क्या वाकई खुश है बांग्लादेश ?

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रोहित पाण्डेय

संयुक्त राष्ट्र संघ द्वारा प्रकाशित की गयी वर्ल्ड हैप्पीनेस इंडेक्स 2017 में बांग्लादेश 110 वें स्थान पर है । जाहिर है ये देश भारत से खुशहाल और संपन्न होगा !!जहां एक और प्रांयोजित तौर पर राष्ट्रवाद की आड़ में विश्व के अनेक देश बने और उसी की तर्ज पर बर्बाद हो गए । राष्ट्रीयता क्या है ? एक तीखी बहस है परन्तु कही न कही तर्कविहीन है । खास तौर पर यही देखा जाए तो अमेरिका के स्वराष्ट्रवादी विचार से लैश डोनल्ड ट्रम्प से ले कर तुर्की के राष्ट्रपति आर टी ईरड़ोगेन की राष्ट्रीयता अपने अपने पैमाने को दर्शाते है ।बात बांग्लादेश की हो या कही की पूर्ण राष्ट्रवाद के समर्थन करने वाले की दशा वैसी ही है जैसी भारत में कुलबर्गी की !!भारत के अत्यधिक पढ़े लिखे और शिक्षित कथित धर्म निर्पेक्षवादी अभिव्यक्ति के नाम पर जो हिंदुओं को कोसते है उन्हें कुछ सोचना चाहिए।ऐसी हज़ारों आत्मकथाएं है जो आपको अत्याचार की परिकाष्ठा से झकझोर देगी। बहुसंख्यकवाद एक ऐसा विचार है जो स्वतः ही अल्प संख्यक समाज को दबाने का हकदार बन जाता है जो आम तौर पर धार्मिक विचारों से प्रभावित होते है। जो की दंगे और बलात्कार कर सकते है । तस्लीमा ने इसी विचारधारा के मानक को समझाते हुए कहा ” धार्मिक रूप से अल्पसंख्यक समुदाय के प्रति झुकाव रखना धर्मनिर्पेक्षता का मानक नहीं है, धर्मनिर्पेक्ष का अर्थ होता है कि आपका धर्म से कोई लेना देना नहीं है ।लेकिन हमारे देश (बांग्लादेश) में धर्मनिर्पेक्ष यानी मुस्लिम वोट और इस वोट की खातिर आप तुष्टिकरण की हर सीमा को लाँघ सकते है । मुस्लिम बहुल बांग्लादेश की स्थिति भी कुछ ऐसी ही है । देश पूरी तरह से धर्मनिर्पेक्ष है परंतु धर्म के बेड़ियों में अटका हुआ है । सभी इस्लामिक देशों में अल्पसंख्यक बने हिन्दुओं पर अत्याचार आम तौर पर सामान्य है । वास्तविकता यह है कि वहाँ भी धर्मनिर्पेक्षता का पाठ पढ़ाया तो जाता है यकीन वो तरीका भी पूर्ण रूप से मुस्लिमवादी होता है । पाठक के तौर पर मैं स्पष्ठ करता हूँ कि मुस्लिमवादी विचारधारा है किसी धर्म पर चोट नहीं है। ये वो विचारधारा है जिसमे जिहाद और गज़ब-ए-हिन्द जैसे कृत्य शामिल है । जाहिर तौर पर ऐसे देशों में अल्पसंख्यक वर्गों की बहू बेटियों को बाजारू सामान से भी गया गुजरा समझा जाता है । पूर्णतः घटना एक सामाजिक प्रतिबिम्ब है जो यह दिखाता है कि समाज किस दिशा में अग्रसर है । धर्म से बढ़ कर धर्म की रक्षा करना कर्तव्यता का मानक है ,पर वही यदि धर्म की रक्षा से मनावत का रुन्दन हो तो धर्म की मान्यता समाप्त हो जाती है । बांग्लादेश भी इसी का शिकार है जहाँ इस्लाम की तौहीन की हवा सी बनाई जाती है और हर एक घटना को इस्लाम से जोड़ कर दंगो का रूप दे देते है । स्थिति इतनी बदतर है कि एक हिन्दू पिता को बलात्कारियों से गुहार लगानी पड़ती है कि उसकी बेटी का रेप एक एक करके करे ताकि उसकी जान बच सके !!!
अत्यन्त मार्मिक दृश्य जो मानवता की तुष्टिकरण की धज्जियां उड़ा देता है । बांग्लादेश की आजादी से लेकर आज तक के परिपेक्ष्य में अगर देखा जाए तो ये कहना बिल्कुल सही होगा की धर्म की जड़ता ने बाकि पैमानों को ताक पर रख दिया है ।चाहे वो उद्योग हो या सामाजिक संरचना ।अब फिर उसी सवाल पर लौटते है कि वाकई में क्या बांग्लादेश खुश है

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