पूर्णतः स्वदेशी है आईएनएस अरिहन्त

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Submarineजिस दिन प्रधानमंत्री ने आई.एन.एस. अरिहन्त देश को समर्पित किया था उस समय अरिहन्त के बारे में देश की जनता के पास बहुत अधिक जानकारी नहीं थी, लेकिन अपने देश की पहली परमाणु रिएक्टर युक्त पनडुब्बी के बारे में देश की जनता सबकुछ जानना चाहती है। आई.एन.एस. अरिहन्त के सेना में शामिल हो जाने के बाद से भारत दुनिया के उन छः देशों में शामिल हो गया है जिनके पास परमाणु रिएक्टर युक्त पनडुब्बी है। भारत से पहले सिर्फ अमेरिका, रुस, फ्रांस, ब्रिटेन और चीन ऐसे पांच देश हैं, जिनके पास स्वयं की परमाणु रिएक्टर युक्त पनडुब्बी है।

भारतीय परमाणु ऊर्जा कार्यक्रम की टीम इस परमाणु रिएक्टर पर पिछले कई वर्षों से काम कर रही थी लेकिन अत्यधिक संवेदनशील मामला होने के कारण इसे लगातार गुप्त रखा जा रहा था। भारत के पास पहले से ही कॉमपैक्ट प्रणोदन रिएक्टर था जिसे एक दशक पहले से ही बनाया जा रहा था और इसका सफलता पूर्वक भी परीक्षण कालपक्कम में कर लिया गया था। इसी रियक्टर को अरिहन्त में लगाया गया है।

भारतीय परमाणु ऊर्जा कार्यक्रम की टीम पहले से ही पी.डब्ल्यू.आर.(प्रेसर्ड वाटर रिएक्टर) पर काम कर रही थी और यह प्रौद्योगिकी ही अन्त में परमाणु रिएक्टर में काम में आने वाली थी। जिससे भविष्य में ऊर्जा का भी उत्पादन करने में भी भारत सक्षम हो सकेगा। एक सवाल उठ रहा है कि अरिहन्त को रुस के सहयोग से बनाया गया है तो इस पर भारतवासी कैसे गर्व कर सकते हैं? सच्चाई ये है कि ये बिल्कुल गलत है अरिहन्त पर हर भारतीय गर्व कर सकता है क्योंकि यह पूर्ण रुप से हमारे अपने देश में बना है इसका उपयोग करने के लिए हमें किसी के सुझाव या सहयोग की आवश्यकता नहीं रहेगी और न ही हमें किसी देश से पूछना ही है कि आपका पैसा कहाँ और कैसे पहुंचाना है ?

यह पनडुब्बी परमाणु रिएक्टर से कई मामलों में अलग है पहला कि यह एक स्थान पर नहीं रहेगी हमें जहां भी जरुरत महसूस होगी इसे हम वहाँ भेज सकते हैं, दूसरा कि यह एक रिएक्टर नहीं बल्कि एक पनडुब्बी है इसे हम कहीं से भी संचालित कर सकते हैं और इससे रिएक्टर की एक्सिलरेशन की शक्ति भी आश्चर्यजनक रुप से बढ़ जाएगी। तीसरी व सबसे महत्वपूर्ण बात ये है कि इससे हम कम जगह में ज्यादा ऊर्जा का उत्पादन करने में सक्षम होंगे क्योंकि यह एक पनडुब्बी है और कहीं भी पानी में स्थापित की जा सकती है।

कुछ लोग अफवाह फैलाते हैं कि भारत के पास पी.डब्ल्यू.आर. को संचालित करने के लिए पर्याप्त संसाधन उपलब्ध नहीं हैं लेकिन ये सरासर गलत है, भारत के पास पी.डब्ल्यू.आर. को संचालित करने के लिए पर्याप्त मात्रा में संसाधन हैं जिनके लिए मैसूर में एक प्लांट भी स्थापित किया गया है जो पिछले तीन वर्षों से लगातार काम कर रहा है इसलिए संसाधनो की कमी की बात सरासर गलत है।

आई.एन.एस. अरिहन्त पूरी तरह से भारतीय है और इसे बनाने में किसी भी देश की औपचारिक मदद नहीं ली गयी है। यह पनडुब्बी भारतीय वैज्ञानिकों और भारतीय उद्योग जगत को भारत सरकार द्वारा समर्पित की गयी है। हांलाकि रुस के योगदान को भुलाया नहीं जा सकता क्योकि रुस ने इस पनडुब्बी को बनाने में हमें काफी सहायता की है।

आई.एन.एस. अरिहन्त को बेबी रिएक्टर का दूसरा रुप बताया जा रहा है लेकिन एक बेबी रिएक्टर और अरिहन्त में पर्याप्त अन्तर है क्योकि अरिहन्त से बेबी रिएक्टर जितनी जगह में ही उससे तीन गुनी ज्यादा ऊर्जा उत्पादित की जा सकती है जैसे किसी रिएक्टर से हम 1000 मेगावाट बिजली का उत्पादन करते हैं तो उसी जगह से हम अरिहन्त के रिएक्टर द्वारा 3000 मेगावाट बिजली का उत्पादन करने में सक्षम हो जाएंगे। आई.एन.एस. अरिहन्त भारतीय नौसेना को सौंप दी गयी है और बहुत जल्दी ही उससे विद्युत का उत्पादन भी होने लगेगा।

भारत के लोग जल्दी ही अरिहन्त की सेवाओं का उपयोग करने लगेंगे। अन्य मशीनों की तुलना में अरिहन्त की आवाज बहुत ही कम है, आप इसकी आवाज सुन कर अन्दाजा ही नहीं लगा पाएंगे कि ये इतनी बड़ी मशीन की आवाज है।

वास्तव में आई.एन.एस. अरिहन्त भारतीयों के लिए भारतीयों द्वारा बनाया गया एक बेशकीमती तोहफा है।

-सौरभ कुमार यादव

(भारतीय परमाणु ऊर्जा कार्यक्रम के प्रमुख अनिल काकोदकर द्वारा की गयी बातचीत पर आधारित)

2 COMMENTS

  1. यॆ लॆख् पध् कर् मुझॆ मॆरॆ दॆश् कॆ वॆग्यनिकॊ पर् गर्व् हॊ रह हॆ.

  2. arhiant ke bare me itne vistrit dhan se jankari dene ke liye aap ko dhanyvad …aap ka lekhan ise tarah chalta rahe meri subhkamnaye swikar kare..

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