अमेरिकी हिटलर शाही की अनदेखी करता ईरान

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तनवीर जाफरी

पिछले कुछ दिनों से अमेरिका ईरान के मध्य यद्ध की संभावनाओं की खबरें तेज़ होती जा रही हैं। खबर है कि जहां अमेरिका ने अपने प्रमुख समुद्री युद्धपोत लिंकन को ईरान से निपटने हेतु रवाना कर दिया है वहीं अमेरिका ने 13.6 टन वज़नी पारंपरिक बंकर बस्टर बम बनाने का काम भी तेज़ कर दिया है। यह बम अमेरिका ने विशेष रूप से ईरान व उत्तर कोरिया के परमाणु ठिकानों पर हमले करने की गरज़ से तैयार किया है। मैसिव ऑर्डिनेंस पेनेट्रेटर नामक यह बम भूमिगत परमाणू ठिकानों को तहस नहस करने की क्षमता रखते हैं। इन सैन्य तैयारियों से पूर्व भी अमेरिका ईरान के विरुद्ध दुनिया को संगठित करने,ईरान पर अधिक से अधिक प्रतिबंध लगाने,उसे दुनिया से अलग-थलग रखने जैसी तमाम कोशिशें कर चुका है। परंतु ईरान अमेरिका की किसी भी धमकी व दबाव की परवाह किए बिना अपने परमाणु कार्यक्रमों को न केवल संचालित कर रहा है बल्कि इसमें दिन-प्रतिदिन और इज़ाफा करता जा रहा है। ईरान बार बार यह बात दोहरा रहा है कि उसके परमाणु कार्यक्रम उसकी अपनी उर्जा संबंधी ज़रूरतों को पूरा करने के लिए हैं जबकि अमेरिका ईरान के इस दावे को झुठला रहा है और यह आरोप लगा रहा है कि ईरान गुपचुप तरीक़े से परमाणु हथियार बना रहा है और ईरान के परमाणु हथियार विश्व शांति के लिए बहुत बड़ा खतरा हैं।

 

अमेरिका व ईरान के मध्य ताज़ा तनाव पिछले दिनों उस समय और बढ़ गया जबकि ईरान के राष्ट्रपति अहमदी नेजाद ने ईरान पर लगे तमाम अंतर्राष्ट्रीय प्रतिबंधों के बावजूद तेहरान में एक कार्यक्रम के दौरान सार्वजनिक रूप से एक परमाणु रिएक्टर में अपने ही देश में निर्मित परमाणु संवर्धित छड़ें स्थापित कीं। इसके अतिरिक्त अहमदी नेजाद ने ईरान में चार और नए परमाणु रिएक्टर स्थापित किए जाने का भी आदेश जारी किया। इस प्रकार ईरान ने यह दावा किया उसने पूर्णतया स्वदेशी वैज्ञानिकों द्वारा तैयार व स्वदेश में ही नए युरेनियम से बने सेंट्रीफ्यूज़ व परमाणु संयंत्र के लिए ईंधन की प्लेट बनाकर स्वदेशी तकनीक पर आधारित परमाणु कार्यक्रम को आगे बढ़ाया है। परमाणु विज्ञान की तकनीक में ईरान की इस उपलब्धि के बाद अमेरिका ने एक बार फिर दुनिया को आगाह किया है कि वे ईरान से संबंध न रखें,उसे सहयोग न करें,ईरान से दूर रहें तथा उसे अलग-थलग करें। परंतु ईरान के राष्ट्रपति अहमदी नेजाद तो अमेरिका की घुड़कियों की परवाह करने के बजाए उसे आंखें दिखाने पर अधिक विश्वास कर रहे हैं। निजाद ने कहा है कि ईरान के परमाणु संयंत्रों में लगभग 6000 सेंट्रीफ्यूज़ काम कर रहे हैं जबकि तीन हज़ार सेंट्रीफ्यूज़ नए लगाए गए हैं। इस प्रकार अब ईरान के पास 9000 सेंट्रीफ्यूज़ हो गए हैं। हालांकि उन्होंने यह भी कहा कि ईरान अपनी समस्त परमाणु उपलब्धियों व इसके संयंत्रों संबंधी जानकारी को अंतर्राष्ट्रीय परमाणु उर्जा ऐजेंसी से सांझा करेगा। तथा उसकी निगरानी में ही रखेगा। साथ ही साथ उन्होंने अमेरिका को भी ललकारते हुए पुन:यह दोहराया कि बड़ी अजीब बात है कि जो देश परमाणु हथियारों का विरोध करते हैं और सबसे ज्य़ादा हाय-तौबा मचाते हैं वही देश परमाणु हथियारों का सबसे बड़ा ज़खीरा भी रखते हैं। उन्होंने अमेरिकी सैन्य धमकियों का जवाब देते हुए यह भी कहा कि अमेरिका में ज्य़ादा दम नहीं बचा है और यदि ज़रूरत पड़ी तो ईरान अमेरिका को सबक भी सिखा सकता है।

 

गौरतलब है कि ईरान का परमाणु कार्यक्रम कोई नया कार्यक्रम नहीं है। दरअसल इसकी शुरूआत 1960 से हो चुकी थी। परंतु ईरान में 1990 में आई इस्लामिक क्रांति के बाद यह कार्यक्रम बुरी तरह प्रभावित हुआ। उसके पश्चात 1990 के बाद इस योजना में पुन:तेज़ी आई जोकि अमेरिकी विरोध के बावजूद प्रगति पर है। अमेरिका का आरोप है कि ईरान अपनी उर्जा ज़रूरतों को पूरा करने के बहाने अपने देश में अवैध तरीक़े से परमाणु हथियार बना रहा है। और ईरान की यह कोशिश परमाणु अप्रसार संधि का खुला उल्लंघन है। जबकि ईरान अमेरिका के ऐसे सभी आरोपों को खारिज कर रहा है। दरअसल ईरान की ओर अमेरिका का उंगली उठाया जाना तथा परमाणु हथियारों की अपलब्धता को लेकर उस पर संदेह करना अब दुनिया के तमाम देशों के गले नहीं उतर रहा है। इसका जहां एक कारण इराक में अमेरिका द्वारा झूुठ बोलकर सद्दाम हुसैन को सत्ता से बेदखल करने की साजि़श रचना लगभग प्रमाणित हो चुका है वहीं दुनिया यह बात भी बखूबी समझा रही है कि महज़ इज़राईल की पीठ थपथपाने तथा उसे सुरक्षा कवच प्रदान करने के लिए ही अमेरिका ईरान को अपने निशाने पर लिए हुए है। इन्हीं परिस्थितियों में इज़राईल भी ईरान को अपने लिए सबसे बड़ा खतरा मान रहा है।

 

पिछले कुछ दिनों में ऐसी कई तनावपूर्ण घटनाएं देखने को मिलीं जिनसे यह महसूस होता है कि अमेरिका जहां ईरान को डराने-धमकाने व सैन्य कार्रवाई करने तक की धमकी दे रहा है वहीं ईरान भी अमेरिका की सभी धमकियों की न सिर्फ अनदेखी कर रहा है बल्कि उसे पूरी तरह चुनौती दे रहा है। पिछले दिनों ईरान ने अमेरिका के अत्याधुनिक ड्रोन विमान को स्वदेशी तकनीक से ईरान के सीमा क्षेत्र में उतारने का दावा कर अमेरिकी वैज्ञानिकों के होश उड़ा दिए। इस घटना से तिलमिलाए हुए अमेरिका को यह कहना पड़ा कि यह ड्रोन किसी तकनीकी खराबी के कारण ईरानी क्षेत्र में गिर गया है। अब ईरान ने पुन:यह ताज़ा खुलासा किया है कि उसके पास 6 अमेरिकी ड्रोन मौजूद हैं। और यह सभी ड्रोन उसने अपनी स्वदेशी वैज्ञानिक तकनीक के आधार पर ईरान में उतार लिए हैं। ईरान ने यह भी घोषणा की है कि वह जल्द ही इन अमेरिकी ड्रोन की प्रदर्शनी भी लगाने जा रहा है। इससे पूर्व ईरान ने ईरानी मूल के उस अमेरिकी युवा वैज्ञानिक को फांसी की सज़ा भी सुना दी थी जिसपर कि सीआईए के लिए काम करने का संदेह था। उधर ईरान में एक युवा परमाणु वैज्ञानिक की एक धमाके में हुई रहस्यमयी मौत के बाद ईरान ने उस हादसे के लिए सीधे तौर पर अमेरिका को जि़म्मेदार ठहरा दिया है।

 

अब ताज़ातरीन घटना भारत,थाईलैंड व जार्जिया में हुए बम धमाकों की है। इज़रायल का आरोप है कि यह धमाके ईरान प्रायोजित आतंकवाद का हिस्सा हैं तथा ईरान ने ही करवाए हैं जबकि ईरान ने इन घटनाओं में अपना किसी प्रकार का हाथ होने से इंकार किया है तथा स्वयं इज़राईल को ही इन घटनाओं का दोषी करार दिया है। दरअसल इज़राईल की भी यह मंशा है कि अमेरिका ईरान के विरुद्ध सैन्य कार्रवाई करे तथा उसके परमाणु ठिकानों को नष्ट करने के साथ-साथ उसकी सैन्य शक्ति को भी कमज़ोर करे। अमेरिका,ईरान की अहमदी निजाद की सरकार को नीचा दिखाने के लिए उस पर तमाम प्रकार के अंतर्राष्ट्रीय प्रतिबंधों की हिमायत करने समेत न केवल तरह-तरह के दबाव बढ़ाता जा रहा है बल्कि ईरान के भीतर मौजूद अहमदी निजाद के विरोधियों की भी सहायता लेने की कोशिश कर रहा है। भारत से भी अमेरिका ने यह अपेक्षा की थी कि वह ईरान के विरुद्ध व अमेरिका के साथ खड़ा हो। परंतु भारत ने अमेरिका को इस विषय पर दो टूक जवाब दे दिया। गोया वर्तमान समय में चीन व भारत जैसे देश भी ईरान के साथ खड़े हैं ।

 

उधर अमेरिकी दबाव में आकर फ्रांस,स्पेन,इटली, ग्रीस,नीदरलैंड,व पुर्तगाल जैसे देशों ने आगामी जुलाई से ईरान से तेल का आयात बंद करने की धमकी दी थी। इन यूरोपियन देशों का यह अनुमान था कि इस प्रकार की धमकी से ईरान पर दबाव बढ़ाया जा सकता है। परंतु ईरान ने इन यूरोपीय देशों की धमकी के जवाब में जुलाई की प्रतीक्षा किए बिना उन्हें किया जा रहा तेल का निर्यात तत्काल रूप से बंद कर दिया। अपने इस कदम से ईरान ने यह प्रमाणित करने की भी कोशिश की है कि वह आर्थिक रूप से भी फिलहाल सुदृढ़ है तथा उसे किसी देश की किसी प्रकार की धमकी की कोई परवाह नहीं है। इस प्रकार दिन-प्रतिदिन ईरान के साथ दुनिया के अन्य देशों से बढ़ते जा रहे तनावपूर्ण हालात निश्चित रूप से मंदी व मंहगाई के वर्तमान युग में आम लोगों के लिए गहन चिंता का विषय बने हुए हैं। अमेरिका व ईरान के बीच की वर्तमान तनातनी दुनिया को यह सोचने के लिए भी मजबूर कर रही है कि आखिर अमेरिका के प्रति ईरान द्वारा बढ़ते जा रहे इतने सख्त व निडर रवैये का कारण क्या है। क्या अमेरिका,ईरान को भी इराक की ही तरह समझने की भूल कर रहा है या फिर ईरान अमेरिका के वर्तमान खोखलेपन को समझ चुका है? और यह भी कि क्या अमेरिका-ईरान के मध्य संभावित युद्ध का परिणाम इज़राईल को भुगतना पड़ सकता है? अंदाज़ा इस बात का भी लगाया जा रहा है कि अमेरिका की अफगानिस्तान में बुरी तरह से हो रही किरकिरी के बाद अब तालिबान जैसे संगठनों ने अमेरिका से डरना बंद कर दिया है। कमोबेश अमेरिका की यही हालत उस इराक में भी हुई है जहां अमेरिका सामूहिक विनाश के हथियारों की मौजूदगी का बहाना लेकर बेवजह प्रवेश कर गया था और उस इराक को आर्थिक रूप से तबाह कर तथा वहां दो प्रमुख समुदायों के मध्य तनाव पैदा कर वापसी की राह पकड़ ली। अमेरिका में आई भीषण आर्थिक मंदी की स्थिति भी दुनिया से छुपी नहीं है। शायद इन्हीं हालात ने ईरान को अमेरिका की हिटलर शाही को चुनौती देने की स्थिति में पहुंचा दिया है।

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