प्रस्तावना/ प्रकाशस्तंभ जैसी किताब

हाल ही में सुप्रसिद्ध युवा पत्रकार व गजलकार सुश्री फ़िरदौस खान की किताब ‘गंगा-जमुनी संस्कृति के अग्रदूत’ प्रकाशित हुई है। इस किताब में 55 संतों व फकीरों की वाणी एवं जीवन-दर्शन को प्रस्‍तुत किया गया है। इसकी ‘प्रस्‍तावना’ राष्ट्रीय स्वंयसेवक संघ के वरिष्ठ प्रचारक श्री इन्‍द्रेश कुमार ने लिखी है, जोकि वर्तमान हालात में अत्‍यंत प्रासंगिक व विचारोत्‍तेजक है। आज जिस तरीके से मुट्ठी भर कट्टरपंथी ताकतें हिंदू और मुसलिम समुदाय के बीच खाई गहराने में लगे हैं, ऐसे समय में यह किताब निश्चित रूप से भारतीय समाज के लिए प्रकाशस्‍तंभ का कार्य करेगी। हम यहां प्रस्‍तावना का पूरा पाठ प्रकाशित कर रहे हैं-

Picture 009लेखनी विचारों को स्थायित्व प्रदान करती है। इस मार्ग से ज्ञान जन साधारण के मन में घर कर लेता है। अच्छा और बुरा दोनों समान रूप से समाज व मनुष्य के सामने आता रहता है और उसके जीवन में घटता भी रहता है। दोनों में से ही सीखने को मिलता है, आगे बढने का अवसर मिलता है। परंतु निर्भर करता है सीखने वाले के दृष्टिकोण पर ‘आधा गिलास ख़ाली कि आधा गिलास भरा’, ‘बुरा जो देखन मैं चला बुरा न मिलया कोई’। अच्छे में से तो अच्छा सीखने को मिलता ही है, परंतु बुरे में से भी अच्छा सीखना बहुत कठिन है। प्रस्तुत पुस्तक ‘सुतून-ए-गंग-ओ-जमन’ जब समाज में जाति, पंथ, दल, भाषा के नाम पर द्वेष फैल रहा हो, सभ्यताओं के नाम पर टकराव बढ रहा हो, संसाधनों पर कब्जे की ख़ूनी स्पर्धा हो, ऐसे समय पर प्रकाश स्तंभ के रूप में समाधान का मार्ग दिखाने का अच्छा प्रयास है।

इस्लाम में पांच दीनी फर्ज़ बताए गए हैं-(1) तौहीद, (2) नमाज़, (3) हज, (4) रोजा और (5) ज़कात। परंतु इसी के साथ-साथ एक और भी अत्यंत सुंदर नसीहत दी गई है ‘हुब्बुल वतनी निफसुल ईमान’ अर्थात् वतन (राष्ट्र) से प्यार करना, उसकी रक्षा करना एवं उसके विकास और भाईचारे के लिए काम करना, यह उसका फर्ज़ है। इस संदेश के अनुसार मुसलमान को दोनों यानि मजहबी एवं वतनी फर्ज़ में खरा उतरना चाहिए। हज के लिए मक्का शरीफ जाएंगे, परंतु जिन्दाबाद सऊदी अरब, ईरान, सूडान की नहीं बल्कि हिन्दुस्तान की बोलेंगे। सर झुकेगा हिन्दुस्तान पर, कटेगा भी हिन्दुस्तान के लिए।

इसी प्रकार से इस्लाम में अन्य अनेक महत्वपूर्ण बातें कही गई हैं जैसे ‘लकुम दीनुकुम बलियदीन’ अर्थात् तेरा दीन तेरा, मेरा दीन मेरा, एक-दूसरे के दीन में दख़ल नहीं देंगे, एक-दूसरे के दीन की इज्ज़त करेंगे। सर्वपंथ समभाव यानि समन्वय यानि आपसी बंधुत्व का बहुत ही ख़ूबसूरत मार्ग है। इसीलिए ऊपरवाले को ‘रब-उल-आलमीन’ कहा गया है न कि ‘रब-उल-मुसलमीन’। उसका सांझा नाम ‘ऊपरवाला’ है। संपूर्ण विश्व के सभी पंथों के लोग हाथ व नज़र ऊपर उठाकर प्रार्थना (दुआ) करते हैं। ‘ऊपरवाले’ को अपनी-अपनी मातृभाषा में पुकारना यानि याद करना। वह तो अंतर्यामी है। वह तो सभी भाषाएं एवं बोलियां जानता है। वह तो गूंगे की, पत्थर की, कीट-पतंग की भी सुनता है जो कि आदमी (मनुष्य) नहीं जानता है। अंग्रेजी-लेटिन में उसे God, अरबी में अल्लाह, तुर्की में तारक, फारसी में ख़ुदा, उर्दू में रब, गुरुमुखी में वाहे गुरु, हिन्दी-संस्कृत-असमिया-मणिपुरी-कश्मीरी-तमिल-गुजराती-बंगला-मराठी-नेपाली-भोजपुरी-अवधी आदि में भी पुकारते हैं भगवान, ईश्वर, परमात्मा, प्रभु आदि। ऊपरवाला एक है नाम अनेक हैं। गंतव्य व मंतव्य एक है, मार्ग व पंथ अनेक हैं। भारतीय संस्कृति का यही पावन संदेश है। अरबी भाषा में ‘अल्लाह-हु-अकबर’ को अंग्रेजी में God is Great, हिन्दी में ‘भगवान (ईश्वर) महान है’ कहेंगे। इसी प्रकार से संस्कृत के ‘वंदे मातरम्’ को अंग्रेजी में Salute to Motherland और उर्दू में मादरे-वतन जिन्दाबाद कहेंगे। इसी प्रकार से अरबी में ‘ला इलाह इल्लल्लाह’ को संस्कृत में ‘खल्विंदम इदम सर्व ब्रह्म’ एवं हिन्दी में कहेंगे प्रभु सर्वशक्तिमान है, सर्वज्ञ है और वह एक ही है, उर्दू में कहेंगे कि ख़ुदा ही सब कुछ है, ख़ुदा से ही सब कुछ है।

हज़रत मुहम्मद साहब ने बुलंद आवाज़ में कहा है कि मेरे से पूर्व ख़ुदा ने एक लाख 24 हज़ार पैगम्बर भेजे हैं। वे अलग-अलग समय पर, अलग-अलग प्रकार के हालात में, अलग-अलग धरती (देश) पर आए हैं। उनकी उम्मतें भी हैं, किताबें भी हैं। अनेक उम्मतें आज भी हैं। इस हदीस की रौशनी में एक प्रश्न खडा होता है कि वे कौन हैं? इस प्रश्न का उत्तर देते हुए डॉ. मौलवी मु. असलम कासमी (फाजिल-दारूल-उलूम-देवबंद) अपनी पुस्तक ‘जिहाद या फसाद’ में लिखते हैं कि कुरान शरीफ़ में 25 पैगम्बरों का वर्णन मिलता है, जिसमें से दो पैगम्बर ‘आदम और नूह’ भारत आए हैं जिन्हें पहला एवं जल महाप्रलय वाला मनु कहा व माना जाता है। इसलिए गीता में भगवान कृष्ण ने कहा है-

यदा यदा हि धर्मस्य ग्लानिर्भवति भारत।

अभ्युत्थानमधर्मस्य तदत्मानं सृजाम्यहम्॥

परित्राणाय साधूनां विनाशाय च दुष्कृताम्।

धर्मसंस्थापनार्थाय सम्भवामि युगे-युगे॥

अर्थात् जब-जब मानवता (धर्म) नष्ट होती है, दुष्टों के अत्याचार बढते हैं, तब मैं समय-समय पर धर्म (सज्जनता) की स्थापना हेतु आता हूं।

एक बात स्वयं रसूल साहब कहते हैं कि मुझे पूर्व से यानि हिमालय से यानि हिन्दुस्तान से ठंडी हवाएं आती हैं यानि सुकून (शांति) मिलता है। भारत में भारतीय संस्कृति व इस्लाम के जीवन मूल्यों को अपनी जिन्दगी में उतारकर कट्टरता एवं विदेशी बादशाहों से जूझने वाले संतों व फकीरों की एक लम्बी श्रृंखला है जो मानवता एवं राष्ट्रीयता का पावन संदेश देते रहे हैं। बहुत दिनों से इच्छा थी कि ऐसे श्रेष्ठ भारतीय मुस्लिम विद्वानों की वाणी एवं जीवन समाज के सामने आए, ताकि आतंक, मजहबी कट्टरता, नफरत, अपराध, अनपढ़ता आदि बुराइयों एवं कमियों से मुस्लिम समाज बाहर निकलकर सच्ची राष्ट्रीयता के मार्ग पर तेंज गति व दृढ़ता से आगे बढ़ सके। कहते हैं ‘सत्य परेशान हो सकता है पराजित नहीं’। इन संतों व फकीरों ने तो राम व कृष्ण को केंद्र मान सच्ची इंसानियत की राह दिखाई है। किसी शायर ने कहा है-

मुश्किलें हैं मुश्किलों से घबराना क्या

दीवारों में ही तो दरवाज़े निकाले जाते हैं 

शेख़ नज़ीर ने जो दरगाह और मंदिर के बीच खडे होकर कहा-

जब आंखों में हो ख़ुदाई तो पत्थर भी ख़ुदा नज़र आया

जब आंखें ही पथराईं तो ख़ुदा भी पत्थर नज़र आया 

इस नेक, ख़ुशबू एवं ख़ूबसूरती भरे काम को पूर्ण करने के लिए मेरे सामने थी मेरी छोटी बहन एवं बेटी सरीखी फ़िरदौस ख़ान। जब मैंने अपनी इच्छा व्यक्त की तो उसने कहा कि भैया यह तो ऊपरवाले ने आपके द्वारा नेक बनो और नेक करो का हुकुम दिया है, मैं इस कार्य को अवश्य संपन्न करूंगी। ‘गंगा-जमुनी संस्कृति के अग्रदूत’ पुस्तक में ऐसे ही 55 संतों व फकीरों की वाणी एवं जीवन प्रकाशित किया गया है। लेखिका चिन्तक है, सुधारवादी है, परिश्रमी है, निर्भय होकर सच्चाई के नेक मार्ग पर चलने की हिम्मत रखती है। विभिन्न समाचार-पत्रों व पत्रिकाओं में नानाविध विषयों पर उसके लेख छपते रहते हैं। जिन्दगी में यह पुस्तक लेखिका को एवं समाज को ठीक मिशन के साथ मंजिल की ओर बढ़ने का अवसर प्रदान करेगी। सफलताओं की शुभकामनाओं के साथ मैं ईश्वर से प्रार्थना करूंगा उस पर उसकी कृपा सदैव बरसती रहे। 

भारत के ऋषि, मुनियों अर्थात् वैज्ञानिकों एवं विद्वानों ने वैश्विक स्तर पर बंधुत्व बना रहे इसके लिए हंजारों, लाखों वर्ष पूर्व एक सिध्दांत यानि सूत्र दिया गया था ‘वसुधैव कुटुम्बकम’ यानि World is one family यानि ‘विश्व एक परिवार है’। परिवार का भाव एवं व्यवहार ही अधिकतम समस्याओं के समाधान का उपाय है। भारत वर्ष में समय-समय पर अनेक पंथ (मत) जन्मते रहे और आज भी जन्म रहे हैं। इन सब पंथों के मानने वालों का एक-दूसरे पंथ में आवागमन कभी भी टकराव एवं देश के प्रति, पूर्वजों के प्रति अश्रध्दा का विषय नहीं बना। जब इस्लाम जो कि भारत के बाहर से आया और धीरे-धीरे भारी संख्या में भारतीय समाज अलग-अलग कारणों से इस्लाम में आ गया तो कुछ बादशाहों एवं कट्टरपंथियों द्वारा इस आड़ में अरबी साम्राज्य के विस्तार को भारत में स्थापित करने के प्रयत्न भी किए जाने लगे, जबकि सत्य यह है कि 99 प्रतिशत मुस्लिमों के पूर्वज हिन्दू ही हैं। उन्होंने मजहब बदला है न कि देश एवं पूर्वज और न ही उनसे विरासत में मिली संस्कृति (तहजीब) बदली है। इसलिए भारत के प्राय: सभी मुस्लिम एवं हिन्दुओं के पुरखे सांझे हैं यानि समान पूर्वजों की संतति है। इसी ‘वसुधैव कुटुम्बकम’ को भारत में एक और नया नाम मिला ‘गंगा जमुनी तहजीब’। गंगा और यमुना दोनों नदियां भारतीय एवं भारतीयता का प्रतीक हैं, इनका मिलन पवित्र संगम कहलाता है, जहां नफरत, द्वेष, कट्टरता, हिंसा, विदेशियत नष्ट हो जाती है। मन एवं बुध्दि को शांति, बंधुत्व, शील, ममता, पवित्रता से ओत-प्रोत करती है। आज हिन्दुस्तान के अधिकांश लोग इसी जीवन को जी ना चाहते हैं। ख़ुशहाल एवं शक्तिशाली हिन्दुस्थान बनाना व देखना चाहते हैं।

मुझे विश्वास है कि प्रकाश स्तंभ जैसी यह पुस्तक ‘गंगा-जमुनी संस्कृति के अग्रदूत’ सभी देशवासियों को इस सच्ची राह पर चलने की हिम्मत प्रदान करेगी। 

-इंद्रेश कुमार

(लेखक राष्ट्रीय स्वंयसेवक संघ के वरिष्ठ प्रचारक हैं. साथ ही हिमालय परिवार, राष्ट्रवादी मुस्लिम आंदोलन, भारत तिब्बत सहयोग मंच, समग्र राष्ट्रीय सुरक्षा मंच आदि के मार्गदर्शक एवं संयोजक हैं)

3 COMMENTS

  1. mein baar baar is post men aayin baton ko dekhta hoon aur vichhar karta hoon jab aisi baten hen to phir hamara desh asant kiyon he ?
    इसी प्रकार से संस्कृत के ‘वंदे मातरम्’ को अंग्रेजी में Salute to Motherland और उर्दू में मादरे-वतन जिन्दाबाद कहेंगे। इसी प्रकार से अरबी में ‘ला इलाह इल्लल्लाह’ को संस्कृत में ‘खल्विंदम इदम सर्व ब्रह्म’ एवं हिन्दी में कहेंगे प्रभु सर्वशक्तिमान है, सर्वज्ञ है और वह एक ही है, उर्दू में कहेंगे कि ख़ुदा ही सब कुछ है, ख़ुदा से ही सब कुछ है।

    हज़रत मुहम्मद साहब ने बुलंद आवाज़ में कहा है कि मेरे से पूर्व ख़ुदा ने एक लाख 24 हज़ार पैगम्बर भेजे हैं। वे अलग-अलग समय पर, अलग-अलग प्रकार के हालात में, अलग-अलग धरती (देश) पर आए हैं। उनकी उम्मतें भी हैं, किताबें भी हैं। अनेक उम्मतें आज भी हैं। इस हदीस की रौशनी में एक प्रश्न खडा होता है कि वे कौन हैं? इस प्रश्न का उत्तर देते हुए डॉ. मौलवी मु. असलम कासमी (फाजिल-दारूल-उलूम-देवबंद) अपनी पुस्तक ‘जिहाद या फसाद’ में लिखते हैं कि कुरान शरीफ़ में 25 पैगम्बरों का वर्णन मिलता है, जिसमें से दो पैगम्बर ‘आदम और नूह’ भारत आए हैं जिन्हें पहला एवं जल महाप्रलय वाला मनु कहा व माना जाता है। इसलिए गीता में भगवान कृष्ण ने कहा है-

    यदा यदा हि धर्मस्य ग्लानिर्भवति भारत।
    अभ्युत्थानमधर्मस्य तदत्मानं सृजाम्यहम्॥
    परित्राणाय साधूनां विनाशाय च दुष्कृताम्।
    धर्मसंस्थापनार्थाय सम्भवामि युगे-युगे॥
    अर्थात् जब-जब मानवता (धर्म) नष्ट होती है, दुष्टों के अत्याचार बढते हैं, तब मैं समय-समय पर धर्म (सज्जनता) की स्थापना हेतु आता हूं।

  2. जिस् कीताब् के बारॆ मॆ इद्रेश् जी नॆ इतना कुछ् लिख दिया उसमॆ क्या हॊगा यॆ तॊ पता च्ल ही गया, इसॆ हम अप्नी लायबेरी मे जरुर् रखेगे

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