युवाओं के लिए वरदान है प्रवक्ता

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शुरूआती दौर में प्रवक्ता के लिए एक बार लेख भेजा, नहीं छपा.  दूसरी और तीसरी बार भी नहीं छपा. गुस्सा आया कि कितना मेहनत से लेख लिखता हूँ, भेजता हूँ, लेकिन प्रवक्ता.कॉम पर छपता नहीं. पता नहीं क्या समझते हैं इसके सम्पादक अपने आप को. वेब पोर्टल ही तो है. अगर एक बार मेरा लेख लगा देंगे तो उनका क्या चला जाएगा. कोटेशन दिए हैं “अभिव्यक्ति का अपना मंच” पर मेरी अभिव्यक्ति को छाप ही नहीं रहे. प्रवक्ता को तथा संपादक महोदय को लेकर शुरुआती दिनों में यही भाव मन में उत्पन्न होते थे. सोचता कि मज़ा आ जाता! अगर एक लेख प्रवक्ता पर लग जाता. बाद में, जब कुछ सजग हुआ तो मुझे पता चला कि उन दिनों मैं गलत था. एक दिन फेसबुक जो अब नया नया मीडिया हो चला हैं. पर एक मित्र से बात हुई. मैंने प्रवक्ता के बारे में पूछा. हालांकि वो बहुत बरिष्ठ रहे हैं, उन्होंने ये कह कर टाल दिया कि संघ और बीजेपी की वेबसाइट हैं. मैंने कहा उससे क्या है ? जबाब नहीं मिला. मैंने सोचा इन्होने लिखा हैं कि “प्रवक्ता अभिव्यक्ति का अपना मंच” है, सो मेरी अभिव्यक्ति अर्थात लेख को जरुर छपना चाहिए. बहरहाल, मैंने एक लेख बीजेपी के पक्ष में लिखा, वो भी नहीं छपा, तब तो मुझे घोर दुःख हुआ, मन निराश हो गया. फिर एक भाव मन में उत्पन्न हुआ कि लगता है, मेरा परिचय इसमें नहीं हैं, इसलिए नहीं छप रहा. लेकिन मुझे जो आता था, मैं लिखता था,आज भी लिखता हूँ छपे या न छपे, लिखता रहता हूँ. मैं अब इस विचार से ग्रस्त हो गया कि किसी तरह से अब प्रवक्ता पर अपना लेख छपवाना हैं. आखिर क्या कारण हैं कि पहले कैसा भी लेख और अब बीजेपी तथा संघ के पक्ष में लिखने पर भी इन्होने मेरा लेख नहीं लगाया ?

कुछ दिनों बाद फिर से एक लेख लिखा और अपने लैपटॉप में सेव कर लिया फिर सोचा कि एक बार किसी और से पूछा जाए. मैंने अपने अग्रज मित्र और भाई पीयूष द्विवेदी से पूछा कि भाई क्या कारण हैं कि प्रवक्ता मेरा लेख नहीं छापता, बीजेपी के पक्ष में लिखने के बावजूद भी. उनका पहला जबाब था कि बीजेपी यहाँ कहाँ से आ गई! प्रवक्ता सबको छपता है, चाहें कोई विचारधारा हो. हाँ, लेख व्याकरण सम्मत और तथ्यपूर्ण होना चाहिए. फिर क्या बीजेपी और क्या कांग्रेस अथवा कोई समाजिक विषय पर लेख हो, व्यंग्य हो अथवा और कुछ भी हो, लेख छपेगा, क्यों नहीं छपेगा जरुर छपेगा. पीयूष भाई का जबाब सुन कर मुझे थोड़ा प्रोत्साहन मिला. पर मुझे उन महापुरुष जिन्होंने प्रवक्ता को भाजपा की साईट बताया था, पर इतना गुस्सा आया कि मैंने उनसे कुछ ही मिनट में पूछ लिया कि आप प्रवक्ता को लेकर अफवाह क्यों फैला रहे हैं. उनको जबाब देने की हिम्मत नहीं हुई उन्होंने मुझे ब्लाक कर दिया फेसबुक पर. बहरहाल ,उस समय पीयूष भाई का जबाब पाकर मुझे अपनी अबोधता पर खेद हुआ. धीरे–धीरे थोड़ा सुधार करने का प्रयास किया और अब भी वर्तनी की गलती मुझसे हो जाती है, ये मेरे लिए चुनौती है तथा मैं इसे स्वीकार कर इससे लड़ने का प्रयास कर रहा हूँ. फिर मैंने एक लेख लिखा, काफी मेहनत से वर्तनी ठीक से जाचं करा कर के. लेख भेजा कुछ घंटो में छप गया. मुझे इतनी ख़ुशी हुई, जिसका वर्णन मैं शब्दों में नहीं कर सकता हूँ, उस लेख को प्रवक्ता के वेबसाइट पर चमकता देख बहुत ख़ुशी हुई. फिर एक–एक कर कई लेख छपे. उसके बाद मुझे अपार ऊर्जा मिली और अब जब भी समय मिलता है, लिखता हूँ. एक दो छोटे अख़बार भी छाप देते हैं इसका श्रेय प्रवक्ता को जाता हैं जिसने मुझे अपार उर्जा के साथ अपनी बात रखने का मंच दिया. प्रवक्ता को अगर मैं “युवाओं के लिए वरदान” कहूँ तो ये कतई गलत नहीं होगा क्योंकि मेरे जैसे कई युवा प्रवक्ता से जुड़े हैं तथा प्रवक्ता को पत्रकारिता की इकाई मानते हैं., जब ये सोचता हूँ कि बारहवीं की परीक्षा के बाद इतनी कम उम्र में मुझे प्रवक्ता जैसा मंच मिला और मैंने लिखना शुरु किया देखता हूँ, कहाँ तक जाता हूँ? इसलिए मैं प्रवक्ता.कॉम को युवाओं के लिए वरदान कहता हूँ. उसके साथ प्रवक्ता के सम्पादक महोदय अग्रज संजीव सिन्हा साहब तथा प्रवक्ता से जुड़े सभी लोगो को बधाई देता हूँ. आप सभी ऐसे ही युवाओं को प्रोत्साहित करते रहें. हाँ, प्रवक्ता को लेकर भ्रम तथा अफवाह फैलाने वाले संकीर्ण मानसिकता वाले ब्यक्तियों से प्रवक्ता को सावधान रहने की आवश्यकता हैं. सुनने में आया है कि वेबसाइट प्रवक्‍ता डॉट कॉम यशस्विता पूर्ण 6 वर्ष पूर्ण करने को है. इस मौके पर आगामी 16 अक्‍टूबर को सायं 4.30 बजे नई दिल्‍ली स्थित स्‍पीकर हॉल, कांस्टिट्यूशन क्‍लब में एक भव्‍य समारोह हो रहा है. इस कार्यक्रम की सफलता की शुभकामना व बधाई.. बधाई..बधाई …..!

 

आदर्श तिवारी

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