश में इसकी बहुत बुरी प्रतिक्रिया होती है.” खुद में एक ढोंग है.

  3. नरेंद्र मोदी ने कहा,”अगर कोई भारत में अपना नकली चेहरा प्रोजेक्ट करने का प्रयास करता है, तो मेरे देश में इसकी बहुत बुरी प्रतिक्रिया होती है।
    नरेंद्र मोदी यहाँ भारतीयों क़ी बिल्कुल ग़लत और हिपक्रिटिकल यानि ढोंगभरी तस्वीर पेश कर रहे हैं. यह भी भारतीयों के ढोंगी चरित्र का एक नमूना है. जितना हिपोक्रिसि यानि ढोंग भारत में है,उतना बिरले ही किसी अन्य देश में हिपोक्रिसि यानि ढोंग ,जिसे मैं नैतिक दोगलापन कहता हूँ, हमारा राष्ट्रीय चरित्र बन चुका है. वहाँ यह कहना कि “अगर कोई भारत में अपना नकली चेहरा प्रोजेक्ट करने का प्रयास करता है, तो मेरे देश में इसकी बहुत बुरी प्रतिक्रिया होती है.” खुद में एक ढोंग है

  4. जान लीजिए; कि, नरेंद्र मोदी आलोचना से भी सीखते हैं, कितने सारे उदाहरण आप को मिल जाएंगे।

    (१)उदा:कुछ क्रिकेट के खिलाडि्यों के विषय में उनपर कुछ आलोचना हुयी थी। उसके दूसरे या तीसरे दिन गुजराती समाचारों में, उनपर सकारात्मक क्रियान्वयन किया गया।
    (२) हाँ, आलोचना उनके सामने लाई जाएँ, और उन्हें उसकी सच्चाई पर विश्वास होना आवश्यक है।
    (३)===>उदा: उनका इ गवर्नंस अतीव सफल उदाहरण भी इसीका है। संगणक पर ३रे गुरूवार को सबेरे ९ से १२ तक, समस्याएं प्रस्तुत कीजिए। और संध्या के ३ या ५ बजे तक, सारी समस्याओं का समाधान।मैं तीन बार उनसे सपरिवार मिला हूँ। हर बार निर्मल हृदय नेता ही प्रतीत हुआ है।
    (५) असामान्य व्यक्तित्व है, पर मानव भी है।
    (६) गुजराती में एक कहावत है, कि दोष ही देखना हो, तो आप को शुद्ध श्वेत दूध में गौ ने कल के खाए हुए घास का तिनका भी दिखाई देगा।

    (७)जो कांग्रेस नें पचास वर्षों में नहीं किया, उसे इस मृगेन्द्र ने कुछ वर्षों में कर के दिखाया।
    ===>इस बार आषाढ चुकना मत भारत। फिर पछताए कुछ नहीं होगा।
    अपने विचारों के अंडे से बाहर आइए, यदि मुक्त विचार करने की क्षमता है। ऋतंभरा दृष्टि (पतंजली योगदर्शन-) को जागृत किए बिना, आप मुक्त विचार नहीं कर पाएंगे।

  5. मोदी एक जिम्मेवार व्यक्ति की तरह स्पष्टवादी की तरह रायटर जैसी एजेंसी को साक्षात्कार दे रहे है न कि आज के अन्य बडबोले नेताओ क़ी बकवास क़ी तरह.मुझे लगता है कि मोदिफोबिया से ग्रसित है ये लोग .वे देश के प्रधानमंत्री बनते है या नहीं यह आने वाले समय पर छोड़ दिया जय क्यों कि बहुत सारे कारक इसमे सम्मिलित होंगे.पर जहाँ तक उसकी नेतृत्व छमता और प्रभावी व्यक्तित्व का सवाल है वो समकालीन व्यक्तित्वों से कहीं आगे है और यही कारण भी है कि उनका अन्दर और बाहर कभी मौन रूप से तो कभी मुखरता से विरोध जताया जाता है, और यह कहीं से भी गलत नहीं है. गलत तो तब हो जाता है स्वस्थ बहस न हो कर कीचड़ उछालने

    का उद्यम आरंभ हो जाता है.वो राष्ट्रवादी है या नहीं इसकी परिभाषा कौन करेगा दिग्विजय सिंह या उनके जैसे दुसरे स्वार्थी नेता जो वोट के लिए देश को दावों पर लगाने में कोई शर्म महसूस नहीं करते.चाहे वो कश्मीर बार्डर पर जवानो के सर काट कर पाकिस्तानी का ले जाना और तुरत बाद उनके प्रधानमंत्री का अजमेर शरीफ आना और भारत सरकार का उनका स्वागत करना जब कि यह उनकी निजी यात्रा थी इसी तरह के बहुत उदाहरण हो सकते है मोदी से भयभीत नेता लोग क्या करे यह उनकी समझ में ही नहीं आ रहा है. विचारधारा भिन्न हो सकती है और कई विन्दु aise भी हो सकते है जहा वे विपरीत भी हो पर जिस प्रकार घ्रणित बयानबाजी होती है तो बहुत अफ़सोस होता है

    बिपिन कुमार सिन्हा

    • सिन्हा साहब, कुछ लोगों की बुद्धि ही भ्रष्ट है कांग्रेस की तरह, तो उनका कुछ नहीं हो सकता, उनके पास मीन मेख निकालने के सिवा और कुछ काम ही नहीं है, ये नहीं बोलना चाहिए था वो नहीं बोलना चाहिए था, ऐसे बोलना चाहिए था वैसे बोलना चाहिए था, “पिल्ले वाले उद्धरण का सीधा सा अर्थ था कि, छोटे से छोटा जीव भी अगर पहिये के नीचे आ जाए तो दुःख होता है, और कुत्ते का उदहारण इस लिए था की भारत में आवारा कुत्तों की संख्या आश्चर्य जनक रूप से बहुत ज्यादा है, और तो और आप देखेंगे की इन कुत्तों की मौत सड़क पर ही होती है।
      ​​
      ​कुछ राजनीतिक दलों ने तो मुस्लिम समुदाय की तुलना ही कुत्तों से कर दी, अब ये तो मुस्लिम भाइयों को समझना है की उनकी क्या औकात है इन दलों की नज़रों में।

      सादर,

  6. नरेंद्र मोदी ने कहा,”एक और बात, अगर कोई भी व्यक्ति एक कार चला रहा है, हम चला रहे हैं या कोई और कार चला रहा है और हम पीछे बैठे हैं, फिर भी अगर कार ने नीचे कोई कुत्ते का पिल्ला आ जाए, तो हमें इसका दुःख होगा या नहीं? बिलकुल होगा। मैं मुख्यमंत्री रहूँ या न रहूँ। मैं एक मनुष्य हूँ। अगर कहीं भी, कुछ भी बुरा होता है, तो स्वाभाविक रूप से उसका दुःख तो होता ही है।”
    नरेंद्र मोदी ने शायद यह नहीं कहा कि कुत्ते का पिल्ला भी आ जाए, क्योंकि कुत्ते का पिल्ला आ जाए और कुत्ते का पिल्ला भी आ जाए,में अंतर है. हालाँकि वे यह भी कह सकते थे कि एक छोटा बच्चा भी आ जाए. पता नहीं यह नरेंद्र मोदी की मासूमियत है या उनका असली आंतरिक स्वरूप, जो उनकी जिहवा से सामने आ गया

    • यह गौण बिन्दू मानता हूँ। एक उदाहरण का रूप है। उसीपर समय व्यर्थ क्यों किया जाए?
      गुजराती में एक कहावत है, कि दोष ही देखना हो, तो आप को शुद्ध श्वेत दूध में गौ ने कल के खाए हुए घास का तिनका भी दिखाई देगा।

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