इस्लाम को ‘तालिबानी’ शिकंजे से मुक्त कराने की सख्‍त जरूरत

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तनवीर जाफ़री

इस्लाम धर्म इस समय घोर संकट के दौरे से गुजर रहा है। जैसा कि इस्लाम धर्म का इतिहास हमें बताता आ रहा है कि अपने उदय के समय अर्थात् लगभग 1450 वर्ष पूर्व से ही इस्लाम को सबसे बड़ा खतरा किसी अन्य धर्म, संप्रदाय या विश्वास के लोगों से नहीं बल्कि दुर्भाग्यवश उन्हीं लोगों से रहा है जो स्वयं को मुसलमान कहते थे और अपने को मुसलमान कहलाना पसंद करते थे। परंतु दरअसल उनकी सोच, गतिविधियां तथा कारनामे ऐसे हुआ करते थे जो वास्तविक इस्लामी शिक्षाओं से कतई मेल नहीं खाते थे। यही कारण था कि इस्लाम धर्म अपने उदय के समय से ही दो भागों में बंटता दिखाई दिया। एक वह वास्तविक इस्लाम जो उदारवाद, समभाव, समानता, कुर्बानी, क्षमा, करूणा तथा मानवता जैसी बुनियादी इस्लामी सीख देता है। यानी पैंगबर हजरत मुहम्‍मद साहब व उनके परिवार के सदस्यों द्वारा बताया गया इस्लाम। और दूसरी ओर समानातंर रूप से उस तथाकथित इस्लाम ने भी उसी समय से अपना पैर पसारना शरू कर दिया जो सत्ता, हुकूमत, बादशाहत, जुल्म, अन्याय अत्याचार, ज़ोर जबरदस्ती तथा अमानवीयता जैसी तमाम गैर इस्लामी शिक्षाओं का प्रतिनिधित्व करता था। समय के साथ-साथ पैंगंबर हजरत मोहम्‍मद का बताया हुआ सच्चा इस्लाम तो अपनी उदारवादी व मानवीय शिक्षाओं के फलस्वरूप इस्लामी शिक्षाओं के शांतिपूर्ण प्रचार प्रसार व अमल में लगा रहा जबकि तथाकथित इस्लाम का परचम उठाने वाले तथाकथित मुसलमान अपने जुल्‍म-ओ-जब्र के सहारे तथा अपनी कटटरपंथी विचारधारा के बल पर स्वयं को सशस्त्र तरीके से माबूत भी करते गए। परिणामस्वरूप आज वास्तविक व सच्चा मुसलमान असहाय नजर आ रहा है जबकि फसादी मुसलमान पूरी दुनिया में इस्लाम के नाम पर इस्लाम को बदनाम व रूसवा करता जा रहा है।

चौदह सौ वर्ष पूर्व का करबला का मैदान हो या मध्ययुगीन इतिहास में दर्ज तमाम आक्रमणकारी मुंगल शासकों के जुल्म या फिर तालिबानी विचारधारा या पाकिस्तान सहित कई अन्य देशों में अपना प्रभाव बढ़ाते जा रहे तथाकथित कट्टरपंथी इस्लामी विचारधारा के लोग। इन सभी तथाकथित मुसलमानों ने वास्तविक इस्लामी शिक्षाओं को इस कद्र रूसवा व बदनाम किया है कि आज दुनिया में यह नई बहस छिड़ गई है कि दरअसल इस्लामी शिक्षाएं हैं कौन सी? वह जो उदारवादी मुसलमान बता रहे हैं या फिर वह जो गत् 1400 वर्षों से किसी न किसी रूप में दुनिया के किसी न किसी हिस्से में फसाद फैलाने तथा इंसानियत का खून बहाने का पर्याय बनी हैं। ऐसी बहस का छिड़ना भी तब स्वाभाविक हो जाता है जबकि हम यह देखते हैं कि कभी बेनजीर भुट्टो के रूप में एक औरत को बम धमाका कर मार डाला जाता है। यहां मारने वाला गिरोह स्वयं को इस्लामी नुमाईंदा बताता है तथा बेनजीर की हत्या को इस्लामी जेहाद का हिस्सा बताया जाता है। दूसरी ओर इस्लाम धर्म न केवल किसी औरत पर जुल्म ढाने को एक बड़ा गुनाह बताता है बल्कि कुरान की आयतें तो यहां तक कहती हैं अगर तुमने किसी एक बेगुनाह शख्‍स का कत्ल कर दिया तो गोया तुमने पूरी इंसानियत का कत्ल कर डाला।

इसी प्रकार पिछले दिनों पाकिस्तान के पंजाब प्रांत के गवर्नर सलमान तासीर को एक ऐसे शख्‍स ने गोलियों से छलनी कर दिया जिसपर सलमान तासीर की सुरक्षा का जिम्‍मा था। हत्यारे मुमताज कादरी का कहना था कि उसने कई मौलवियों की तक़रीरें सुनी थीं। इन्हें सुनने के बाद ही उसने यह फैसला कर लिया था कि वह तथाकथित रूप से ईश निंदा कानून का विरोध करने वाले सलमान तासीर को जिंदा नहीं छोड़ेगा। और आखिरकार उसने सलमान तासीर के रूप में उस शख्‍स की हत्या कर डाली जिसकी मुहाफिजत का जिम्‍मा उस पर था। अब यहां भी इस्लामी शिक्षाओं में विरोधाभास साफ नजर आ रहा है। क्या हत्यारे कादरी ने इस्लामी शिक्षाओं पर अमल करते हुए सलमान तासीर की हत्या की या फिर सलमान तासीर इस्लाम के रास्ते पर चलते हुए एक एक बेगुनाह इसाई महिला आसिया बीबी को जेल से रिहा करवाने की जद्दोजहद में लगे हुए थे। इस घटना से जुड़ा एक सवाल और यह है कि क्या हत्यारे मुमताज कादरी का इस्लाम तथा उसे पथभ्रष्ट व गुमराह करने वाले कठ्मुल्लाओं का इस्लाम उन्हें यही तालीम देता है कि वे जिसकी हिफाजत में तैनात हों उस की हिफाजत सुनिश्चित करने के बजाए उसी की हत्या कर डालें?

उपरोक्त घटना का इससे दर्दनाक व चिंतनीय पहलू यह था कि वास्तविक इस्लामी शिक्षाओं के दुश्मन हत्यारे मुमताज कादरी को उसके द्वारा किए गए हत्या जैसे घिनौने व गैर इस्लामी कृत्य के बाद उसे एक महान आदर्श पुरुष, हीरो,विजेता, फातेह तथा गाजी के रूप में सम्‍मानित किया गया। उस पर गुलाब के फूलों की पंखुड़ियां बरसाई गईं। उसके समर्थन में विशाल जुलूस निकाला गया। उसकी पूरी हौसला अफजाई की। उसकी तत्काल रिहाई की मांग की गई। यहां तक कि सलमान तासीर के जनाजे की नमाज पढ़ाने का कट्टरपंथी कठ्मुल्लाओं द्वारा बहिष्कार तक किया गया। निश्चित रूप से उस समय पूरी दुनिया सलमान तासीर की हत्यापर अफसोस जाहिर कर रही थी तथा उनके सुरक्षा गार्ड द्वारा उन्हें मारने पर चिंतित व व्याकुल दिखाई दे रही थी। जबकि दूसरी ओर मुट्ठीभर सरफिरे इस्लामी विचारधारा के दुश्मन लोग किसी बेगुनाह इंसान के हत्यारे की हौसला अफजाई करते हुए उसका पक्ष ले रहे थे। यहां यहसवाल उठना भी स्वाभाविक है कि वास्तविक इस्लाम किसका है। उस मंकतूल सलमान तासीर का जो एक गैर मुस्लिम महिला की रिहाई के पक्ष में अपनी आवाज बुलंद करते हुए शहीद हो गया? या फिर जिस हत्यारे ने सलमान तासीर जैसे बेगुनाह इंसान की रक्षा करने के बजाए उसकी हत्या कर डाली उसका?

इसमें कोई शक नहीं कि कट्टरपंथी तालिबानी विचारधारा रखने वाले तथाकथित मुसलमानों द्वारा पाकिस्तान सहित दुनिया भर में किए जा रहे आतंकी कृत्यों के भयवश भले ही निहत्थे, उदारवादी तथा खुदा से डरने वाले मुसलमान वक्त क़ी नजाकत के मद्देनजर खामोश क्यों न हों परंतु अभी भी मुस्लिम समाज में उदारवादी एवं सच्चे इस्लाम के पैरोकारों का बहुमत है। यही वजह थी कि सलमान तासीर के जनाजे की नमाज पढ़ाने का जहां लाहौर के कई कठ्मुल्ला, कट्टरपंथियों व आतंकवादियों के भयवश बहिष्कार कर रहे थे, वहीं दूसरी ओर पाकिस्तान की प्रसिध्द इस्लामिक धार्मिक संस्था दारुल-इफता जामिया इस्लामिया के शेख-उल-इस्लाम मुफ्ती मोहम्‍मद इदरीस उस्मानी ने उसी समय एक फतवा जारी कर दुनिया को यह बताने काप्रयास किया कि सलमान तासीर के हत्यारे मुमताज कादरी द्वारा किया गया आपराधिक कृत्य वास्तव में इस्लाम की नार में क्या था। अपने फतवे में मुफ्ती उस्मानी ने उन लोगों की भी स्थिति इस्लामी नजरिए से स्पष्ट की जो सलमान तासीर की हत्या पर खुशी मना रहे थे तथा इस कत्ल को सही ठहरा रहे थे। शेख-उल-इस्लाम मुंती मोहम्‍मद इदरीस उस्मानी से पूछा गया कि पाकिस्तान के पंजाब प्रांत के गवर्नर सलमान तासीर को उन्हीं के अंगरक्षक द्वारा मारे जाने पर इस्लामी उलेमाओं का क्या मत है? गार्ड का दावा है कि उसने सलमान तासीर की हत्या इसलिए की कि उन्होंने ईश निंदा की है तथा पैंगबर मोहम्‍मद की तौहीन की। जबकि इस बात के कोई प्रमाण उपलब्ध नहीं हैं कि सलमान तासीर ने हजरत मोहम्‍मद की शान में कोई गुस्ताखी की हो या ईश निंदा की हो। उलेमाओं का उनके विषय में क्या मत है जो सलमान तासीर के हत्यारे की प्रशंसा कर रहे हैं?

उपरोक्त प्रश्न के उत्तर में मुंती इदरीस उस्मानी ने बिसमिल्लाहहिर्रहमानिर्रहीम कहकर फरमाया कि मैंने इस पूरे घटनाक्रम का गहन अध्‍ययन किया है तथा घटना से संबंधित सभी आलेख व समाचार गंभीरता से पढ़े हैं। इसके अतिरिक्त मैंने पाकिस्तान तथा भारत के तमाम वरिष्ठ एवं विशिष्ट इस्लामी धर्मगुरुओं व उलेमाओं से इस विषय पर चर्चा भी की है। अत:उपलब्ध साक्ष्यों के आधार पर इस्लामी शिक्षाओं के अंतर्गत मैं इस निष्कर्ष पर पहुंचा हूं कि- 1.मलिक मुमताज कादरी ने एक बेगुनाह आत्मा की हत्या कर गुनाहे अजीम (महापाप) अंजाम दिया है। एक बेगुनाह व्यक्ति की हत्या कर कानून अपने हाथ में लेकर तथा अपने कृत्य में इस्लाम के नाम को शामिल कर मुमताज कादरी ने फसाद फिल अर्ज अर्थात् धरती पर फसाद फैलाने जैसा पाप किया है तथा तौहीन-ए-रिसालत अर्थात् हजरत रसूल की तौहीन की है। ठीक यही स्थिति उन लोगों की भी है जो हत्यारे कादरी की तारीफ़ कर तथा बेगुनाह व्यक्ति की हत्या जैसे उसके महाअपराध की तारींफ कर इस्लाम के नाम पर और अधिक फसाद फैलाना चाह रहे हैं। वास्तव में वास्तविक ईश निंदक सलमान तासीर का हत्यारा है जिसने पैंगबरे रसूल की तौहीन की है। 2. वे लोग तथा वे संगठन, गुमराह पत्रकार, राजनीतिज्ञ, वकील तथा अज्ञानी उलेमा (धर्मगुरु) जोकि सलमान तासीर की हत्या जैसे महापाप को सही ठहरा रहे हैं तथा इस पर जश् मना रहे हैं वे भी इस महापाप के सहभगी हैं। और जिन अज्ञानी उलेमाओं ने सलमान तासीर के कत्ल के लिए फतवा जारी किया था वे भी मुफसिद फिल अर्ज यानी धरती पर फसाद फैलाने वाले हैं तथा उन्हें भी इस्लामी शरिया कानून के अंतर्गत सजा दी जानी चाहिए। 3. जब पाकिस्तान की अदालत में हत्यारे कादरी के विरुध्द देश के कानून के अंतर्गत मुकद्दमा चलेगा उस समय कुरान शरीफ की सूरए अलमायदा की आयत संख्‍या 32 को मद्देनजर रखते हुए हत्यारे कादरी तथा उसके समर्थकों के साथ इंसाफ किया जाना चाहिए। कुरान शरीफ के सूरे अल मायदा की आयत 32 के अनुसार जो शस किसी को न जान के बदले में,न मुल्क में फसाद फैलाने की सजा में बल्कि नाहक़ कत्ल करेगा तो गोया उसने सब लोगों को कत्ल कर डाला और जब किसी ने एक व्यक्ति को जिला लिया अर्थात् जिंदा बचा लिया तो गोया उसने सब लोगों को जिला लिया। जो लोग हत्यारे तथा फसाद फैलाने वाले की तारीफ कर रहे हैं उन्हें जहन्नुम नसीब होगा।

उपरोक्त फतवा जोकि इस्लामी शरिया व इस्लामी शिक्षाओं तथा कुरानी आयतों की रोशनी में जारी किया गया है वह अपने आप में इस बात का प्रमाण है कि इस्लाम में न तो किसी बेगुनाह की हत्या की कोई गुंजाईश है न ही बेगुनाह व्यक्ति के किसी हत्यारे की तारींफ करने वालों की कोई जगह। लिहाजा अब वक्त आ गया है कि दुनिया के सभी वर्गों के उदारवादी सच्चे मुसलमान अपने सभी ऐतिहासिक भेदभावों को भुलाकर इन कट्टरपंथी आतंकी शक्तियों के विरुध्द एकजुट हों तथा इनके विरुध्द अहिंसक जेहाद छेड़ने के लिए तैयार हो जाएं। इस अहिंसक जेहाद में वास्तविक इस्लाम की नुमाईंदगी करने वाले उदारवादी उलेमाओं का भी आगे आना बहुत जरूरी है। अन्यथा कहीं ऐसा न हो कि मुसलमान दिखाई देने वाली इस्लाम विरोधी तांकतें इस्लाम को पूरी तरह कलंकित व बदनाम कर डालें तथा कहीं वह इसे हिंसा के प्रतीक के रूप में प्रचारित करने में सफल न हो जाएं

4 COMMENTS

  1. इस्लाम में सुधार की हर पहल का स्वागत होना चाहिए. एक बढ़िया लेख और विचार के लिए जाफरी साहब को साधुवाद.

  2. तनवीर जाफ़री कहते हैं, कि,
    ” अब वक्त आ गया है कि दुनिया के सभी वर्गों के उदारवादी सच्चे मुसलमान अपने सभी ऐतिहासिक भेदभावों को भुलाकर इन कट्टरपंथी आतंकी शक्तियों के विरुध्द एकजुट हों तथा इनके विरुध्द अहिंसक जेहाद छेड़ने के लिए तैयार हो जाएं।”
    सुधारवादी इस्लामी चिंतको ने बहुत सारी वेब साईट पर इसका प्रारंभ कर दिया है।
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    http://www.mpjp.org
    http://www.original-islam.org
    http://www.thequranicteachings.com
    http://www.just-international.org
    https://islamlib.com/en/

  3. और, गैर मुस्लीम होते मैं भाई तनवीर जाफरी के विचारों की सराहना करता हूँ| उनका लेख भले ही अच्छे मुसलमान की पहचान देने में समर्थ है, मैं इसे सभी धर्मों में इंसानियत को जगाने का प्रयास देखता हूँ क्योंकि यहाँ बताये आदर्श सभी धर्मों में सामान्य हैं|

  4. ईस्लाम का वर्तमान स्वरुप मे प्रार्दुभाव एक दुर्घटना थी. किसी प्रबुद्ध व्यक्ति को अंतिम पैगम्बर घोषित कर देना और उसकी शिक्षाओ को एक पुस्तक मे कैद कर देना मानवता को एक बडे खड्डे मे गिराएगा, यह सुनिश्चित था. ईस्लाम के अन्दर किसी प्रबुद्ध पुरुष के विकसित होने की संभावना उसी दिन समाप्त कर दी गई थी. क्योकी कभी भी कोई प्रबुद्ध विकसित होगा तो वह विद्रोही बाते करेगा वह वर्तमान धारणा की जडता पर प्रहार करेगा. लेकिन आज का मुस्लीम मानस के पास उस प्रबुद्ध को सुनने भर की सहनशीलता नही है, मानना तो बहुत दुर की बात है. तो फिर भाई तनवीर जाफरी की बात पढ कर कोई गैर मुस्लीम भले ताली बजा ले, लेकिन कोई मुस्लीम तब्ज्जो देगा यह लगता नही है.

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